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लोकतंत्र का भविष्य खतरे में : मैत्रीय पुष्पा
नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। हिन्दी की जानी मानी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि पुस्तकें यथार्थ से हमारा परिचय कराती हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तकों की दुनिया हमेशा खूबसूरत ही नहीं होती बल्कि, कई दफा इनके जरिए जीवन के कटु सच्चाइयों से भी हम रु-ब-रु होते हैं।
मैत्रेयी पुष्पा ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, ''अब इस देश में स्वतंत्र लेखन पर प्रहार हो रहा है। ऐसा मालूम पड़ता है कि लेखकों को इजाजत लेकर कलम चलानी होंगी। इस देश में लोकतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन मुझे डर है कि ये किताबी बातें होकर न रह जाएं।''
तसलीमा नसरीन से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, ''उनकी आजादी को खंडित करके सरकार समझ रही है कि वह देश में शांति बहाल कर रही है। सरकार में बैठे बुध्दिजीवियों को यह समझना चाहिए कि वह ऐसे तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं जो देश के संविधान में अपनी आस्था नहीं रखते हैं। यह भविष्य के लिए खतरनाक है।''
तसलीमा को लेकर न्यायिक सवाल उठाते हुए मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि यह कहां का न्याय है कि जो शांतचित्त होकर लिखे उसे नजरबंद कर दिया जाए और जो हिंसा में शामिल हो और दंगा करे उसे खुला छोड़ दिया जाए। इससे तो लोकतंत्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
पुस्तकों की उपयोगिता के सवाल पर पुष्पा ने कहा, ''पुस्तकें पतली हों या मोटी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह मन मस्तिष्क के द्वारा हमेशा हमारे साथ रहती हैं। सवाल के लहजे में उन्होंने कहा कि क्या कोई दूसरा माध्यम ऐसा है? फिल्में जो दृश्य हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं दर्शक उन्हीं दृश्यों के आसपास भटकता रहता है, लेकिन पुस्तकों में जो लिखा होता है पाठक उसे अपने-अपने तरीके से आत्मसात करता है। दुनिया का सभ्य समाज पुस्तकों से कभी दूर होगा, इसकी कल्पना करना ही बेवकूफी है।''
'झारखंड इनसाइक्लोपीडिया' नामक पुस्तक के विमोचन के बाद इसकी उपयोगिता के संबंध में उन्होंने कहा, ''लोग विदेशों की बातें करते हैं। वहां के विषय में अधिक से अधिक जानकारी चाहते हैं, जबकि इतना कुछ अपने देश में है उसे जानते ही नहीं।'' ब्रजेश झा इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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