मुखपृष्ठ  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | डायरी | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 Home |  Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

You can search the entire site of HindiNest.com and also pages from the Web

Google
 

 

विश्व स्तर का पॉकेटमार

आज नताशा बहुत ही खुश थीएक मामूली वोदका (रूस में पी जाने वाली एक प्रकार की शराब) बेचने वाले की बेटी (नताशा) ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एक पर्यटक बनकर भारत आ सकेगीआज सच में उसकी कल्पना भारत के रेल की पटरियों पर दौड रही थीनताशा दिल्ली से वाराणसी के सफर पर थीभारत में उतरते ही उसने सर्वप्रथम वाराणसी जाने का मन बनायाउसने इसके बारे में काफी कुछ सुन रखा थाजैसा कि आम आदमी को होता है, नताशा भी अपनी कल्पना की दुनिया में खोई अपने बर्थ पर करवटें बदल रही थी

ओह रात्रि के दो बज गए ! घडी पर नजर डालते हुए वह बुदबुदायीमन ही मन सोचा कि अब सो जाना चाहिएफिर आँखे मूंद ली उसनेट्रेन अपने रफ्तार से चली जा रही थीसुबह 6 बजे वह वाराणसी पहुंच जाएगीयही सोचे जा रही थी तभी ट्रेन की रफ्तार कम होने लगी बर्थ से उतरकर खडी हो गयी वह शायद कोई स्टेशन आ रहा हो, टॉयलेट भी तो जाना है उसेसोचते हुए वह दरवाजे की तरफ बढ ग़यीदरवाजे के पास कुछ लोग नीचे फर्श पर ही बैठे उंघ रहे थे

      एक व्यक्ति उसे देखते ही उठकर खडा हो गया

''अरे भाई जरा मेम साहब को जाने दो'' उसने बगल वाले को झकझोरते हुए कहाउसकी आवाज पर लगभग सभी उठ गएवास्तव में ट्रेन किसी स्टेशन पर पहुँच रही थीचलो स्टेशन भी देख लूंगी वह बडबडाते हुए दरवाजे की तरफ बढने लगीट्रेन धीरे धीरे रेंगने लगी स्टेशन पर काफी भीड थीनताशा वाले डिब्बे से एक दो उतरने वाले थेपर चढने वालों की संख्या ज्यादा थी
अरे उतरने दो मैडम  ! नताशा के पीछे से एक आदमी ने उसे लगभग धक्का देते हुए कहा
नताशा ने आवाज सुनी और उसे जगह देने लगीउसे अच्छा लग रहा था क्योंकि इसीलिए तो उसने पूरे दो साल इंस्टीच्यूट में जाकर हिन्दी और अंग्रेजी सीखा थाउसे सभी की बातें लगभग अच्छी तरह समझ में आ रही थींउतरने वाले उतर पाते कि चढने वाले चढने लगेशुरू हो गयी रेलमपेल नताशा भौंचक्क सी सब कुछ देखे जा रही थीउतरने वालों को उतर लेने दो जीतभी एक खूबसूरत लम्बा जवान भीड से सामने आते हुए कहाउसने अपने मजबूत हाथों से थोडी सी जगह बनाते हुए तीनों यात्रियों को उतर जाने को कहा

नताशा वहीं भीड में फंसी सब कुछ देखे जा रही थीउसने सोचा उतरने से अच्छा है टॉयलेट ही चला जाएअगर नहीं चढ पायी तो

''एक्सक्यूज मी प्लीज ! '' नौजवान नताशा के शरीर से लगता हुआ कम्पार्टमेंट में चढने लगाउसके पीछे कई यात्री एक साथ चढने का प्रयास करने लगेनताशा तो भीड में पूरी तरह फंस गयीवह भीड क़े साथ ही वापस आने लगीकिसी तरह टॉयलेट में आकर दरवाजा बंद कियाचैन की साँस लीलगभग पाँच मिनट के पश्चात् ट्रेन चल पडी नताशा भी टॉयलेट से फारिग होकर अपने बर्थ की तरफ चल दी

सभी नए यात्री अपने-अपने बर्थ पर पहुँचकर सामान रखने की या तो उचित व्यवस्था कर रहे थे या बर्थ पर सोने का उपक्रम कर रहे थे नताशा भी अपने बर्थ पर जाकर लेट गयीसबसे ऊपर का बर्थ था उसका अक्टूबर का महीना थारात में हल्की ठंडक महसूस हो रही थीनताशा ने अपने बैग से एक चादर निकालकर ओढ लियाउसे लगा कि अब नींद आ जाएगीनताशा ने देखा ठीक सामने की (ऊपर के) बर्थ पर भी कोई नया यात्री आकर लेट चुका था

थोडी देर बाद साहब टिकट! टिकट! किसी ने नताशा का पैर पकडक़र हिलायानताशा को नींद आ चुकी थी वह सहसा उठकर बैठ गयीकाला लिबास पहने सामने टिकट परीक्षक सामने खडा था। आँखे मींचते हुए उसने देखा
सॉरी मैडम टिकट!
नताशा ने मन ही मन खीझते हुए अपने जीन्स के पिछले पॉकेट में हाथ डालाउई  उसके मुंह से अचानक ही चीख निकल गईउसका पर्स पॉकेट में नहीं था उसे पूरा याद था कि उसने अपना पर्स उसी पॉकेट में रखा थाजल्दी जल्दी उसने अपना सारा पॉकेट छान मारापर पर्स था जो मिलता टिकट परीक्षक दूसरे बर्थ के यात्रियों को जगा जगाकर टिकट माँग रहा था आखिर मेरा पर्स किसने मारा उसे आश्चर्य हो रहा थातभी आवाज आयी  टिकट प्लीज!

मैं खुद पॉकेटमार मेरा पर्स किसने मारा सोचती हुयी उसने अपने बैग का जिप खोला कि अभी-अभी स्टेशन पर जिसका पर्स मैंने मारा है शायद उसने टिकट लिया हो, और एक पर्स निकालापर्स में सही में टिकट पडा था पर्स मालिक की तस्वीर भी थी उसमें नताशा ने टिकट परीक्षक की तरफ टिकट बढा दिया

ये उसी नौजवान का पर्स था जिसने स्टेशन पर लोगों को चढने उतरने में सहायता की थीउधर सामने वाले बर्थ के यात्री की भी स्थिति कुछ इसी प्रकार की थीउसके पॉकेट से पर्स गायब थाउसे आश्चर्य हो रहा था कि मैं भारत का राष्ट्रीय स्तर का पॉकेटमार और मेरा पर्स किसने मार लिया उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था इन सारे स्टेशनों पर तो उसी के कारिन्दे पॉकेटमारी करते हैंआखिर किसकी हिम्मत हुयी उसके पॉकेट पर हाथ साफ करने कीसाले एक एक को गोली से भून दूंगादांत पीसते हुए उसने मन ही मन सोचाफिर यह सोचते हुए अपने हैंडबेग का जीप खोलकर एक पर्स निकाला कि अवश्य ही उस विदेशी लौंडिया ने टिकट लिया होगा

''मैडम योर टिकट इज रांग। बर्थ नं रांग है और साथ ही यू आर ए फिमेल बट दिस टिकट इज इस्यूड फॉर मेल'' टिकट परीक्षक ने बोला
अभी वह पर्स में टिकट ढूंढ ही रहा था कि टिकट परीक्षक की आवाज उसके कानों से टकराईनताशा सोच ही रही थी कि सामने वाले नौजवान ने लपककर टिकट परीक्षक से टिकट ले लियानताशा ने ध्यान से देखा, ये तो वही नौजवान है जिसका पर्स उसने मारा हैनताशा के हाथ पांव फूलने लगेअब क्या होगाभारत में तो उसे कोई नहीं जानताऔर भारत भ्रमण का क्या होगा कई आशंकाओं से वह पसीने पसीने हो गयी

नौजवान ने अपने पास का पर्स खोला उसमें भी एक टिकट पडा थाउसे पूरी तरह पढावह सामने वाले बर्थ का था उस पर अंकित सूचना के मुताबिक वह फीमेल का टिकट थापर्स को पूरा सर्च किया एक तस्वीर उसमें लगी थी, जो सामने की विदेशी मैम का थासारा माजरा मन ही मन समझकर उसने दोनों ही टिकट परीक्षक की तरफ बढा दिएटिकट परीक्षक ने दोनों टिकटों को देखा
''ओह तो आप दोनों साथ-साथ हैं''
''सॉरी मैडम! कहकर वो चला गया''

नताशा हतप्रभ सी सारा मामला समझने की कोशिश कर रही थीकभी उस नौजवान को कभी उसके हाथ में पडे पर्स को देख रही थीअभी किसी निर्णय पर पहुंचती कि नौजवान ने पर्स उसके तरफ उछालते हुए कहा ''टेक इट एण्ड गिव मी माई पर्स''

''मेरा नाम नताशा है'' कहते हुए नताशा ने भी जवाब में उसका पर्स उसकी तरफ उछाल दियाहा हाहा हाहाहाहा ! दोनों एक साथ हँस पडे

''मेरा नाम जसबीर हैजस्सू कहते हैं लोग मुझे'' हँसी रोकते हुए नौजवान ने कहा
गुड नेम ! प्यारा नाम है

''तुम हिन्दी जानती हो? '' जस्सू ने पूछा

''
हाँ ! केवल भारत को देखने और समझने के लिए हिन्दी का पूरे दो साल का कोर्स किया है मैंने''
''बहुत अच्छा! और क्या करती हो
किस देश से हो''
''जो तुम करते हो
'' नताशा ने छूटते ही कहा''तुमसे ज्यादा दूर नहीं रशिया से हूँ।''
''ओ हो ! हा  हा हा हा हा'' जस्सू फिर
हँस पडा
''मुझे तो अपने भारत में इस काम में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है
'' हँसते हुए जस्सू ने कहा
''मुझे भी अपने देश में यही स्तर प्राप्त है
तभी तो भारत आ पायी वरना एक मामूली वोदका सेलर की लडक़ी को भारत भ्रमण कहाँ नसीब हो पाता'' नताशा ने मुंह बनाकर कहादोनों ही काफी देर तक बातें करते रहेदोनों की नींद न जाने कहां गायब हो गयी

''मैं तुम्हें भारत में अपना दोस्त बना सकती हूं'' नताशा ने जस्सू से पूछा
''
हाँ हाँ क्यों नहींबंदे के पास सब कुछ है बस दोस्त नहीं है''
''मैं बहुत खुशनसीब
हूँ। अब भारत भ्रमण का मजा और दुगुना हो जाएगा'' नताशा ने कहा
''मैं भी
'' जस्सू ने कहा

फिर ढेर सारी भारत और रूस के विषय में दोनों ने अपनी अपनी जानकारियां एक दूसरे में बांटी। समय कैसे निकल गयापता ही नहीं चलातभी यात्रियों में हलचल होनी शुरू हो गयीजस्सू ने नताशा को बताया कि वाराणसी आने वाला हैनताशा ने घडी देखा सुबह के 545 होने को थे

''जस्सू तुम वाराणसी में कहां ठहरोगे
'' नताशा ने पूछा
''अपना तो कोई ठिकाना नहीं है
दिन तो जगह तलाशने और कारींदों में लग जाता हैशाम होते ही भीड भाड क़े स्थानों पर प्वाइंट लगाने में लग जाता हैरात हुयी तो किसी भी फूटपाथ पर खुले आसमान के नीचे अपनी खाट लगती हैकभी कभार तुम्हारे जैसा कस्टमर मिल गया तो होटल का सैर भी हो जाता है'' जस्सू ने कहा
''तुम मेरे साथ होटल में रूक सकते हो
मैं तुम्हारे साथ पूरा शहर देखना चाहती हूँ।'' नताशा ने अपनी इच्छा जाहिर की
''अपने होटल का पता दे दो
मैं अपने साथियों से मिलने के बाद पहुँच जाऊंगा। पर साथ में रूकने का नहीं रोज मिलने का वादा पक्का समझना''
नताशा ने अपने डायरी से पता निकालकर एक पन्ने पर लिखा और उसे थमा दिया

''ठीक है मैं दो बजे तक अवश्य
पहुँच जाऊंगा।'' जस्सू ने जवाब दिया
''मैं इंतजार
करूँगी।''

नताशा होटल के अपने कमरे में बैठी जस्सू का इंतजार कर रही थी ताकि आज घूमने का प्लान बनाया जा सके3 बजे जस्सू होटल में आयादोनों ने घूमने का पूरा ब्यौरा तैयार किया और निकल पडेलगातार तीनों दिन जस्सू निश्चित समय पर होटल पहुँच जाता फिर दोनों ही घूमने निकल पडते नताशा को खूब मजा आ रहा था वो जस्सू जैसा दोस्त पाकर काफी खुश थीन जाने क्यों उसे जस्सू में एक अलग ही आकर्षण महसूस हो रहा थाउसे जस्सू ने बताया था वह अपने माँ बाप की नाजायज औलाद है अत: उसका इस दुनिया में कोई नहीं हैउसे पता ही नहीं कि माँ बाप क्या होता हैपरिवार और प्यार का मतलब तो वह जानता ही नहीं था

रात के 12 बजे उसकी नींद अचानक ही खुल गयीबिस्तर से उठी फ्रीजर से बीयर की बोतल निकाला और बॉलकनी में आकर खडी हो गयीआज वाराणसी में उसका आखिरी दिन थाचार दिनों में ही इस शहर से वह एक अनजाना आकर्षण महसूस कर रही थीकल शाम वह दिल्ली के लिए रवाना हो जाएगीयही सोचकर उसका मन कसैला हो गयाअचानक ही अपने डैड की याद आ गयीदिन भर वोद्का के नशे में घर के बाहर वाले कमरे में ही वोदका की एक छोटी सी दुकानघर में माँ नहीं। माँ का नाम भी तो नहीं पता था उसे। हाँ एक आया थीजो डैड की गुलामदिन भर घर का काम करती रहती रात में डैड की डाँट। कभी कभी पिटाई भीपर न जाने कौन सी मजबूरी थी कि वो डैड की नौकरी करने को बाध्य थीदिन भर शराबियों का तांता लगा रहता थानशे में धुत्त शराबियों के पॉकेट पर हाथ साफ करते करते ही तो नताशा ने यह गुण सीखा थानताशा का मन सोच रहा था क्या इसी को परिवार कहते हैं उसका तो दम घुट जाता था इस माहौल मेंवह स्वच्छंद रहना चाहती थी नहीं चाहिए ऐसा परिवार उसको

आज दिन में उसने कई युवक युवतियों को साथ साथ घूमते हुए देखा थाकितने प्यारे लग रहे थे वो क्या मेरा भी कोई हमसफर हो सकता है इस दुनिया मेंसोचते सोचते उसका मन जस्सू पर टिक गयाकितना अच्छा है जस्सू उसका कितना ख्याल रखता है बहुत ही दिलचस्प हैकिसी न किसी बात पर हँसने की बात कर देता हैअगर इसका साथ मिल जाए तो पूरी जिन्दगी मजे से निकल सकती हैफिर दोनों का व्यवसाय भी तो एक ही हैफिर बिस्तर पर आकर लेट गयी सोचते सोचते कब आँखे बंद हो गयीं पता नहींदरवाजे की घंटी की आवाज ने उसे जगा दियाघडी पर नजर डाली तो सुबह के 7 बज चुके थेदरवाजा खोला तो जस्सू खडा मुस्कुरा रहा था

''कितने बजे की गाडी है नताशा! '' जस्सू ने सोफे पर बैठते हुए पूछा
''शाम चार बजे की
''
''पूरा भारत भ्रमण करने का इरादा है क्या? ''
''
हाँ ! पर एक बात पूछूं ! '' नताशा ने कहा
''
हाँ हाँ ! क्यों नहीं''  जस्सू ने कहा
'' क्या तुम मेरे साथ नहीं चल सकते
तुम्हारे साथ घूमने का मजा दुगुना हो जाता हैप्लीज ना मत कहनाआई रिक्वेस्ट यू ! ''  नताशा ने कहा
जस्सू चुप बैठा रहा।  
'' सोचता हूँ मैं भी इन चार दिनों में कितना बदल गया हूँ।आखिर कौन ऐसी बात है कि मैं तुम्हें अपने इतना करीब पाता हूँ। क्या तुम भी यह महसूस कर रही हो चुप्पी तोडते हुए थोडी देर बाद उसने कहा''
नताशा चुप बैठी जस्सू के चेहरे के भावों को पढने का प्रयास कर रही थी

''नताशा मैं अवश्य तुम्हारे साथ भारत भ्रमण पर चलूंगाजस्सू एक साँस में ही बोल गया''
नताशा यह सुनते ही अपना सुध बुध खो बैठी
न जाने कौन सा आवेश उसने महसूस किया कि सहसा उठी और जस्सू के चेहरे को दोनों हाथों से पकडक़र एक प्यारा सा चुम्बन उसकी गालों पर जड दियाजस्सू को कुछ भी समझ में नहीं आयाप्रत्युत्तर में उसने भी एक चुम्बन उसके कोमल गाल पर लगा दियानताशा झटके से अलग होकर खडी हो गयी
''सॉरी जस्सू ! न जाने मुझे क्या हो गया था'' उसने कहा

फिर काफी देर तक दोनों ही बातें करते रहेनताशा ने कुछ शापिंग की इच्छा जाहिर कीफिर दोनों ही निकल पडे शाम को दोनों ही ट्रेन से भारत भ्रमण पर निकल पडेमहीनों घूमते रहेपैसे की कमी तो थी नहीं जब भी कमी महसूस होती, दोनों का व्यवसाय साथ साथ रंग लाताइसी बीच कब प्यार का अंकुरण हो गया यह पता ही न चलाएक दिन दोनों रामेश्वरम् में समुद्र के किनारे बैठे थेनताशा जस्सू के गोद में अपना सिर रखकर लेटी हुयी थी

''जस्सू ! मैं सोचती हूँ कि हम दोनों की मुलाकात बहुत ही अनोखे ढंग से हुयी हैऔर इतने दिनों में हम कितने करीब हो गए हैंहै ना'' नताशा ने कहा''मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगी हूँ। समझ में नहीं आता रूस जाकर कैसे रह पाऊंगी। सोचकर ही डर लगता है तुम क्या सोचते होबोलो न जस्सू'' नताशा ने उसे कुरेदते हुए कहा
''मेरी नताशा सच
बताऊं तो मेरी इच्छा तो कुछ और कह रही है'' सुन सकोगी
''
हाँ हाँ क्यों नहींमुझमें तुम्हारी बातों को सुनने का पूरा धैर्य हैबोलो ना डियरनताशा बेचैन हो उठी
''मैं सोचता
हूँ कि ... '' जस्सू चुप हो गया
''क्या बोलो ना प्लीज ! '' वह उठकर बैठ गई

''हम दोनों शादी कर लें
एक छोटा सा परिवार हो हम दोनों का'' जस्सू घबडाता हुआ बोला

नताशा सुनते ही खुशी से पागल हो गयी जस्सू के सीने से चिपट गयी जस्सू ने भी अपने होठ उसके होठों पर रख दिएदोनों की सांसों की गर्माहट एक दूसरे में उतरने लगी काफी देर तक दोनों ऐसे ही पडे रहे नताशा को लगा कि सारी दुनिया यहीं सिमटकर रह गयी हैफिर धीरे से दोनों एक दूसरे से अलग हो गए

''हमारी शादी में एक बहुत बडी श्चर्यजनक बात है''
''क्या !'' नताशा ने पूछा

''यही कि हम दोनों अपने अपने देश के मशहूर पॉकेटमार हैं
शादी के बाद अगर बच्चा हुआ तो वो कितना बडा पॉकेटमार निकलेगाक्या तूने कभी सोचा है?''
''फिर तो बडा मजा आएगा
वो विश्वस्तर का पॉकेटमार निकलेगा'' नताशा चहकी
''कितना मजा आएगा जब लोग कहेंगें मैं विश्वस्तर के पॉकेटमार की
माँ हूँ और तुम उसके पापा, '' नताशा ने कहा
जस्सू भी इस बात से रोमांचित हो उठा
फिर अगले दिन ही दोनों ने मंदिर में जाकर शादी रचा ली

अब दोनों की मस्ती दुगुनी हो गयी। यहाँ वहाँ घूमते अब गृहस्थी बसाने का उपक्रम होने लगानताशा के कहने पर ही जस्सू ने वाराणसी में एक मकान लिया और रहने लगासमय गुजरने लगावह समय भी आया कि नताशा के पैर भारी हुएदोनों का बेसब्री से विश्वस्तर के पॉकेटमार का इंतजार थावह समय भी आया जब नताशा हास्पिटल में दाखिल हुयीजस्सू के खुशी का ठिकाना न था जब नर्स ने बताया कि नताशा ने लडक़े का जन्म दिया हैदोनों की मुरादें पुरी हो रही थींवह अपने नए मेहमान को देखने के लिए मचल उठावह समय भी आया कि नया मेहमान नताशा के साथ बेड पर देखने को मिलाजस्सू ने तो उसे चूम लिया उसकी उमंगें सीमा तोडक़र बह जाने को बेताब थीं''नताशा वास्तव में तुम कितनी प्यारी हो'' जस्सू ने कहा
पर नताशा उदास थीक्यों क्या हुआजस्सू ने उसके उदासी का कारण पूछा

नताशा ने जस्सू को अपने पास आने का इशारा कियाजस्सू जैसे ही पास में आया नताशा ने उसके कान में धीरे से कहा
''बच्चे की दोनों मुठ्ठियां बंद हैं उसकी तलहत्थियाँ खुल ही नहीं पा रही हैं ज्यादा जोर नहीं लगा रही हूँ। कहीं कुछ हो न जाए'' वास्तव में यह जस्सू के लिए घबडाने की बात थीक्या क्या सपने सजाए थे दोनों ने पर यहाँ तो कुछ और ही निकलाउसी दिन से दोनों डॉक्टरों के पीछे भागने लगे कि किसी तरह से ये मुठ्ठियां खुल जाएं और सामान्य अवस्था में आ जाएं। जानकारी के सारे डॉक्टरों के पास गए पर डॉक्टरों ने तो एकदम से मना कर दियाभाई अभी तो इसका ऑपरेशन भी सम्भव नहीं है। पाँच साल का हो जाने पर ऑपरेशन द्वारा हो सकता है कि खुल जाएपर सामान्य अवस्था में ये काम नहीं कर पाएंगीएक बहुत ही विद्वान डॉक्टर ने कहा

दोनों के जीवन की खुशियाँ बच्चे के बंद हाथ के वजह से गायब हो गयीं

बच्चा देखते देखते छ: माह का हो गया पर मुठ्ठियां बंद की बंददोनों की चिंता बढती जा रही थीआखिर यह अपना काम भी कैसे कर पाएगानताशा तो कभी कभी खूब रोती जस्सू उसे ढाढस बंधातासभी ठीक हो जाएगा नताशा जस्सू हमेशा कहतापर जो सच था वो था मनुष्य कुछ भी कर ले वह प्रकृति के आगे सदा असहाय बना रहता है

एक दिन दोनों सायंकाल गंगा नदी के किनारे बैठे कुछ सोच रहे थेतभी एक साधुवेशधारी एक महात्मा नदी के किनारे आकर बैठ गएवे भी चुपचाप बैठकर नदी की तरफ देखने लगे मानों कोई विशेष चिंतन कर रहे होंतभी जस्सू के मन में ख्याल आया कि हो सकता है ये महात्मा कोई चमत्कार कर दिखाएंचारों तरफ से थका जस्सू को न जाने आज क्या सूझीउसका अन्तर्मन नतमस्तक होने को बेताब होने लगावह उनके सामने जाकर बैठ गयाहाथ जोडक़र विनम्र भाव से बोला महाराज हम लोगों की रक्षा कीजिए महाराज ने शांति से उसकी बातें सुनीं और कहाबच्चे को मेरे सामने रख दो

दोनों ने वैसा ही किया तथा खुद ही हाथ जोडक़र बैठ गएसाधु महाराज अपने ध्यान में मग्न हो गएलगभग आधे घंटे बाद महाराज ने आँखे खोलींफिर मुस्कुराने लगे

नताशा और जस्सू को कुछ समझ में नहीं आ रहा थावे महाराज की हँसी का अर्थ नहीं समझ पा रहे थे महाराज कुछ समय पश्चात् बोले!
''घबडाने की बात नहीं हैबस तुम दोनों को एक ही काम करना होगाइस बच्चे के दोनों मुठ्ठियों में आने लायक हीरे लाने पडेंग़ेफिर इस बच्चे की मुठ्ठियां खुल जाएंगी'' दोनों के लिए चौंकने की बारी थीमहाराज क्या कह रहे हैं पर दोनों अपने जिगर के टुकडे क़े लिए कुछ भी करने को तैयार थेदोनों ने महाराज से पूछा कि कब तक हीरे लाने पडेंग़े''अगर अभी ला सकते हो तो अभी ही मुठ्ठियां खोलवा देता हूँ।'' महाराज ने बडे ही सहज ढंग से ये बातें कहींपर दोनों के लिए यह एक आर्श्चजनक बात थी''महाराज अभी तो हम लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि हीरे ला सकेंअगर कुछ समय बता दें तो अवश्य ही हम लोग ला सकते हैं'' जस्सू ने कहामहाराज ने कहा ''ठीक है 15 दिन बाद यहीं पर आ जाना मैं अवश्य ही मिलूंगा'' यह कहकर महाराज अपना कमण्डल उठाकर चल दिए

मरता क्या न करतादोनों ही अपने व्यवसाय में लग गए14वें दिन ही हीरे खरीद लिए गएफिर दोनों ही इस अद्भुत चमत्कार के लिए कल का इंतजार करने लगे

दूसरे दिन सायंकाल दोनों बच्चे के साथ गंगा किनारे उसी स्थान पर आए और साधु महाराज का इंतजार करने लगे कुछ समय के इंतजार के बाद महाराज आएअपना आसन लगायातभी नताशा और जस्सू उनके पास पहूँचे।
महाराज ने इशारे से उन्हें बैठने को कहा
कुछ पूजा अर्चना की फिर पूछा हीरे लाए क्या।हाँ महाराज दोनों ने कहा और हीरे महाराज को दे दिए

महाराज ने बच्चे को थोडी दूर पर रखने को कहाफिर ध्यान लगायाकुछ समय पश्चात् महाराज ने आँखे खोलींबच्चे के पास जाकर चुटकी बजाई और कहा बेटे मुठ्ठी खोलो हीरे ले लोखोल बेटा हीरे लाया हूँ तेरे लिएवे बोलते जा रहे थे और चुटकी बजाए जा रहे थेनताशा और जस्सू दोनों ही एकटक ये सब देखे जा रहे थे

तभी एक चमत्कार हुआबच्चे ने अपनी मुठ्ठियां खोलीं और महाराज के हाथों से हीरे ले लिए

बच्चे ने जैसे ही मुठ्ठियां खोलीं दोनों मुठ्ठियों से दो सोने की अंगुठियाँ गिरीं

बच्चे ने हीरे लेकर फिर मुठ्ठियां पूर्ववत बंद कर लीं

नताशा और जस्सू दोनों ने ही आँखे फाडक़र यह चमत्कार देखादोनों ही हतप्रभ थे कि मुठ्ठियों में सोने की अंगुठियाँ कहाँ से आयींदोनों ही महाराज के चरणों में गिर पडेमहाराज आप धन्य हैं पर एक बात बताइए कि सोने की अंगुठियाँ कहां से आयीं

महाराज दोनों को उठाकर
हँस पडे। और बोले कि जन्म के तुरंत बाद जब हास्पिटल की नर्सें इसको नहला रही थीं तभी इसने उनकी अंगुठियाँ निकाल ली थीं

इतना सुनते ही दोनों मूक होकर एक दूसरे को देखने लगे

- सुधांशु सिन्हा हेमन्त
 

    

इन्द्रनेट पर हलचल - सुब्रा नारायण
अपने अपने अरण्य - नंद भारद्वाज
चिडिया और चील - सुषम बेदी
ठठरी - हरीश चन्द्र अग्रवाल
प्रश्न का पेड - मनीषा कुलश्रेष्ठ
बुध्द की स्वतंत्रता - मालोक
भय और साहस - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
मदरसों के पीछे - रमेशचन्द्र शुक्ल
महिमा मण्डित - सुषमा मुनीन्द्र
विजेता - सुषमा मुनीन्द्र
विश्वस्तर का पॉकेटमार- सधांशु सिन्हा हेमन्त
शहद की एक बूंद - प्रदीप भट्टाचार्य
सम्प्रेषण  - मनीषा कुलश्रेष्ठ
सिर्फ इतनी सी जगह - जया जादवानी

कहानियों का पूरा संग्रह

 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com