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किसान आंदोलन के दिन 2017

आरती तिवारी
मन्दसौर डायरी : 1
01 जून 2017

आज मन्दसौर आड़ी,तिरछी,अटपटी सी चाल चलता दिखा ..कालिदास मार्ग और सम्राट मार्केट में सड़कों पर ढोला गया दूध और ठेलों पर से फेंकी गई सब्ज़ियाँ इधर उधर बिखरी थीं,...ढेर सी गायों के झुण्ड जिन पर झपट रहे थे,..बिजली गुल होने से लोग उन दुकानों की शरण ले रहे थे जहाँ,इन्वर्टर और जेनेरेटर से सप्लाई हो रही थी,..इस बैचेनी भरी उमस का मुक़ाबला करने को फ़िलहाल यही सहारा था,. अधिकांश लोग मार्केट से ज़ल्द से ज़ल्द निकल घर पहुंचना चाहते थे,...इस मुश्किल से फ़ौरी तौर पर निज़ात पा घर पहुंचे लोगों ने राहत की साँस ली,....मन्दसौर अनमना सा हो आया था कवि कालिदास का मन्दसौर, गुप्तकाल के राजकवि वत्सभट्टि का मन्दसौर, महाकवि रविल का मन्दसौर साहित्य संस्कृति का धनी मन्दसौर जो प्राचीन शिलालेखों में दशपुर और यशोधर्मन नाम से उल्लेखित हैं ,...जो कि हमेशा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहा जो एक जिद्दी,जुनूनी,नटखट बच्चे सा हमेशा कुछ कर गुज़रने को तत्पर सा रहा इतिहास में दर्ज़ होने को प्रतिबद्ध मन्दसौर आज व्यथित था,...राष्ट्रीय और स्थानीय चैनलों पर 01 से 10 जून तक किसान आंदोलन की सूचनाओं का प्रसारण हो रहा था,...आम नागरिकों के लिए ये सूचना मात्र थीं वे इसके परिणामों से बेख़बर अपने घरों में टीवी के सामने डटे थे,..

02 जून 2017
आज सुबह कहीं भी बन्धी के दूधवाले नहीं आये न सब्ज़ी न फल बेचने वाले,.. कुछ समय तक प्रतीक्षा कर लोग साँची के पार्लर पर पहुँचे,...एक ही दिन में पार्लर पर इतनी लम्बी लाइन लगी थी,..प्रतिदिन 50000 लीटर से अधिक दूध की खपत होती हैं मन्दसौर में,..ज़ाहिरना तौर पर लोगों को कम मात्रा में दूध लेकर लौटना पड़ा या किसी किसी को तो बेरंग वापिस लौटना पड़ा,..सब्ज़ियाँ और फल मार्केट से बहुत इफ़रात में ख़रीदे गए कल मिलें न मिलें,... बबिता(मेड) जब तक सब ज़गह से काम निबटा कर बाजार गई तब तक बची खुची सब्ज़ियाँ रह गई थीं,.वो अपने बच्चों को ताज़ी सब्ज़ियाँ ही खिलाती हैं ,उनकी पढ़ाई और स्वास्थ का बहुत ध्यान रखती हैं ,..तुरन्त फोन किया बोली,..हमें तो बाज़ार में कुछ न मिला हमारे लिए सब्ज़ियाँ रख लीजियेगा,.यहाँ से हम सबने कहा तुम तुरन्त वापिस आ जाओ हमारे पास पर्याप्त हैं ,..छुटपुट दुकानों से सब्ज़ियाँ और सामान फेंके जाने के स्थानीय समाचार लगातार आ रहे थे,..महिलाओं के साथ हाथापाई और झूमाझटकी की भी खबरें थीं,..जिन्हें आंदोलन की आड़ में असामाजिक तत्व अंजाम दे रहे थे....

03 जून 2017
आज बबिता जल्दी आ गई थी,उसी ने बताया कि उसके आदमी को मज़दूरी से छुट्टी दे दी गई हैं ,..अब पता नहीं कब बुलाएँगे? ये भी कि आपको तो पता हैं हम रोज़ कुआ खोदते हैं,..रोज़ पानी निकालते हैं अब दाल और मोटा चावल दो दिन तक चलाना हैं ,हम जानते हैं उसकी भी अपनी समस्या हैं उसे सब्ज़ियाँ एक तेल का पाउच और कुछ पैसे सबने दे दिए थे....पर क्या गृहस्थी इतने से ही चलती हैं ? जाने कैसे किससे क्या लेकर उसने चार दिन बिताये होंगे?
समय का पहिया तो घूमता रहता हैं ,..हम भले ही खड़े रहें बैठ जाएँ या गिर पड़ें उसे क्या,...किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था,..बात दूध और सब्ज़ी या फलों की ही नहीं थी बहुत कुछ था जो उमड़ घुमड़ रहा था...कितनी ही बातें सोच सोच कर मन बैचेन था कैसे भी थिर न पड़ता था,.कुछ पढूं कुछ लिखूँ पर क्या? इन्हीं विचारों में आज का दिन भी बीत गया था,..समाचारों में बताया जा रहा था,.. कल किसान किसान रैली निकलेगी महू नीमच रोड से होकर,..बचपन में देखे खेत याद आ गए,मेरे नानाजी मूलतः किसान थे बाद में प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर बने और मेरे तीनों मामा भी शिक्षक और व्याख्याता थे,..उन दिनों खेत आनन्द बरसाते थे वही ज़ेहन में था,..किसानों की तकलीफों से बावस्ता नहीं थी पर,..मन्दसौर में आकर जाना खेती और उससे जुड़ी समस्याओं को 2010 तक हमारी भी साझा खेती थी ग्राम गरोठ में काका ससुर के साथ मैं कभी नहीं गई अपना खेत और कुआँ देखने बस सुनती रहती थी क्योंकि यहाँ भी अपने बटाईदार को कौली पे खेती दे रखी थी,...जिसका हिसाब किताब मेरे ससुर और काका ससुर ने भी नहीं रखा कभी भी सब विश्वास से चलता था बाद में उन्हीं को अपना हिस्सा बेच भी दिया था,..जाने क्या क्या विचार आ जा रहे हैं मन में पर सबका सार यही कि किसी के भी साथ नाइंसाफी न हो

मध्यप्रदेश के किसानों ने आंदोलन की पूर्वसूचना दी थी,..शायद हमारे अंदर ये मानसिकता घर कर चुकी हैं कि हम कोई भी बड़ा हादसा घट जाने से पहले तक हर बात को मामूली समझ नज़रअंदाज करते चलते हैं,.हम सिर्फ अपने लिए ही सोचते हैं और जीते हैं हमें सब कुछ अच्छा सस्ता और इफ़रात में मिलता रहना चाहिए बस ....हम अक़्सर दूसरों की तकलीफों को तवज़्ज़ो नहीं देते देना चाहते ही नहीं,..इसमें सारा दोष हमारी ही मानसिकता का भी नहीं इसके लिए ये लुटेरा वक़्त भी जिम्मेदार हैं ,..इसमें असंख्य विषाक्त विचार और भाव पनप गए हैं जिनकी तादाद हैं कि बढ़ती ही जाती हैं हमें अच्छी गुणवत्ता का अनाज चाहिए सब्ज़ियाँ चाहिए फल चाहिए दूध चाहिए जिसमें कहीं से कोई मिलावट न हो पर हम खुद कितने असली हैं,..क्या हमने कभी सोचा कि ये जीवनोपयोगी वस्तुयें हम तक कैसे पहुँचती हैं? कैसे तैयार होती हैं? मण्डी तक पहुँचने वाला अनाज और भाजी जब हम तक आता हैं ...कितने लोग खड़े होते हैं उस गेहूँ की एक बोरी और हमारे बीच,..बिचौलिए कौन हैं? और इनकी क्या भूमिका हैं हमारी रोटी के कौर और किसान के बीच? कोई हाड़तोड़ मेहनत करने वाला किसान जिसके पास अपना पसीना तक सुखाने का वक़्त न हो किसी आंदोलन के लिए क्यों निकल पड़ता हैं ? मौसमों के आनन्द तो हम उठाते हैं,..बारिशों को प्रेम का सीजन हमने बनाया हैं ,..किसान इस बारिश के इंतज़ार में 48 डिग्री के तापमान पर खेतों में जुताई करके खुद बैल हुआ जाता हैं ...बिजवारे के बीज पेट काट के बचाता हैं ,..उसके लिए बारिश एक दैवीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति हैं ,..कोई विरहन क्या टकटकी लगायेगी मित्र,...आसमान में काले बादलों को तलाशते किसी किसान की आँखों में झाँकना कभी एक प्यासा समन्दर मिलेगा....किसान को भीड़ मत बनने दो किसान किसान ही रहे तो अच्छा लगता हैं ..यही अच्छा भी हैं ,हम किसान नहीं बन सकते कोई भी शौक़िया किसान नहीं हो सकता,..सब कोई अलगू चौधरी और जुम्मन शेख नहीं हो सकते,..किसान तो पैदा होता आया हैं और उसे पैदा ही होने दिया जाये...ज़बर्दस्ती की किसानी नहीं होती,..धरती की पुकार सबके कानो तक नहीं पहुँचती,..

जब हम गुलाबी ठण्ड का लुत्फ़ लेते हुए घूमते हैं,.किसान हसरत भरी निग़ाह से अपनी फ़सल को देखता हैं ,.जब हम कड़ाके की सर्दी में नरम गरम बिछौनों में घुसे होते हैं किसान अपनी नींदें क़ुर्बान कर फसलों की रखवाली करता हैं ,..पशु पक्षी चोर लुटेरे सब पर नज़र रखता हैं कि कोई उसकी फसल को नज़र न लगा दे,..बिजूका तो बिजूका वो खुद भी बिजूका हुआ जाता हैं ,.कीट पतंगों से फसल को बचाने के जतन में कभी नीलगायों के झुण्ड को हांकने में क्या क्या नहीं करता और हम खरीदते वक़्त गुणवत्ता परखते हैं मेहनत को नज़रअंदाज कर देते हैं...
खेतों में लहलहाती हुई फसल उसे पूजा की थाली में रखे प्रसाद सी लगती हैं ,..जिसके खलिहान तक पहुँचने में कितनी नींदें कितनी भूख कितनी मुस्कुराहटें उसने क़ुर्बान कर दी होती हैं,...खलिहान में भरी फसल मण्डी तक पहुँचाने के लिए वो बावरा हुआ जाता हैं ,...कितनी ही सुविधाओं के अभाव में कितनी ही दुविधाओं से गुज़रते कैसे कैसे सपने देखते वो अपनी फसल मण्डी तक लाता हैं ,..क्या इसीलिए कि वो ठग लिया जाये? लूट लिया जाये?
क्या उन्हें अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलना चाहिए? कौन जिम्मेदार हैं किसानों की समस्याओं के लिए? क्या सिर्फ मौसम की बेरुखी ही? हमारे भारत में अमीर किसानों की तुलना में लघु किसान और सीमान्त किसानों की संख्या अधिक हैं ,..पर इन्हें लीड वो किसान करते हैं जो समर्थ और सक्षम हैं जिनके पास हज़ारों हेक्टेयर कृषि भूमि हैं ,..और मौसमों की वज़ह से तबाह हुई फ़सल इनकी बड़ी नुकसानी नहीं हैं क्योंकि ये सिर्फ कृषि पर आधारित नहीं हैं,..इनके कई व्यवसाय हैं और इन्हीं के यहाँ हमारे भूमिहीन कृषक मज़दूरी करते हैं और ये फसल नुकसानी के नाम पर कई बार इन भूमिहीन किसानों की मज़दूरी तक हड़प जाते हैं,...क्या इनके लिए बनाये कानूनों का पुनः आंकलन और निर्धारण नहीं होना चाहिए? क्या इन्हें आवास,स्वास्थ और शिक्षा का अधिकार नहीं मिलना चाहिए?



04 जून 2017
आज शाम को किसान रैली निकलने की बात थी और रविवार होने से बाजार वैसे भी बन्द था,,....गर्मी और उमस से बैचेन लोग शाम को बाहर निकले,मन्दसौरी वैसे भी बड़े घुमन्तु हैं,तेलिया तालाब,पशुपतिनाथ मंदिर,नालछा माता मंदिर और आसपास के पर्यटन स्थल रविवार को और अधिक चहल-पहल वाले बन जाते हैं,..आज शाम जैसे ही बाहर निकले रैली निकल रही थी किन्तु ये वाहन रैली शांतिपूर्ण तरीके से महू-नीमच रोड से निकल गई,.कहीं भी कोई उपद्रव या तोड़फोड़ की कोई खबर नहीं थी,..किसान अपने ऋण माफ़ी को लेकर अड़े हुए थे किन्तु अभी तक उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही था कुछ छोटी मोटी झड़प और कुछ सामान दुकानों को बन्द करवाने के दौरान जो बाहर फेका गया उसके अतिरिक्त आज कोई और खबर नहीं सुनी देखी थी,..मेरी एक कजिन अपने बेटे के साथ आई थी आज उसे वापिस जाना था,..हम घर आ गए रात्रि-भोज के बाद उसे स्टेशन पर छोड़ने आये जयपुर-हैं दराबाद ट्रेन में उसका रिजर्वेशन था,उसे 10:45 पर ट्रेन में बिठाकर वापिस आये,..कुछ दिन उसके साथ पचमढ़ी के जी लिए,कुछ दिन मन में मायका रहा आया,कुछ दिन पंख लगाकर उड़ते रहे फिर अपनी दुनिया और वही रूटीन,..यही तो शाश्वत सत्य हैं

05 जून 2017
आज सुबह थोड़ा और ज़ल्दी नींद खुल गई,.बाहर पेड़ पौधों के साथ बातचीत करते टहलते मन आह्लादित था,..दूध का इंतेज़ाम हो गया था,साँची पार्लर से हमारे पड़ोसी किसी तरह हम दोनों परिवारों के लिए दूध ला सकने में सफल रहे थे,..मुझे अपने पिता की कहीं बात याद आई घर में पानी,दूध,घी इतना हो कि किसी और को भी ज़रूरत होने पर दे सको,..
साईँ इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये
ये आदत अब प्रकृति बन चुकी हैं ,..और तिवारी जी को भी सदा ऐसा ही पाया,..मालवा की भी तासीर यही हैं ,..हम सब एक दूसरे की मदद को हमेशा तैयार रहते हैं,फल सब्ज़ियाँ और दूध हम सब एक दूसरे की ज़रूरत का ध्यान रख वापर रहे थे,आज बहुत व्यस्तता रही बहुत से पेंडिंग काम निबटाए,..स्थानीय समाचारों में कल चक्का जाम होने की खबर बार बार दिखाई जा रही थी,किसान अपनी मांगों को लेकर अड़ गए थे,..सोने जाने से पहले तक बस यही समाचार था
06 जून 2017
आज सुबह के अख़बार कल रात दिखाए समाचारों से भरे पड़े थे,.
मन्दसौर के बहिपार्श्वनाथ में किसानों के बहुत बड़ी संख्या में एकत्रित होने की खबर दिखाई जा रही थी,..चक्काजाम में बहुत सारे वाहन पिपलियामंडी से आगे तक खड़े थे,..सोमवार रात से ही सभी टेलीकॉम कम्पनियों ने अपनी इंटरनेट सेवाएं बन्द कर दी थीं,..मन्दसौर,नीमच,रतलाम,उज्जैन प्रभावित थे,..किसान आक्रोशित थे और उनके आक्रोश को भीड़ में शामिल उपद्रवी भुना रहे थे,..उन्होंने पथराव शुरू कर दिया था,...आश्चर्य इस बात का हैं कि जहाँ इतनी बड़ी संख्या में किसान इकट्ठे होने वाले थे,..इतना बड़ा आंदोलन होने जा रहा था,..अफवाहें न फैलें इसके लिए टेलीकॉम सर्विस बाधित की गई थी,..वहाँ इतना कम पुलिस बल क्यों था?सुरक्षा बलों के पर्याप्त दस्ते क्यों नहीं बुलाये गए? आँसू गैस छोड़ने के बाद भी पथराव बन्द नहीं हुआ था क्योंकि उपद्रवी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे,..उन्होंने किसानों के आक्रोश के बहाने इस सुलगती चिंगारी को खूब हवा दी,..हवाई फायरिंग के बाद पत्थरबाजी और तेज हुई,इसके बाद पुलिस फायरिंग में घटनास्थल पर ही तीन और झड़प में घायल दो किसानों की मौत हो गई,.. ये खबर सुनकर सनाका खिच गया,..फायरिंग क्यों हुई जबकि सामने किसान थे?इसके तुरन्त बाद ही कर्फ्यू घोषित हो गया यकीन नहीं होता कि चक्काजाम में खड़े 40 ट्रको कारों डम्पर ट्राले कन्टेनरं में आग लगाने वाले किसान थे? रेल की पटरियाँ उखाड़ने वाले किसान थे? पेट्रोल पम्प जलाने वाले किसान थे?
07 जून 2017
घायल और आहत मन्दसौर अपने ज़ख्मों पर मरहम तक लगाने का वक़्त नहीं पा सका था कि हर तरफ़ से आगजनी और तोड़फोड़ के समाचार आ रहे थे,..ये दहशतनाक खबरें दामन चाक करने वाली थीं,...कर्फ्यू में फसे लोग अपने दुःख तकलीफ़ परेशानियाँ भुला इन हौलनाक नज़ारों से घबरा कर अमन और शांति की बहाली के लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे,..पोस्टमार्टम के पश्चात् किसानों के शव उनके गाँवों में जब पहुँचे तो हाहाकार मचा हुआ था,...बरखेड़ा पन्थ का अभिषेक तो विद्यार्थी ही था किसान आंदोलन से समाधान कैसे निकलता हैं ये जानने की जिज्ञासा उसे पिपलियामंडी ले आई थी,..उसे या उसकी माँ को क्या पता था ऐसे घर लौटना होगा वो तो अपने पतरे की छत और कच्चे घर को पक्का होते देखने की अभिलाषा मन में लिए आया था,..किसान का बेटा था और किसान ही बनना चाहता था,..आधुनिक तकनीक से खेती करना चाहता था,..ग्राम लोध का सत्यनारायण 200 रूपये रोज़ अपनी रिज़क कमाता था,..किसान पिता का सहारा बनना चाहता था जिसकी तीन बीघे में से दो बीघे जमीन बंधक पड़ी थी उसे छुड़ाना चाहता था,..उसे भी क्या पता था जान ही छोड़नी पड़ेगी,..जिन जिनको गोली लगी और मरे वे उपद्रवी नहीं थे,..वे कौन थे जो तबाही के इस अवांछित कृत्य को अंजाम दे रहे थे? ये जानना अभी शेष था,..मन खिन्न था किसी के दुधमुंहे बच्चे बिलख रहे थे तो किसी की किशोरी बेटी बेटे बाप की छाया से महरूम हो गए थे,कहीं बूढ़े बीमार और लाचार माता पिता विलाप कर रहे थे,...नयाखेड़ा के चेनाराम के माता पिता बेसुध हुए जाते थे इसी गाँव का एक बेटा सीमा सुरक्षा बल का जाँबाज़ सिपाही हैं जो कश्मीर में तैनात हैं ,..अपने मित्र के बारे में जान के फूट फूट कर रोया उसकी 13 साल की बेटी पूजा को जो देखता आँखों में आंसू भर जाते,..कहाँ तक इन आंसुओं की सीमा हैं पता नहीं? इन आँखों की नमी कब तक अवसादग्रस्त रहेगी पता नहीं? पर इन हादसों की पुनरावृत्ति न हो,..इसके लिए इस सारे प्रकरण का पुनर्मूल्यांकन और समाधान तलाशे जाने पर तुरन्त कार्यवाही होनी चाहिए,..महज़ रस्मी दिलासों से कोई ठोस हल नहीं निकलने वाला,.. इसी घटनाक्रम का दूसरा पहलू भी हैं उसे भी कतई नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता,..व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर की गई तोड़फोड़ और आगजनी व्यापार व्यवसाय का नुकसान उपद्रवियों ने आंदोलन की आड़ में व्यक्तिगत दुश्मनियां भी निकाली हैं,घरों में लगाई गई आग शो रूमों पर लगाई गई आग पेट्रोल पम्प फूंके हैं,..ट्रक ट्राले कन्टेनर निजी वाहन क्या कुछ नहीं छोड़ा,..ये व्यक्तियों की न होकर राष्ट्रीय क्षति हैं ,..देश का किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं तो व्यापार उसकी अगली कड़ी,..ये हम सबका सामूहिक नुकसान हैं ,..जान का भी और माल का भी,..इन सब पर वर्तमान सरकारों को गम्भीर निर्णय लेने चाहिए और उनके क्रियान्वयन के ठोस प्रयास भी करना चाहिए,..महज़ आंसू बहाने से कुछ नहीं होने वाला,..मन में कितनी ही बातें सैलाब की मानिंद उमड़ रही हैं पर पलके भारी हो रही हैं,पपोटे सूज रहे हैं,.नींद भी क्या हैं हर हालात में आपको दबोच ही लेती हैं

08 जून 2017
ये एक बेहद उदास सुबह थी,.आज कर्फ्यू का तीसरा दिन हैं ,.बचे हुए दूध से चाय बना ली हैं ,.दूधवाला 01 जून से ही नहीं आ रहा किसी तरह अभी तक तो दूध मिलता रहा आगे का पता नहीं,सब्ज़ियाँ कभी की ख़त्म हो चुकी हैं अब दालें हैं बेसन गट्टे वग़ैरह घर की सब्ज़ियाँ हैं,.हाँ आम ज़रूर रखे हैं जो रस बनाने में काम आ रहे हैं,..बबीता की भी कर्फ्यू में छुट्टी हो गई हैं ,..आज सुबह अख़बार भी आ गए हैं,सारी खबरें लहूलुहान हैं,शब्द झुलसे हुए तड़प रहे हैं,6 किसानों की मौत पुलिस फायरिंग में हो चुकी हैं एक गंभीर घायल मन्दसौर से इंदौर रैफर किया जा चुका हैं जिसकी स्थिति में सुधार की कोई सम्भावना नहीं बताई जा रही हैं ,..रह रह कर वे भयानक दृश्य आँखों में कौंध जाते हैं जिन्हें लोकल चैनल पर देख दिल दहल गया था,..6 किसानों की पुलिस फायरिंग में मौत से भड़की हिंसा,आगजनी में कितनी ही दुकानें,मकान,जाम में फंसे वाहन,जलाकर राख कर दिए गए,.पिपलियामंडी में फाइबर फेक्टरी में आग लगाई गई,पेट्रोलपम्प,मोटर साइकल शो रूम सब धू धू जलते देख आँखें पथरा गईं,.आखिर कौन हैं ये लोग? क्या ये किसान थे? क्यों हुई इतनी हिंसा? दिमाग सांय सांय कर रहा हैं ,..पुलिस के आला अधिकारी मन्दसौर कलेक्टर को पीटा गया,.उन्हें आंदोलनकारियों से माफ़ी मंगवाई गई,.दौड़ाया गया रेपिड एक्शन फ़ोर्स के जवान वहीँ खड़े ये सब देखते रहे ये लोकल समाचारों में आज दिन भर दिखाया गया,..क्या इस हिंसा में किसानों का खुद का नुक्सान नहीं हुआ? क्या उन्होंने नहीं भुगता? मन्दसौर जिले की आमजनता,प्रशासनिक पुलिस अधिकारी कौन बचा? इस हिंसा ने सभी वर्गों को कितना पीछे धकेल दिया,..मन्दसौर जो शांतिप्रिय हैं विकास के पथ पर अग्रणी हैं ,जिसे मिनी इंदौर कहा जाता हैं ,..कितना डरा सहमा घायल बेबस पड़ा कराह रहा था,..इन विचारों में उलझ कर कुछ करने का मन ही नहीं हो रहा था...एकाएक पुलिस की सायरन गाड़ी गुज़री और स्पीकर से की जाती घोषणा सुनी, कर्फ्यू में 10 से शाम 6 तक की छूट दी जा रही हैं ,.सब लोग घर के सब काम छोड़ तुरन्त बाजार दौड़े,.बहुत कम लोग ही दुकानें खोल रहे थे वे भी घबराये से थे,.लोगों की भीड़ देख लगा नहीं कि इतनी लम्बी लाइन में लगकर भी नम्बर आ पायेगा,.रास्ते में कुछ ठेले वाले सब्ज़ी और फल बेच रहे थे वे ही जल्दी से लिए और दूध के कुछ पैकेट इतने में ही अफरा-तफ़री मच गई,..वो किसान जो इंदौर हॉस्पिटल में एडमिट था मर चुका था और उसका शव दलौदा लाया जा रहा था,.कर्फ्यू निरस्त कर दिया गया था,.हम गाड़ियों से तुरन्त घर की तरफ़ निकल लिए,..दलौदा में उत्पात और आगजनी की खबरें फिर टीवी स्क्रीन को दहका रही थीं,..आक्रोश ने फिर एक बार दलौदा को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था,..इस दोपहर की शाम बड़ी मुश्किल से आई थी,जिस दिन से मन्दसौर में कर्फ्यू लगा था और हिंसा का ये भयावह दौर शुरू हुआ था,.टीवी पर न्यूज़ देखते ही परिवार जनों,रिश्तेदारों,इष्ट मित्रों और मेरे आभासी मित्रों के फोन कॉल्स टेक्स्ट संदेश आने शुरू हो गए थे,..सब घबराये थे और हमारी कुशलता से अवगत होना चाहते थे,.सबके फोन कॉल्स रिसीव करती बार बार मोबाइल चार्ज करती थी,.मेरे आभासी मित्र भी फेसबुक wtsap पर न देख लगातार फोन पर हमारी खेरियत जानना चाहते थे,..हम भावनात्मक रिश्तों में ऐसे बंधे हैं ये मैं इन पिछले तीन दिनों में जान सकी,..क़रीब 165 लोगों ने हमें इन तीन दिनों में फोन किये थे और संदेशों की भरमार थी,..यद्यपि सबके नामों का उल्लेख सम्भव नहीं हैं पर मैं ह्रदय की गहराइयों से कृतज्ञ हूँ इस अपनेपन ने मुझे भिगो दिया हैं ,.सबसे लम्बी बात पटना से अवधेश प्रीत सर स्नेहलता mam ने की और यथासम्भव मुझे धैर्य बंधाया,..राजीव रंजन गिरी जी मीरा श्रीवास्तव दीदी अलकनंदा ताई सौरभ शांडिल्य और कितने नाम लूँ सबने मुझसे खूब लम्बी लम्बी बातें कीं और हौसला बढ़ाया,..हम बही पार्श्वनाथ के पास महू नीमच रोड चम्बल कॉलोनी में ही हैं और ये हिंसक आंदोलन यहीं हुआ अतः सबका घबरा जाना भी स्वाभाविक था,..मुसीबत में मित्रों के कहे दो शब्द भी संजीवनी बूटी सा चमत्कार करते हैं,..कल की सुबह आज से बेहतर हो यही आकांक्षा मन में लिए आज सोना चाहती थी मालवा की खुशनुमा रंगत को ये क्या हुआ,.ये मटमैं ली उदासी क्यों चली आई ? इसे यहाँ से जाना ही होगा इन्हीं विचारों में डूबते उतराते नींद आने लगी थी

09 जून 2017
किसान आंदोलन का आज नौवां दिन था,इन दिनों में इतना कुछ हुआ पर कोई जनप्रतिनिधि किसी भी ज़गह नज़र नहीं आया,.वे कहीं नहीं थे न किसानों के पास न साथ न ही आगजनी के शिकार हुए मलबे के मालिकों के पास ...आखिर वे कहाँ थे? सांसद सुधीर गुप्ता का कहना हैं कि वे लगातार किसानों से बातचीत करते रहे किन्तु प्रशासन ने उन्हें मृतक किसानों के अंतिम संस्कार में शामिल होने से रोक दिया,सबके पास अलग अलग वजहें थीं कि वे क्यों किसानों के पास नहीं पहुँच सके...
कितने ही सवाल दिमाग में चक्कर काट रहे हैं,मन्दसौर जिले के किसान इतने आक्रोशित क्यों हैं? क्या उनके इस आक्रोश में हताशा भी छुपी हुई हैं ? बस यही सुनती आई हूँ कि प्याज़,टमाटर,संतरे,सोयाबीन आदि का इन्हें मण्डी में वाज़िब मूल्य नहीं मिलता ,..नहीं मिलता हैं अगर तो क्यों? इसके पीछे कौनसी नीतियाँ जिम्मेदार हैं?सब्ज़ी उत्पादक किसानों को उनका लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा,..हमारे गृहनगर बोलिया में अपने पडोसी बगडुराम से हर बार यही सुनती हूँ,उनकी बदतर आर्थिक स्थिति देख उनके बच्चों का भविष्य भयावह ही नज़र आ रहा,..कैसे निकलेगा इस सबका हल? ये सोचकर मुझे सन्तरे मीठे नहीं लगते..मन फिर से उदास होने लगा हैं ,..क्या किसानों की एक परेशानी ये भी हैं ...मन्दसौर जिले के किसान जो अफीम उत्पादक हैं उन्हें डोडाचूरा का दाम नहीं मिल रहा हैं ,..जग्गाखेड़ी का उमेश पाटीदार यही बता रहा था कि वो सालों से 200 रूपये किलो के सरकारी दामों पर डोडाचूरा बेच कर अच्छा मुनाफ़ा कमा रहा था,..पर अब सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों और सरकारों की अस्पष्ट नीतियों के चलते उसे डोडाचूरा खेतों में ही नष्ट करना पड़ रहा हैं ,..ये करोड़ों रूपये मूल्य का डोडाचूरा अपने खेतों में नष्ट करता किसान निराश हताश और आक्रोशित हैं ,..क्यों नहीं इस समस्या को सुलझाया जाता?

आख़िर इतने लम्बे समय से जन्मी इन समस्याओं को अब तक सुलझाया क्यों नहीं गया? क्यों मेरा मन्दसौर इस त्रासदी से गुज़रा? कौन जिम्मेदार हैं ? इन प्रश्नों के उत्तर किसके पास हैं?
2016---2017 के लिए मन्दसौर नीमच रतलाम के 31651 किसानों को अफीम के पट्टे दिए गए,4527 हेक्टेयर क्षेत्र में अफ़ीम की फसल ली गई थी जिससे किसानों के पास 36651 डोडाचूरा रखा हैं और बारिश के नमी वाले मौसम में जिसमें बिच्छु और दूसरे जहरीले कीड़े पनप जाते हैं,.किसान इसे बेचकर मुनाफ़ा कमाते रहे हैं जिसकी अब संभावनाएँ क्षीण हैं,.. क्या इस वज़ह से भी आक्रोश जन्मा होगा? या इस हिंसा आगजनी और कर्फ्यू के दौरान असामाजिक तत्वों ने सुरक्षा एजेंसियों को इनमें उलझा कर अपना कोई बड़ा मक़सद हल किया कौन जाने?
एक आम आदमी ने बहुत दिक्कतों का सामना किया,..और जो वाक़ई किसान हैं उनकी कितनी क्षति हुई...जान से बढ़कर क्या हो सकता हैं जो उन्होंने खोया,.सत्ता पक्ष आदेश देता रहा प्रशासनिक अधिकारी भुगतते रहे,.विपक्ष के राहुल तो कभी सचिन ड्रामाई अंदाज में मन्दसौर में घुसने की नाकाम कोशिशें करते रहे,..उन्हें भी ज्ञात था 01 जून से 10 जून तक किसान आंदोलन मन्दसौर में हैं तब कहाँ थे? तब क्यों नहीं आये? हादसों की प्रतीक्षा क्यों करते रहे? सब ख़्याल गड्डम गड्ड हो रहे हैं....आज कर्फ्यू में सुबह 8 से रात 8 बजे तक की छूट में बाज़ार के पेंडिंग कामों को अंजाम देते मन में ये विचार बार बार आते रहे,..कल शायद कर्फ्यू हट जाये ,..धीरे धीरे मन्दसौर फिर से उठ कर खड़ा हो रहा था
10 जून 2017
आज एक उम्मीद भरी सुबह थी,..शायद अब सब ठीक हो जाये,..प्रार्थनाओं के शब्द भावों में स्थान पा लें, परिस्थितियाँ धीरे धीरे ही सही सुधर जाएँ,.आज बबीता काम पर आई हैं कर्फ्यू में सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक की ढील दी गई हैं ,..बबीता ने फुर्ती से सब काम निबटाया और धाराप्रवाह कर्फ़्यू में हुई परेशानियों के किस्से सुनाती रही,..उसके नज़रिये से ज़िन्दगी और भी मुश्किलात से गुज़र रही थी,..रोज़ कमाकर खाने वाले मज़दूर परिवार,ऑटो वाले,फुटकर दुकानदार,सबके हालात बदतर थे,दुकानें खुलने पर भी वे रोज़मर्रा का सामान कैसे खरीदें? पैसे ही नहीं पास तो क्या लाएं क्या खायें? पिपलियामंडी के व्यापारी तो दुकानें खोलने से ही कतराते रहे,पुलिस से सुरक्षा की माँग करते रहे,..आंदोलन की चिंगारी ने यहीं से तो हवा पकड़ी थी,..अब वे कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे,..दूध के जले थे छाछ भी फूंक फूंक कर पीने पर विवश थे,.मकान निर्माणों में लगे झाबुआ बिहार, कलकत्ता,राजस्थान आदि से मन्दसौर आये मज़दूर कर्फ्यू में ढील मिलते ही अपने अपने घरों पर लौटने लगे वे भी लम्बे समय तक रुकने को तैयार नहीं हुए,.पास के पैसे खत्म हो चुके थे और काम कब तक बन्द रहेगा किसी के भी पास इसका जवाब नहीं था,.ऐसे में एकमात्र विकल्प घर लौटना ही था.. कितना आर्थिक नुकसान हुआ था सही आंकड़े उपलब्ध नहीं थे पर एक मोटा हिसाब था लगभग 50 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ था,..कृषि आधारित व्यापार फल,सब्ज़ी,दूध सबका असर बाज़ार पर था इनके दाम आसमान छू रहे थे,..फिर से एक बार मन्दसौर के आम आदमी ने खुद को ठगा सा महसूस किया था,..इसी दरम्यान मन्दसौर कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह और और एस पी का ट्रान्सफर कर दिया गया था,..इनके साथ मिलकर कई अच्छे साहित्यिक कार्यक्रम किये थे,.वक़्त किसको कब कहाँ ले जायेगा कभी निश्चित नहीं होता,.मृतक किसानों के परिवारों को एक करोड़ का मुआवज़ा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा हो चुकी थी,..पर ऐसी स्थिति पैदा क्यों हुई ?विचारणीय हैं इस हिंसा के पीछे कौन लोग थे? ज़ाहिर हैं किसान ऐसी मंशा लेकर तो इस आंदोलन में उतरे नहीं होंगे,..मन्दसौर जिले के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अजयप्रताप सिंह ने ये आशंका व्यक्त की हैं कि किसान आंदोलन की आड़ में इस हिंसा को फैलाने के पीछे अफ़ीम तस्करों का हाथ हो सकता हैं ... ये भी कि किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था,.जो आंदोलन को नियंत्रित कर सके उसकी बागडोर सम्हाल सके. शासन या प्रशासन के नुमाइंदों से बात कर सके वहाँ बस एक अनियंत्रित भीड़ थी ......और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता इसलिए भीड़ को कोई भी आसानी से अपना मोहरा बना लेता हैं ,..चन्द असामाजिक तत्त्वों ने अपने बुरे इरादों को पूरा करने के लिए कितनी निर्दोष जाने लील लीं,कितना रक्तपात हुआ,कितने घर उजड़े,कितने लोगों का रोज़गार छिन गया,..कितनी बड़ी राष्ट्रीय क्षति हुई, इस टूटे झरते समय में कितनी नैतिकता इस सदी से लुप्त हुई,.कल इन सवालों के जवाब हमें मय सूद चुकाने होंगे,..क्या हम इस हिंसक आंदोलन से कोई सबक लेंगे? क्या कल कहीं ऐसे हादसों का दोहराव नहीं होगा? यदि ये वचन हर व्यक्ति खुद को देता हैं तब ही हमें मनुष्य कहलाने का अधिकार हैं अन्यथा नहीं--


आरती तिवारी
आरती तिवारी कवियत्री हैं और मंदसौर किसान आंदोलन पर नियमित लिखी गयी यह डायरी उनके सरोकार उजागर करती है। सरोकार हों तो कोई भी लेखन सार्थक होता है। जो कुछ घट रहा है अपने समय में उस पर निगाह रखने वाले लोग सच्चे लेखक होते हैं।

 

 

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