मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
|
मेरी लॉकडाउन डायरी संगीता सेठी वो सीता बहन और आंसुओं में धुलते झबले 18 जनवरी 2020 : मुझे इस परिसर में आए पूरे 18 महीने हो गए हैं | शनिचर जी थान का यह परिसर मुझे बेहद रास आया हैं | इसी के परिसर में मेरा ऑफिस हैं | मुख्य सड़क पर 5 शटर वाला मेरा भारतीय जीवन बीमा निगम का ऑफिस हैं | पिछले दरवाजे से शनिचार जी थान के मंदिर में जाने का गुम रास्ता हैं | मुझे अपने ऑफिस का टॉयलेट पसंद नहीं आया | कहीं अन्यत्र ढूँढने के चक्कर में यह सीता बहन मिली हैं | सीता बहन शनिचर जी के थान के केयर टेकर राम-सा की पत्नी हैं जिसका नाम गवरी से जाने कब सीता हो गया हैं | उसी ने मुझे अपने टॉयलेट की चाबी दे दी हैं | पिछले 16 महीने से लगातार टॉयलेट के बहाने से उससे मुलाक़ात होती हैं | वो पीपल के बहुत बड़े पेड़ के नीचे चारपाई पर बैठती हैं | आज भी धूप में बैठी थी अपने दोहित्र के साथ | उसकी बेटी पूरण आई हैं बैंगलोर से और तीन वर्षीय दोहित्र ऋषभ भी | उसकी बहू पूजा एक किताब लेकर हलके से घूंघट में बैठी थी सीता बहन की पीठ की ओट में | मैं भी उनको देख कर खुश होती हूँ | मेरी आदत में हैं गाहे-बगाहे खुशियाँ बटोरना | आज मैं चारपाई पर बैठी सीता बहन की तरफ बढी अपने हाथ फैलाए हुए जैसे कोई इश्क में हो, मेरे इस अदा को जाने कैसे उसने भांप लिया और चारपाई से खड़े होकर मेरे आगोश में समा गयी | उसके ओढ़ने से उठती ग्रामीण महक मेरे नथुनों में भर कर मुझे खुशी से बेहाल कर गई | वो मेरे आगोश में समाए समाए बोली-“ मैं डम जी ! आप आते हो तो हम खुश हो जाते हैं , चाहे आप पाँच मिनट के लिए आते हो ! म्हाने आपरो इंतज़ार रहवे हैं ” आज मेरी खुशी दुगुनी हो गयी थी | 20 फरवरी 2020 आज भी सीता बहन को मैंने कस कर जफ्फी पाई थी | और वो मुझे लेकर फाग के गीत गाने लगी –“ होली आई रे बादीड़ा तेरी बोलण की, ओ रुत आई रे ” उसने मेरी हथेलियों से अपनी हथेलियां मिलाकर अँगुलियों में अँगुलियां फंसा ली थी | वो धीरे-धीरे थिरकने लगी थी | मैं भी उसकी थिरकते पैरों में शामिल होने लगी थी | कब हमारा नृत्य तीव्र गति में चला गया पता ही नहीं चला | उसने पैरों की गति को विराम दिया तो हम एक दूसरे के गले मिले हुए थे | अलग हुए तो एक ठहाका लगा रहे थे | सीता बहन से मिलकर मेरी भी खून की दो बूँद बढ़ ही जाती हैं | सीता बहन ने पूछा-“ सोगरा खाओगे , बनाया हैं आज ” मैं जोधपुर रहकर सोगरा समझने लगी हूँ | सोगरा यानी बाजरे की रोटी | मैंने कहा-“ हां ! लेकिन गुड़ के साथ ” उसने अपनी बहू पूजा को आवाज़ दी –“ बैन जी वास्ते सोगरा लाइजो , घी घाल अण गुड़ सागे ” वो सोगरा भले ही मेरी पसंद का था लेकिन प्यार में पगा वैसा सोगरा आज से पहले मैंने कभी नहीं खाया था | 8 मार्च 2020 : आज भी रोज की तरह सीता बहन से मिलने उसी अंदाज़ में गई थी | पहले उससे गलबहियां डाली फिर उसी के संग चारपाई पर बैठ गई थी | चारपाई पर “राजस्थान पत्रिका” पडी थी | मैंने उठाई और पन्ने पलटने लगी | इसमें मेरी कहानी प्रकाशित हुई थी “मैं सशक्त” | मैं सोचने लगी सीता बहन समझेगी तो नहीं पर फिर भी उसे बताने लगी-“ देख सीता बहन ! इसमें मेरी कहानी छपी हैं |” अनपढ़ सीता को भी समझ आया कि इस छपे से मेरा कोई रिश्ता हैं | बोली “ ए आप लिखी हैं , कांई लिख्यो हैं , पढ अर सुणाओ ” और मैं चारपाई पर उसे पढ़कर सुनाने लगी | वो अपनी ठोडी पर हाथ रख कर बड़े गौर से सुन रही थी | वो मेरे हर शब्द पर ध्यान दे रही थी | भले ही उसे समझ आ रहा था या नहीं, आखिर वो मेरे इश्क में थी और मैं उसके | इश्क में इंसान को उसकी हर बात अच्छी लगती हैं | वो मुझे मंत्र-मुग्ध होकर देख रही थी | उसकी बहू पूजा अचानक से प्रकट हुई तो उसे भी बताने लगी | सीता समझ रही थी कि ये कोई पढाई की बात हैं | सीता बहन बोली-“ मैं पूजा को पढ़ाना चाहती हूँ , अभी एम.ए. कर रही हैं , फेर बी.एड. करवाऊँ, पण अभी तो अप्रैल में बच्चा होगा, कोई ना, मैं संभाल लूंगी टाबर को, इसे फ्री कर दूंगी | म्हारी दोनों बेटियों को भी बी.एड. करवाया | ” मैं आज उसे हैं रानी से देख रही थी आज | सीता बहन के हाथ में हल के बजाय मुझे पैन दिखाई दे रहा था | मैं उठते समय मुस्कुराई और पूजा को देखते हुए बोली इसके काम में मेरी ज़रूरत हो तो मुझे याद करना | मैं चलूंगी तुम्हारे साथ अस्पताल | 18 मार्च 2020: कोरोना की दस्तक भारत में दी जा चुकी थी | आज जोधपुर की नई सड़क पर कर्फ्यू लगा था | सुबह-सुबह एक कस्टमर ने आकर बताया था | मन में भय व्याप्त होता जा रहा था | हमारे ऑफिस के हैं ड ऑफिस से दिशा निर्देश जारी हुए थे | कम्प्यूटर के व्यक्तिगत इस्तेमाल, सेनेटराइज़र, मास्क, सोशल डिसटेंसिंग, हाथ मिलाने पर रोक, अपना पानी , अपनी चाय घर से लाने जैसी बातों के कार्यालयी आदेश कोरोना की गंभीरता को बयान कर रहे थे | मैं निकली थी शनिचर जी थान के गुम रास्ते से सीता बहन की पीपल के पेड़ के नीचे बिछी चारपाई तक | मेरा गले मिलने का अंदाज़ वही था, दूर से सीता बहन ने मुझे देखा तो उठ खड़ी हुई चारपाई से और हाथ जोड़ कर बोली- “ आपां गले मिलांगा तो थाने खतरा हैं , मैं नहीं चाहूँ आपने की होवे ” मैं अचंभित थी कि वो देश-विदेश की सारी ख़बरों से वाकिफ थी | फिर वो परिसर में आ दो बच्चों को भगाने लगी जो साइकिल चला रहे थे | बोली “ आ ऋषभ के पास बहुत आवे हैं , सब जिगहां बीमारी फ़ैल रही हैं | भगाणों ही ठीक हैं इंया ने ” मैं भी उसकी भावना का सम्मान करते हुए लौट आई , थोड़ी मायूस थी, पर हैं रान भी कि सीता बहन हमारे ऑफिस जैसे नियमों का पालन कर रही हैं | 24 मार्च 2020 : पिछले 3 दिन कितने दहशत में निकले हैं | 21 को जनता कर्फ्यू फिर राजस्थान में लॉक डाउन अब भारत में लॉकडाउन ने हर आम और ख़ास आदमी के भीतर भय रोप दिया हैं | मेरा ऑफिस भी पिछले दिन से बंद हैं | आने वाले 21 दिन का समय दे दिया हैं सरकार ने | आज तक जीवन में ऐसी स्थिति नहीं आई हैं कि ऑफिस बंद हो जाएं | मुझे रह-रह कर सीता बहन की याद आ रही हैं | आज शाम को वीडियो कॉल की थी | सीता बहन का हाल पूछा था | वो बोली- “ हम सब ठीक हैं , आप भी अपना ध्यान रखना ” फिर उसने शनिचर जी थान के चारों तरफ अपने मोबाइल को घुमाकर दिखाया | बड़े-बड़े काले गेट बंद पड़े थे | परिंदों की आवाज़ भी सुनाई नहीं दे रही थी | चारों तरफ सन्नाटा पसरा था | ऋषभ पीपल के पेड़ के नीचे उकडूं बैठा मिटटी खोद रहा था | पूजा और पूरण दिखाई नहीं दे रहे थे | 20 अप्रैल 2020 : सरकार द्वारा ऑफिस खोलने की मंजूरी के बावजूद आज मेरा ऑफिस नहीं खुला था | जोधपुर के स्थानीय प्रशासन ने रेड ज़ोन की वजह से ऑफिस खुलने की मंजूरी नहीं दी थी | मेरा मन सीता बहन के परिवार में अटका था | आज उसकी बेटी पूरण ने एक वीडियो भेजी थी | वो मुझे शनिचर जी थान का दृश्य दिखाने को उत्सुक थे | वीडियो में परिसर में दमकल जैसी बड़ी-बड़ी दो गाड़ियां आई थी | वो पूरे परिसर में बड़े-बड़े पाइपों से मंदिर सैनेटराइज कर रही थी | शिव मंदिर के दरवाजों पर, शनि मंदिर की ड्योडी पर सैनेटराइजर की सफ़ेद धुँआ-धुँआ बौछारें पड़ी थी | पीपल के पेड़ के नीचे अब भी चारपाई बिछी थी | वीडियो शायद पूरण ही बना रही थी | घर के लोहे के दरवाजे की झिर्री से मुझे पूजा की लाल ओढनी दिखने का अहसास भर हुआ था | ऋषभ नंगे पाँव गाड़ियों के पीछे जाने का असफल प्रयास कर रहा था | मैं मायूसी से उस वीडियो को देख रही थी | ना बंद करते बन रहा था , और उसे देखना मेरी मायूसी को बढ़ा रहा था | आज मैं बेहद उदास थी | 24 अप्रैल 2020 : आज सुबह सुबह मोबाइल का व्हाटसएप्प खोला तो पूरण ने कुछ फोटो भेजे थे | उदास मन से खोला तो नवजात के फोटो थे | मेरी उदासी मुसकान में बदल गयी | नीचे संदेश लिखा था- “पूजा-अनिल के बेटा हुआ हैं रात 3 बजे ” मेरी उदासी में लिथड़ी हुई खुशी इस उदासी से बाहर आना चाहती थी | मैंने झट से पूरण को फोन लगा दिया | “ बधाई हो पूरण ! पूजा कैसी हैं ? ” “ अच्छी हैं आंटी जी ! ” “ बच्चा ठीक हैं ? ” “ हां आंटी जी ! ” “ मम्मी कहाँ हैं ?” “ वो अस्पताल हैं , मैं अभी घर आ गयी | ” “ ओह ! ” पूरण ने बताया कि रात 12 बजे दर्द उठा था | तब पूजा को पापा के साथ स्कूटर पर भेज दिया और वो खुद पैदल-पैदल उम्मीद अस्पताल तक चली गयी | अस्पताल एक किलोमीटर की दूरी पर ही था | “ अच्छा ! मेरी अनिल से बात करवा , बधाई दूं छोरे को , बाप बन गया हैं ” मैंने ठिठोली की | उसने बताया कि अनिल को तो क्वारंटीन सेंटर भेज दिया हैं | उसे दो दिन पहले गले में खराश थी, दिखाने गया तो गाड़ी में बैठाकर 10 किलोमीटर दूर सेंटर पर ले गए हैं | आख़िरी शब्द कहते -कहते उसका गला भर आया था | मेरे हाथ से मोबाइल छूट छूट जा रहा था | मेरी डबडबाई आँखों के सामने राम-सा, सीता-बहन, पूरण, ऋषभ, अनिल, पूजा और नवजात शिशु की छवियां तैर रही थी | मेरे आँसूं ढुलकने लगे थे | गालों को भिगोते हुए मेरा आँचल गीला कर दिया था | मन उदासियों के घेरे में फिर से घिर गया था | 30 अप्रैल 2020 : आज पूरण ने उस पीपल के पेड़ के नीचे नवजात की छठी के पूजन की फोटो भेजी थी | मेरा मन भर आया था | पिछले दो दिन से दालान में रखी सिलाई मशीन पर तीन झबले सिले थे | दो बिना बांह के ,एक आधी बांह का | आज एक और झबला सिल लिया था, नीले रंग का, काशनी किनार वाली पूरी बाजू लगाई थी | बाँई तरफ छोटा सा जेब भी लगाया था | मेरी क्रियेटिविटी-पोटली में एक बेबी प्रिन्ट का कपड़ा मिल गया था, उसे दोहरा कर बेबी चादर बनाई, चारों तरफ लगाने के लिए लेस भी मिल गयी थी पिटारे में | सफ़ेद कपडे के छ: तिकोने नैपकिन भी बनाए थे | शाम को टी.वी. देखते हुए एक स्वेटर बनाना भी शुरू कर दिया था | मैं नवजात के पैदा होने के बाद ही उसके लिए कुछ बनाना शुरू करती हूँ | मेरी माँ कहा करती थी कि अजन्मे बच्चे के लिए कुछ नहीं बनाना चाहिए | आज मेरे मन में खलबली हैं | मुझे ऑफिस जाने की जल्दी हैं , कब खुलेगा ऑफिस, बाकी शहरों में तो खुल गया | मैं उस नवजात से मिलना चाहती हूँ उसे वो सारे कपडे देना चाहती हूँ जो मैंने बनाए हैं | आज वीडियो कॉल करना चाहा लेकिन पूरण का मोबाइल कनेक्ट ही नहीं हुआ | लेकिन आज मायूस नहीं हुई | आज कपडे सिलने की खुशी जो थी | एक मन में आस लगी थी कि मैं जल्दी ही सीता बहन और उसके नवजात पोते से मिलूंगी | 7 मई 2020 : आज तीसरे लॉकडाउन में ऑफिस खुल ही गया | हालांकि ऑफिस 5 मई को ही खुल गया था | लेकिन मेरा घर रोकथाम क्षेत्र में था जहां कर्फ्यू लगा था इसलिए ऑफिस जाना मना था | आज ऑफिस गई थी | सूनी सड़कों पर पुलिस चौकियों का दबदबा था | सडकों पर सन्नाटा पसरा था | चार चौकियों पर गले में लटका अपना आई-कार्ड दिखाते हुए रास्ता पार किया था | ऑफिस की चाबियाँ सहायक जय को पकड़ाते हुए कंपकंपी छूटी थी | सफाई कर्मी गुस्सल और उसकी पत्नी रेखा तत्परता से खड़े थे | मैंने कम्प्यूटर ऑन किया और अंगूठे से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई | लॉग इन किया, लॉग फ़ाइल वैलीडेट की ,आवश्यक ई.मेल चेक किये और एक बार शनिचर जी थान परिसर के गुम रास्ते की तरफ भागी | रास्ते का चैनल गेट बंद था जिस पर मन भर का ताला लगा था | उस रास्ते पर चैनल गेट भी था मुझे आज तक मालूम ही नहीं | मैंने चैनल गेट पर अपना सिर टिकाया , सामने शनि मंदिर के कपाट बंद थे ,दूर शिव मंदिर के दरवाजे भी बंद थे, तिरछी आँखों से देखा तो पीपल के पेड़ के नीचे चारपाई बिछी थी पर सीता बहन नहीं थी | उनके घर का दरवाजा भी बंद था | नवजात शिशु की ना किलकारियां थी , ना रुदन, ना ही सौन्फियाँ महक से हवा गुलज़ार थी | दूर-दूर तक मुझे कोई नज़र नहीं आ रहा था | चैनल गेट के उस पार दो कुत्ते मुझे देख कर भौंकने लगे थे | इतने दिनों इंसानों की अनुपस्थिति के बाद मेरा होना उन्हें असुरक्षित महसूस करवा रहा था | मैंने वहीँ खड़े पूरण को फोन लगाया और पूछा- “ तुम कहाँ हो ? ” “ हम तो गाँव आ गए आंटी जी ” “ और सीता बहन ....” “ वो भी .. हम सब गाँव आ गए | जन्मते बच्चे के लिए जोधपुर सुरक्षित नहीं था, फिर जोधपुर तो रेड ज़ोन में हैं , कितने केस आ रहे कोरोना के...हम सब आ गए यहाँ....आप ठीक हो ना आंटी जी....” अगले शब्द मुझे सुनाई नहीं दे रहे थे | मैं जल्दी से ऑफिस के अंदर आकर अपनी सीट पर धम्म से बैठ गई | कम्प्यूटर के माउस को हाथ में पकड़ लिया....धीरे-धीरे कम्प्यूटर की स्क्रीन धुंधली होती चली गई, मेरी आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी | मेरे हाथ के सिले झबले, कुरते, नैपकीन, चादर और स्वेटर आंसुओं में धुलते दिखाई दे रहे थे | संगीता सेठी संगीता सेठी भारतीय जीवन बीमा निगम जोधपुर में प्रशासनिक अधिकारी हैं। मगर इसके अलावा वे क्या-क्या नहीं हैं? एक समाजसेवी, सायक्लिस्ट, कवियत्री - कथाकार और मनमौजी। हरदम नया सीखने को तत्पर... उनके ये डायरी अंश उनके सरोकारों के इंदराज भी हैं।
|
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |