मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
साक्षात्कार |
सृजन |
डायरी
|
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
स्वाध्याय
- एक क्रांति स्वाध्याय के प्रणेता श्री पान्डुरन्ग शास्त्री आठवले, स्वाध्याय अर्थात जीवन जीने का सही तरीका, आज के भोग में लिप्त, पशुतुल्य बने जीवन तथा मानव जीवन में अंतर समझानें वाली, बैठे को खडा करनें वाली, खडे क़ो चलानें वाली, चलते को दौडानें वाली श्रीमद भगवतगीता के विचार जो कहती है
मुफ्त
में लूंगा नहीं जीवन से लाचारी का नाश क्या कभी हमने सोचा है, किसने हमे बनाया, कौन हमें सुलाता है, कौन हमारे बीते दिन की यादों को बनाये रखता है, कौन हमारे रक्त को बनाता है ऌन तमाम सवालों का एक ही जवाब है जरूर कोई शक्ति सतत कार्यरत है इस दुनिया में जो एक माँ की तरह अपनें बच्चों का अर्थात हमारा सतत ख्याल रखती है। इस शक्ति को हम कहते है भगवान। हमारे लिए इतना कुछ करने वाले भगवान के लिए हम क्या करते है, यह चेतना हमारे अंदर जगा कर, उस भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के कई सोपान स्वाध्याय नें हमे दिए हैं । उनमें से एक है त्रिकाल संध्या - जो कहती है दिन में सिर्फ तीन बार भगवान को याद करना । सुबह उठने के बाद , दोपहर को भोजन के समय और रात को सोने से पहले । तीनों कालों के लिए स्वाध्याय ने हमें अलग अलग तीन मंत्र दिए है। सुबह उठने के बाद :
1.
कराग्रे वसते लक्ष्मी,
करमूले सरस्वती
2.
समुद्रवसने देवि
पर्वतस्तन मंडले
3.
वसुदेव सुतं देवं
,कंस
चारूण मर्दनं दोपहर के खाने के समयः
यज्ञशिष्टाशिनः संतो मुच्च्यंते सर्वकिल्बिषैः । यज्ञशिष्ट याने यज्ञ से देवों को समर्पण करके बाकी बचा हुआ उपभोगने वाला सज्जन सभी पापों से मुक्त होता है, जो केवल अपने लिए ही स्वार्थ सिध्दि से अन्न पकाता है वह पाप का अन्न भक्षण करता है। हे अर्जुन तू जो जो कर्म करेगा, जो जो सेवन, जो जो हवन करेगा, जो जो देगा अथवा जो जो तप याने व्रताचरण करेगा वह सभी मुझे परमेश्वर को अर्पण कर। मै परमात्मा अग्निरूप और सभी प्राणियों के आश्रय से प्राण, अपान वगैरह आयुओं से युक्त होकर चतुर्विद्य खाद्य, पेय, लेह्य, और चौष्य अन्न पचाता हूँ। हे परमात्मन् हम दोनो का गुरू तथा शिष्य का बराबर रक्षण कर, हम दोनों ही समान बल प्राप्त करें, हम दोनो में परस्पर द्वेष न हो। हम दोनो की अध्ययन की हुई विद्या तेजस्वी रहे। हमारे सभी संतापों की निवृत्ति होने दो। हमें भगवान की कृपा से अन्न मिलता है। पकाने वाला या उगाने वाला भले कोई भी हो, तो भी उसके पीछे भगवान की ही कृपा होती है। हम कहते हैं कि किसान बीज बोते हैं और तब अन्न मिलता है, लेकिन प्रथम बीज कहाँ से आया। खेत में चार दानें बोनें के बाद चार हजार दाने बनाने मे किसान की कौन सी शक्ति काम मे आयी। जो जीव को जन्म देता ह,ै वही उसके पोषण की चिंता करता है। जिसने दांत दिये उसी ने दानें दिये। अरे, उस करूणानिधि नें अपने शरीर की रचना भी कैसे की है। ज्वार बाजरे की रोटी खायें या गेहूँ की रोटी खायें सभी का खून लाल ही बनता है। खाने के बाद अन्न किस प्रकार पचता है, इसकी चिंता कौन करता है। अन्नरस खून में मिलकर सतत् शक्तिप्रदान करता है, इतना ही हम जानते हैं। बडे बडे वैज्ञानिक भी विविध पदार्थों से एक ही रसायन नही बना पाते है। ऌसीलिए इस अदृश्य शक्ति को जिसने हमारे लिए अन्न उगाया और् हमारा खाया हुया पचाया, लाल खून बनाया है, उसे खाते समय कृतज्ञतार्पूवक नमस्कार करना ही हमारी संस्कृती का आदेश है। खाना खाते समय भगवान को याद करना ही चाहिए। भोजन सिर्फ उदर भरण ही नहीं है वह एक यज्ञकर्म है। सभी यज्ञों का स्वामी और भोक्ता भगवान ही है। क्रमशः -
धीरेन्द्र मिश्र यह सारी बातें स्वाध्याय के प्रणेता परमपूज्य पांडुरंग शास्त्री जिन्हें स्वाध्याय परिवार प्यार से दादाजी कहता है, के प्रवचनों पर आधारित है। |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |