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सफेद रन
नमकीन रेगिस्तान में रंगीन शमों का डांडिया
 

"सुदूर पश्चिम में कच्छ के आकाश में तनी होती है चांद सितारों की चादर और नीचे सफेद नमकीन रेगिस्तानी पटल पर उभरता है झिलमिल नगरी का अक्स। अदभुत! अकल्पनीय!!"

भारत के जिस छोर पर जाकर सूरज दिनभर की थकान के बाद अपने बिस्तर पर लेटने की तैयारी करता है, वहां दूर-दूर तक नमक का रेगिस्तान पसरा है और रोशनी के प्रदूषणसे मुक्त होते ही वहां एक ऐसी नगरी उभरने लगती है जिसकी कल्पना करना मुमकिन नहीं है। जंगल में मंगल की कहावत को गुजरात में कच्छ के इस रेगिस्तान में नया नाम मिल गया है। पूरा देश जब एक साल को अलविदा कहकर दूसरे साल की दहलीज़ पर खड़ा होता है तो कच्छ के इस रन उत्सव में जीवन के अनूठे रंग घुलने लगते हैं। भारत में शयद सबसे लम्बे समय तक चलने वाले इस रन उत्सव में गुजराती संस्कृति हिलोरें लेती है और सफेद रन के बीच होकर काली स्याही से किसी मानचित्र पर बनाई गईं सुंदर सपाट सड़कों पर जिंदगी सरपट दौड़ती महसूस होती है। इन्हीं बेदाग सड़कों पर सैंकड़ों किलोमीटरों का सफर लगभग चुटकियों में तय करते हुए जब आप देश के पश्चिमी किनारे पर पहुंचते हैं तो अस्थाई भव्य नगरी कुछ इस तरह आपके सामने सजधज कर खड़ी नजर आती है जैसे किसी बादशाह ने जंग में फतह हासिल कर उल्लास भरा लंगर डाल दिया हो।
सफेद रन का विस्तार करीब साढ़े सात हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में है, और इसी नमकीन रेगिस्तान में भुज से लगभग 80 किलोमीटर दूर सजती है रन उत्सव नगरी। कच्छ के रन में बसे आखिरी गांव धोरडो में कच्छ या रन महोत्सव हर साल दिसंबर की पहली पूर्णिमा से शरू होता है। 2005 में जब पहली-पहल दफा रन उत्सव आयोजित हुआ तो इसकी अवधि सिर्फ 3 दिन रखी गई थी। 2012 तक रन उत्सव की अवधि दो महीने थी लेकिन लोकप्रियता के कई पायदान लांघकर अब यह उत्सव तीन महीने तक सजने लगा है। (01 दिसंबर, ’14 से 05 मार्च, ’15)। आनलाइन बुकिंग की सुविधा गुजरात टूरिज़्म की वेबसाइट http://booking.rannutsav.net पर है या टोल फ्री नंबर 1800 270 2700 पर भी संपर्क किया जा सकता है।
गुजरात टूरिज़्म ने सैलानियों के लिए रेगिस्तानी बियाबान में पांच सितारा सुविधाओं से लैस टैंट नगरी यहां बसायी है। रन के रेतीले दरिया पर रंग-बिरंगे टैंट कई एकड़ में फैले हैं और यहां तक कि स्थानीय लोगों के माटीघरों की ही तर्ज पर बने ’भुंगा‘ में भी आप ठहर सकते हैं। टैंट नगरी के डाइनिंग हाल में बाजरे के रोटले और ’चास‘ (छाछ) के साथ थेपला, फाफड़ा, खम्मण से लेकर ओंधिया, कच्छी कढ़ी, गुजराती थाली जैसे ढेरों वेजीटेरियन व्यंजनों का लुत्फ लिया जा सकता है। सवेरे करीब छह बजे जब सूरज बिस्तर में करवट ले रहा होता है उस वक्त इस टैंट नगरी में योग, ध्यान का सत्र शुरू हो जाता है। स्पा, मसाज, नेचरोपैथी जैसी सुविधाओं को उपलब्ध कराने वाले काउंटर भी हैं। और टैंट नगरी के भीतर यात्रियों को यहां से वहां दौड़ाते छकड़ा की सवारी आपने नहीं की तो क्या किया! आगे मोटरसाइकिल और पीछे बैठने के लिए मिनी टैंपू जैसा इंतजाम, उस पर रंग-बिरंगी चादरों, झंडियों, सीटों से सजे-लजाए से ये छकड़े भी टूरिज़्म के फलसफे में विस्तार करते हैं। इन्हें उत्तर भारत के कई राज्यों में दौड़ते जुगाड़ का ही गुजराती संस्करण माना जा सकता है।
कच्छ के रन में जब रात गहराती है तो चांद, उसकी चांदनी और सितारों का खेल शुरू हो जाता है जिसका भरपूर लुत्फ लेने का इंतजाम इस महोत्सव में मौजूद है। टैंट नगरी आकाश में सजे सितारों का प्रतिबिंब सा दिखाई देती है। इस प्रतिबिंब के संसार में संगीत भी पसरा है और जादुई खेल भी। कठपुतली के नाच भी और डांडिया की थाप भी। और अगर आप थिरकते हुए कुछ सांसे चुराना चाहते हैं टैंट नगरी के पिछले हिस्से में अंधियारे कोने का आनंद लेने के लिए एक खगोल नगरी आपके स्वागत के लिए तैयार रहती है जहां बड़े बड़े टेलीस्कोप से आकाश को जमीं पर उतार लिया गया है। वहां खगोल शास्त्री नरेंद्र गौड़ तारों के संसार में आपको गोता लगवाते हैं। उनकी दूरबीन में झांकिये तो आपको मालूम हो जाएगा कि सिर्फ एक चांद नहीं है आकाश में - उन्होंने हमें दिखाया बृहस्पति ग्रह और उसके गले में हीरे के पैंडेंट की तरह लटके हुए चार-चार चांद। उफ्! इस नज़ारे की कल्पना हमने कभी जीवन में नहीं की थी और कभी नहीं जाना था कि हंटर डाॅग वाला सितारा किस ताक में रहता है और ध्रुव तारे तक पहुंचने के लिए किन तारों को निहारना जरूरी है। यह रन के रेगिस्तान में तारों की दुनिया का अनूठा रूप है जिसे देखना वाकई सिर्फ यहीं संभव था।
कच्छ के रन में बिग बी!
गुजरात के सफर में बिग बी आपके साथ होते हैं, वर्चुअली ! रन उत्सव के लिए सजी-धजी खड़ी धोरडो टैंट सिटी की ओर बढ़ते हुए यह अहसास लगातार साथ बना रहता है। कभी ड्राइवर नारायणभाय के मुंह से तो कभी राह चलते राहगीर से रास्ता पूछने के लिए रुकने-रुकाने के क्रम में ’बच्चन साहब का कमाल है‘ सुनाई देता ही रहा। वाकई, गुजरात सैलानियों की पदचाप से कुछ हद तक छिटका हुआ रहा है। हैरान हूं मैं कि भौगोलिक आकार में इतना बड़ा राज्य अपने सीने में इतने ढेरों राज़ (हड़प्पा कालीन भग्न षहरों के अवषेश इस राज्य के लोथल और धौलावीरा में मिले हैं ) और इतनी विविधता को कैसे और क्यों छिपाता आया है अब तक! केरल सरीखे नन्हे राज्य ने इन्क्रेडिबल इंडिया के टैग के सहारे सैर-सपाटे की दुनिया में बीते सालों में नाम कमाया और वहीं गुजरात जैसा प्रदेश है जो शयद पब्लिसिटी के अभाव में अपने टूरिस्ट स्थलों को भुनाने से चूक गया। बहरहाल, देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर अब गुजरात अपने फर्राटा राजमार्गों की ही तरह टूरिज़्म सर्किट पर भी दौड़ने लगा है।
कच्छ के सफेद रन का नाता साइबेरिया तक है! हैरत में हैं न आप कि वो कैसे ? दरअसल, साइबेरियाई राजहंस (फ्लैमिंगो) बर्फीली सर्दियों से बचकर नवंबर में गुजरात के तट पर उतरते हैं, अपनी नई-नवेली पीढ़ी तैयार करते हैं और फिर जैसे ही रन में तपिश की आहट होती है, वापस अपनी चिर-परिचत सफेदी की ओर लौट जाते हैं। कच्छ के नमकीन तटों पर जगह-जगह फ्लैमिंगो बस्तियां बसी हैं इन दिनों और भुज से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर अच्छी-खासी फ्लैमिंगो सैंक्चुअरी भी है।
रन उत्सव के आकर्षणों में कुछ और भी नग पिरोए गए हैं। मसलन कालो डुंगर की सैर! इस पहाड़ी के उन्नत छोर से सामने फैले सफेद रन के अविरल विस्तार को देखकर जाने क्यों यह लगता रहा कि धरती का आखिरी सिरा यहीं कहीं है! यहां क्षितिज झुकता हुआ अपने पूरे वजूद को रन की सफेदी में कुछ इस तरह से समो देता है कि रेगिस्तान और आसमान एक-दूसरे में एकाकार होते हैं। और उस नीली-सफेद आभा के अबूझे संसार में आप कुछ देर तक खुद को भूल जाते हैं। यही तो है वो जादुई संसार जो कच्छ के रन पर इन दिनों सूरज की किरणें फैलते ही हर रोज़ पसरता है, बिखरता है और सांझ ढलने पर अगले दिन का सूरज उगने तक सिमट जाता है। देश की सुदूरतम पश्चिमी सरहद पर फैला थार रेगिस्तान का यह सिरा नमक के रेगिस्तान के रूप में दुनियाभर में जाना जाता है और हिंदुस्तान में कच्छ तथा पाकिस्तान के सिंध जिले तक फैला है। बंटवारे से पहले तक सिंध और कच्छ के बीच लोगों का, कारोबारियों का आना-जाना लगा ही रहता है। नमकीन सफेदी से नहाए रन में कई-कई दिनों तक बढ़ते सिंध के कारवां कच्छ में खड़ी पहाड़ी को देखकर अपनी दिशा और मंजिल का अंदाज़ा लगाया करते थे। यों यह पहाड़ी दूसरे पर्वतों की ही तरह दिखती है लेकिन सफेद रन में दूर से इसे देखने पर लगता था जैसे काला पहाड़ खड़ा हो। और तभी से कालो डूंगर नाम का कच्छ में खड़ा यह सबसे ऊंचा स्थल राहगीरों का हमराही बन गया।
रन उत्सव में शिरकत करने के बहाने हमारे कारवां भी कालो डूंगर की ओर बढ़ चले थे। उत्सव के लिए सजी टैंट नगरी से करीब सत्तर किलोमीटर दूर है यह पहाड़ी। खावड़ा से 25 किलोमीटर उत्तर की ओर संकरी, सर्पीले पहाड़ी रास्ते पर बसों को खर्रामा-खर्रामा ही आगे बढ़ना था। लेकिन जबसे पिछले मोड़ पर रन की एक झलक दिखी है तभी से मन है कि फर्राटा उड़ रहा है और उसी रफ्तार से बस को भी दौड़ते देखना चाहता है। पहाड़ी पर दत्तात्रेय मंदिर के सामने का नज़ारा किसी छोटे-मोटे मेले से कम नहीं है। रेगिस्तानी जहाज यानी ऊंट अपनी रंग-बिरंगी पोशाकों में सैलानियों को व्यू प्वाइंट तक घुमा लाने की होड़ में जुटे हैं। हमने पैदल ही इस दूरी को नापने का मन बना लिया और हल्की ऊंचाई वाली सड़क पर बढ़ चले। करीब 200 मीटर बाद ही वो ’व्यू प्वाइंट‘ था जहां से नज़रों को 180 डिग्री घुमाने पर सिर्फ और सिर्फ रन का अनंत सिलसिला दिखायी देता है। एक तरफ साल्ट पैन हैं जिनमें खारे पानी की हदबंदी कर नमक बनाया जा रहा है लेकिन ज्यादातर हिस्सा अपनी नीली आभा में सिमटा किसी दार्शनिक की मुद्रा में चुपचाप खड़ा है। सूरज ने सिमटने का इशारा किया तो हमारे कारवां में लौटने की बेताबी झलक आयी।
अब सूर्यास्त को क्षितिज में गुम होते देखना है। कुदरत के इन रोज़ाना के कारनामों को देखने हम सैंकड़ों किलोमीटर का सफर कर गुजरात तट पर सफेद रन की नमकीन रेत पर बढ़ चले हैं। सूरज अपनी अठखेलियों की पिटारी बांध चुका है और कई जोड़ी निगाहें उसी पर टिकी हैं। कैमरों में धड़ाधड़ बंद हो रहे उन पलों को मैं अपनी यादों का हिस्सा बना रही हूं, लिहाजा अब क्षितिज और मेरे बीच कैमरे का परदा भी हट चुका है। यों भी कायनात के अद्भुत नज़ारों को सिवाय यादों के कब, कौन कैद कर पाया है!
क्षितिज से सूर्य का मिलन होने की देर होती है और रन कुछ कंपकंपाने भी लगता है। इस बीच, रन पर एक अलग झिलमिलाहट फैलने लगी है। और हमने महसूस किया कि कच्छ के रन में अब चांदनी रातें गुमनाम नहीं रह गईं। चांद की सवारी धौलावीरा से लेकर धोरडो तक और भुज से एकल के रन तक पर जब अपनी झिलमिलाहट बिखेरती है तो कइयों की यादों और इलैक्ट्रानिक डिवाइसों में सज रहे होते हैं वो पल! पश्चिमी सरहद पर इन दिनों सैलानियों का अच्छा-खासा मेला लगा है जो कच्छ की नमकीन आबो-हवा में पर्यटन का एक अलग किस्म का अनुभव ले रहे हैं।
रन उत्सव के बहाने भारत-पाक बार्डर तक भी जाने का मौका मिलता है। अलबत्ता, इस संवेदनशील इलाके तक पहुंचने के लिए यात्रियों को परमिट लेना होता है जो भुज के जिला कलेक्टर के दफ्तर से जारी किया जाता है। रन उत्सव में आने वाले टूरिस्टों के लिए गुजरात टूरिज़्म इंडो-पाक बार्डर टूर पैकेज के तहत् खुद ही इस परमिट का बंदोबस्त करता है। 650/रु प्रति व्यक्ति के खर्च पर कच्छ की सरजमीं से होते हुए देश की पश्चिमी सरहद तक का सफर भी कम दिलचस्प नहीं होता।
और अब यह जुमला कि “कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा”गुजरात टूरिज़्म का नहीं रह गया है, हमारा अपना देखा-भोगा-महसूसा सच हो गया है ...
सचमुच! कच्छ में बहुत कुछ देखा!
रन पर गहराती सांझ को यादों में पसरने, बिखरने, सहेजने, सिमटने के कुछ नायाब पलों को बिताकर हमारे अनमने से कदम लौटने लगे हैं। मगर मेरे मन का एक कोना रन के नमक के बीच कहीं उलझकर रह गया है।
 

- अलका कौशिक

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