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  अपने अपने अरण्य - 2

यह जुडा हुआ संपर्क कब रोहित य उनके प्रियजनों के मन में संदेह और परेशानी का कारण बन सकता है, उन्हे कभी इसका ख्याल ही नही आयाऔर इसी प्रसंग को लेकर न जाने कैसे उन दोनो के बीच एक अनावश्यक से विवाद ने ऐस तूल पकड लिया था कि वे एक दूसरे से खफा होकर अलग-अलग जा बैठेवन-विभाग की नौकरी में हालांकि पति-पत्नी का साथ-साथ रह पाना एक संयोग ही माना जाता है, और साल भर पहले जब इस नेशनल पार्क में रोहित का तबादला हुआ, तो उसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं था, लेकिन मानसी ने उसे इसी रूप में ग्रहण किया कि रोहित ने उससे नाराज हो कर ही अपना यह तबादला परिवार से दूर रहने के लिए इस जंगल में करवाया है, जहां वह और बच्चे आकर न रह सकें

झब अनिकेत ने मानसी से बहुत आग्रह करके पूछा तब उसने बताया कि रोहित और उसके बीच अनबन का कारण उन्ही के बीच का पर्त्रव्यवहार है, जो उन दिनों बिल्कुल रुक गया थाअनिकेत को भी यह जानकर बहुत दु:ख हुआ, बल्कि अपने पर ही यह झुंझलाहट हुई कि उसे इस तरह पति-पत्नी के बीच दुबारा नहीं आना चाहिए थाउसने मानसी को ही समझाने का प्रयास किया कि वह अपने मन में रोहित के प्रति कोई नाराजगी न रखे और जितना जल्दी हो सके स्वयं उसके पास जाकर तमाम गलतफहमियां दूर करेंअनिकेत को सबसे बडा आश्चर्य इस बात का था कि मानसी जैसी संवेदनशील और टूट कर प्रेम करने वाली स्त्री से कोई कैसे रूठ कर रह सकता है? अनिकेत के आग्रह पर मानसी ने पहले तो दो पत्रों में धैर्य से अपने और अनिकेत के निर्मल रिश्ते की उसे खुलासा जानकारी दी और उसी के साथ उसकी गैर मौजूदगी के कारण घर में उसे और बच्चों को होने वाली कठिनाइयों और मानसिक पीडा का विस्तार से जिक्र कियाउन दोनो पत्रों के बाद भी रोहित का कोई उत्तर नहीं आया तो मानसी चिन्तित हो उठीवह पढी-लिखी और समर्थ र्थी अपनी और बच्चों की आवश्यकताओं के लिए वह किसी पर निर्भर नहीं थी, आजकल वह खुद एक एडवर्टाईजिंग एजेन्सी में आर्ट डाईरेक्टर थीइससे पहले रोहित की नौकरी और बच्चों के कारण ही उसने अब तक किसी शहर में स्थाई रूप से बसने के बारे में सोचा नहीं था, रोहित के तबादले के साथ वे जहां भी जाते, मानसी थोडे समय में उस शहर में अपनी रुचि का काम ढूंढ लेती थी, इससे उसका अपना मन भी लगा रहता और पारिवारिक कामों में भी मदद रहतीजब तीन महीने गुजर जाने के बाद भी न रोहित घर आया और नही कोई जवाब आया, तो मानसी का चिन्तित हो उठना स्वाभाविक थाउसने तुरन्त पत्र लिखकर मायके से मां को बुलवा लिया और उसे घर और बच्चों की जिम्मेदारियां सौंपकर वह खुद रोहित के सामने आ खडी हुई

रोहित के साथ दिन भर की जंगल यात्रा में मानसी ने उसके मन को कई तरह से टटोलने की कोशिश की - यह जानने के लिए कि कहीं कोई आशंका या सवाल अब भी उसके मन में बचा हुआ तो नहीं है जो कुछ वह अपने पत्रों में बयान कर चुकी थी, क्या उसे फिर से दोहराने या उसे और खोलकर समझाने की आवश्यकता शेष रह गई है? जो खुलापन और अन्तरंगता वैवाहिक जीवन के दस वर्षों में उनके बीच बनी रही, वह किसी काल्पनिक आशंका य संदेह-मात्र से बोधित कैसे हो सकती है? क्या उनके रिश्ते की बुनियाद इतनी कमजोर है?

वे दोनो अपने-आप में खोये हुए सोफे के दो छोरों पर बैठ कर शाम की चाय पी रहे थेबैठक की खिडक़ी के बाहर कहीं दूर से वन्य-प्राणियों और पक्षियों की आवाजे अनायास ही मानसी का ध्यान अपनी ओर खींच रही थीयों सुबह की छोटी सी बातचीत और दोपहर बाद रोहित के साथ जंगल की यात्रा के बाद दोनो के बीच तनाव का कोई चिन्ह नहीं दिख रहा था - खुद रोहित भी जंगल में घूमते हुए बहुत उत्साह से उसे अभयारण्य की खूबियों के बारे में विस्तार से बताते जा रहे थे उसे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि वह अलग अलग प्राणियों की आदतों और गतिविधियों के बारे में कितना-कुछ जानता है, यहां तक कि कुछ प्राणियों की आवाजों और उनकी हरकतों को इतनी खूबी से पहचानता है कि देखकर ताज्जुब होता हैजंगल में घूमते हुए वह किस तरह वायरलैस के जरिए समूचे जंगल में फैले वन-कर्मियों के काम पर अपनी पकड रखता है, किस समय कौन सा बडा वन्य-प्राणी किस इलाके में घूम रहा है, वह हर पल इसकी पूरी खबर रखता हैवह रोहित की इस कार्यशैली और क्षमता पर मन ही मन रीझ रही थी, लेकिन एक सवाल अब भी उसके मन में कायम था कि सब कुछ की उतनी खबर रखने वाला और सब के साथ इतना खुला व्यवहार करने वाला यह शख्स अपने ही घर परिवार और अन्तरंग रिश्तों के प्रति इतना शंकालु क्यों है? जंगल-यात्रा के दौरान जीप में एक अन्य वनकर्मी के साथ होने के कारण वे ज्यादा निजी बातें तो नहीं कर सके, लेकिन पूरी यात्रा के दौरान मानसी ने यह जरूर महसूस किया कि उसके मन में वह पहले वाला संशय और तनाव नहीं दिख रहा था, लेकिन सुबह से लेकर अब तक उसे यह भी लग रहा था कि रोहित उससे खुलकर बात नहीं कर रहा था, और तो और वह ऐसा भी कुछ जाहिर नहीं कर रहा था जिससे यह अनुमान हो कि उसके मन में अभी भी मानसी के प्रति किसी तरह का संशय या संदेह बना हुआ हैजंगल में झरने के पास थोडा एकान्त मिलने पर मानसी ने जब सीधे अपने पत्रों के बारे में पूछा तो तुरन्त उसने यह कहते हुए बात को संक्षेप में समेट दिया कि वह सब उसका बेकार का वहम था, जो वह कब का भूल चुका है

'' तो फिर क्या बात है रोहित?'' पूछते हुए अधीर सी हो उठी थी, मानसी, लेकिन रोहित तब भी शान्त था। उसने चारो ओर नजर दौडाते हुए घडी क़ी ओर देखा और इतना ही कहा था - ''हम इस पर तसल्लीसे बात करेंगे मानसी।'' और यह कहते हुए वे वहीं से वापस लौट पडे थे।

मानसी ने चाय का आखिरी घूंट लेकर प्याला वहीं सामने टेबल पर रख दिया और अपनी जगह से उठ कर वह पिछवाडे क़ी खुलने वाली खिडक़ी पर पहुंच गई थीयहां से पश्चिम का आकाश साफ दिखता थासूरज अब डूब चुका था, लेकिन रौशनदान से भीतर आने वाले उजास का असर बैठक में अब भी बरकरार था, इसलिए बत्ती अभी नहीं जलाई गई थीथोडी और रोशनी के लिए मानसी ने खिडक़ी का पर्दा जब हटा दिया तो उसकी नजरें खिडक़ी के पार दीखते खुले आसमान पर टिक गई वह देर तक खोई हुई सी उस खुले आसमान के टुकडे पर उडते हुए पक्षियों का आना-जाना देखती रही

रोहित न जाने कब अपनी सीट से उठकर उसके पीछे आ खडा हुआ था, इसका आभास उसे तभी हुआ, जब उसे अपनी पीठ और कंधों पर बढता दबाव और अपनी बगल से निकल आए दो आत्मीय हाथों का स्पर्श उसी दृश्य की ओर बहा ले जाता हुआ स प्रतीत हुआ - वह एकाएक उस स्पर्श और दबाव में बेसुध होकर रह गईउसने उन हाथों की कलाइयों को अपने हाथों में बांध लियाउसे अपने दाएं कान और गाल पर रोहित की गर्म सांसो की मिठास और भी बेसुध किए दे रही थीवह समय, स्थान और अपनी अवस्था की सारी संज्ञाएं भूल गई थी और उसकी पलकें अपने आप मुंद गई थीजाने कितनी देर वे इसी अवस्था में बेसुध से खडे रहे और जब संज्ञा में लौटे तो सामने का दृश्य बदल चुका थाबाहर उसी खुले आसमान पर अब असंख्य तारे निकल आये थे और बैठक की हर चीज अंधेरे में डूब चुकी थी रोहित के इस पार्श्व आलिंगन से मुक्त होते ही ज्यों ही मानसी बत्ती जलाने के लिए पीछे की ओर घूमी, रोहित ने फिर उसे पाकर अपने गहरे आलिंगन में बांध लिया

***

उस रात रोहित ने बिना कोई अतिरिक्त वास्ता दिए मानसी के सारे गिले शिकवे दूर करने और अपने व्यवहार का परिमार्जन करने के लिहाज से जब उसके सामने अपने अतीत के उन पृष्ठों को खोला, जिनके बारे में मानसी कुछ नहीं जानती थी, उसे लगा कि रोहित के मार्मिक अनुभवों और मानसिक उलझनों के सामने उसके अपने किशोर अनुभव और उलझनें तो जैसे कुछ भी नहीं हैरोहित ने गहरे सोच विचार के बाद जैसे उसे यह सब कुछ बताने का मानस बनाया था और जब उसने बोलना शुरु किया तो वह अवाक सी उसके चेहरे की ओर देखती रह गई थी -

'' मानसी, मुझे इस बात का अफसोस है कि मैने पिछले दिनों में अपने अजीब व्यवहार से तुम्हारा दिल दुखाया है तुमने इन सालों में व्यत्तिगत रूप से और अपने पत्रों के माध्यम से भी कई बार अपना मन खोल कर मेरे सामने रखा है और तुम्हे हर बार ऐसा लगता रहा होगा कि जैसे मैं तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर पा रहा हूं वास्तव में यह ऐसा नहीं था मानसी, मेरी अपनी दुविधाएं बहुत अलग तरह की रही है और मैं कभी इतना साहस नहीं जुटा पाया कि उन्हें तुम्हारे साथ शेयर कर सकूं मैं तुम्हारे जितना खुला और बेलाग व्यक्ति नहीं हूं मानसीमैं अपनी कमजोरियां और सीमाएं अब जानने लगा हूं, शायद तुम्हारे इसी खुलेपन ने आज मुझे इतनी हिम्मत दी है कि मै तुम्हारे सामने अपना उलझा हुआ अतीत और अन्त:करण खोल कर रख सकूं मैं कलाकार नहीं हूं और शायद मेरे पास बयान करने के लिए अच्छी भाषा भी नहीं है, लेकिन मैं यह उम्मीद करूंगा मानसी, कि तुम मुझे गलत नहीं समझोगी और इस बात का भी बुरा नहीं मानोगी कि वैवाहिक जीवन के दस साल बाद मैं इस रूप में तुम्हारे सामने खुल रहा हूं''

और इस कैफियत के साथ कुछ क्षण मौन रहते हुए जब पहली बार मानसी के सामने उसने यह रहस्योद्धाटन किया कि वह इस शादी से पहले किसी और को अपना जीवनसाथी बनाने का इच्छुक रहा है, और उसको लेकर उसके जीवन में कई सालों तक भारी उथल-पुथल रही है तो उसे लगा कि जैसे इस रोहित से तो वह पहली बार मिल रही है वह बिना एक शब्द बोले एकटक उसकी ओर देखती रही और सांस रोके उसे सुनती रही -

रोहित बता रहे थे कि वह अपने कॉलेज के दिनों में शालिनी नाम की लडक़ी से बेहद प्यार करते थे, जिससे विवाह न कर पाने का अफसोस उसे बरसो तक भीतर से कचोटता रहावह खूबसूरत और समझदार थी लेकिन गरीब थीअपने घर में वह बहुत उपेक्षा और बुरे अनुभवों के बीच से गुजर कर बडी हुई थीवह बडी मुश्किल से कॉलेज में दाखिला ले पाई थी - वह किसी तरह पढ लिख कर उस नर्क से बाहर निकल आना चाहती थी और उसी में वह उसकी मदद चाहती थीउसके शराबी पिता ने पैसा लेकर उसका रिश्ता अपनी ही बिरादरी के एक ऐसे व्यक्ति से तय कर दिया था, जिससे उसका कोई मेल नहीं था, लेकिन वह उसके उसके झगडालू घरवालों के कारण शालिनी की कोई मदद नहीं कर पायाशालिनी की मर्जी के खिलाफ उसकी पढाई बीच में ही छुडवाकर उसकी शादी उस दूज वर से कर दी गई, जिसकी पहली बीवी मर चुकी थीशालिनी उससे बचने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थी, उसने कई बार रोहित से मदद के लिए आग्रह किया लेकिन वह कभी उतनी हिम्मत नहीं जुटा पायाशादी के बाद शालिनी के साथ उसके घरवालों और उसके पति का बर्ताव और बुरा होता गया और वह भी उसी के कारणउसका अपराधबोध और भी बढता गया इसी दुख के कारण बहुत अर्से तक उसने अपने घरवालों को उसके लिए आने वाले किसी रिश्ते के लिए अपनी सहमति नहीं दीआखिरकार जब शालिनी को जब इस बात का पता चला कि वह उसी के कारण शादी नहीं कर पा रहा है, तो उसे भी अफसोस हुआवह तब भी कहीं भीतर उससे लगाव महसूस करती थीआखिर उसी के कहने समझाने पर उसने मानसी का रिश्ता मंजूर किया था और उसने उस दूजवर के साथ जीवन बिताने को अपनी नियति मान लिया थावह आज भी उनके परिवार की उतनी ही शुभचिन्तक है, लेकिन वह कहीं पति पत्नी के बीच गलतफहमी का कारण न बन जाए, इसलिए उनकी शादी के बाद उसने कभी संपर्क बनाए रखने की कोशिश नही की

उसकी शादी हो जाने के बाद शालिनी के पति का बर्ताव उसके प्रति और बिगडता ही गया, उसने उसपर कई तरह के उल्टे सीधे लांछन लगाए लेकिन शालिनी ने सारी तकलीफे उठा कर भी यहीं कोशिश की कि उनका पारिवारिक जीवन संभल जाए तब तक वह दो बेटियों की मां बन गई, लेकिन उस निर्मम आदमी का मन वह नहीं बदल सकी उसका पारिवारिक जीवन पूरी तरह नष्ट हो गया और उसकी इस दशा के लिए वह आज तक अपने को माफ नहीं कर पाया है

यह सब बताते हुए उसका चेहरा गहरे अवसाद में डूब गया था और सिरहाने रखे तकिए पर पीठ टिका कर छत की ओर देखने लगा थामानसी अब भी उसकी ओर मुंह किए सिरहाने के पास ही बैठी थीउसकी पूरी बात सुनकर कुछ देर बाद उसकी ओर देखते हुए उसने पूछा था -

'' यह वहीं शालिनी है न जो, आस्था संस्था के साथ काम करती है?''
''
हां वही , मगर '' वह कुछ और पूछता लेकिन उसे अनसुना करते हुए मानसी ने अपनी बात जारी रखी -
''
लेकिन वह तो अपनी दोनो बेटियों के साथ अपने पति और परिवार से अलग रहती है शायद? ''
''
तुम शालिनी को जानती हो मानसी?'' रोहित ने आश्चर्य से उसकी ओर देखते हुए पूछा था।
''
बस, इतना ही कि वह एक साहसी स्त्री है वह अपने पांव पर खडी है और स्त्रियों की स्वयंसेवी संस्था  आस्था'' के साथ काम करती है। मैने पहली बार उसे उसी संस्था के आयोजन में बोलते हुए सुना था - अच्छा बोलती है,वह तो कहीं से भी असहाय या कमजोर नहीं लगती। ''
''
यहीं तो उसकी खूबी है मानसी! वह अपने भीतर के दर्द को छिपा कर रखती है। उसने तो मुझसे भी कभी नहीं कहा कि उसने क्या कुछ सहा है। मुझे भी उसके आसपडोस और परिचितों से ही उसके बारे में जानकारियां मिलती रही है।''
''
तो आपकी उससे मुलाकात नहीं होती?'' पहली बार मानसी ने अविश्वास से उसकी आंखो में देखते हुए पूछा था।
''
बहुत कम..कभी कभार संयोग वश! बस, पिछले दिनों यहीं पास के जिला मुख्यालय पर एक आयोजन में उससे मिलना हुआ था। मैं तो उससे सहानुभूति प्रकट करने ही उसके पास गया था जब थोडी देर अकेले में उससे बात हुई तो मुझे यह जानकर तकलीफ हुई कि उसके मन में मेरे प्रति अच्छी राय नहीं है....मेरी सहानुभूति में भी उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी...वह तो उल्टे मुझे ही जैसे नसीहत दे रही थी कि मैं अपने घर को ठीक तरह संभालू....ऐसा क्यों हुआ मानसी....उसने ऐसा रूखा बर्ताव क्यो किया मुझसे? पिछले सप्ताह भर से यहीं बात मुझे बराबर कचोटती रही है।''
फिर जैसे कुछ और सोचते हुए उसने पूछा -
''
कहीं ये तुम्हारी उस मुलाकात का परिणाम नही था, मानसी?''

और उसने अपनी आंखे मानसी के चेहरे पर टिका ली थी

इस अंतिम प्रश्न से मानसी एकाएक चौक गई, फिर भी उसने संयन रहते हुए इतना ही कहा -

'' नहीं, मुझसे तो ऐसी कोई बात नहीं हुई, बल्कि मुझे तो उससे पहली बार मिलने पर यह आश्चर्य हुआ था कि वह हमारे बारे में कितना कुछ जानती है। तुम्हारे बारे में पूछने पर उसने इतना ही बताया था कि तुम दोनो साथ पढे हो और इसी नाते वह तुम्हे जानती है मुझे थोडा अजीब लगा था कि उस पहली ही मुलाकात में वह हमारे आपसी रिश्तों को लेकर कितनी दिलचस्पी दिखा रही थी, लेकिन मैने तो उसे कुछ नहीं बताया। बस आखिर में जाते जाते उसने यह जरूर कहा था कि तुम बहुत अच्छे इंसान हो मुझे तुम्हे और बेहतर ढंग से समझना चाहिए!...उस मुलाकात के बाद एक दिन अचानक अनिकेत से भी यह पता लगा कि वे एक दूसरे को अच्छी तरह परिचित है उनकी संस्था के काम में अनिकेत से उनका अक्सर मिलना होता है हो सकता है अनिकेत से ही हमारे पारिवारिक जीवन के बारे में उनके बीच में कोई बात हुई हो''

लेकिन यह सब बताते हुए मानसी फिर जैसे अपनी ही चिन्ता में डूब गई थी

वे एकबारगी चुप हो गये थेरोहित तकिए पर सिर टिकाकर अब पीठ के बल लेट गया था और वह भी कुछ क्षण बाद उसकी बगल में लेट गई थी फिर मानसी ने करवट बदल कर उसी ओर देखते हुए पूछा था -

'' रोहित, क्या तुम्हे अजीब नहीं लगता कि हमारे रिश्तों के बीच में और लोग आकर हमें समझाने का प्रयास करते है क्या पति पत्नी से अधिक नजदीक कोई और रिश्ता हो सकता है?''
रोहित ने उसे आलिंगन में लेते हुए बस इतना कहा था -
''
मुझे बहुत अफसोस है, मानसी!  लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा बिलीव मी!''

नंद भारद्वाज

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