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ठठरी दूसरा पन्ना साहब लोगे के पास और भी बहुत काम रहता। अधिक महत्वपूर्ण काम उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते। वे व्यस्त अफसर थे। उन्हे और दूसरी सडक़ों का दौरा करना होता। कई बार तो मौसम ही खराब रहता और तब तो ऐसी बीहड सडक़ के दौरे पर सवाल ही पैदा नहीं होता। दो दिन रहने के बाद अफसर प्रसन्न और संतुष्ट लौट जाते। मौसमी फल, शहद, घी और ऊनी दान तथा थुलमे वह साहब लोगो के लिए बांध देता था। ठेकेदारों से भी वह अपने
उसूलो के अनुसार है व्यवहार करता।
वह उनसे भी
बेइमानी नहीं करता।
किसी छोटे
ठेकेदार पर अगर एक सौ पांच रुपये पांच आने कमीशन बनता और ठेकेदार एक सौ
पांच उसे देता तो वह नम्रता से कहता,''न
भईया, पांच आने पहले एक सौ पांच बाद में।
यह तो सरकारी
मामला है।
हिसाब ऊपर तक भेजना पडता
है।'' मुनसियारी मे उसे पांच वर्ष
हो गए थे।
एक दिन अचानक उसका
तबादला मेरठ हो गया।
उसे आदेश दिया
गया कि वह अपना सारा चार्ज श्री सामंत को देकर एक सप्ताह मे अवमुक्त हो
जाए और नए स्थान पर ज्वाइन कर ले।
वह उन सभी अफसरों
के पास दौडा जो कभी उसे बहुत मानते थे।
उसे भरोसा था कि
वह अवश्य उसे लिए कुछ करेंगे।
पर उन्होने साफ
जवाब दे दिया।
उन्होने कहा कि
एक सप्ताह के अन्दर लखनऊ चीफ इंजीनियर से अगर वह अपने रुकने के आदेश ले
आए तभी कुछ हो पाएगा।
पर इसके लिए भी
अफसरान तबादले के दौरान स्वीकृत न करने के नियम के तहत उसे छुट्टी देने
को तैयार नहीं थे।
उसे बुरा लगा,
पर अपनी आदत के अनुसार वह कुछ नहीं कर पाया।
मन मसोस कर रह
गया।
उधर सामंत ने भी
उच्चाधिकारियों को तर कर रखा था।
इसके साथ ही
अफसरों को भी इस तरह सूचनाएं मिल रही थी कि उसने अपने कामों मे बडा
गोलमाल किया है जिसका पूरा हिस्सा अफसरों को नहीं मिला है। रात में सोते समय उसने सोचा कि उससे बडा बेवकूफ और कौन होगा जो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी जैसा चार्ज भी सामंत को दे और ऊपर से दस हजार रुपये भी। उसने रात में ही कैम्प क्लर्क को बुलाया, पांच सौ रुपये उसके हाथ पर रखे और चार्जमेमो की एक प्रति उसे देकर रसीद प्राप्त कर ली और सुबह को अपना सामान उठा कर बिना किसी को बताए चलता बना और जाकर मेरठ में ज्वाइन कर लिया। इस बात से सभी लोग सकते में आ गए। किसी को भी ख्याल तक नहीं आया कि उसके जैस निरीह और सीध साधा आदमी ऐसा कर डालेगा। सामंत तो बहुत बिखरा फैला। एक्स्क्यूटिव इंजीनियर ने सुपरिटेन्डिग इंजीनियर को रिर्पोट किया कि वह बिना चार्ज दिये चला गया है। उसे फरारा घोषित उसके विरुध्द कार्यवाही की जाए। सुपरिटेन्डिग इंजीनियर ने मेरठ वाले उसके नए एक्सीक्यूटिव इंजीनियर की मार्फत उसे लिखा कि वह बताए कि बिना उचित रूप से रिलीव हुए यहां से चले जाने के लिए क्यो न उसके विरुध्द अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए? उसने जवाब दिया कि उसे आदेश दिए गए थे कि वह एक सप्ताह के अन्दर श्री सामंत को चार्ज देकर अपने नए गतंव्य पर ज्वाइन करे। जब एक सप्ताह बीत गया और श्री सामंत ने चार्ज नहीं लिया तो उसके पास उच्चाधिकारियों के आदेशों के पालन का इसके अलावा और कोई रास्ता बचा था? और केवल अधिकारियों के आदेश का पालन करने के लिए उसने चार्जमेमो कैम्प क्लर्क को देकर नए स्थान पर ज्वाइन कर लिया है। सुपरिटेन्डिग इंजीनियर ने जब उसे और सख्ती से लिखा तो उसने सुपरिन्टेंडिग इंजीनियर से पत्र व्यवहार के लिए डेढ सौ रुपये माहवार पर एक अंशकालिक वकील तय कर लिया। वकील की मार्फत जब पहला पत्र कानूनी भाषा में सुपरिन्टेंडिग इंजीनियर कार्यालय में पहुंचा तो बाबू लोगो के हाथों के तोते उड ग़ए। बडे बाबू सारे कागजात लेकर सुपरिटेन्डिग इंजीनियर के पास पहुंचे और बोले,'' अब इन पत्रों का उत्तर हम नहीं दे सकते। किसी वकील की मदद लेना ही उचित होगा।'' सुपरिटेन्डिग इंजीनियर ने भी वकील की सेवाएं ली। पर हुआ कुछ नहीं। चार पांच पत्रों का आदान प्रदान हुआ। उसके बाद मामला टांय-टांय फिस्स। इससे दो बातें हुई। एक तो उसे अपने आप में भरोसा पैदा हुआ और उसे लगा कि अफसर भी कागज क़े शेर है और मौका पडने पर उनसे भी भिडा जा सकता है। दूसरे उसके अन्दर अफसरों के प्रति एक अवज्ञा का भाव पैदा हो गया। अंदर-अंदर वह उनसे चिढने लगा। वह दुखी होकर सोचता कि मैने इन अफसरों के लिए क्या नहीं किया। इनके लिए मैने दलाली तक की। उन असहाय, गरीब लडक़ियों को इन भेडियों के पास पहुंचाया। इनके हर इशारे पर उठता-बैठता रहा और कमा-कमा कर इनके घर भरता रहा। पर इन अहसान फरामोश अफसरों ने मेरे तबादले के वक्त ऐसा व्यवहार किया जैसे मुझसे काई रिश्ता ही न हो। फिर उसे पिता की मौत और चीफ इंजीनियर का अमानवीय व्यवहार याद आ जाता। उसकी तबियत होती कि किसी अफसर का कोई मां-बाप मरे और तब उसे असहाय और दुखी देखकर वह भी मजा ले। पर इससे भी बडी बात यह हुई कि इन पत्रों के आदान प्रदान से मेरठ का एक्सीक्यूटिव इंजीनियर भी उससे शंकित रहने लगा। एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को लगा कि वह बदमाश, झगडालू और खतरनाक है जो अफसरों की अपेक्षित इज्जत नहीं करता और विभागीय मामलों में बेवजह वकीलों आदि को शामिल करके विभाग के अनुशासन की धज्जियां उडाता है। एक्सीक्यूटिव इंजीनियर ने अघोषित सजा के बतौर उसे खंडीय कार्यालय कक्ष का प्रभारी बना दिया जहां उसे मानचित्रकारों से नक्शे बनवाने होते, आगणनों और निविदाओं में दरों की चेकिंग करनी होती, बैठकों की प्रगति आख्याओं के प्रपत्र कागज थे, आमदनी का जुगाड क़म से कम और मेहनत अधिक से अधिक थी। पर वह एक जिम्मेदारी की जगह थी और एक्सीक्यूटिव इंजीनियर के कार्यालय में उस जगह का महत्व था। शुरू-शुरू में उसे बडी
फ़ुर्सत लगती।
लगता,
जैसे उसे कैद कर लिया गया हो।
सुबह दस से शाम
पांच तक बंधकर बैठना।
पर अपने मेहनती
स्वभाव के कारण हल्के-हल्के वह अपने काम में दक्ष होने लगा और उसे वहां
मजा आने लगा।
उन कागजों के अन्दर छिपे
हुए राज और
धन उसे दिखाई पडने लगा।
चार-पांच महीने
बीतते बीतते उसने एक्सीक्यूटिव इंजीनियरको पंगु बना दिया।
एक्सीक्यूटिव
इंजीनियर को इतना चैन इससे पहले कभी नहीं मिला था।
एक्सीक्यूटिव
इंजीनियर के पास कागज बिल्कुल दुरुस्त और साफ सुथरे अन्दाज मे पहुंचते।
दफ्तर का सारा
काम समय से निपटने लगा।
उच्चाधिकारियों
तथा दूसरे विभागों से आने वाले स्मरण पत्रों की संख्या नगण्य हो गई।
कार्यालय की छवि
सुधरने लगी।
एक्सीक्यूटिव इंजीनियर
उस पर निर्भर रहने लगा।
चाहे जैसा
मुश्किल काम होता वह पूरा करके एक्सीक्यूटिव इंजीनियर की मेज पर पहुंचा
देता।
एक्सीक्यूटिव इंजीनियर
को सिर खपाने की जहमत न उठानी पडती। एक बार बरसात के दिनों में उस असिस्टेन्ट इंजीनियर ने तीन टेंडर एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को मंजूर करने के लिए भेजे। हरेक टेन्डर की लागत लगबग दो लाख रुपये थी। न्यूनतम टेन्डर की दर प्रचलित दरों से लगभग 15 प्रतिशत अधिक थी। उसने ठेकेदारों से यह लिखवा कर भी संलग्न कर दिया था कि वे दरें काम करने को तैयार नहीं है। उसने मिट्टी, पत्थर और पानी की अधिक ढुलाई दिखा कर उन ऊंची दरों को पुष्ट किया था। उसने लिखा था कि काम बहुत जरूरी है। सारा यातायात रुका हुआ है। हर तरफ हाहाकार है। अगर टेन्डर स्वीकृत करने में देर हुई और काम शुरू न हो सका तो सडक़ो के भी कट जाने का खतरा है जिससे अगर्लबगल के कई गांव डूब सकते है। उसने लिखा कि जितनी देर होगी सडक़ो को पूर्ववत स्थिती में लाने के लिए उतना ही धन व्यय करना होगा, और विभाग की छवि धूमिल होगी से अलग। असिस्टेन्ट इंजीनियर ने प्रमाणित किया था कि मौजूदा स्थितिओं और मजदूरी तथा सामानों की दरों में अप्रत्याशित वृध्दि के कारण काम इनसे कम दरों पर करवाना सम्भव नहीं होगा। वह अब तक ऐसी भाषा के मुखौटो के पीछे छिपे असली मतंव्य को पहचानने लगा था। उसने एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को समझाया कि टेन्डरों के मंजूर करते ही सारी जिम्मेदारी उन पर आ जाएगी। इसलिए फाइल में यह रिकॉर्ड तो रहना चाहिए कि उन्होने भी अपनी तरफ से दरें कम कराने की पूरी कोशिश की थी। अत: उचित यह होगा कि एक बार अपने स्तर से भी असिस्टेन्ट इंजीनियर को ठेकेदारों से कम दरें कराने के लिए कहा जाए। एक्सीक्यूटिव इंजीनियर सारी अन्दरूनी चीजों को समझता था और टेन्डरो को ऊंचेदरों पर ही मंजूर करना चाहता था। पर उसे उसका यह सुझाव अच्छा लगा कि एक बार फिर से ठेकेदारों से लिखाकर मामले को और भी मजबूत तथा निष्कांटक कर लिया जाए। वहीं हुआ। जब असिस्टेन्ट इंजीनियर को एक्सीक्यूटिव इंजीनियरका पत्र मिला तो उसने फौरन ठेकेदारों से फिर लिखाकर भिजवा दिया कि वे दरें कम करने को तैयार नहीं है। इस बीच उसने अपने एक विश्वस्त और उस इलाके के प्रभावी आदमी के द्वारा इस तरह अपने पास बुलाया कि असिस्टेन्ट इंजीनियरको पता न चले। तीनो ठेकेदार सीर्धेसाधे गांव में रहने वाले थे। उन्हें देखकर साफ जाहिर था कि ऊंची दरों का यह सारा खेल केवल असिस्टेन्ट इंजीनियर का ही है। उसने ठेकेदारों से कहा - '' जानते हो एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को बडा साहब क्यों कहते है? इसलिए कि वह वाकई सबसे बडा होता है। हालांकि विभाग मे सुपरिन्टेंडिग इंजीनियर और चीफ इंजीनियर भी है पर असली ताकत बडे साहब के पास ही है।वह क्या नही कर सकता? जहां चाहे वह ठेकेदार को फायदा और जहां चाहे नुकसान पहुंचा सकता है। उसकी इच्छा है कि दरें कम कर दोगे, उसकी सद्भावना और विश्वास जीत लोगे तो वह तुम लोगो को अपना आदमी समझेगा और जितना पैसा तुम कम करोगे उससे दोगुना निकलवा देगा तथा अन्य दूसरे काम भी तुम्हे देकर मालामाल कर देगा।अगर नहीं मानोगे तो हो सकता है मजबूरी में इन्ही दरों पर वह टेन्डर मंजूर तो कर ले पर काम के दौरान तुम्हे परेशान करेगा और मटियामेट कर देगा। वे बेचारे गरीब, गंवार तैयार हो गए। तीनो ठेकेदारों से एक्सीक्यूटिव इंजीनियर के नाम उससे अलग-अलग लिखवा कर ले लिया कि आपसे आपके कार्यालय में बात हुई और वे अपनी दरें 5 प्रतिशत कम करने को तैयार हो गए। तीनों ठेकेदारों की अर्जियां अपने कब्जे में करने के बाद उसने ठेकेदारों से कहा कि वह अब भी पूरी कोशिश करेगा कि टेन्डर उनकी मूल दरों पर ही स्वीकृत हो जाएं। पर उस सूरत में उन्हे 2 प्रतिशत यानी चार हजार प्रति टेन्डर की दर से खर्च करना पडेग़ा। थोडे हीले-हवाले के बाद तीन हजार प्रति टेन्डर की दर से उसने नौ हजार रुपये इन लोगो से ले लिया और उनकी मूल दरों यानि 15 प्रतिशत अधिक पर ही हो, असिस्टेन्ट इंजीनियर की संस्तुति के आधार पर, टेन्डर एक्स्क्यूटिव इंजीनियर से स्वीकृत करवा दिया। जब असिस्टेन्ट इंजीनियर को यह सब पता चला तो वह आसमान से गिर पडा। असिस्टेन्ट इंजीनियर द्वारा दिए गए इस प्रमाणपत्र के परिपेक्ष्य में कि काम कम दरों पर कराना संभव नही है। ठेकेदारों द्वारा 5 प्रतिशत दरें कम करने के लिए दिए गए प्रार्थनापत्र असिस्टेन्ट इंजीनियर के लिए घातक हो सकते थे। अगर उच्चाधिकारियों या शासन को इस बात का पता चल जाता है कि असिस्टेन्ट इंजीनियर ने झूठा प्रमाणपत्र दिया था और यह कि उसके प्रमाणपत्र के बावजूद ठेकेदारों ने दरें कम कर दी थी तो असिस्टेन्ट इंजीनियर को लेने के देने पड सकते थे। अत: उन प्रार्थनापत्रों का उपयोग वह असिस्टेन्ट इंजीनियर के विरूध्द न करे इसके लिए असिस्टेन्ट इंजीनियर भी उनकी जेब गरम करता था। आखिर एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को पता चलना ही था। असिस्टेन्ट इंजीनियर ने एक दिन मौका देखकर एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को बताया कि - '' आपके हिस्से का पांच हजार प्रति टेन्डर जो प्राविधान किया गया था वह तो वह बदमाश खा गया।'' उसने नमक, मिर्च मिला कर सारा किस्सा एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को बता दिया और जानबूझ कर तीन जगह पांच हजर बतााया क्योंकि असिस्टेन्ट इंजीनियर जानता था कि ऐसी बातों का खुलासा नहीं होता है। इस घटना के बाद
एक्सीक्यूटिव इंजीनियर उससे फडक़ने लगे और बडे चौकन्ने रहने लगे।
जैसे ही उन्हें
मौका मिला उन्होने उसे एक छोटी सी सडक़ का चार्ज देकर,
जिस पर कोई खास काम नहीं था,
असिस्टेन्ट इंजीनियर श्री सिंह के पास भेज दिया।
उसे अब काम की
कोई चिन्ता नहीं रहती।
वह अब मस्त रहता।
लोग अब उससे
उलझने से बचते।
श्री सिंह
सीधे-सादे और सज्जन थे।
कोई खास काम उसके
पास न होने के कारण भी झगडे
और
मनमुटाव के मुद्दे नहीं
पैदा हो पाते।
और इसलिए श्री
सिंह से उसके संबंध बडे मधुर हो गए थे।
अपनी पुरानी आदत
के अनुसार और श्री सिंह की सज्जनता के कारण उसे श्री सिंह के निजी काम
करना अच्छा लगता।
दफ्तर मे श्री
सिंह की पान,
चाय, सिगरेट का पैस वहीं
देता।
उसके घर में छोटे-मोटे
काम वह करवा देता उनके घर
घण्टों
बैठता और उनके बच्चों से
खेलता। घाट पर पहुंच कर उसे अपने पिता की मौत का दृश्य याद आ गया अपना बिलखना और चीफ इंजीनियर के सामने गिडग़िडाना और चीफ इंजीनियर का उसके प्रति जानवरों जैस व्यवहार। नपुंसक सुपरिन्टेंडिग इंजीनियर का बडबोलापन कि वह तबादला करवा देगा।और चीफ इंजीनियर के आगे-पीछे उसका मक्खी की तरह भिनभिनाना और फिर मुनसियारी से तबादले के समय अफसरों की तोताचश्मी। उसे उन लडक़ियों के चेहरे याद आए मुनसियारी की अवधि के दौरान जिन्हे उसने उन जालिम कामुक अफसरों के लिए पहुंचाया था। उसे अपना अकेलापन और जवानी के वे पांच साल याद आए जे उसने मुनसियारी में अफसरों की सेवा करते गुजारे थे। उसे अपनी पूजा शराब और देवदार के पेड याद आए जो उन पांच सालों में उसके साथी थे।उसे सरसों और गन्ने के खेत तथा सीधी सपाट सडक़ें याद आई। तरह तरह की बातें उसके दिमाग में कौंधती रही कि,तब वह उत्साही और इंसानियत से भरपूर था। अब कैसे वह परले दर्जे का धूर्त और भ्रष्ट है? समाज देश के लिए उसकी क्या उपयोगिता है? क्यों हुआ ऐसा कि जैसा सरल हृदय और सहज आज एक घुटे हुए शातिर बदमाश में बदल गया है? एक क्षण को उसे लगा कि यह उसकी अति भावुकता है, जो वह इस बेमतलब की कश्मकश में फंस गया है, क्योंकि जो होना है वही होता है जैसे कि वह पहले विश्वास करता था। पर अब उसका मन इससे संतुष्ट नहीं हुआ। उसे लगा कहीं कुछ गडबड है। यह गणित इतना आसान नहीं है। उसकी तबियत हुई कि सब कुछ उलट-पलट दे। जिस गंदी घिनौनी दलदल में वह फंसा है उससे निकल भागने की उसकी इच्छा होने लगी। यह अंधी दौड, यह चूतिया-चक्कर उसे लगा वह इससे ऊब गया है। पर अगले ही क्षण उसे लगा कि उसका ऊबना भी झूठ है; कि उसे भी इस अंधी दौड में, घिनौनी दलदल में मजा आता है और वह इसके बगैर जी नहीं पायेगा। उसे लगा कि उन रास्तों से पैसा कमाने से उसे अतुलनीय आनंद मिलता है जहां से दूसरों के लिए असंभव लगता हो। दूसरो को तंग करने में, उन्हे असहाय और बेबस देखने में उसे हिंसक आनंद मिलता है।जब वह दूसरों का खासतौर पर अफसरों का स्वाभिमान टूटते देखता है तो उसे बडी ख़ुशी होती है। अचानक उसके दिमाग में फिर से अपनी पिता की मौत और अपनी बेकारी के दिनो में पिता की बेचैनी याद आ गई।उसके मन में अप्रत्याशित रूप से अनजाने ही अफसरों के प्रति नफरत का लावा इकट्ठा होने लगा। उसे लगा श्री सिंह भी सारे दूसरे अफसरों की तरह ही है बल्कि उसे लगा, कि वह और भी अधिक तेज और घाघ हैं पर सज्जनता की खाल ओढे रहते है। उसने सोचा श्री सिंह उससे सभी अपने निजी काम लेते ही है,अपनी चाय पानी का पैसा वह उससे खर्च कराते है और आज भी उन्होने उसे यहां घाट पर भेज ही दिया। उसके दिमाग की नसें फटने लगी और फिर एकाएक उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान फैल गई।और वह चुपचाप चिता संबंधी कामों मे जुट गया। जब अर्थी का जुलूस घाट पर पहुंचा तो लोगो ने देखा कि जो चिता लगाई गई है उसमें लकडी बहुत कम है।वह कंडे घी, चाकू और हंडियां आदि के इंतजाम में व्यस्त था।अर्थी को आता देख वह उसके पास आ गया। एक्स्क्यूटिव इंजीनियर ने उससे कहा - ''
क्या बात है भई,
लकडी तो बहुत कम
दिखाई दे रही है।'' हालांकि सबको बुरा लगा पर उस दुख भरे भारी माहौल में भी लोग मुंह दाब कर हंसने लगे। श्री सिंह दाह देने से पहले नदी के अंदर पानी में नहा रहे थे। उन्होने तो कुछ नहीं सुना पर एक्सीक्यूटिव इंजीनियर तथा अन्य सभी अफसरों के चेहरे स्याह पड ग़ए। लाश, उस बीस सेर लकडी क़े बावजूद पूरी नहीं जल सकी। जलने के दौरान एक-एक मन लकडी उसे ही दो बार और मंगानी पडी और इस प्रकार घाट से जल्दी लौट आने का प्रोग्राम धरा का धरा रह गया। पूरी तीन घंटे बाद ही लोग निवृत हो सके।
-
हरीशचन्द्र अग्रवाल | पीछे |
इन्द्रनेट पर हलचल
- सुब्रा नारायण
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