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बापू और हिन्दी
काशी विश्व विद्यालय में उस समय की घटना है जब डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन वहां उपकुलपति थे। विश्वविद्याालय का दीक्षांत समारोह मनाया जा रहा था। मुख्य अतिथि के रूप में महात्मा गांधी आमंत्रित थे। वक्ता आ रहे थे और अपना वक्तव्य अंग्रेजी में रखकर जा रहे थे। कार्यक्रम का संचालन भी अंग्रजी में ही किया जा रहा था। यह देख गांधी जी मन ही मन व्यथित थे। उन से न रहा गया तब उन्होने कहा ''अंग्रेजों को हम कोसते हैं कि उन्होंने हिन्दुस्तान को गुलाम बना रखा है लेकिन अंग्रेजी के तो हम खुद ही गुलाम बन गये हैं। अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर गुलामी थोपी परन्तु अंग्रेजी क़ी अपनी गुलामी के लिये मैं उन्हें जिम्मेवार नहीं मानता। खुद अंग्रेजी सीखने और अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए हम कितनी मेहनत करते हैं। यदि हमें कोई यह कहता है कि हम अंग्रेजों की तरह अंग्रेजी बोल लेते हैं तो हम खुशी से फूले नहीं समाते। इससे बढ क़र दयनीय गुलामी और क्या हो सकती है। इसकी वजह से हमारे बच्चों पर कितना जुल्म होता है। अंग्रेजी के प्रति हमारे मोह के कारण देश की कितनी शक्ति और कितना श्रम बरबाद होता है। अभी जो कार्यवाही यहां हुई जो कुछ कहा गया उसे आम जनता कुछ भी नहीं समझ सकी। फिर भी हमारी जनता में इतनी उदारता और धीरज है कि वहा चुपचाप सभा में बैठी रहती है। और यह सोच कर संतोष कर लेती है कि आखिर ये हमारे नेता हैं तो कुछ अच्छी बात ही कहते होंगे। लेकिन इससे उसे लाभ क्या। वह तो जैसी आयी थी वैसी ही खाली लौट गई। महात्मा गांधी की यह बात सुन सभी वक्ताओं को जिन्होने अपना वक्तव्य अंग्रेजी में दिया था सांप सूंघ गया। चुप्पी साधने के सिवा किसी को कुछ न सूझा।
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अंजू जैन
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