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लाल साहब

विश्वास तो किसी को नहीं होता पर लाल साहब प्रेम में पड चुके हैं उस भव्य बंगले की बुनावट में व्याप्त वायुमण्डल का एक एक अणु चकित है लाल साहब के इस प्रेम पर ये खुर्राट लाल साहब जब चण्डिका का रूप धारण कर कप प्लेटें गिलास तोडते हैं या अबोध भतीजे भतीजियों पर उमडते घुमडते हैं या दानवी अट्टहास करते हैं या मुंह फुला कर लम्बी ल्म्बी साँसे छोडते हैं तो वायुमण्डल के अणु जैसे घूर्णन करना भूल जाते हैं आज वही लाल साहब अपने शाही शयन कक्ष जिसमें बाबूजी के अतिरिक्त कोई नॉक किये बिना नहीं जा सकता, में भतीजे भतीजियों के छोटे मोटे जुलूस के साथ कमर लचका लचका के नाच रहे हैं गाना भी कौन सा? नित्य की भॉँति हा - हू वाला पॉप नहीं वरन्  मोहे पनघट पर नन्दलाल छेड ग़यो रे...

लाल साहब के शयन कक्ष की साज सज्जा राजकुँअरी के शयनकक्ष से कम नहीं है कक्ष में बच्चों का प्रवेश प्राय: वर्जित है बच्चों का मनेविज्ञान भी कम विचित्र नहीं वे वर्जित प्रदेश में अवश्य झाँकना चाहते हैं और लाल साहब के कोप का भाजन बनते हैं लाल साहब की सामान्य सी चिंघाड पर मंझली भाभी कुमकुम के नन्हे पुत्र की सू सू निकल गई थी और लाल साहब चिड्डे से उछले थे - ''इन भाभियों ने औलादें पैदा करदीं और छुट्टा छोड दीं अम्मा मेरा कमरा साफ करवाओ जल्दी'' बडी भाभी भागवंती जाने किस दुस्साहस से कह गईं थीं - '' ननद जी, तुम्हारे बच्चे होंगे तब क्या होगा? ''

लाल साहब आदत के अनुसार अपनी तराशी हुई धनुष सी भौंहें सिकोड क़र भाल के मध्य ले आए थे और उनके पुण्डरीक नयन फैल कर भौंहों को स्पर्श करने लगे थे '' माय फुट! विवाह कर अपने हाथ की लकीरों में कौन जनम भर को गुलामी लिखाएगा? दिन भर वानर सेना को सहेजो सकेलो, पति की बाट जोहते हुए तुम लोगों की तरह उबासी लो, ये हमसे न होगा मैं तो बस कोई ठसकेदार सरकारी पद हथिया कर रोब गालिब करुंगी''

इन्हीं रोबीले लाल साहब के दुर्लभ कक्ष में बच्चे नाच गा रहे हैं सम्पदा को लाल साहब नाम यूं ही नहीं दे दिया गया ठाकुरों की रियासत, गढी, प्रभुत्व, आतंक अब भले ही न रहा हो पर ठाकुर रणवीर सिंह की इस दुलरुआ इकलौती पुत्री की लाल साहबी आज तक अक्षुण्ण है आप हिन्दी साहित्य से एम ए कर रही हैं छोटी भाभी नीरजा, फुसफुसा कर हँसा करती है -  लाल साहब के तेवर ऐसे कलफदार हैं कि जब सुरूर में आ कोई पद्य जोर से पढते हैं तो लगता है कोई कोतवाल अपने कैदियों को हडक़ा रहा है'' सुनकर कुमकुम तनिक अभिमान में कन्धे उचकाती है - '' इसलिये न मैं ने सम्पदा को इतना बढिया उपनाम दिया है लाल साहब वाह वाह'' ''अच्छा अच्छा बहुत न इतराओ लाल साहब को जब अपने इस नाम के बारे में पता चल गया तो हम तीनों की खैर नहीं''

और भागवंती की चेतावनी पर तीनों महिलाएं भयभीत मृगी सी दिखने लगती हैं लाल साहब नामकरण आनन फानन में हो गया था कुमकुम की बैंगनी साडी लाल साहब की नजरों में चढ ग़ई थी यद्यपि लाल साहब लडक़ो से परिधान शर्टस और जीन्स पहनते हैं पर उन्हें भाभियों को पीडा पहुँचाने में आनन्द आता है और वे उनकी व्यक्तिगत वस्तुएं राम नाम जपना, पराया माल अपना की तर्ज पर हडपतपे रहते हैं कुमकुम ने कह दिया  यह साडी मेरे लिये तुम्हारे भैया मेरे जन्मदिन पर लाए थे तुम बाबूजी से अपने लिये ऐसी ही साडी मंगवा लो

दूसरे दिन कुमकुम के बिस्तर में उस प्रिय साडी क़ी कतरनें फैली छितराई थीं लाल साहब ने न जाने कब कैंची उठा कर साडी क़ो तरकारी-भाजी की तरह कतर डाला था बाबूजी पुत्री के पक्ष में ढाल बन कर खडे हो गये थे -  अभी सम्पदा में लडक़पन है धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा कुमकुम तुम्हें दूसरी साडी जाएगी

तीनों भाई रमानाथ, कामतानाथ, श्रीनाथ मूक बधिर से उस करुण दृश्य को देखते रह गये थे लालसाहब को ललकारें इतनी ऊर्जा और बल किसी की भुजाओं में न था फिर रसोई में भागवंती और कुमकुम की बैठक हुई थी कुमकुम हिचकते हुए बोली थी - लाल साहबों को जमाना लद गया पर इसकी लालसाहबी न गई ये लालसाहब गलत समय में पैदा हो गये आजादी के पहले पैदा होना चाहिये था भागवंती ने हिचकती कुमकुम की पीठ ठोंकी- वाह कुमकुम क्या नाम सुझाया है तुमने लाल साहब! वाह वाह! लाल साहब गलती से लडक़ी बनकर पैदा हो गये वरना इनके नाक के नीचे और अधर के ऊपर जो सपाट मैदान है वहाँ सीधी कलफदार मूँछ लहरा रही होती

भाभियां लाल साहब की कितनी ही निन्दा करें पर बाबू जी को वे प्राणों से प्रिय हैं वे नियम पूर्वक प्रात: लाल साहब के कमरे में जाते हैं उनके काले कत्थई रेशमी केश सहलाते हैं - बिटिया उठो दिन चढ या है और लाल साहब कुनमुनाते हुए, हाथ पैर झटकते हुए, चादर मुंह तक तान एक पकड और सो लेते हैं बाबूजी कहते हुए अगाते नहीं -  सम्पदा, के जन्म के बाद ही हम पर धन लक्ष्मी की कृपा हुई पहले  बघेल वस्त्रालय बिलकुल न चलता था अब तो रेडीमेड गारमेन्ट्स के तीन तीन प्रतिष्ठान हैं

''साक्षात लक्ष्मी है लक्ष्मी।'' ममता में डूबी अम्मा बाबूजी का अनुमोदन करतीं। अम्मा बाबूजी के अतिरिक्त संरक्षण और दुलार से पोषित लाल साहब का शैशव तीनों भाईयों की शिकायत करते हुए बडी आन बान और शान से बीता। तरुणाई तक पहुंचते पहुंचते आपकी प्रकृति - प्रवृत्ति का तीखापन शीर्ष पर पहुंच गया। वो नीली छतरी वाला भी कम छल छंद नहीं रचता। लाल साहब की दूधिया मरमरी त्वचा, काले कत्थई रेशमी केश, पुण्डरीक नयन, लचकती टहनी सी कोमल देह में इतनी ऊष्मा और हठधर्मिता पता नहीं क्या सोच कर भर दी।

इस हठधर्मिता के चलते लाल साहब भूख हडताल करने में गाँधी जी की तरह निष्णात हैं अन्न जल त्याग को अमोघ अस्त्र की भॉँति प्रयोग करते हैं उन्हें मालूम है कि भूख हडताल से उनका अपराध कम हो जाता है और घर के निरपराध मेम्बरान अपराधी दिखाई पडने लगते हैं बाबूजी चीख कर घर की चूलें हिला देते हैं- तुम लोग बच्ची को भूखा मारोगे क्या? गलतियाँ बच्चों से हो जाएं तो क्या वह भूखा प्यासा पडा रहे? तुम लोग बस एक ननद को खुश नहीं रख पातीं? बस वही खाओं और सोओ! ''

बाबूजी जब तीनों भाभियों को बहुत कुछ कह डालते और तीनों भाई लाल साहब को मनाने में जुट जाते तब लालसाहब व्रत तोडने को तैयार होते रोयी रोयी लाल आँखे मेज पर गडा कर बैठ जाते उस दिन अकारण ही उन्हें सब्जी में नमक अधिक लगता या चावल कच्चा रह जातालाल साहब रमानाथ को उलाहना देते -  ब्रदर, इन अनपढों को कहाँ से ब्याह लाये हो, ये खाना नहीं गोबर है गोबर

श्रीनाथ अम्मा का मुंह लगा है और अपेक्षाकृत साहसी है, बोल देता -  सम्पदा अगर स्नातक भाभियां अनपढ हैं तो फिर अनपढ तुम भी हुईं तुम स्वयं कभी रसोई में झाँकने नहीं जातीं और लाल साहब श्रीनाथ पर हिंस्त्र दृष्टि डालते बाबूजी स्थिति संभालते -  बेटी तुम खाना खाओ इन लोगों से मत उलझो खाना खाते समय चित्त शांत रखना चाहिये '' चित्त शांत और इसका? जिसके दिमाग में इतनी गर्मी भरी हो उसका चित्त शांत नहीं रह सकता बाबूजी कह कर श्रीनाथ अपनी ही बात पर हँस लेता

लाल साहब का धैर्य छूट जाता कुछ चुगते, कुछ छोडते और थाली में हाथ धो उठ खडे होते वे थाली में नित्य इसी तरह हाथ धो, झूठी थाली छोड धम्म धम्म पैर पटकते चले जाते हैं घर में भाभियाँ हैं, उनकी झूठी थालियां न उठाएंगी तो क्या दिन भर पंलग तोडेंग़ी!

भाभियाँ लाल साहब को कितना ही बुरा कहें पर इनकी असीम अनुकम्पा न होती तो इन लोगों का गृह प्रवेश दुर्लभ हो जाता
भागवंती जब घर में आई तब लाल साहब छोटे थे पर कुमकुम और नीरजा, लाल साहब की सर्वोच्च परीक्षण से गुजर कर आ पाई हैं

बाबूजी ने स्पष्ट कह दिया था, '' बहू का चयन तो हमारी बिटिया करेगी
''

लाल साहब बडी ठसक से श्रीनाथ, अम्मा, बाबूजी के साथ नीरजा को देखने पहुँचे थे नीरजा को कम और छत व दीवारों को अधिक देखते हुए, थाली में चम्मच घुमा घुमा कर नगण्य सा कुछ चुगते हुए, रूमाल से अधर पौंछते हुए, कनपटियों में फुसफुसाते अम्मा-बाबूजी की बात गर्व से सुनते हुए, श्रीनाथ के कान में मंत्रणा करते हुए लाल साहब ने नीरजा को हरी झण्डी दिखायी थी
उन लोगों के जाने के बाद, व्यवस्था का भार संभाले नीरजा के मौसेरे भाई उपमन्यु ने नीरजा को बहुत डराया -  ''नीरजा संभल के
ये सम्पदा तो घर की बॉस दिखती है वाह भई प्रभुत्व हो तो ऐसा माता पिता उसकी आज्ञा के बिना कोई काम नहीं करते''

फिर धूमधाम से बारात आई बारात में पधारे लाल साहब ऐसे लग रहे थे जैसे पानी की सतह पर तैरती तेल की बूँदे। दूधिया रंगत पर लाल परिधान उपमन्यु बडे नाटकीय ढंग से एक हाथ छाती पर रख कर बोला -'' नीरजा, ये लाल छडी हमारे दिल के आर पार हो गई मैं उसे देखते ही ढेर हो गया हूँ। ससुराल पहुँचते ही तुम कोई ऐसा जुगाड बैठाना कि लाल छडी क़ा शाही दिल हमारी झोली में आ गिरे''

नीरजा आठ दिन रही ससुराल में नवें दिन जाकर उपमन्यु उसे वापस लेकर आया इधर उधर ताक झांक करता रहा पर लाल छडी क़े दर्शन लाभ न हो सके घर पहुँचते ही अधीर सा पूछने लगा -  ''नीरजा, हमारी लाल छडी, क़हां लोप थी भई? हम उचकते छटपटाते रहे कि तनिक दरस परस हो जाएं पर''

सुन कर विक्षुब्ध नीरजा, बम सी फट पडी -  ''लाल छडी नहीं लाल साहब कहो''' मेरी जिठानियां उसे लाल साहब कहती हैं उपमन्यु भाई तुमने गलत नम्बर डायल कर दिया है लाल साहब के दांव पेच सामान्य मनुष्य की समझ से परे हैं बिजली गुल होने पर वे इस लिये घर की चूलें हिला देते हैं कि उन्हें गर्मी लग रही है मलिन उदास होकर वातायन के पास खडी हो पेडों की फुनगियां निहारा करती हैं यद्यपि उन्हें स्वयं के उदास होने का कोई कारण ज्ञात नहीं होता भाभियों से गिनी चुनी बातें करते हैं दूसरे शब्दों में भाभियों को मुंह नहीं लगाते उन्होंने मेरी पांच साडियां ऐसे झपट लीं जैसे उन्हीं की थीं भाई भाभी होटल, पिकनिक, सिनेमा कहीं भी जाएं लाल साहब अनिवार्य रूप से साथ जाते हैं मैं हनीमून के लिये कहीं बाहर नहीं गई अन्यथा लाल साहब वहां भी जाते भागवंती जीजी ने साफ साफ समझा दिया कि यहां गृहस्थी के बोझ के साथ लाल साहब के नखरे भी उठाने पडते हैं बस इतना जान लो कि लाल साहब की नाक पर मक्खी बैठ जाए तो पूरा घर उस दुस्साहसी मक्खी के पीछे पड ज़ाता है सुनकर मां ने कपाल थामा -  ''राम राम, दिखने में इतनी सुन्दर और लच्छन ऐसे'' उपमन्यु ने नीरजा की पीठ में एक धौल जमाई - ''मौसी लच्छन चाहे जैसे हों पर ऐसा शाही रुतबा न देखा न सुना अब मेरा क्या होगा! ''

नीरजा चिढ ग़ई - होगा क्या? उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लो अन्यथा तुम्हारे दिमाग के सारे कोण सही जगह पर आ जाएंगे सहायक प्राध्यापिकी से जो पाते हो उतना लाल साहब अपने वस्त्र, प्रसाधन, पेट्रोल, होटल में स्वाहा कर देती हैं

'' बाप रे, मुझे तो सुनकर पसीना आ गया
'' कहकर विहंसते हुए उपमन्यु ने एक बार फिर अपने लौह हाथों से नीरजा की पीठ तोडी, '' बहिन जी लगी रहिये लाल साहब की सेवा में, मेवा मिलेगा''
'' ठीक है सेवा मैं कर लूंगी, मेवा तुम खा लेना
'' नीरजा ने उलाहना दिया
'' इस क्षुद्र के भाग्य में मेवा
कहाँ? ''

- आगे


 

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