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काश! ऐसा भी स्कूल होता जहां मार नहीं पड़ती

लखनऊ , 20 दिसम्बर (आईएएनएस)। पूर्वांचल में महाराजगंज के एक छोटे से गांव में रहने वाला छात्र ईश्वर मणि त्रिपाठी। कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी, पढ़ने में तेज। लेकिन पिछले दिनों उसके प्रधानाध्यापक ने उसे दो थप्पड़ मारे। कारण यह- उसे टीचर ने भवन निर्माण के लिए सीमेंट लाने के लिए कहा था। मार्ग में सीमेंट की बोरी गलती से पानी में गिर गयी लिहाजा उसे मार खानी पड़ी। ईश्वर मणि सोचता रहा काश ऐसा भी कोई स्कूल होता जहां मार नहीं पड़ती।

इस क्षेत्र के नौतनवा की एक अन्य छात्रा स्मिता। स्मिता अंग्रेजी का होमवर्क करना भूल गयी। मैडम जी ने पहले उसे मुर्गा बनाया और फिर पूरे स्कूल की सफाई करायी। बात यहीं खत्म नहीं हुई उसकी सजा का अंत डंडे खाकर हुआ। इस पूरे हादसे ने खुद-ब-खुद उसके मन में स्कूल व टीचर के प्रति खौफ  भर दिया।

केवल अध्यापक ही नहीं अभिभावक भी इस तरह की मानसिक शारीरिक वेदना देने में पीछे नहीं हैं। कई बार स्कूल के बजाय घर में बच्चों को अधिक पीटा जाता है। बच्चों को भूखा रखा जाता है। उनके हाथों को बांध दिया जाता है, रोने या चिल्लाने पर मिर्ची का पाउडर मुंह में डाल दिया जाता है। और उन्हें लंबे समय तक धूप में रखा जाता है।

क्या आपको नहीं लगता कि यह खौफनाक तरीके से हमारी भावी पीढ़ी को गर्त में धकेल रहे हैं। शायद नहीं, यही वजह है कि 'प्लान' जैसे बाल केंद्रित सामुदायिक विकास संगठन ने कुछ ऐसे तथ्य सबके सामने रखे हैं। जिसे जानकर खुद 'प्लान' इंडिया भौंचक रह गया था। पिछले दिनों गत 15 दिसम्बर को गोरखपुर के नौतनवा तहसील में हुई 'प्लान इंडिया' की एक कार्यशाला में कुछ ऐसे ही खुलासे हुए। उक्त संस्था के प्रोडक्शन मैनेजमेंट से जुड़े के. कन्नन ने जानकारी दी कि आज स्कूली बच्चों के लिए शारीरिक सजा जीवन का एक स्वीकृत तरीका बन चुका है। उन्होंने बताया प्लान इंडिया ने शारिरिक सजा व उससे बच्चों पर पड़ने वाले मानसिक प्रभाव को लेकर चार राज्यों का चयन किया। इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार व आंध्रप्रदेश को शामिल किया। प्लान इंडिया की टीम ने 41 स्कूलों के करीब 1591 बच्चों से चर्चा की जिससे पता चला कि शारीरिक सजा उनके लिए आम बात है। यही नहीं सर्वे में पता चला कि शिक्षक व अभिभावक बच्चों के अनुशासित जीवन के लिए सजा को पहला मापदंड मानते हैं।

इतना ही नहीं अनुसंधान टीम जिस स्कूल में भी गयी वहां शिक्षकों के हाथों में छड़ी नजर आयी। शारीरिक यातना ने बच्चों के मन मस्तिष्क पर कितना प्रभाव डाल रखा है इसके लिए उक्त संस्था ने बच्चों से ही कामिक्स शैली में उनके विचार मांगे। 'कापेरिल पनिशमेंट' के नाम से तैयार की गयी इस पुस्तक में बच्चों ने शारीरिक सजा के भिन्न रूपों का चित्रण किया है। हैरानी की बात तो यह है कि इस कामिक्स चित्रण के माध्यम से बच्चों ने न केवल स्कूल के प्रति अपने रवैये को दर्शाया है बल्कि घर में उनके प्रति हो रहे व्यवहार, शिक्षक व अभिभावक द्वारा दी जानी वाली हिंसात्मक सजा व उन पर पड़ रहे प्रभाव को बखूबी उकेरा गया है। बस इतना भर नहीं छोटी-छोटी बच्चियों ने जेंडर भिन्नता, को भी दिखाया है कि कैसे उन्हें लड़की होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है और उन्हें स्कूल की दुनिया से दूर रखा जाता है।

इन तमाम तथ्यों से पता चलता है कि हमारे बच्चों के बालमन पर पड़ रहा प्रभाव उनके भविष्य के साथ कैसा खिलवाड़ करेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

बहरहाल प्लान इंडिया की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर भाग्य श्री डेग्ले ने इस सर्वे के बाद कापेरिल सजा को एक गम्भीर मुद्दा मान लिया है। उन्होंने कहा प्लान इंडिया हिंसा मुक्त स्कूल की वकालत करता है। साथ ही उन्होंने तय किया है भारत में अब इस पुस्तक का उपयोग शारीरिक सजा के खिलाफ अभियान की शुरुआत करने वाले साधन के रूप में होगा।

अनुपमा त्रिपाठी
20
दिसम्बर 2007

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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