मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

दोस्तों, आज मैं अपनी पढी हुई एक बहुत रुचिकर कहानी आपको बताना चाहती हू. यह वह कहानी है जिसे आर्कटिक महासागर के पास एक बहुत ठण्डे और लगभग बर्फ से घिरे हुए स्थान टुण्ड्रा में रहने वाले एस्किमो लोग अपने बच्चों को सुनाया करते हैं. यह एक बहादुर और शांत प्रकृति के खरगोश की कहानी है.

बहुत बहुत समय पहले कुछ दुष्ट राक्षसों ने सोचा कि क्यों न सूरज को ही चुरा लिया जाए. वे चाहते थे कि सूरज केवल उनके पास रहे और उनके लिये चमके और बस उन्हें ही गर्मी दे. उन्हें बाकि की दुनिया की जरा भी चिन्ता न थी कि बाकि के स्थानों के लोग क्या करेंगे सूरज के बिना?

जब उन्होंने सूरज चुराने का निर्णय कर ही लिया तब उन्होंने एक आसमान तक पहुचने वाली लम्बी, बहुत लम्बी सीढी बनाई और एक लम्बा, बहुत लम्बा भाला बनाया. सीढी पर चढ वे आसमान पर पहुचे और भाले को जर से फेंक कर सूरज के अन्दर धंसा दिया. अब भाले पर मजबूत रस्सी बांध कर वे उसे पूरी ताकत से खींचने लगे. और घंटों की खींचातानी के बाद आखिरकार वे सूरज को आसमान से जमीन पर खींच लाने में सफल हो गये.

ऐसे में आर्कटिक की बर्फ से घिरे क्षेत्र टुण्ड्रा के लोग बहुत नाराज र दु:खी हुए. सूरज के बिना उनका स्थान और ठण्डा और अंधेरा और हो चला था. खाने के सामान, पौधे, फलों और शिकार कर खाये जाने वाली मछलियों तथा जानवरों की कमी से वे भूखे मरने लगे. सूरज की अनुपस्थिति की वजह से न तो चन्द्रमा और न तारे निकल रहे थे. वे भी तो सूरज के प्रकाश से चमकते हैं. घनघोर अंधेरे में कभी कभी उत्तर में चमकने वाले प्रकाश से थोडा बहुत प्रकाश आ जाया करता था.

तब परेशान होकर बुध्दिमान और समझदार स्नोई उल्लू ने जानवरों की सभा बुलाई और कहा -

'' भाईयों, हम सब घने संकट में है. यह वह समय है जब कि किसी एक बहादुर जानवर को सामने आना होगा और सूरज को लाने का कठिन और साहसिक काम करना ही होगा. वह कौन हो, आपमें से सामने आए.

पहले सामने आने का साहस करने वाला भालू था. वह निकल पडा सूरज लाने. जब वह थोडी दूर तक गया तो उसे भूख लगने लगी. भूख के मारे उसके पेट में से आवाजें आने लगीं. वह भोजन के बारे में ही सोचता रहा और यह सोच कर खाना ढूंढने निकल पडा, कि वह पेट भर कर ही आगे जाएगा, न जाने कितना समय लग जाए सूरज लाने में. उसे बहुत देर लगी खाना ढूंढने तथा उसके बडे मोटे पेट को भरने में. इस चक्कर में वह सूरज लाने के बारे में भूल ही गया. सारे जानवर उसकी प्रतीक्षा करते रहे पर वह पेट भर कर खाकर आलस में घिर कर सो गया था.

उसके बाद भेडिया आगे आया. उसने बोला -

'' मैं बहादुर और मजबूत हूँ.

वह भी सूरज लाने चल पडा. पर हवा इतनी ठण्डी, तेज और तीखी थी कि वह का/पने लगा. वह ठण्ड से बचने के लिये एक गुफा में जाकर सो गया.

बहुत हफ्ते गुजर गये, भेडिया शर्म के मारे लौटा ही नहीं. जानवरों की हालत ठण्ड और अंधेरे तथा भूख से बहुत खराब हो चली थी. तब एक और सभा बुलाई गयी. स्नोई उल्लू ने कहा कि -

''हम स्नोशू खरगोश जो कि बर्फ में देर तक चलने में माहिर है को भेजते हैं. वह तेज गति से चलता है और वह जरा भी स्वार्थी नहीं है.

स्नोशू खरगोश कूदता-भागता, फांदता पहाडों पर चढ ग़या. वहाँ बहुत ठण्ड थी और तीखी ठण्डी हवा तीखी सुईयों की तरह चुभ रही थी. उसके जूते जम गये थे बर्फ में, पर वह रुका नहीं, जूते वहीं छोड चल पडा. उसे भूख लगी उसने हरी घास देखी जो कि टुण्ड्रा में मिलना दुर्लभ थी पर उसने खाने में समय गंवाना उचित न समझा और वह आगे चल पडा.

अब एक बर्फीली सुरंग में उसे सूरज की किरणें झांकती दिखाई दीं. वह सुरंग के अन्दर गया. जब सुरंग खत्म हो गयी तो उसने आगे झांका - सूरज एक बडे हांडी नुमा बर्तन में रखा था. वो राक्षस सूरज को घेरे सो रहे थे. वह चुपके से भागता हुआ गया और उसने उस बडे ग़ोल बर्तन को धक्का मारा, सूर्य उसमें से फिसल कर निकल गया और लुडक़ने-पुडक़ने लगा, एक आग के बडे ग़ोले की तरह. उसने सूरज को एक और धक्का मारा तो वह और तेजी से लुडक़ने-पुडक़ने लगा.

स्नोशू खरगोश भी तेजी से उसके पीछे भागा. हलचल से वे राक्षस जाग गये. वे स्नोशू खरगोश के पीछे भागने लगे. स्नोशू खरगोश को पता था कि अगर राक्षस उसे पकड लेंगे तो जरूर उसे मार डालेंगे, वह और तेजी से भागा. वे उसके पास पहुंचने को थे. उसने हिम्मत से काम लिया उसने सूरज को पैर से एक जोरदार धक्का लगाया कि उसके बहुत से टुकडे तो बिखरे मगर वह आसमान में अपने स्थान पर पहुच गया. सबसे बडा टुकडा बना सूरज, और दूसरा बडा टुकडा बना चन्द्रमा और बाकि जो छोटे टुकडे बिखरे वह तारे बन आकाशगंगा में चले गए.

उसके बाद स्नोशू खरगोश वापस लौटा तो सारे जानवरों ने उसका जोरदार स्वागत किया.

सबने धन्यवाद कहते हुए उसकी तारीफ के पुल बांध दिये. टुण्ड्रा के जंगल में फिर से खुशहाली छा गई.

प्रस्तुति व अनुवाद - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
अक्तूबर 14, 2001

इन्द्रनेट पर हलचल - सुब्रा नारायण
अपने अपने अरण्य - नंद भारद्वाज
चिडिया और चील - सुषम बेदी
ठठरी - हरीश चन्द्र अग्रवाल
प्रश्न का पेड - मनीषा कुलश्रेष्ठ
बुध्द की स्वतंत्रता - मालोक
भय और साहस - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
मदरसों के पीछे - रमेशचन्द्र शुक्ल
महिमा मण्डित - सुषमा मुनीन्द्र
विजेता - सुषमा मुनीन्द्र
विश्वस्तर का पॉकेटमार- सधांशु सिन्हा हेमन्त
शहद की एक बूंद - प्रदीप भट्टाचार्य
सम्प्रेषण  - मनीषा कुलश्रेष्ठ
सिर्फ इतनी सी जगह - जया जादवानी

कहानियों का पूरा संग्रह

     
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 
 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com