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  अधूरी तस्वीरें-3

नक्की लेक पर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई थीसुधा को बोटिंग में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, सो वह शॉल लेकर किनारे रखी एक बैन्च पर बैठ गई, मैं न चाह कर भी नीला के साथ बोटिंग पर चला गया

'' अविनाश जी, सन सेट के वक्त सबकी आँखों का रंग बदल जाता है,
देखोआपकी और मेरी। ''

नीलांजना की आँखों में समुद्र उफान पर थाउसके खुले सीधे सीधे भूरे बाल सोने के तार लग रहे थेहवा में उडता उसका लैस वाला कॉलर

'' अविनाशजी!''
''
क्या देख रहे थे? ''
''
यही कि तुम बहुत सुन्दर हो।''
''
हाँ हूँ तो। पर उससे क्या फर्क पडता है। प्रकृति में हर चीज सुन्दर है। मुझे तो हर चीज सुन्दर लगती है।''
''
हाँ तुम्हारी उम्र में मुझे भी सब कुछ सुन्दर लगता था।''
''
अब।''
''
अब! अब नजरिया बदल गया है। रियेलिटीज अलग होती हैं।''
''
सबका सोचने का ढंग है अपना अपना! क्या ये झील रियल नहीं? वो जलपांखियों का झुण्ड रियल नहीं?''
''
है नीला।''
''
अविनाश जी, पापा से सुना था आप कविताएं लिखते थेफिर छोड क्यों दीं? ''
''
तुम्हें रुचि है? ''
''
हाँ। बहुत। पर आपने क्यों छोडा''
''
वही।''
''
रियेलिटीज।'' नीला ने दोहराया और दोनों हँस पडे।

नीला तुम जैसी वास्तविक प्रेरणा होती तो, शायद लिखता रहतातुम्हें क्या मालूम जिन्दगी कितनी बडी ग़ि्रम रियेलिटी है, जिसे तुम्हें बता कर डराना नहीं चाहताईश्वर करे तुम्हें जिन्दगी उन्हीं सुन्दर सत्यों के रूप में मिलेडरावने मुखौटे पहन कर नहीं

'' अविनाश जी, चलिये किनारा आ गया। आप क्या सोचते रहते हैं? ''
''
कैसी रही बोटिंग, अविनाश जी।'' सुधा चलकर पास आ गई थी।
''
इंटेरैस्टिंग।''

थोडी चढाई चढ क़र हम सेमीप्रेशयस स्टोन और चांदी की ज्यूलरी की दुकान पर आ गई

'' नमस्ते सुधा जी। ब्रिगेडियर साहब कैसे हैं? ''
''
अच्छे हैं गुप्ता जी। आप बताईये इस बार मेरे लिये क्या है?''
''
आप बहुत दिनों बाद आई हैं। पता है आपने जो फिरोजा का पेन्डेन्ट डिजायन कर के बनवाया था, वो फॉरेनर्स में बहुत पॉपुलर हुआ।''
''
आपने मेरी डिजायन कॉमन कर दी गुप्ता जी।''

मैं और नीला बाहर की ओर बैठ गये

'' तुम्हें ज्यूलरी में इन्टरैस्ट नहीं।''
''
बुआ जैसी ज्यूलरी में नहीं। कहाँ कहाँ से आदिवासियों के डिजायन कॉपी करवा के, सिल्वर का ऑक्सीडाईज्ड़ करवा कर पहनती है। मेरा बस चले तो कानों में बबूल के गोल फूल पहनूं, बालों में रंगबिरंगे पंख लगा लूं।''
''
वनकन्या की तरह( दोनों हंस दिये )वैसे नीला सुन्दर स्त्रियों को जेवर की जरूरत ही कहाँ होती है?''
''
हां। जैसे मुझे! ( फिर एक साझी हंसी खिली) जब से आप आए हैं हम कितना ह/से हैं ना। हमारे घर में किसी को हंसने का शौक ही नहीं है।''
''
नीलू।''
''
जी बुआ।''
''
देख ये एमेथिस्ट जडा कडा पसन्द है तुझे? तेरे परपल सूट के साथ मैच करेगा।''
''
अच्छा है बुआ।''
''
अविनाश जी यह आपके लिये।''
''
मेरे लियेक्या।''
''
देख लीजिये।''

एक्वामेराईन स्टोन के बहुत सुन्दर कफलिंक्स थे

'' थैंक्स।''

पहली बार सुधा ने अपनी आँखों में आत्मीयता भर मुस्कुरा कर उसे देखा थायानि? फिर भी अभी भी वह वक्त लेगा। हाँ करने से पहलेऐसे ही न जाने तीन दिन कब बीत गयेवो और नीला बहुत आत्मीय हो गये थे दो दोस्तों की तरह

'' मैं बुआ की जगह होती तो बहुत पहले आपसे शादी के लिये हाँ कह देती।''
''
मैं किस की जगह होता फिर।''

फिर एक हँसी।

'' आपके बारे में कुछ सुना था।''
''
सच ही सुना होगा।''
''
कैसी होगी वह लडक़ी, जिसने आपको बिना जाने ।''
''
छोडो न नीला, शायद उसकी ही कोई विवशता हो।''
''
क्या वह किसी और से प्यार करती थी?''
''
शायद।''
''
ऐसा क्यों होता है अविनाश जी? शादी जबरदस्ती का सौदा नहीं होनी चाहिये ना! ऐसे तो अधूरे रिश्तों की कतार लग जाएगी। आप से वह प्यार नहीं करती थी और शादी हुई, आप किसी को प्यार करें और शादी किसी से हो जाए, फिर उसकी जिससे शादी होवह । ऐसे जाने कितनी प्यार की अधूरी तस्वीरें ही रह जाती होंगी हमारे समाज में और फिर शादी एक औपचारिकता बन कर रह जाती है।''
''
तुम अभी छोटी हो नीला, जिन्दगी के सच समझने के लिये। प्यार से परे दुनिया और समाज बहुत बडा होता है जिसके कर्तव्य भावनाओं पर आधारित नहीं होते।''
''
यही तोअच्छा आप बुआ से शादी करेंगे? ''
''
पता नहीं नीला। दरअसल मैं यह सब सोच कर ही नहीं आया हूँ। बस मामा की बात रखने के लिये चला आया।''
''
आप बहुत भावुक हैं और बुआ बहुत प्रैक्टीकल।''
''
मैं भावुक हूँ कैसे जाना? ''
''
जिन्हें आप एडमायर करते हैं उन्हें आप जान भी लेते हो।''
''
''
''
आप बहुत अच्छे हैं।'' नीला की आंखें तप रही थीं। होंठ अधखुलेनाईट सूट के ढीले कुर्ते में धडक़ते सुकुमार नन्हें वक्षों की धडक़न खामोशी में मुखर हो गई थी।
''
''
''
नीला! रात हो गई अब जाओ।''
''
कॉफी! ''
''
नहीं।''
''
गुडनाईट।''

मेरा मन अजानी आशंका और एक अजाने भाव से थरथरा रहा थाठण्डी रात में भी वह पसीने में डूब गयासुबह देर से उठा, बाथरूम से मुंह हाथ धोकर निकला तो सामने सुधा चाय और ब्रेकफास्ट दोनों लेकर खडी थी

'' देर तक सोये आज आप। लगता है यह नॉवेल पढते रहे देर रात तक।'' सुधा ने नॉवेल उठा कर देखा फिर रख दिया। मैं हतप्रभ था, नॉवेल?
''
आज आपके मामा जी का फोन आया था, रात को पहुंच रहे हैं।''
''
ओह हाँ।''

चुपचाप चाय पी गईब्रेकफास्ट भी हुआ अचानक सुधा ने पूछा

''आज हम दोनों को कनफ्रन्ट किया जाएगा। आपने क्या सोचा है?''
''
मैं ने तो कुछ सोचा ही नहीं।''
''
तो सोच लीजिये, जवाब तो देना ही है।यही प्रयोजन है कि आप यहाँ आए और मैं ने अपनी छुट्टियाँ बढवा लीं।''
''
सुधा... हम जानते ही क्या हैं अभी एक दूसरे के बारे में?''
''
जानने की मुहलत बस इतनी ही थी अविनाश जी, फिर जिन्दगी भर साथ रह कर भी लोग क्या जान लेते हैं।''
''
मेरे बारे में सुना होगा।''
''
हाँ, वह अतीत था अविनाश आपका, सबका कुछ न कुछ होता है। उसे छोडिये।''
''
क्या तुम्हें पसन्द आएगा इतने दिनों की आजाद जिन्दगी के बाद बंधना? ''
''
उम्मीद है आप ऐसा नहीं करेंगे। मैं भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में विश्वास करती हूँ !''
''
तुम्हारी जॉब? ''
''
जॉब तो मैं नहीं छोड सकती अविनाश। लम्बी छुट्टियाँ मीन्स विदाउट पे लीव्ज अफोर्ड कर सकती हूँ। फिर देखते हैं।''
''
तो...सुधा तुमने फैसला ले लिया है? ''
''
हाँ अविनाश थक गई हूँ, लोगों की सहानुभूति और सवालों से।''
''
थक तो मैं भी गया था सुधा, पर क्या यह समझौता नही? ''
''
शायद अविनाश हम एक दूसरे को पसन्द करने लगें।'' मुस्कुरा कर सुधा प्लेट्स उठाने लगी।
''
तो शाम को डिनर टेबल पर आने तक अपना फैसला कर लेना। मुझे नैगेटिव हो या पॉजिटिव कोई प्रॉब्लम नहीं है।''

सुधा के जाते ही उसने नावेल उठाया सेवेन्थ हेवेन एक रोमेन्टिक नॉवेल था, उसके अन्दर एक पन्ना

मुझे नहीं पता मैं कहाँ बह रही हूँ। लेकिन जब से आप आए हैं मुझे अपना होना अच्छा लगने लगा हैआप बहुत बडे हैं, यह खत पढ क़र जाने क्या प्रतिक्रिया करेंपर अगर मैं ने न लिखा तो मैं घुटन से मर जाऊंगीआप पहले पुरुष हैंऔर मैं खुद हैरान हूँ कि क्यों खिंची जा रही हूँ मैं आपकी ओरकल रात न जाने क्यों लगा कि सौंप दूं अपने हाथों की नमी और धडक़नों के स्पन्दन आपकोलेकिन

नीला! ओह! उसे लगा कि वह चक्रवात में घिर गया हैउफ यह पेपर सुधा के हाथ लग जाता तो? वह क्या सोचती? वह घबरा कर तैयार होकर बाहर निकल आयारामसिंग ने पूछा भी गाडी के लिये पर मैं मना करके पैदल तीन चार किलोमीटर चला आया वहपहाडी ढ़लवां रास्ते और पहाडी वनस्पति, बडे पेड और उन पर उछल कूद मचाते बन्दर वह एक चट्टान पर सुस्ताने लगा और आंखें मूंदते ही नीला का चेहरा सामने आ गयामासूम आंखें, सीधे रेशमी बालों में खुल खुल जाती लाल साटिन के रिबन की गिरह, तिर्यक मुस्कान

'नीला तुम मुझे प्रिय हो, तुम्हारी निश्छलता मुझे पसन्द हैतुम वह अनगढ क़ोमल स्फटिक शिला हो जिसे मैं मनचाहा गढ सकता हूँ। तुम्हारा समर्पण बहुत कीमती और नाज़ुक है, और नियति बहुत क्रूर है नीला। जिस संभावना को हम सोचते डरते हैंवह संभव तो हो ही नहीं सकती ना। मैं कल ही यहाँ से चला जाऊंगा। आज रात डिनर पर मामा जी से क्या कहूंगा। मना कर दूंगा।'

जब बहुत देर भटक लिया तो लौटने लगा वह ब्रिगेडियर सिन्हा के घर के जरा नीचे वाले मोड पर मुडा ही था कि नीला सायकल पर उतरती दिखाई दीपास आई तो परेशान लगी

'' क्या हो गया आपको। पता है पापा और बुआ परेशान थे। ''
''
''
''
मेरा इन्टेशन वह नहीं था, अविनाश जी बस, कनफेस किये बिना न रह सकी।''
''
और मैं किससे कनफेस करुं ? ''
''
आप....ओह अभी यहां से चलिये....घर नहीं मुझे आपसे बात करनी है।''

हम एक घने पेडों से भरे एकान्त में उतर आए उसने एक जगह रोक कर उसका हाथ पकड नीची पलकों में एक आंसू छिपा कर कहा-

'' अविनाश जी, जो कुछ मैं ने लिखा वह सच था, मेरे लिये आप र्फस्ट क्रश हैं। आपको देख कर मुझे पहली बार अपोजिट सैक्स वाला आकर्षण हुआ था। मैं कभी आपको नहीं बताती, पर कल रात आपको एक दम करीब बैठा पाकर। अविनाश आय एम पजेज्ड़ बाय यू, मुझ पर छाया पड ग़ई है आपकी ।
''
नीला मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं उलझ रहा हूँ।''
''
अविनाश जी, क्या करती मैं भी! ''
''
कुछ नहीं नीलामैं जा रहा हूँ, यहां से यही उचित होगा, तुम्हारे, मेरे लिये। मुझमें साहस नहीं है, एक साथ बहुत लोगों का विश्वास तोडने का! ''
''
और बुआ।''
''
क्या बुआ, बेवकूफ लडक़ी वो खत जो छोड आई थीं उसके हाथ पड ज़ाता तो? मुझे नहीं करनी शादी वादी। कहाँ फंस गया मैं।''

बुरी तरह झल्ला गया अविनाश और सर पकड क़र पुलिया पर बैठ गयानीला सुबकने लगीवह उसके पास उठ आया, उसके मुंह पर ढके हाथ हटा कर बोला,

'' क्या करुं मैं नीला? तुम्हारे मासूम से प्यार ने भी मेरे मन में जगह बना ली है। और मुझे अच्छी तरह पता है कि यह हम दोनों के लिये ही घातक है। मुझे जाना ही होगा।''

नीला उसकी बांह पर टिक गई और रोते हुए बस इतना कह सकी,

'' आप बुआ से शादी कर लो अविनाश जी। आज आपके यूं चले आने पर मैं ने उसे पहली बार टूट कर बिखरते हुए देखा है। वो पापा से कह रही थीं किदादा, अविनाश को देख कर पहली बार लगा कि शादी कर लेनी चाहिये, और देखिये ना मेरी किस्मतउसे मैं पसन्द ही नहीं। वह चुपचाप निकल गया।
''
और तुम....''
''
मैं मेरा क्या अविनाश जी।''

ओह ओह ये स्त्रियां! अजूबा हैं नहीं समझ पाता मैं इन्हें नीला को वक्ष से लगा लिया उसने नीला की पतली बांहों ने उसे कस लिया कुछ देर बाद अविनाश ने नीला को अलग किया-

'' चलो नीला। मुझे खुद नहीं पता शाम को क्या होना है। पर तुम अब कोई बेवकूफी नहीं करोगी।''

वह लगभग उसकी बांह पकड क़र खींचता हुआ उसे ले आयादोनों जब घर पहुंचे तो सब नीला की लाल आंखें और तनावग्रस्त अविनाश को देख कर खामोश हो गये क्या सोचा सबने पता नहींकिसी ने कुछ पूछा नहीं यही राहत थीलंच के लिये अविनाश ने मना कर दियाशाम को जब मामा जी आए सब सामान्य दिखने के प्रयास में थेडिनर के समय सुधा और नीला दोनों नदारद थींमामा जी और ब्रिगेडियर साहब के घेरे में अविनाश ना नहीं कह सकाउसके हाँ में सर हिला देने के बाद का समय अविनाश के लिये यूँ बीता कि जैसे वह दर्शक हो सारी प्रक्रिया का और अविनाश का किरदार निभाता कोई और हैसगाई, शादीउसे बस याद है शादी की रस्मों के बीच नीला की हंसी और कहकहों के बीच हिचकी सा बिखर जाता दर्दघर का वही हिस्सा जो गेस्टहाउस था, शादी के बाद अविनाश और सुधा का हो गयातीन दिन के बाद दोनों को अलग अलग दिशाओं में जाना हैउसकी बांहों में अलसाती सुधा उसका हाथ खींच अपने वक्ष पर रख लेती हैदो बजे हैं और वह उठ कर सिगरेट जलाता है, खिडक़ी में उठ कर आता है तो पाता है नीला के कमरे की लाईट जली हैकुछ टूटता है मन के भीतर उसे नीला के शब्द याद आते हैं

'' मन का क्या है अविनाश वह तो टूट कर फिर जुड ज़ाता है।''

कहते वक्त वह अपनी अधूरी तस्वीर सी ही लग रही थी वह

- मनीषा कुलश्रेष्ठ

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