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कच्ची धूप के कतरे अरविंद आशिया (कमसिनी की डायरी के अंश)
10अप्रेल तब से अब तक कितनी ही बार मिला हूँ मगर कल जब वार्षिकोत्सव की तैयारी के लिए हमें बुलाया गया तो मेरे गाने के बाद वो बोली थी कि तुम्हारी आवाज़ में दर्द नहीं है । मैंने देवर फ़िल्म का गाना ‘बहारों ने मेरा चमन लूट कर ‘ गाया था ।
13 अप्रेल
18अप्रेल वैसे वो कभी नहीं बोली कि मुझ में ख़ुशबू आती है । कल मैंने विज्ञापन की टैग लाइन सुनाते उससे कहा था ‘ आई यूज़ सिन्थॉल ‘ उसने कुछ पल घूरा दमुझे फिर वापस दीपक सर की तरफ़ देखने लगी । क्या मेरे साबुन से ख़ुशबू नहीं आती ?दीपक सर एक तेलुगू गाना सिखा रहे है ‘पिल्ललारा.. पापल्लारा रै पटि बारत पौरूल्लारा’ मैं तो उसे देखता हूँ बस । गाने का क्या …गा लेंगें । वो बहुत सुंदर है । सामान्यतः लड़कों से कम बात करती है । बलराज ज़रूर लाइन मार रहा है , ऐसा लगता है । 25 अप्रेल आज सवेरे मैं साँप की कैंचुल लाया हूँ । हॉस्टल के पीछे वाले मंदिर के पीछे झाड़ी में अटकी थी । गाँव में कहते हैं कि साँप की कैंचुल भाग्य बढ़ाती है । नेहा मेरे श और स के उच्चारण को लेकर छेड़ती है । यार कितना मुश्किल है श बोलना । अब तो मैं पूरे ध्यान से बोलता हूँ । नेहा इतने प्यार से देखती है कि सबकुछ बिसर सा जाता है । अक्सर रिहर्सल के बाद भी जब तक उसकी बस का टाइम नहीं होता है हम रिहर्सल रूम में बैठे रहते है । सच मेरा खाने का मन नहीं होता है आजकल । क्या वो सच्ची इतना ही प्यार करती है ? शायद हाँ ... पता नहीं । आज तो हॉस्टल में फ़िल्म दिखाई थी .. शागिर्द । । नेहा सायरा जैसी ही लगती है सचमुच । 28 अप्रेल प्रवीण की ज्योतिष मान गया आज तो । अक्सर नरेन्द्र और प्रवीण बातें करते है .. मैं तो सुनता रहता हूँ । आज जब मैं दिन में शहर जाने के लिए तैयार हुआ तब प्रवीण बोला था कहाँ जा रहे हो और मुझे ग़ुस्सा आ गया ‘ टोका पनौती ने ‘ फिर मैंने कहा किसी का घर ढूँढना है । उसने कहा आप सिंह लग्न में जा रहे हो ,काम हो जाएगा । नेहा सुखाड़िया सर्किल पर रहती है पर उसने पता कभी नहीं बताया । मैंने चैलेंज लिया है कि मैं ढूँढ लूँगा । सिटी बस से सूरज पोल उतरा । ऑटो में बैठ कर सुखाड़िया सर्किल पहुँचा । दो गलियों के चक्कर लगाये ही थे कि एक बंगले के बाहर डॉक्टर साहब का नाम लिखा दिख गया । नेहा के पापा डॉक्टर है यह पता था । दरअसल मुझे शहर डरावने लगते है । कल तो जब नेहा को बताऊँगा कि मैंने तुम्हारा घर ढूँढ लिया तो वो हैरान हो जाएगी । नेहा का घर कितना अच्छा है । पता नहीं हमारे क़स्बों में ऐसे घर क्यों नहीं होते । ड्यूप्लेक्स बंगले के बाहर खड़े पांच पाम ट्री । नेहा की बहन भी डॉक्टरहै ... उसकी नेमप्लेट भी पिता के साथ लगी थी । मैस में खाना कुछ अच्छा नहीं बनता । आलू के साथ राजमा डलते है जिन्हें पहले मैं मूंगफली ही समझता रहा फिर मैस वाले शिवा ने बताया कि वो राजमा होता है । पता नहीं कितनी चीजें आप ज्यों ज्यों बड़े होते हो बदलती जाती है । शायद खाना और रहना भी । देरतक नींद नहीं आती मगर हां जबसे पता लगा है कि नेहा एमएस सी कैमिस्ट्री की टॉपर है ,मेरा भी मन पढ़ने में अधिक लगने लगा है सो कोर्स ही पढ़ता हूं । 30 अप्रेल नेहा ने कल बहुत उड़ाया पाम ट्री को लेकर । जब मैने बताया कि मैने उसका घर ढूंढ लिया तो मेरे मुंह से निकले 'नारियल के पेड़ ' के नाम पर खूब हंसी और उसके साथ वो अर्चना ...बंगाळण । ये लोग गांव कस्बों के लोगों को बेवकूफ समझते हैं। खुद ये लोग कॉन्वेंट में पढे है । यार आदमी को शहर में ही जन्मना चाहिए । मेरा पहला क्रश 'अ' भी सेंट मेरियन थी और मैं राजकीय प्रथमिक विद्यालय का विद्यार्थी । दुबारा जब दसवीं के बाद हम मिले तो उसने बात तक नहीं की । आज दीपक सर ने बताया कि लड़कों को जीन्स पर सफेद कुर्ता पहनना है और लड़कियों को साड़ी । कुल पांच चीजों में मैं हूं । देवेन्द्र के साथ प्रार्थना करवानी है ,फिर अक्षय झाला के साथ कबीर के दोहे ,फिर एक अवधी और एक तेलुगू सामूहिक गीत और एक मेरा सोलो ...बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी । आज मेरी हंसी उड़ाई गई तब से मुझे बुरा लगा है । अर्चना मेरी कुछ नहीं लगती मगर नेहा तो प्यार करती है न ,वो ऐसे तमाशा कैसे बना रही थी । आज रिहर्सल के बाद मैं नहीं रुका ..सीधा हॉस्टल आ गया । पड़ौस वाले कमरे में रह रहा शैलेंद्र जयपुर से मिठाईयां लाया है .. सो आते ही खूब सारी मिठाईयां खाई । क्या गुस्से में भूख ज्यादा लगती है ? 3 मई आज दोपहर में ही डायरी लिख रहा हूं क्योंकि बहुत खुशी हो रही है । मै नेहा से पिछले तीन दिन से बात नहीं कर रहा था । आज रिहर्सल रूम में घुसते ही से उसने मेरे हाथ में एक चिट थमा दी । मुझे अजीब सा लगा । दिल इतना तेजी सेधड़का मानों आवाज सुनाई देने लगे । मैने कोने में जाकर पढ़ा । उसमें दो पंक्तियां लिखी थी -
'
हँस रही है चांदनी... मचल के रो न दूं कहीं ...ऐसे कोई रूठता नहीं ...'
।
मैने जब पढ कर
नेहा को देखा तो उसकी आंखों में मिन्नत सी थी ।
मैं मुस्कुरा
दिया मगर वो कॉन्वेंट रिटर्न आत्मा ...मेरी तरफ एक आँख बंद की व जैसे कुछ
भी नहीं हुआ हो वैसे दीपक सर की तरफ मुड़ गई ।
बाप रे ...!
जैसे तैसे रिहर्सल कर हॉस्टल भाग आया ।
कितने
देर तक उस चिट को देखा पढ़ा ।
नेहा सच में
बहुत अच्छी है ।
आज शाम को
वार्षिकोत्सव है ।
सभी को छ बजे तक
पहुंचना है । रात की एक बज रही है । नींद नहीं आ रही । नरेंन्द्र और प्रवीण सो गए । बहुत मजा आया । आज लगा कि मैं कॉलेज का स्टार स्टूडेंट हूं । कार्यक्रम में पुरस्कार वितरण में सबसे ज्यादा ईनाम मेरे नाम थे । वर्ष भर के लगभग सारे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मैं जीता था । मेरी सीनियर रमा दीदी ने तो कहा कि आज तो वार्षिकोत्सव कम और अरविंद नाइट ज्यादा लग रही थी । नेहा के प्यार पर भी आज मुहर लग गई । वो सचमुच उतना ही प्यार करती है जितना मैं करता हूं । वो हमेशा मुझे कहती रहती थी कि ' अरविंद ,तुम किसी दिन मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम ..सुनाओ ना '। और मैं हमेशा ही टाल के निकलता रहा । आज जब कार्यक्रम शुरू होने वाला था और शायद सिंचाईमंत्री प्रभाकर जी का फोन आया कि वे थोड़ी देर में पहुंच रहे है तब चंद्रशेखर भैया ने कहा कि अरविंद तब तक तुम स्टेज एंगेज करो ...कुछ सुना दो । दीपक सर ने भी मुझे देखकर गर्दन हिलाई । आर्केस्ट्रा वाले पीयूष भाई ने कहा क्या सुनाओगे ..तो मैने कहा ' मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम..'गाना शुरू हुआ और गाते गाते जब मेरी नज़र स्टेज के दांयी ओर कोने की ओर गई तो वहां नेहा खड़ी थी आधी साड़ी लपेटे व बाकी हाथ में लटकाए । अपलक देख रही थी । गाना खत्म कर नीचे उतरा तो हाथ में कंघा थामे नेहा मुझे देख रही थी और मैं नेहा को । चंद्रशेखर भैया ने तभी अनाउंस किया कि हमारे मुख्यअतिथि माननीय मंत्री महोदय पधार गए हैं ...। नेहा भागकर ग्रीन रूम में चली गई । कार्यक्रम के बाद बस वाले जल्दी ही निकल लिए मगर हम हॉस्टलर खूब देर कॉलेज में रूके और फिर हॉस्टल आए । नेहा नेहा नेहा नेहा नेहा नेहा !!!इतना प्यार कैसे संभलेगा मुझसे 10मई दो दिन हुए प्रिपरेशन लीव शुरु हो गई । आठ तारीख को मैं निकला तब तक नेहा की बस निकल गई थी । मुझे बहुत बुरा लगा । गुस्सा भी आया अपने आप पर । कोई तरीका भी तो नहीं बचा था । परीक्षाएं सर पर है । पता नहीं क्यूं चौराहे वाले मेडिकल स्टोर से नींद की गोलियां लाया कल और चार खाकर सो गया । आज सुबह ग्यारह बजे जगा हूं । सिर भन्ना रहा है । कुछ खाने का मन नहीं है । मैस ग्यारह बजे बंद हो जाता है । एक बजे लंच में खुलेगा । कोशिश करता हूं कुछ पढूं । नेहा रूकती अगर मेरे लिए तो वापस घर कैसे जाती । उसने जाते वक्त तक राह तो देखी होगी मगर मैं ही लेट लतीफ हूं । प्रवीण कुछ पासबुक लाया है देखता हूं । 30 मई ये सब मेरे साथ ही क्यूं होना है । कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता .. मगर जिन्हें नहीं मिलता उनके दर्द की सघनता कौन जानता है । नेहा की आँखों में प्रेम तो हमेशा देखा है मैने । वो रिहर्सल रूम में इजहार... वो मेरे गाने पर आधी साड़ी लपेटे दीवानों की तरह मंच तक आ जाना .. मैने कहां गलती कर दी ? आज डायरी में कुछ भी लिखने का मन नहीं है । प्रवीण और नरेन्द्र दिन में एक बजे ही सामान लेकर गांव चले गए क्यूंके आज आखिरी इम्तिहान था । हां आखिरी ही था मेरे लिए भी ...यूनिवर्सिटी का भी और जिंदगी का भी । मैं पास नहीं हो पाया । मैने आज नेहा से कहा था कि तुम रूकना परीक्षा के बाद । मैं आर्चीज से सुंदर कार्ड लाया था कल शाम चौराहे वाली शॉप से ..नेहा के लिए ,जिसमें गुलाब लगे थे । जल्दी ही लौटने का वादा भी करना था । नेहा कैसे रहेगी यह भी उलझन थी । परीक्षा खत्म होते ही मैं भागा भी मगर नेहा अर्चना से बातें करते बस में चढ़ रही थी । आज मैं कसम से देरी से नहीं था । हां ,इतना साहस नहीं कर पाया कि बस तक जाकर कार्ड दूं क्योंकि उस बस में टीचर्स भी तो थे । मुझे न तो रोना आया और ना ही कुछ और हुआ... एकटक सूना सा पोर्च से बस को देखता रहा । आज भी बस चली गई । हमेशा जहां से बस मुड़ती है और नेहा मेरी तरफ देखकर हाथ हिलाती थी ,वहां से बस मुड़ी भी मगर नेहा ने इधर नहीं देखा । कमरे में आज मैं अकेला हूं । हुलक कर रोया रजई में मुंह डाल कर । काश !नेहा कह जाती कि उसे प्यार व्यार कुछ नहीं था । देखता हूं कितनी नींद की गोलियां बची है .. सब खा लूंगा । 18 अगस्त
पिछले दो ढाई महीने मैने कुछ नहीं लिखा ..मगर आज लिखना चाह रहा हूं ।
सप्ताह पहले
रिजल्ट आया है ।
मैने यूनिवरसिटी
टॉप किया है ।
नेहा पता नहीं
क्यूं घाव की तरह रिसती रहती है ।
मैं
सदैव ठगा और अपमानित महसूस करता हूं।
काश कि वो बोल
देती कि उसे प्यार नहीं था ।
आज दिन में
कॉलेज पहुंचा ।
जितने टीचर्स
मिले उन्होंने कहा तुम्हें पीजी में एडमिशन लेना चाहिए।
प्रो एनएल शर्मा
के घर गया ।
अधिकांश टीचर्स
कॉलेज के पीछे क्वाटर्स में रहते है ।
मैने अनमने से
पूछा कि क्या मेरे क्लास फेलोज में से किसी ने इसी कॉलेज से पीजी के लिए
अप्रोच किया है
?
सर ने कहा
'हां
,
अनिल दशोरा और नेहा ने फार्म भरा है ।
'
पता नही क्यूं
मैने सर से कहा कि मैं फार्म भरूंगा सर
,इसी कॉलेज से ।
सर ने कहा यहां
पीजी स्टूडेंट्स को हॉस्टल नहीं देते ... मैने कहा कोई बात नहीं सर मैं कुछ
और जुगाड़ कर लूंगा मगर पीजी यहीं से करूंगा ।
-अरविंद आशिया
अरविंद आशिया राजस्थानी और हिंदी के चर्चित लेखक हैं, उनकी युवावस्था की डायरी की टीपें हम चुरा लाए हैं हिंदीनेस्ट के लिए.... |
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