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महिमा मण्डित - दूसरा पन्ना स्त्रियाँ सुख-सुहाग-समृध्दि-शांति बने रहने की कामना लिये देवी के चरणों में लोट गईं। इस धर्म निरपेक्ष देश में धर्म से अधिक प्रभावी कुछ और नहीं। यहाँ नदियों में पाप धोए जाते हैं और पाषाण पूजे जाते हैं। फिर वीणा तो जीती जागती साक्षात भगवती है। पूरे गांव में व्यस्तता का वातावरण बन गया लोग आकर रूपया पैसा चढाने लगे। तीरथ प्रसाद ने हाथ जोडे - ''देवी को आप लोगों के दो पुष्पों की चाह है, रूपयों पैसों से उनका कोई प्रयोजन नहीं। इस चढावे से उनकी तपस्या में व्यवधान पहुंचेगा।'' पर भक्ति भावना जोर मारे तो लोग रोके नहीं रुकते। सार्मथ्य भर चढावा चढाते रहे। सरपंच ने उद्धोषणा की - ''धन्य
भाग हमारे जो इस तुच्छ,
पापी गांव में देवी की कृपा
हुई। हम सब धन संग्रह कर देवी का एक मंदिर बनाएंगे। झब तक मंदिर की
व्यवस्था नहीं होती तब तक पयासी जी आप देवी की तपस्या की व्यवस्था घर में
करें। इस तरह घाम में,
खुले आसमान के नीचे,
चिडिया-चुरूगन की
चहचहाहट से देवी का ध्यान भंग हो सकता है। तीरथ प्रसाद ने अपने घर की बैठक को आनन-फानन में मंदिर का रूप दे दिया। पूरब की ओर दीवार में दो रेशमी साडियों के चुन्नटदार परदे टांग दिये। तीन ओर देवी देवताओं की तसवीरें लटका दीं। पर्दे के पास देवी के बैठने हेतु तोषक, चादर रख कर आसन बना दिया गया। दानपेटी रख दी गई। कांसे की थाली में लाइ, बताशे, नारियल, मखाने, तुलसी दल का प्रसाद रख दिया गया। धूप-दीप, नैवेद्य, आरती, शंख ध्वनि! घर को मंदिर बनाने में जो संसाधन चाहिये वही सब जुटा लिये गए। टयूबलाईट लगा दी गई। चालीस वाट के बल्ब के बीमार-पीत प्रकाश में कभी अलसायी लगने वाली बैठक, भक्तों की जयकारों से जी उठी। मुक्त केशनी देवी पैरों में हल्दी और महावर रचाए, पीली धवल साडी पहने, ललाट में केसरिया सिन्दूर, शीश में छोटा सा मुकुट लगाए, गेंदे के पुष्पों और तुलसी की माला पहने आसन में विराजमान हो गयीं। तीरथ प्रसाद ने सस्वर स्तुति की - ''
ज्वाला कराल मृत्युग्रम
शेषासुर सूदनम् वीणा ने कल्याण हो पुत्र कह कर पिता को हाथ लहरा कर आर्शीवाद दिया। तीरथ प्रसाद ने बताया - '' देवी सांसारिक रिश्ते भूल चुकी हैं। मुझे पुत्र समझती हैं।'' मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा की कौडियों से बडे नेत्रों का प्रभाव होता है या और कुछ पर मनुष्य एक क्षण को ही सही दुनियावी माया मोह भूल कर श्रध्दा, आस्था, विश्वास से भर जाता है फिर यहाँ तो जीती जागती देवी के दर्शन हो रहे हैं, जो हँसती है, बोलती है, हाथ लहरा कर आर्शीवाद देती हैं, चेहरे पर उड आए केशों को हाथों से पीछे भी हटाती हैं। लोग अभिभूत हैं। पूर्व जन्मों के पुण्यों की फलश्रुति पर। दिन भर घर में मेला सा लगा रहा। संध्या आरती के बाद जब देवी के विश्राम का समय हुआ तब तक रूपये-पैसों, फल-फूल-मिष्ठान्न-मेवे का ढेर लग चुका था। चर्चा विस्तार पाती गई। निकटवर्ती गांवों, कस्बे, जिले से दर्शनार्थी आने लगे। बेरोजगार, रोगी, दालिद्रय, नि:संतान, प्रताडित बहुओं, अविवाहित लडक़ियों के अभिभावक, मामला मुकदमा वाले! भीड बढने लगी और दर्शनार्थियों को कतार बनाकर क्रमवार देवी के पास भेजा जाने लगा। लोग कारे में बिछी जाजिम पर बैठ गए। तीरथ प्रसाद कहते - '' आपकी जो समस्या हो उसे मन में स्मरण कीजिये। देवी सबके मन की गति जानती हैं। निवारण करेंगी।'' दर्शनाथी समस्या मन में दोहराते हुए साष्टांग हो जाते। देवी भगवती सदा सहाय हो। कह कर साष्टांग भक्त के शीश पर हाथ फेर देतीं। भभूत ललाट पर लगातीं और पसरी हथेली पर प्रसाद रख देतीं। कुछ अस्पष्ट सा बुदबुदातीं। तीरथ प्रसाद उसका अनुवाद कर देते। देवी कभी प्रसन्न होतीं तो उपदेश भी देने लगतीं - ''मेरी अराधना अर्थात प्रकृति की अराधना। प्रकृति की रक्षा करना मेरी सेवा करना है। वृक्ष न काटो, नदी तालाब का पानी न दूषित करो। वातावरण शुध्द रखो। दानपुण्य, हवन-अनुष्ठान आदि धार्मिक कार्य करो। मैं धर्म की स्थापना के लिये ही आई हूँ।'' लोककल्याण की ये परिष्कृत भाषा ये मंदबुध्दि लडक़ी ने कैसे सीख ली? सब देवी की महिमा है। आरती के समय उत्सव का सा माहौल हो जाता। दिन भर के थकेहारे लोग देवी दरबार में जुहा जाते और धर्म की चर्चा करते और भजन गाते। ''ओम अम्बे माता!'' देवी पूरी गरिमा के साथ दीपज्योति को निहारती बैठी रहतीं। आरती की समाप्ति पर तीरथ प्रसाद जनहित के लिये मांगते - ''दु:ख
हरण करो माँ,
पापियों का नाश करो,
कल्याण करो माँ।'' अब तक देवी की महिमा का प्रकाशन स्थानीय दैनिकों के बॉक्स कॉलम में हो चुका था। समाचार पढ दूर दूर से लोग दरसन को पहुँचन लगे हैं। नेता-मंत्री, अफसर,व्यापारी सभी आने लगे हैं। तीरथ प्रसाद के घर के सामने एक न एक गाडी ख़डी रहती है। इन बडे लोगों की पत्नियां आम स्त्रियों की भांति ही धर्मभीरु हैं। प्रदेश के शिक्षा मंत्री का पैतृक गृह ग्राम इसी जिले में है वे सपरिवार एक पारिवारिक वैवाहिक आयोजन में भाग लेने आए हैं। लगे हाथ कुछ उद्धाटन समारोह किये और पत्नी के हठ पर देवी के दर्शनार्थ पहुंचे। शिक्षा मंत्री की सहधर्मिणी धर्म-कर्म का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देतीं। देश-विदेस घूम आई हैं पर जीती-जागती देवी के दर्शन का अवसर पहला ही है। शिक्षामंत्री के दल-बल में जिले के पुलिस अधीक्षक , जिला अस्पताल में पदस्थ सर्जन रामकृष्ण और सुरक्षा गार्ड थे। जब ये काफिला पहुंचा तो आरती समाप्त हो चुकी थी और देवी विश्राम के लिये जा चुकी थीं। इन्हीं शिक्षामंत्री को तीरथ प्रसाद ने अपनी पाठशाला के सम्बंध में पत्र लिखा था, जिसके उत्तर की आज तक प्रतीक्षा है। आज शिक्षामंत्री सपत्नीक चल कर उनके घर पधारे हैं। चमत्कार को नमस्कार है। तीरथ प्रसाद की तीव्र इच्छा हुई कि शिक्षा मंत्री के चरणों में झुक जाएं और अपनी समस्या कहें पर छठी इन्द्रीय ने सतर्क किया कि वे एक अवतार के जनक हैं और उन्हें अपनी गरिमा को नहीं भूलना चाहिये। वे मंत्री जी का स्वागत करते इससे पूर्व ही मंत्री जी ने स्वयं हाथ जोड दिये। तीरथ प्रसाद के अनुज सिध्दमणि ने तत्परता से बताया - देवी विश्राम के लिये जा चुकी हैं। दर्शन कल हो सकेंगे। तीरथ प्रसाद ने सिध्दमणि को सुलगती दृष्टि से देखा। वे जानते हैं सिध्दमणि उनकी आर्थिक स्थिति के सुधार को देख दु:खों से भरा हुआ है। भगवती की कृपा को पाखण्ड कहता है। भक्तों को भडक़ाता है। मंत्री पत्नी मलिन पड ग़यीं - दूर से आए हैं। क्या निराश लौटना होगा? तीरथ प्रसाद को एक क्षण को विचार आया इन्हें लौटा देना लाभप्रद होगा। बडे ॠ़र्षिमुनि, आचार्य, योगी बडी हस्तियों को भी द्वार से भगा देते हैं। इससे उनका प्रभाव जमता है कि विशिष्ट वर्ग उनके सामने कोई अर्थ नहीं रखता। पर ऐसा करने से दान-दक्षिणा की हानि हो जाएगी। '' आप लोग विराजिये। मैं देखता हूँ। कुछ हो सका तो। भगवती की इच्छा होगी तो दर्शन अवश्य देंगी।'' मंत्रीजी को सादर बिठा तीरथ प्रसाद भीतर भागे। वीणा हाथ-मुंह धोकर, रेशमी वस्त्र बदल कर, सूती सलवार कुर्ता पहन कर खुले केशों की चोटी गूंथ चुकी थी और खिचडी ख़ा रही थी। यह सब देख कर उन्होंने कपाल थामा फिर सिया से जल्दी जल्दी बोले - ''वीणा को तैयार कर भेजो। जल्दी! मंत्री जी पधारे हैं। साथ में उनकी धर्म पत्नी भी हैं। जल्दी! '' तीरथ प्रसाद ने वीणा को जल्दी से कुछ समझाया और बाहर भागे। सिया ने चील सा झपट्टा मार कर वीणा के सामने से थाली खींच ली। इस पर वीणा चीखने को हुई। सिया ने अपनी दक्ष हथेली उसके मुख पर रख चीख को बाहर निकलने ही नहीं दिया। विवशता से या सिया की हथेली के दबाव से वीणा के नेत्र छलछला आए। दिन भर की भूखी थी, बहुत भूख लगी थी पर खाना छोड देवी को साज सज्जा कर मंत्री जी के सामने आना पडा दुबली-पतली, पतले गेहुंआ मुख वाली देवी को आते देख सभी उठ खडे हुए। मंत्री पत्नी, पति के कानों में फुसफुर्साई ऐसा तेज कहीं नहीं देखा। दर्शन से ही देह की सारी थकान और मन के विकार दूर हो गये। मंत्री जी ने सहमति में दो बार शीश डुलाया। देवी के आसन ग्रहण करने तक कक्ष में ऐसी शांति छाई रही कि सांसो के स्वर ही बज रहे थे। देवी ने हाथ लहरा कर लोगों को बैठने के लिये संकेत किया। वे कुछ क्षण नेत्र मूंदे बैठी रहीं फिर मंत्री जी से सम्बोधित हुईं - ''बहुत दूर से चल कर आए हो। मालूम होता है किसी बडे पद पर हो। भाल की रेखाएं बताती हैं बहुत ऊंचे जाओगे। जल्दी ही प्रदेश के सबसे बडे पद पर बैठोगे।'' देवी ने पिता का पढाया पाठ दुहरा दिया। मंत्री जी उत्साहित हो उठे। छ: माह बाद चुनाव होने हैं। उनका दल सत्ता में आया तो उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना है। अगले मुख्यमंत्री के लिये अनुमानित तीन नामों में एक नाम उनका है। वे गदगद् दशा में हाथ जोड बोले - ''आप
जगतजननी हैं। कृपा बनी रहे।'' देवी ने मंत्री के प्रशस्त ललाट में भभूत लगा दी। इधर मंत्री पत्नी ने बटुए से छोटी डिबिया निकाली। डिबिया के भीतर रत्नजटित स्वर्णमुद्रिका की चमक फैली हुई थी। उन्होने उसे आरती के थाल में रख दिया। देवी ने उनके ललाट पर चंदन का पीला टीका लगाया तथा एक तावीज हाथ में लिया, अधरों में कोई मंत्र बुदबुदाया और मंत्री जी की पत्नी से कहा - ''इसे अपने मालिक की भुजा में बांध देना मंगल होगा। उन्होंने तावीज क़ो सादर नेत्रों से लगा लिया।'' मंत्री जी सपत्नीक पुलक रहे हैं और एसपी मन ही मन उनकी अंधभक्ति देख विक्षुब्ध हैं। वे इस समय डयूटी पर हैं अन्यथा जब से उन्होंने एक ऐसे ही अवतार का पर्दाफाश किया है तब से उन्हें इन पाखन्डों से घृणा हो गयी है। फिर भी इक्यावन रूपये मात्र इसलिये चढा दिये कि उपस्थित लोग उन्हें कृपण न समझें। उधर डॉक्टर रामकृष्ण का दृष्टिकोण सबसे पृथक था। रोगियों से निपटते जूझते उनकी दृष्टि में चिकित्सा विज्ञान का ऐसा प्रभाव पड चुका था कि प्रत्येक व्यक्ति में उन्हें रोग के लक्षण ढूंढने की आदत सी पड ग़यी है। वीणा उन्हें चमत्कारिणी नहीं रोगिणी दिखाई पड रही थी। देह क्षीण, त्वचा पीली, नाखून सफेद, मुस्कान निष्प्रभ, आंखे गङ्ढों में धंसी हुई। निर्जलन और रक्ताल्पता के लक्षण मालूम होते हैं। हाव-भाव से मानसिक रोगी प्रतीत होती है। उनके भीतर ज्वार उठा कि इसकी नब्ज पकड क़र हृदयगति देखें और आंखों और जीभ की जांच करें। पर चिकित्साविज्ञान अंधश्रध्दा के आगे व्यर्थ है। जबकि प्रदेश का मंत्री पूरी तरह से देवी के प्रभाव में दिख रहा है। वे यहाँ निपट अकेले हैं और भक्त बहुसंख्य का तनाव उत्पन्न हो जाएगा। इस देश में धर्म के नाम पर पहले ही बहुत मार-काट हो चुकी है। अभी चार दिन पहले ही दैनिक में पढा कि देवी के अवतार को पाखन्ड सिध्द करने आए दो पत्रकारों के कैमरे छीन लिये और भक्तों ने उन्हें गाली गुफ्तार कर खदेड दिया। ओह सामने रोगी बैठा है और वे विवश हैं। ऐसे विवश कि सबकी देखा देखी वह भी हाथ जोडे हुए हैं और मंत्रचलित से इक्यावन रूपये भेंट कर चुके हैं। खूब फलने-फूलने का वांछित आर्शीवाद ले मंत्री जी अपने दल-बदल के साथ उठे कि देवी आसन में ढह गईं। जैसे मूर्च्छा आ गई हो। डॉक्टर रामकृष्ण का अनुमान विश्वास में बदल गया। वे बडे आंतरिक संघर्ष के बाद स्वयं को रोक पाए। सिया तत्परता से बिजना डुलाने लगी और तीरथ प्रसाद कहने लगे - ''देवी ध्यान में चली गई हैं। मैं ने पहले ही कहा था उनके ध्यान का समय हो चुका है।'' मंत्री जी सपत्नीक धन्य हो गये। किसी सिध्द वयक्ति को ध्यान में जाते हुए पहली बार देख रहे हैं। जीवन सफल हो गया। मंत्री जी के जाने के बाद तीरथ प्रसाद, सिया के साथ बैठकर दिन भर के चढावे की गणना करने लगे। सिया स्वर्ण मुद्रिका को उलटती पुलटती रही। इतनी चमक इतने निकट से अब तक न देखी थी। गाँव तीर्थ बना हुआ है। सती की पवित्र भूमि में देवी अवतरित हुई हैं। दूर-दूर से भक्तजन दौडे आते हैं पर कुछ भी तो प्रभावी-चमत्कारी नहीं लगा डॉक्टर रामकृष्ण को। घर पहुंच पत्नी लता से कहने लगे - '' जिस देवी के दर्शन के लिये तुम कई दिन से उतावली हो रही हो न, मैं आज मंत्री जी के साथ उसी देवी को देख कर आ रहा हूँ। लता, वह कमजोर सी लडक़ी देवी नहीं है। वह कुपोषित, शोषित, मंदबुध्दि लडक़ी है जिसका इस्तेमाल धर्म के नाम पर धन बटोरने के लिये हो रहा है। आज के वैज्ञानिक-इलेक्ट्रानिक युग में ऐसे चमत्कार स्वयं ही झूठे सिध्द हो जाते हैं।'' नि:संतान लता अपने पति के इस नास्तिक आचरण से क्षुब्ध हुई। संतान प्राप्ति के लिये कितने ही पत्थर पूजे, यज्ञ अनुष्ठान किये। अब देवी के पास अपनी अरज लेकर जाना चाहती है। और पति हैं कि उन्हें देवी-देवता झूठे लगते हैं।घबरा कर कहने लगी - ''शुभ
शुभ बोलो जी। ये क्या सभी को चिकित्सकीय दृष्टिकोण से जांचते-परखते रहते
हो। मैं देवी के दर्शन को जाऊंगी और जरूर जाऊंगी।'' डॉक्टर साहब जब पहुंचे तो दोपहर ढलान में थी और देवी कदाचित ध्यान(अचेतावस्था) से कुछ ही क्षण पहले बाहर आईं थीं। मुख क्लान्त था और बरौनियां झपका रही थीं। देवी को देख लता ने भाव विव्हल दशा में हाथ जोड दिये जैसे साक्षात परम ब्रह्म के दर्शन हो गये हों, देवी बुदबुदा रही थीं - '' मैं दुर्गा हूँ, मेरी पूजा करो, मुझमें दुर्गा का वास है, दुर्गा की अराधना करो।'' लता कातर होकर देवी से अरज
करने लगी - ''
माँ आप तो सबके मन की गति
जानती हैं। मुझ दु:खियारी की भी सुनिये। एक बच्चे के बिना धन-दौलत,
सुख चैन सब बेकार
है। मेरी गोद भरो माँ।'' डॉक्टर रामकृष्ण देवी की रुग्णता ध्यानपूर्वक जांचते-परखते रहे। इन्हें सौ प्रतिशत विश्वास हो गया कि वीणा अस्वस्थ है और यही स्थिति बनी रही तो यह अस्वस्थता उसके लिये घातक सिध्द होगी। दान दक्षिणा चढा, चलने को उध्दत हुए थे कि सिध्दमणि निकट जाकर कहने लगा - ''
डॉ साहब,
भाग्य से आप पधारे
हैं तो मेरे बच्चे को देखने की कृपा करें। '' देवी की घर में बीमारी? अपने चमत्कार से वे एक बच्चे का ज्वर उतारने में सक्षम नहीं है।'' '' चलो देख लेते हैं। डॉक्टर रामकृष्ण बुदबुदाए। बच्चे की नब्ज देखते हुए, तनिक भी आशा न थी कि सिध्दमणि रहस्योद्धाटन के लिये उन्हें अपने घर बुला लाया है। ''
साहब,
मेरा नाम बीच में न
आए पर वीणा दिन पर दिन दुर्बल होती जा रही है। आप डॉक्टर होकर उसकी रक्षा
न करेंगे तो कैसे होगा? '' सिध्दमणि ने विद्वेष भाव से ही सही पर डॉ साहब को सही स्थिति बताई थी। वीणा स्वस्थ हो या न हो इससे उसे कुछ लेना देना न था। पर डॉ रामकृष्ण के अनुमान को प्रमाण मिल गये। वे अपनी शंका लेकर पुलिस अधीक्षक से मिले। अखबारों में इस कथित अवतार के विरोध में लेख लिखे जा रहे थे। गांव का एक गुट एसपी साहब के पास ज्ञापन लेकर पहुंच चुका था कि तीरथ प्रसाद धर्म के नाम पर ठगी कर रहे हैं। वे स्वयं जब प्रदेश के शिक्षा मंत्री के साथ देवी के दर्शन करने गए तो वीणा एक साधारण लडक़ी प्रतीत हुई थी। और अब डॉ रामकृष्ण अब इस अवतार की पोल खोलना चाहते हैं। एसपी, डॉ रामकृष्ण की सहायता के लिये सहर्ष तैयार हो गए। – आगे | पीछे | |
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