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छोटा सा रहस्य

रानी की आयु बहुत अधिक हो चली थी. फिर भी वे बूढी नहीं हुई थीं. रानी बच्चों के बीच खेलती थीं तथा सदा प्रसन्न रहती थीं, मेहनत करतीं व सदा दूसरों के काम आतीं. ऐसे लोग कभी बूढे नहीं होते. रानी सप्ताह में एक दिन नगर के सभी बच्चों को महल में बुलातीं. उन को ज्ञानवर्धक बातें सिखातीं, कहानियां सुनातीं. बच्चे महल के बडे ंगन में खेलते. उन्हें देख वे गदगद हो जातीं. वे भी बच्चों के बीच बच्ची बन जातीं. ऐसे अच्छे स्वभाव की रानी बूढी क़ैसे होती?

बच्चे रानी का बहुत आदर करते, वे उन्हें अपनी मां से भी सुन्दर लगती थीं. हां एक बात बच्चों को परेशान करती थी. बीच बीच में रानी अपने महल से गायब हो जातीं फिर किसी को कुछ दिनों के लिये दिखलाई नहीं देती. आखिर रानी जाती कहां थीं ? यह एक रहस्य बना हुआ था.

एक बार ऐसा हुआ कि नगर में बहुत जर का अंधड तूफान आया. कई झोंपडियों की छतें उड ग़ईं. फिर बहुत तेज बारिश हुई. कच्चे मकानों की दीवारें गलने लगीं. ऐसे में एक गरीब औरत, मौसम की मार सहती हुई एक पक्के मकान के बरामदे में खडी हो गई. तभी अन्दर से मकान मालकिन वहां आई. उसने उस औरत को डांट कर कहा, '' यहां क्यों खडी हो? चलती नजर आओ.'' औरत ने उत्तर दिया, '' मालकिन मुझे स्वयं घर जाने की जल्दी है. यदि आप कृपा कर मुझे छाता दे दें तो मैं कल लौटा दूंगी.'' मकान मालकिन चिल्ला पडी, '' वाह, वाह क्या कहने. तुम जैसे चोर उचक्के बहुत देखे हैं. जाओ जाओ, आगे जाओ. भागो.'' औरत ने कहा, '' आप मेरी यह अंगूठी रख लें. जब आपको छाता मिल जाए तो इसे लौटा देना.''
मालकिन ने देखा अगूंठी बहुत चमचमा रही है
, जैसे असली हीरे की हो. पर ऐसी साधारण औरत के पास हीरे की अम्गूठी है. न सही, इतनी कीमती. पर मेरे छाते की कीमत से तो कम मूल्य कदापि नहीं हो सकती. यह सब सोचते हुए वह मकान मालकिन अंदर गई. थोडी ही देर में एक टूटा फूटा छाता उठा लाई. फिर कर्कश स्वर में बोली, ''यह लो! और अब भागती नजर आओ.'' बदले में उसने अंगूठी रख ली.

बहुत दिन गुजर गये.

एक रोज बहुत से बच्चे महल में रानी के साथ खेल रहे थे. खेलते खेलते एक बहुत छोटा बच्चा बोला,

'' रानी मां! रानी मां! एक बात कहूं? ''
रानी ने कहा, '' जरूर कहो.''
बच्चा बोला, '' अपने नगर में एक स्त्री है. देखने में तो ठीक लगती है. पर पागलों की तरह गलियों में बडबडाती फिरती है.''
तब दूसरे बच्चों ने कहा, ''हां रानी मां. वह कहती है,'' हाय मैं ने यह क्या किया? '' फिर रोने लगती है.
रानी ने कहा, '' ठीक है मैं पता लगवाती हूं.''
पहरेदार निकट खडा था, बोला, '' रानी साहिबा! वह स्त्री यहीं सामने एक पेड क़े नीचे बैठी रो रही है.''
रानी ने आदेश दिया, ''उसे यहां ले आओ.''

थोडी ही देर में वह स्त्री आई और रानी के कदमों में लोट गई. रानी ने उसे उठाया और अपने सीने से लगा लिया, '' ऐसा क्यों करती हो बहन, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकती हू? '' स्त्री के तमाम कपडे अस्त व्यस्त थे, बाल उलझे हुए थे. आंखें बुरी तरह से लाल हो रही थीं. तो भी रानी ने उसे पहचान लिया. बच्चों ने कहा, '' हा हम इसी की बात कर रहे थे.''
रानी ने उस स्त्री को कुर्सी पर बिठाया और बोली, '' कहो बहन! तुम्हें क्या कष्ट है? क्या तुम्हारा कोई शत्रु है जिसने तुम्हारा यह हाल किया है? '' अबकि वह स्त्री सुबकते हुए बोली, '' महारानी मैं स्वयं ही अपनी शत्रु हू
. आपका सिपाही छाता लौटाने आया था. उसके मुंह से गलती से निकल गया कि रानी साहिबा ने छाता भिजवाया है. मैं ने सुन रखा था, आप भेस बदल कर प्रजा का दुख दर्द जानने महल से निकल जाती हैं. बारिश में टूटे झोंपडों, मकानों की मरम्मत होते हुए भी मैं ने देखा था. इतनी जल्दी यह काम आप ही करवा सकती थीं. जब मुझे मालूम हुआ कि स्वयं महारानी मेरे द्वार पर आईं थी और मैं ने उनके साथ ऐसा घटिया व्यवहार किया; तब से मैं पश्चाताप की अग्नि में जल रही हू. कितने दिन बीते सो नहीं सकी. ठीक से खा नहीं सकी. आपके पास कौनसा मुंह लेकर आती? डर लगता था.''

कई बच्चों ने ऊंची आवाज में कहा, '' हमें तो डर नहीं लगता. रानी मां हमें बहुत प्यार करती हैं.''
वह स्त्री बोली, '' पर मुझसे बहुत बडा कसूर हुआ है.''
फिर उसने बच्चों को सारी घटना कह सुनाई और अंत में कहा, '' मैं शर्म से जमीन में गड ज़ाना चाहती हू
. मेरा व्यवहार कितना घटिया था, रानी साहिबा के साथ.''
रानी ने कहा, '' जो हो गया उसे भूल जाओ.'' फिर वे बच्चों से बोलीं, '' घर पर जो भी आए उसकी सहायता करनी चाहिये. यह नहीं सोचना चाहिये कि वह बडा आदमी है या छोटा.''
वह स्त्री फिर से रानी के पांव में गिर गई और बोली, '' मुझे सजा दीजिये. मैंने मनुष्य - मनुष्य में फर्क किया.''
रानी ने कहा, '' तुम्हें अपने किये की सजा स्वयं ही मिल गई. अब घर जाओ.''

मन का बहुत बडा बोझ उतार कर वह स्त्री घर चली गई. बच्चे भी नई सीख लेकर अपने अपने घर लौटने लगे.

- हरदर्शन सहगल
जुलाई 6, 2002

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