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  फिर-फिर लौटेगा - 2

आज उसे बुध्द की वह कहानी याद आई - बुध्द जब बोधि प्राप्त करने के बाद यशोधरा के पास लौटे, तो उनके साथ उनका शिष्य आनंद थाबुध्द ने आनंद से कहा, '' आनंद, तुम यहीं रहोयशोधरा मुझसे नाराज होगी मुझे बुरा-भला कहेगीतुम रहोगे, तो शायद वह अपने मन की बात नहीं कह पाएउसका गुस्सा जायज है उसे कहने दोमै उसका अपराधी हूं मुझे अकेले जाने दो, ताकि वह अपना गुस्सा उतार सके''

क्या वह जाए? अकेला, उसके पास

वह कमरे में मां की बगल में लेटी हुई है - फर्श परमां को नींद का इंजेक्शन देकर सुला दिया गया हैवह जाग रही हैबारह बरसो से जाग रही है नुकीले कांटे उग आए है उसकी पलकों परपर किसी से कुछ नहीं कहतीकिस कसूर की सजा मिली उसे? औरत होने की? कितना स्वार्थी है पुरुष? मतलब से बंधता है, मतलब से अलग हो जाता हैआज आया है वह - बारह बरस बाद और मैने उसे देखा भी नहींसब कह रहे थे - बदल गया है...आंखो में तेज उतर आया है - चेहरे पर कांति...गेरुए कपडो में किसी देवपुरुष सा लगता है देवपुरुष सा तो वह उसे तब भी लगता था, जब वह उसकी देह से खेल रहा होता थाउसकी तमाम-तमाम बातों के बावजूद उसे लगता था कि नहीं, देह ही अंतिम सच है

भटक गया है वह, लौट आएगाकहां जाएगा उसके बिना? नहींनहीं जा सकता! और जब उसने जाने की ठानी थी - वह दिनो रोती रही थीरातोंबात तक करनी बंद कर दी थी उसनेअलग कमरे में सोने लगा था वहउसकी छाती गुस्से व नफरत से धू-धू कर जलने लगी थी - नहीं, वह कापुरुष हैउसके लिए क्या रोना? जो अपने बूढे मां-बाप और जवान बीवी को यूं छोड क़र जा सकता है, उसके लिए क्या रोना?

नहीं, फिर वह उसके लिए नहीं रोईसारे आंसू सख्त बर्फ की सिल से उसकी छाती में जमा होते रहेबारह बरस में सिल इतनी सख्त और वजनदार हो गई है कि अब उसे पिघलाया नहीं जा सकताआइसबर्ग होता है न, एक हिस्सा ऊपर से दिखता और बाकी के हिस्से अंदर पानी में डुबे हुए

अब जाना औरत सिर्फ एक कहानी होती है, जिसे कहीं से भी शुरु किया जा सकता है, कही भी खत्म किया जा सकता है किसी  सेन्टेन्स पर ज्यादा दबाव डाला जा सकता है, किसी पर कम और कहानी की तरह वह हमेशा अधूरी रहती है रेत के ऊंचे ढूंह सी बनती बिगडती-हवाओं के मिजाज परअसीम संभावनाओं के भरी वह सिर्फ एक रात का हिस्सा होती है - सुबह लोग भूल जाते है और अधूरी कहानियां आसमान में बादलों के टुकडों की तरह तैरती रहती हैं जिन पर बाद में बयानबाजी की जाती है या किसी वीरान बंजर जमीन की तरह किसी बीज की प्रतीक्षा में उधर तकती रहती है, जिस तरह किसी के आने की जरा सी भी उम्मीद है

उस वक्त उसे लगा था, उसके अंदर जो चाहत थी उसके प्रति, वह उसी तरह झर गई है, जैसे पतझड में पेडों से पत्ते झर जाते है और फिर उसे खाली हो चुकने सी प्रतीति होने लगी - कैसा महसूस करती होगी खाली, वीरान टहनियां? जब उसकी नंगी बांहे खाली आसमान की ओर उठी हुई हो सिर्फ कुछ मांगती सी दया या भीख जैसे कोई चीजनहीं, वह नहीं मांगेगी और उसने अपनी खाली बांहे वापस अपनी ओर समेट ली थीवह फूली नही, फली नहीं, कुण्ठित नहीं हुई, तो यह उसका कसूर नहींवह क्यों इसके लिए शर्मिदा महसूस करे?

कदम नहीं उठे थे किसी के और वह सूनी रात सूनी आंखो से उसे तकती रह गई थी

अगली सुबह उसने जाने की बात ताया से उठाई, तो वह चौंक पडे -

'' पागल हो गया है रे? साधू-संन्यासी तो सारी दुनिया को अपना समझते है, तू तो अपने घर के लिए गैर हो गया। अभी चिता की आग भी ठंडी नहीं हुई होगी और तू जाने की बात कर रहा है। अब कही नहीं जाएगा तू। इन दो औरतो को देख - क्या कसूर है इनका? क्यूं छोडेग़ा तू इन्हे? नहीं जाएगा तू कहीं। मैं कह रहा हूं।'' वे उत्तेजित से हो गए।
''
आपके कहने से रुकूंगा...ऐसी उम्मीद आप न करें। आपकी आज्ञा का उल्लंघन कर रहा हूं, पर मुझे माफ कर दे। मैं सबका अपराधी हूं, पर क्या करूं? मैं नहीं बना इन सबके लिए। अगर ये मेरा कसूर है, तो मुझे माफ कर दे। सबके बगैर दुनिया चलती है, चलती रहेगी, मेरे बगैर भी। मैं कौन होता हूं किसी का? हर इंसान अपना मालिक आप है। मैं तो मर ही गया था इन सबके लिए बारह बरस पहले - वो तो अचानक आपका तार आया औरलगा, जाऊं, पितृ-ॠण से मुक्त हो जाऊं। अब ये सब पिछले जन्म की सी बातें लगती हैं - हम सब अपनी-अपनी कब्रों पर खडे हुए लोग है''

वह शांत स्वर में कहता जा रहा था कि अचानक रुक गयाकहीं ताया यह न समझे कि प्रवचन कर रहा हैउसने उनकी आंखो में देखा - उनकी आंखे भरी हुई थी - फिर उठते हुए बोले '' जैसे ईश्वर की मर्जीमैं क्या कर सकता हूं?'' और वे जाने लगे - फिर ठिठक गए और दूसरी ओर मुंह किए हुए ही बोले, '' अब आया है, तो बारहवां कर ले, फिर जानाक्या पता फिर किसी की मौत पर आए या न आएइतना भी नहीं कर सकता, तो तीन दिन ठहर जाजरूरी रस्में हो जाए, तो चले जानाफ्ूल चुन ले कम से कम''

'' आज रुक जाता हूं, कल चला जाऊंगा'' उसने शांत स्वर में कहां।

सारे दिन मेहमानों का, रिश्तेदारों का, आने-जाने वालों का तांता लगा रहाउसे लगा, लोग उसे कब्र का मरा समझ उसकी कब्र पर अपनी याद का दिया जला चुकेसिर्फ दो आत्माओं में वह जिंदा हैं जलते बुझते नन्हे से चिराग की तरह

उन लोगो से ऊब कर वह एक खाली कमरे में चला गया और दरवाजा अंदर से बंद कर पड रहाखाने के वक्त किसी ने दरवाजा खटखटाया - उसने उठकर खोला, तो दो हाथों ने थाली आगे बढा दी -

'' सुनो, '' उसने झिझकते हुए कहा।

उसकी झुकी निगाहें नहीं उठीउसने झुक कर थाली जमीन पर रखी और वापस मुड ली

'' तनु, सुनो'' उसने जल्दी से आगे बढक़र पीछे से उसका आंचल पकड लिया - '' रुक जाओ। नाराज हो तो बुरा-भला कह लो। मैं तुम्हारा अपराधी हूं, पर मुझे माफ कर दो।''

उसने आंचल अपनी ओर खींचा, तो वह आहिस्ता-आहिस्ता उसकी तरफ मुडी, पर चेहरा ऊपर नहीं उठाया, उसने आंचल छोड दिया -

'' यहां से जाने के बाद मैं बहुत भटका, जान नहीं पाता था - क्या सही, क्या गलत, हर वक्त तेरी आंखे पीछा करतीं - आंसूओ से, गुस्से से, नफरत से भरी। लगता, और किसी का हूं या नहीं, पर तेरा बहुत बडा अपराधी हूं।''

उसने सर उठाया, तो वह एकाएक खामोश हो गया - उसकी वीरान आंखो में अजीब सा भाव उतर आया, जिसे वह उस वक्त कोई शब्द न दे सका -

'' एक बात पूछूं''
''
पूछ''
''
तू जो चाहता था, पा लिया?''
''
नहीं, पर मैं रास्ते पर हूं और निराश नहीं हूं। आधा रास्ता तय कर चुका''
''
तू अकेला आधा रास्ता ही तय कर सकता है।'' उसने उसकी बात बीच में ही काट दी और बर्फ से ठंडे स्वर में बोली, '' तू बहुत बडा स्वामी हो गया है न। जिन प्रश्नों के उत्तर के लिए तू भटका करता था, उसके उत्तर मिल गए होगे। आज मेरे एक सवाल का जवाब भी देता जा। तुम लोग औरत को हमेशा रोडा क्यो समझते हो? संसार में उसे साथ लेकर चलने में सार्थकता पाते हो। जब संसार से विचलित हुए, तो सबसे पहले उसे छोडा। पूंछ सकती हूं - क्यों? औरत क्या सिर्फ सोने के काम आती है? तुम्हारे देवपुरुषों ने जब तक औरत चाही, रखी, फिर अनचाही समझ किनारे कर लिया। तुम  रख  सकते होछोड  सकते हो, क्यों? हम नींव के पत्थर है तरुण, जिस पर तुम्हारे भवन खडे है। जिस कोख से पैर निकाल कर खडे होते हो तुम, उसी को उजाडते हो - यहीं कहता है तुम्हारा धर्म?''

वह स्तब्ध सुन रहा हैउसकी सांसो की गति तेज हो गई है

'' तेरे जाने के बाद मैने तेरे ध
र्मगुरुओं को पढा सोचा, अगर मोक्ष ही अंतिम सच है, तो जान ही लूं जरातुम्हे पता है न, बुध्द ने स्त्रियों को दीक्षा देने से इंकार कर दिया था और जब उन पर इस बात का जोर डाला गया, उन्होने समझौता करते हुए कहा,'' अब यह धर्म पांच सौ वर्षों से ज्यादा नहीं चलेगामहावीर ने स्त्री के लिए मोक्ष की संभावना से इंकार कर दिया कि जब तक वह  पुरुष-पर्याय के रूप में जन्म नहीं लेती, उसे मोक्ष नहीं मिल सकता''

वह सांस लेने के लिए रुकी -

'' मुझे मोक्ष नहीं चाहिए। इस बात का जवाब चाहिए कि तुम्हारा धर्म इतना हेय क्यों समझता है स्त्री को?''

वह अपराधी सा खडा रह गयाइस बात के बहुत जवाब हो सकते हैउन जवाबो के बहुत सारे प्रर्श्न फिर उसके जवाबमानव-अस्तित्व स्वयं एक प्रश्नचिन्ह है

" घर तुम्हारे कंधों पर होता है जब तक चाहा, उठाते रहे नहीं, तो भार समझ छोड दिया कहीं भी, पर वही हमारे हृदय में होता है हम उसके बिना नहीं हो सकती तरुण जानती हूं, तू जाने के लिए आया है, जामैं तुझे शाप नही दूंगी, पर जिस तरह तूने मुझ पर जीवन का भार डाला है, तुझ पर कोई न कोई भार होगा ही तू मुक्त नहीं हो सकता कोई पुरुष औरत से मुक्त नहीं हो सकता मैं तो फिर भी तुझसे कम निर्दयी हूं जिस बोझ से घबरा कर भागा, उसे सहजता से उठाने चली - बोझ तो तेरा था न वह तू नश्वर इंसान को अनश्वर बनाने चला और मेरे दु:खों को अनश्वर कर गया नहीं, मैं तेरा पल्ला पकड क़र न्याय नहीं मांगूगी जो अपने लिए, अपनी जन्मदात्री के लिए न्याय न कर सका, वह मेरे लिए क्या करेगा? जिस अनश्वरता को तलाश रहा है तू, क्या उसे पा लेगा? तू फिर-फिर लौटेगा और उसे फिर-फिर खोजेगा यह एक जन्म में नहीं मिलता - जन्मों की दौड है यह - और इसके लिए घर छोड क़र भागने की भी जरूरत नहीं - लगन हो पक्की, तो कहीं भी, कुछ भी हासिल कर लो''

उससे एकाएक कुछ बोलते नहीं बना खुद को संभालकर उसने जैसे ही बोलना चाहा, पाया - वह जा रही है

अगली सुबह जाने की तैयारी में वह अलस्सुबह उठ जरूरी संस्कार कर अंदर कहलवा दियामां ने सुना, वह जा रहा हैउन्होने न बुलाया, न पास बिठाया, न कंधे पर ढलक कर रोई, न मिन्नतें कीं - मत जा

वह मानों हाजिर होकर भी गैरहाजिर है उनकी उम्मीदों, आशाओं, सुख-दुख, हंसी-रुदन के घेरों से बहुत दूर पराया सा....पराये संसार का वासी

'' मां मैं जा रहा हूं।'' वह उनके पैर छुने झुका, तो वह पीछे हटर् गई '' न-न, मत छू मुझे। मेरा बेटा कहां रहा तू? स्वामी हो गया है। जा-जा तेरा ईश्वर तेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा''

उन्होने अपनी हिचकी दबाने के लिए आंचल मुंह पर रख लियाफिर रोते हुए बोली,'' उससे मिलकर आया है?''

वह सर झुकाए द्वार पर खडा रहा मां ने मुंह अंदर करके आवाज दी,'' यह जा रहा है, तनु''

'' जाने दे मां, यह फिर-फिर लौटेगाफिर-फिर जाने के लिए''

- जया जादवानी

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