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एक चित्रकार की डायरी अखिलेश देश के जाने माने चित्रकार हैं, मेरे सहित बहुत लोगों ने उनके चित्र-संकेतों से ही चित्र को देखना सीखा है। उनकी कलात्मक संक्षिप्त डायरी के साथ यहाँ हम उनके कुछ ताज़ा रेखांकन उपयोग में ला रहे हैं। उनके रेखांकन उनकी चित्रकला की सुदीर्घ यात्राओं के विभिन्न पड़ावों के संकेत भी हैं, सार भी । ख़ास तौर पर पैनडेमिक के इस समय की छायाएं भी इनमें परिलक्षित होती दिखाई देती हैं पिकासो कहते हैं न ... Painting is just another way of keeping diary. दो ज़हीन एक सा सोचते हैं आज अखिलेश जी को जब कहा कि इन रेखांक्नों पर कुछ लिखिए तो वे बोले - मैंने लिख दिया ड्राईंग में। डायरी अंश आज काम शुरु किया है। मजा आ रहा है। रंग लगाने का जोखिम घातक है। इसमें डूब मरने की गुंजाईश भरपूर है। जोखिम का रोमांच। अव्यक्त से दूरियाँ। तीन दिन से एक जगह पर अटका हुआ हूँ। रंग लगाया है और सूझ नहीं रहा आगे का रास्ता। रंग बड़ी रुकावट है। प्रेरणा भी। कभी कभी रंग व्यवहार इतना अचम्भित कर जाता है कि मैं किंकर्तव्यविमूढ़ देखता रह जाता हूँ। आज एक रंग नारंगी से भूरे में बदल गया। अब मैं इस तरह के रंग व्यवहार पर चकित नहीं होता हूँ बल्कि प्रेरित होता हूँ। पिछली बार नीला ग्रे में बदल गया था। क्या सभी रुप परिचित हैं ? रुप का अपरिचय क्या है ? मुझे अक्सर यथार्थवादी चित्र प्रेरणा देते हैं। वे बतलाते हैं कि बीचों-बीच लाल रंग लगाने का जोख़िम कैसे लिया जा सकता है या कि एक अदृश्य कुत्ता चित्रित कैसे करना हैं।
क्या चित्र में गाय
मूर्त्त रुप है ?
कैसे गाय अमूर्त्त नहीं
है ? रेने
माग्रेट ने इस बात को बहुत सुन्दर ढँग से समझा और समझाया। मुझे हमेशा उलझन इस बात से होती है जब दावेदार चित्रकार पूछता है कि कौनसा चित्र अच्छा है। मैं उससे अपने पाँच अच्छे चित्र चुनने को कहूँ तो अव्यवस्थित हो जाता है। अज्ञानता बहुत से चित्रकारों का गहना है। डाली की लगन किसी भी चित्रकार के लिए ईर्ष्या का कारण हो सकती है। यह बात पक्की है कि मुझसे चित्र नहीं बनते वे ख़ुद से बनते हैं। इसका इन्तज़ार करना ही चित्र बनाना है। शायद इसीलिए गायतोण्डे इन्तज़ार करने को जगह दिए हुए बैठे रहते थे। हुसैन बेक़रार चित्रकार हैं, रज़ा की बेक़रारी रंग में है।
पिकासो और हिम्मत शाह
दोनों को रुप की समझ अकल्पनीय है। शायद इसी कारण हिम्मत पिकासो की बात
अक्सर करते हैं। स्वामी पिकासो को पश्चिम के उद्धारक की तरह देखते हैं।
डेविड हॉकने ने खूबसूरत बात कही कि पिकासो ने पश्चिमी मनुष्य को दो आँखों
से देखना सिखाया। शागाल यदि यथार्थ को स्वप्न में बदलते हैं तो डाली स्वप्न को यथार्थ में। यही डाली की कमज़ोरी भी रही। जिसका विरोध कर रहे हो उसी का सहारा लेना पड़ा। अम्बादास के साथ बिताये दिन एक संत के साथ बिताये समय सा है। उनकी निश्छल हँसी उन्ही के चित्रों के ब्रश स्ट्रोक सी है। उत्तरायण में रवीन्द्रनाथ टैगोर का संग्रहालय देखा। दुःख हुआ यह देख कि डिस्प्ले जितने बड़े वो कवि थे उतना ही ख़राब था। विश्वभारती को पास का तालाब ढूँढना चाहिये।
दुबई में हुसैन के
चित्र देखे जो मारिया ने लौटा दिये,
ये हुसैन के बनने के
प्रमाण हैं इनमें वो रहस्य छुपा है जिसे 'हुसैन'
कहा जाता है। रज़ा के रंग बहुत से कलाकारों के लिए प्रेरणा, ईर्ष्या, उत्साह, विचार, विवाद का विषय हैं। रामकुमार कभी अपने दुःख से बाहर नहीं आ सके और ये दुःख उनके चित्रों की सबसे नीचे वाली सतह में चित्रित है। रामकुमार को किस बात का दुःख था ? -अखिलेश |
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