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भगतसिंह दिलों में जिंदा हैं, वह कभी मर नहीं सकते नई दिल्ली, 14 जनवरी (आईएएनएस)। भगतसिंह की जन्मशती पर कई लघु पत्रिकाओं ने उन पर विशेषांक निकाले या फिर विशेष में कुछ सामग्रियां प्रकाशित की। जमशेदपुर, झारखंड से 'चिंतनशैली' नाम की एक पत्रिका निकलती है। चिंतनशैली वालों ने भी भगतसिंह पर एक पुस्तिका निकाली है, जिसमें भगतसिंह पर बहुत सारी अंतरंग व रोचक बातों का खुलासा किया गया है। पुस्तिका में भगतसिंह की पसंदीदा कविताएं छापी गयी है। भगतसिंह को जब फांसी की सजा दी गयी तो उस समय गांधी, नेहरू सहित अंग्रेजी हुक्मरान के सिपहसलारों के बयान व उस समय तमाम भाषाओं में छपने वाले अखबारों में क्या लिखा, छापा गया के प्रकाशन से भगतसिंह पर पठन सामग्री पर बनी एकरसता तय रूप से भंग होती जान पड़ती है। इससे पाठकों को एक सुखद अनुभूति का अहसास होगा। दूसरी ओर एक बात पाठक को निश्चित तौर पर खटक सकता है कि उद्भावना का विशेषांक भगतसिंह के साथी शिव वर्मा को समर्पित किया गया है लेकिन उन पर न तो कोई सामग्री दी गईऔर न ही उनके लिखे किसी सामग्री को यहां जगह मिली है। यूं तो भगतसिंह पर दिल्ली से निकलने वाली मासिक पत्रिका 'युवा-संवाद', बरेली से निकले वाली त्रैमासिक 'परचम' ने भी अच्छी सामग्री दी है लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से निकलने वाली पत्रिका उद्भावना ने भगतसिंह पर बहुत ही बेहतरीन अंक पाठकों के हवाले सुपर्द किया है। इस विशेषांक को सात खंडों में बांटा गया है। पहले खंड में भगतसिंह के आदर्श व्यक्तित्व पर सत्यम, कुलदीप नैयर, चमन लाल और विकास नारायण राय का दृष्टिसंपन्न लेख कई बारीकियों व ऐतिहासिक संदर्भों पर प्रकाश डालता है। दूसरे खंड (विचारधारा, कार्यक्रम और कार्रवाई) में 'कांग्रेसी और क्रांतिकारी' शीर्षक लेख में एस.इरफान हबीब ने इस लेख के पीछे कितनी मशक्कत की है, वह लेख के लिए इस्तेमाल किए गए संदर्भ ग्रंथों की सूची को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है। वे इस लेख में क्रांतिकारियों के प्रति कांग्रेस के रवैये पर सवाल खड़ा करते हैं जो पहले भी कई लोगों के विमर्श के विषय रहे हैं। पत्रिका के संपादकीय में उठाए गए सवाल नये हैं और उन पर साहित्य के सुधि जनों को सोचना होगा। संपादकीय में कहा गया है, ''बात नोट करने की है कि जहां एक ओर लोकगीतों व नौटंकियों में हमें भगतसिंह, सुभाष चंद्र बोस के दर्शन हो जाते हैं वहीं हमारे हिंदी साहित्य के पुरोधाओं ने इस ओर लगभग चुप्पी साधे रखी।'' विशेषांक में भगतसिंह पर बनी फिल्मों, साहित्यिक संदर्भों पर व कवियों व रचनाकारों द्वारा लिखी गई रचनाएं प्रकाशित की गईं हैं, जो अंक को दिलचस्प बनाती है। खंड पांच में रांगेय राघव की छोटी सी अच्छी कविता छपी है। रांघेय राघव का नाम 'कामरेड का कोट' कहानी के साथ जुड़ा है। रांगेय राघव की 'कामरेड का कोट' एक मात्र कालजयी कहानी है। उसके बाद रांगेय साहित्य की किन अतल गहराईयों में खो गए, विशेषांक से इतर साहित्य समाज व पाठक को अपने अंदर इसमें दिलचस्पी जगानी चाहिए कि अपार संभावनाओं से भरे लेखक किन कुंठाओं, आत्म प्रवंचनाओं या फिर किस मुग्धता के कारण केंद्र से दूर चले जाते हैं? भगतसिंह विशेषांक में भगतसिंह के बहाने कई प्रासंगिक सवालों पर विचार-विमर्श किया गया है। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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