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इसे ऐसा ही होने दो

अपनी पीठ और कन्धों पर नजरों का दबाव महसूस करने के बावजूद मैं जिद करके किताबों की अलमारी के सामने खडी रही कुछ है , जो मुझे पलटने को मजबूर कर रहा है और मैं पलट नहीं रहीपता नहीं कितनी अलमारियाँ देखने के बाद मैं दो किताबें निकाल पाई हूँ और दोनों मेरे कोर्स की नहीं हैंपूजा देखेगी तो फिर मुझे काट खाने को दौडेग़ीएक के पन्ने पलट कर देखा कुछ मिनट, फिर एक तरफ रख दीदबाव बढने के साथ मेरी बेचैनी बढी
अपनी जगह से पलटना मुझे नागवार गुजरने लगा और मैं थोडी नाराजगी से पीछे पलटी - सामने लम्बी सी मेज पर पूजा अपने प्रोफेसर मि देसाई से उलझ रही थी। वह अपनी कोई बात समझाने की कोशिश कर रही थी जी जान से, पर वे बिलकुल समझने को तैयार न थे। अब ये गई काम से। टेबल के दोनों तरफ लडक़े-लडक़ियाँ बैठे हुए। मेरी दाहिनी तरफ मि सरकार, लाईब्रेरियन, किसी रजिस्टर पर झुके हुएआसपास के तमाम शोर को पीछे धकेलते हुए। मैंने निगाहें घुर्माई मेरे सामने कुछ दूरी पर किताबों की अलमारियाँ और एक अलमारी के सामने खडे क़िताबें ढूंढते वोमुझे उन पर गुस्सा आ गया। मैं अलमारी खुली छोड धीमी चाल से चलती हुई उनके पीछे पहुँची

'' एक्सक्यूज मी ।

वे पलटे। देखती रह गई मैं उन्हें। यकबयक सारे शब्द फ्रीज हो गये मेरे अंदर इतनी परिचित सी क्यूँ? कहाँ? क्षण के हजारवें हिस्से में उन आँखों की छुअन मैं ने अपने अन्दर महसूस की।

'' यस, प्लीज अावाज अाई उधर से । लगभग 40 के आसपास की उम्र, मध्यम कद, गोरा रंग, भरा-भरा सा बदन, कानों की लाल लवें उसी क्षण देखीं मैंने

'' गो ऑन
 नहीं, कुछ नहीं ।  मैं धीरे से बुदबुदाई।
 देन?

तुमने क्यूं हिलाया मुझे अपनी जगह से , कहना चाहा, पर कहा

'' सॉरी टू डिस्टर्ब यू।

मैं देखती रहना चाहती थी थोडी देर और, कोई ऐसी चीज, क़ुछ ऐसा, जिस पर थोडी देर टिका जा सके। पकडा जा सके जिसे, लम्हे भर को सही, पर उस वक्त नहीं, और मैं पलटी

'' लिसन प्लीज
 नहीं पुकार नहीं थी वह, पर पुकार के सिवा और क्या थी? एक बार फिर देखा, मैंने मुडक़र  गाढे क़्रीम रंग की पेन्ट पर लाईट क्रीम शर्टकाले शूमाथे के बाल पीछे की ओरआधी काली-आधी सफेद कनपटियां
 सॉरी। एक बेहद हल्की सी मुस्कान।

नही,ं मैं नहीं देख पाई उसे पूरा। उसके जाने के बाद की खाली जगह देखी और फिर भरने के खयाल से हँस पडी। ज़गह भर गयी। सुन्दर है, एकदम अलगमासूम सी अल्लसुबह की धूप के नन्हे टुकडे क़ी तरह बेलाग
हम कुछ क्षण यूं ही एक-दूसरे की तरफ देखते रहे, फिर मैं ने किता
बों की खुली अलमारी की ओर इशारा किया

'' आय एम जस्ट कमिंग, प्लीज वेट।
 मैं प्रतीक्षा में ही हूँ।

मैं अपनी जगह से हिल गई। वे अपनी जगह से हटे नहीं। मैंने हवा में ठहरी उनकी गंध को काटा और उसके पार निकल गई। मैं जब वापस आई, वे दूसरी खाली टेबल के उस ओर , प्रतीक्षारत ठहरे हुए सेमुझे बहुत धीरे-धीरे वहाँ तक पहुँचना था पर मैं काफी जल्दी पहुँच गई। उन्होंने टेबल के दूसरी ओर बैठने का इशारा किया

'' आपको यँहा पहली बार देखा है।

मैं ने अपनी कुहनियाँ टेबल पर टिका दोनों हाथ बांध कर उस पर अपना चेहरा टिका दिया।

'' आप यँहा पढाती हैं क्या?
 मैं क्या आपको इतनी बडी लगती हूँ?

मैं ने शिकायत की। धीमे से मुस्कुराते हुए

'' मैच्यौर। आपमें ऐसा कुछ नहीं, जो आपको छोटा बनाए
 उसके लिये क्या करना होता है? मैं ने पूछा, हांलाकि मुझे कहना था
 थैंक्स फॉर कॉम्पलीमेन्ट्स।
 आपमें चाह क्यूं है ऐसी? वे फिर मुस्कुरा पडे।
 ग़ैरवाजिब है?
 नहीं, गैरवाजिब तो आपमें कुछ नहीं।
 आय एम डूईंग एम ए इन इंग्लिश
 फाईनल ईयर?

उन्होंने ओके के साथ होठ गोल करके फिर पूछा।

'' या कह कर मैं चुप हो गई। वे भी। मुझसे रहा नहीं गया
 मैं आपको पहली बार देख रही हूँ यँहा।  मैं ने एक-एक शब्द धीरे-धीरे उन्हें देखते हुए कहा।
 इसके पहले मैं नहीं था। मैं तो बस अभी हूँ।  उन्होंने टेबल पर रखी आडी-तिरछी किताबों को सीधा किया।
 एक खास वक्त के लिये

मुझे क्यूं लगा कि आखिरी वाक्य मेरे लिये कहा गया है, क्या अर्थ है इसका?

'' मे आई आस्क योर नेम? इफ यू वोन्ट माईन्ड।
 यसशीरीन।

देखते रहे वे उसी तरह मेरी ओर।

'' आपइफ यू?
 मि प्रोफेसर!

मैं चौंक कर खडी हो गई।

बैठिये-बैठिये, ऐसा क्या कह दिया मैं ने

मैं खडी रह गई। मुझे समझ नहीं आया, अब क्या?

''अब बैठ भी जाईए। आग्रह भरा स्वर।

मैं आहिस्ता से बैठ गई। उनकी तरफ देखती।

'' प्लीज क़म बैक। इस शब्द ने तो आपको बहुत दूर फेंक दिया, लगता है।
 मैंने सोचा भी नहीं था। मैं यूं ही बुदबुदाई।
 मत सोचिये। मैं आपका प्रोफेसर तो हूँ नहीं। बॉटनी का प्रोफेसर हूँ। दो दिन पहले ही आया हूँ।

मुझे क्यूं लग रहा है, मुझे वहाँ से खींच लिया गया है, जहाँ मैं अपने अनजाने चली गई थै। कहाँ? क्यूं? अन्दर एक भी शब्द नहीं बचा कि उनसे कुछ कहा जा सके। मैं चुप लाईब्रेरी में आते-जाते लडक़े-लडक़ियों को देखती रही। कुछ लडक़ों ने अन्दर आते हुए सीटी से एक खास किस्म की धुन बजाई, जिन्हें समझना था, वे समझ कर बाहर चली गईं। पता नहीं क्यूं मुझे यह उस वक्त निहायत बचकाना लगा। किसकी आवाज पर कौन उठता है, कौन जागता है, कौन जाने?

'' मुझे भी अब उठना चाहिये। मेरे अन्दर किसी ने कहा और इसी के साथ मैं ने देखा - पूजा और मि देसाई साथ ही उठे।
 आप बहुत वक्त लेती हैं क्या?  वे धीरे से हंसे।

इसके पहले कि मैं कुछ कहूँ पूजा और मि देसाई हमारे निकट आ गए। मैं खडी हो गई

'' हाऊ आर यू  उन्होंने मुझे देखते हुए कहा।
 ऑलमोस्ट फाईन सर, थैंक्स
 एण्ड यू मि संजय?

उन्होंने धीमे से मुस्कुराते हुए सिर हिलाया।

'' संजय!  मैं ने मन ही मन दोहराया।

मि देसाई विदा लेकर चले गए। मैं ने पूजा का परिचय उनसे करवाया। उन्होंने कहा कुछ नहीं, चुप बने रहे। उनसे विदा लेकर हम बाहर आ गए। लगातार लगता रहा, अभी वे अन्दर हैं, अभी रुका जा सकता है, थोडी देर और।
क्या है ऐसा उनमें जो मुझे एक साथ सुकून भी देता है और बेचैनी भी। अभी तो ठीक से देख भी नहीं पाई मैं उन्हें

'' ए, कौन थे वो? उसने मुझे टोका।
 कौन ?  मैं अनजान बन गई।
 वही जिसके साथ तू बैठी थी।
 बॉटनी के प्रोफेसर हैं। नये आये हैं।
 ओ उसने होंठ गोल करके सीटी सी बजाई।
 तेरा कितना काम अभी बाकि है?
 बहुत है, मदद करोगी?
 कर दूंगी। मैं ने अहसान सा जताया।
 ए, यह उसीके साथ का चमत्कार तो नहीं वरना, तू और मेरा काम उसने मुँह बिचकाया।
 अहसान फरामोश, और तेरे लिये नोट्स कौन बनाता है?

मैं ने उसे अपने टू-व्हीलर पर बिठाया और उड चली।

ठीक से याद करने पर मुझे उनका पूरा व्यक्तित्व इस तरह याद नहीं आ रहा, जैसा कि मैं उन्हें सोचना चाह रही हूँ। पानी में गिरती परछांई की तरह वे मेरी आँखों में उतरतेहल्के-हल्के हिलता पानी। जहाँ कोई चीज स्थिर नहीं। और मुझे लगता है मैं उसी पानी में उन्हें पकडने की कोशिश कर रही हूँ। जितनी ज्यादा मैं कोशिश करती, पानी उतना ही बेकाबू होता जाता। एक बार और मिलना पडेग़ा उन्हें देखने के लिये मैं ने उसकी शक्ल देखीवह अपनी प्रेक्टकिल फाईल बनाने में अतिव्यस्त

'' ए लाईब्रेरी चलें क्या? मैं ने उसे कुहनी मारी-  क्यूं? उसने पूछा।
 किताबें बदलवानी हैं।
 झूठ! बोल न, गोरस बेचन, हरि मिलन। उसने अपनी गहरी नजरों से मुझे देखा। मैं एकाएक कुछ न बोल सकी, सिर्फ हंस दी।

एक झटके से उसने मेरी कॉपी अपनी तरफ खींच लीमैं ने झपट्टा मारा तो वह तीर्रसी दूसरी तरफ निकल गई
मैं असहाय सी उसकी तरफ देखती रह गई वह पढने लगी

'' आय लाईक द फील ऑफ योर नेम ऑन माय लिप्स, आय लाईक द वे योर आईज ड़ांसेज, व्हेन यू लाफआय लव द वे यू लव मी, स्ट्रांग एण्ड वाइल्ड, स्लो एण्ड इजी, हार्ट एण्ड सोल सो कम्पलीटली

वह पढती जाती, मुझे देखती जाती मैं गुस्से में उठी और बाहर आ गई। यूं भी तो पीरियड खाली ही है। लाईब्रेरी की तरफ जाते हुए मेरे कदम बढ ही नहीं रहे। कोई जरूरी नहीं कि वे मिल ही जाएं, अगर मिल जाएं तो लडक़े-लडक़ियों की भीड चीरती हुई मैं वहाँ तक पहुँच ही गई। नहीं कोई नहीं है। मैं ने एक नजर में सारी लाईब्रेरी देख डाली, फिर साथ लाई किताबें लाईब्रेरियन के सामने रख दीं। सहसा देखादरवाजे पर वे, अंदर आने को एक पैर आगे बढा हुआमैं पल भर ठिठकी, फिर चलती हुई उनके नजदीक पहुँच गई

'' हलो

उन्होंने कहा कुछ नहीं, सिर्फ मुस्कुराये, मेरी तरफ देख कर

'' मैं ने सोचा था, आज आप नहीं आएंगी।
 मैं इतना ज्यादा वक्त नहीं लेती। मैं हंस दी।

सिगरेट की हल्की सी गंध मुझ तक आ रही है। मैं ने एक गहरी सांस ली। कहाँ पता था इसके पहले कि सिगरेट की गंध भी एक दिन अच्छी लगने वाली है। कौनसा ब्राण्ड है? कितने ब्राण्ड होते होंगे? एक बार पीकर देखी जाए क्या? पर उसमें इन होठों की महक कहाँ होगी? इन कपडों की, इस जिस्म की, यह निहायत अलग-सी महकमेरे साथ-साथ चलती। यह ख्याल ही उस समय इतना विलक्षण लगा कि जी चाहा उनका चेहरा अपनी ओर मोड क़र चूम लूं। मैंने उनका चेहरा नहीं देखा और अपना चेहरा भी झुका लिया। मैं नहीं चाहती कि उनकी ओर देखती पकडी ज़ाऊं।

तुमतुम तो नहीं देख रहे हो न मुझे? पर क्यूंनहीं देख रहे?

बरामदे के बाहर एक विशाल आसमानबदलियों से ढंकाआज शायद बारिश हो। अच्छी लगती है यह बेमौसम बारिश? ये शोर कितना अच्छा लग रहा है। यह तुम्हारे कदमों की आहटपीछा कर रही है शायद मेरी आहट का

ह्नअगर मैं ठहर जाऊं, तुम मुझे पकड लोगे, पकड लोगे न?

लम्बा बरामदा खत्म हो गया, हम दोनों वहीं आकर रुक गए, एक किनारे पर घंटी बजने की आवाज वातावरण में गूंज रही है। समूचे वातावरण को फलांगती वह घंटी जैसे मेरे ही अंदर बज रही है। उस शोर में से आँखे उठा कर उनकी तरफ देखा।

'' मेरी क्लास है। उनकी अत्यंत धीमी आवाज।

मैं ने सिर्फ हल्के से सिर हिलाया और वे बरामदे की सीढीयां उतर गए। मैं वहीं खडी रह गई। उनकी अनुपस्थिति अपने भीतर महसूसती। उनकी अनुपस्थिति में उन्हें अधिक तीव्रता से अपने भीतर महसूस किया जा सकता है। मैं कुछ पल बंधी खडी रही। सीढीयां उतर मैं पता नहीं किस ओर चल पडी। ज़हां रुकी, वहां देखा बॉटनी की क्लास चल रही है, मैं बाहर खडी हूँदीवार से पीठ टिका करउनके लेक्चर की आवाज अा रहीबाहर तक। वह सारे शब्द ग्रहण करती रही, जिनका मुझसे कोई वास्ता नहीं और वह आवाज ज़िसका वास्ता सिर्फ मुझसे है।

'' यू आर एयर, दैट आय ब्रीद, गर्ल, यू आर द ऑल दैट आय नीड एंड आय वान्ट थैंक यू लेडी, यू आर द वर्डस, दैट आय रीड, यू आर द लाईट दैट आय सी एंड यू आर लव , ऑल दैट आय नीडयू आर सांग दैट आई सिंग,
गर्ल यू आर माय एवरीथिंग

बारिश तेज, बहुत तेजउपर छत परमैं अकेली आज बह जाना है मुझेपूरा समूचा! नाचते हुए मेरे पैर फिसल-फिसल जाते हैं मैं रुकती नहीं। ऐसी बारिश देखी किसीने? तुमने देखी है संजय? क्या तुमने मुझे देखा है ठीक सेया मैं तुम्हारी सकुचायी आंखों से दूर ही रह गई। ये मेरे कांपते होंठ, उडते कपडे, बिखरे बाल, यह थरथराता जिस्मएक बार छुओ इसे, सिर्फ एक बार मैं सिर उपर कर बारिश की बूंदे अपने होंठों पर लेती हूँ आह! कितनी प्यास?

एक सैलाब है, जो मेरी देह की सीमाओं को तोडता हुआ बाहर आने को छटपटा रहा हैएक गहरी खाली छतपटाहट है, जो भरे जाने की मांग करती हैकोई ले ले मुझे अपनी बांहों की सख्ती में और चूर-चूर करदे । किसी के होंठों पर होंठ रख कर अंतहीन समय का वह गीत बुनूं, जो कभी खत्म नहीं होता। यह कौनसा रहस्य है, जिसे मेरी देह ने मुझसे ही छुपाया आज तक। ऐसी भीषण चाह नहीं उठी कभी किसी के लिये। हाय! मेरी देह यह कौनसा राग गा रही है, जिसका अर्थ मैं किसी को नहीं समझा सकती। इतना तापकि आज यह बारिश भी कम लगती है।

संजय, ओ संजय, क्या तुमने इस देह का नृत्य देखा है देखो यह देह किस तरह नृत्य की मुद्राओं में बार बार उतरती-लहराती है। ये पैर किस ताल पर थिरक रहे हैं? तुमने ज्वार देखा है? क्यूं उठता है ज्वार? किसके इशारे पर? और अगर मैं ये सारे किनारे तोड दूं जो तुम्हारे चारों तरफ हैं? तो तो संजय, आओ,आओ हम इस समंदर में एक साथ उतरेंवो देखो दूर उस किनारे पर मेरे कपडे रखे हैंसंजय मैं यहां तक कैसे आ पहुँची? यह भी क्या तुम्हें समझाना पडेग़ा, मेरे महबूब! देखो पानी मेरे घुटनों तक आ गया है। दूर लहरें मुझे बुला रही हैं और मुझे तैरना नहीं आतापर मैं रुकूंगी नहीं। मैं लहरो के आव्हान को ठुकरा नहीं सकती। कितना अद्भुत होगा, जब लहरें मुझे अपनी गिरफ्त में ले लेंगी। मैं अपना बोझ तुम्हारे हवाले कर दूंगी थोडी दूरबस थोडी दूर औरफिर सब कुछ डूब जाएगा। सब कुछ.. हम भी..।

मैंने अपनी बोझिल पलकें उठाईंजाने कब तक नाचते-नाचते मैं फर्श पर गिर पडी, और टेपरिकार्डर चल-चल कर बंद हो चुका था। कुछ देर मैं यूं ही भीगी पडी रही। मेरा जिस्म किसी अदृश्य ताप से जल रहा था जैसे। मैंने जिस्म को सीधा किया और उपर आसमान को देखा। बारिश लगभग खत्म हो चुकी थी, मैं बहुत देर उस बदलियों से ढके आसमान को देखती रही, जो कल से बरसते रहने के बावजूद खाली नहीं हुआ है। कहाँ से आता है इतना पानी?
मेरे गीले कपडे अस्तव्यस्त चिपके हुए हैं। कोई मुझसे कहता है -  उठो, छत पर ऊपरी दरवाजा खोल दो। उतरो
नीचे, कोई ढूंढ न रहा हो। उठो, आज कॉलेज नहीं जाना?

मैंने हाथ उपर करके आसमान पर टिकी बदली को अपनी बाँहों में भरकर चूम लिया। वो देखो इन्द्रधनुष! संजय,
देखा है कभी इन्द्रधनुष इतना सुन्दर! क्या हम रच सकते हैं इसे? इससे भी सुन्दर, अद्भुत! क्या कभी तुम जान सकोगे ये जो बदली है मेरी बांहों में , ऐसे क्यूं थरथरा रही है। मैं क्यों थरथरा रही हूँ?

मैं उठी और छत पर बने उस अकेले कमरे में गई, जहाँ मैंने वे छुपा रखीं थीं, उन्हें निकाला और अपने सामने रख लिया इन सारी सिगरेट्स में तुम्हारी कौनसी है संजय?

कैसे ढूंढू वह महक...वही महक, जिसका खयाल ही मुझे पागल बना देता है। चलो आज इन सभी को आजमाया जाये। मैं ने एक सुलगाई और होंठों से लगा ली

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