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अधूरी तस्वीरें-3 नक्की लेक पर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई थी। सुधा को बोटिंग में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, सो वह शॉल लेकर किनारे रखी एक बैन्च पर बैठ गई, मैं न चाह कर भी नीला के साथ बोटिंग पर चला गया। ''
अविनाश जी,
सन सेट के वक्त सबकी
आँखों का रंग बदल जाता है, नीलांजना की आँखों में समुद्र उफान पर था। उसके खुले सीधे सीधे भूरे बाल सोने के तार लग रहे थे। हवा में उडता उसका लैस वाला कॉलर। ''
अविनाशजी!'' नीला तुम जैसी वास्तविक प्रेरणा होती तो, शायद लिखता रहता। तुम्हें क्या मालूम जिन्दगी कितनी बडी ग़ि्रम रियेलिटी है, जिसे तुम्हें बता कर डराना नहीं चाहता। ईश्वर करे तुम्हें जिन्दगी उन्हीं सुन्दर सत्यों के रूप में मिले। डरावने मुखौटे पहन कर नहीं। ''
अविनाश जी,
चलिये किनारा आ गया।
आप क्या सोचते रहते हैं? '' थोडी चढाई चढ क़र हम सेमीप्रेशयस स्टोन और चांदी की ज्यूलरी की दुकान पर आ गई। ''
नमस्ते सुधा जी। ब्रिगेडियर
साहब कैसे हैं? '' मैं और नीला बाहर की ओर बैठ गये। ''
तुम्हें ज्यूलरी में
इन्टरैस्ट नहीं।'' एक्वामेराईन स्टोन के बहुत सुन्दर कफलिंक्स थे। '' थैंक्स।'' पहली बार सुधा ने अपनी आँखों में आत्मीयता भर मुस्कुरा कर उसे देखा था। यानि? फिर भी अभी भी वह वक्त लेगा। हाँ करने से पहले। ऐसे ही न जाने तीन दिन कब बीत गये। वो और नीला बहुत आत्मीय हो गये थे दो दोस्तों की तरह। ''
मैं बुआ की जगह होती तो
बहुत पहले आपसे शादी के लिये हाँ कह देती।'' फिर एक हँसी। ''
आपके बारे में कुछ सुना था।'' मेरा मन अजानी आशंका और एक अजाने भाव से थरथरा रहा था। ठण्डी रात में भी वह पसीने में डूब गया। सुबह देर से उठा, बाथरूम से मुंह हाथ धोकर निकला तो सामने सुधा चाय और ब्रेकफास्ट दोनों लेकर खडी थी। ''
देर तक सोये आज आप। लगता है
यह नॉवेल पढते रहे देर रात तक।''
सुधा ने नॉवेल उठा
कर देखा फिर रख दिया। मैं हतप्रभ था,
नॉवेल? चुपचाप चाय पी गई। ब्रेकफास्ट भी हुआ। अचानक सुधा ने पूछा। ''आज
हम दोनों को कनफ्रन्ट किया जाएगा। आपने क्या सोचा है?'' सुधा के जाते ही उसने नावेल उठाया, सेवेन्थ हेवेन एक रोमेन्टिक नॉवेल था, उसके अन्दर एक पन्ना मुझे नहीं पता मैं कहाँ बह रही हूँ। लेकिन जब से आप आए हैं मुझे अपना होना अच्छा लगने लगा है। आप बहुत बडे हैं, यह खत पढ क़र जाने क्या प्रतिक्रिया करें। पर अगर मैं ने न लिखा तो मैं घुटन से मर जाऊंगी। आप पहले पुरुष हैंऔर मैं खुद हैरान हूँ कि क्यों खिंची जा रही हूँ मैं आपकी ओरकल रात न जाने क्यों लगा कि सौंप दूं अपने हाथों की नमी और धडक़नों के स्पन्दन आपको। लेकिन नीला! ओह! उसे लगा कि वह चक्रवात में घिर गया है। उफ यह पेपर सुधा के हाथ लग जाता तो? वह क्या सोचती? वह घबरा कर तैयार होकर बाहर निकल आया। रामसिंग ने पूछा भी गाडी के लिये पर मैं मना करके पैदल तीन चार किलोमीटर चला आया वह। पहाडी ढ़लवां रास्ते और पहाडी वनस्पति, बडे पेड और उन पर उछल कूद मचाते बन्दर। वह एक चट्टान पर सुस्ताने लगा और आंखें मूंदते ही नीला का चेहरा सामने आ गया। मासूम आंखें, सीधे रेशमी बालों में खुल खुल जाती लाल साटिन के रिबन की गिरह, तिर्यक मुस्कान। 'नीला तुम मुझे प्रिय हो, तुम्हारी निश्छलता मुझे पसन्द हैतुम वह अनगढ क़ोमल स्फटिक शिला हो जिसे मैं मनचाहा गढ सकता हूँ। तुम्हारा समर्पण बहुत कीमती और नाज़ुक है, और नियति बहुत क्रूर है नीला। जिस संभावना को हम सोचते डरते हैंवह संभव तो हो ही नहीं सकती ना। मैं कल ही यहाँ से चला जाऊंगा। आज रात डिनर पर मामा जी से क्या कहूंगा। मना कर दूंगा।' जब बहुत देर भटक लिया तो लौटने लगा। वह ब्रिगेडियर सिन्हा के घर के जरा नीचे वाले मोड पर मुडा ही था कि नीला सायकल पर उतरती दिखाई दी। पास आई तो परेशान लगी। ''
क्या हो गया आपको। पता है
पापा और बुआ परेशान थे। '' हम एक घने पेडों से भरे एकान्त में उतर आए। उसने एक जगह रोक कर उसका हाथ पकड नीची पलकों में एक आंसू छिपा कर कहा- ''
अविनाश जी,
जो कुछ मैं ने लिखा
वह सच था,
मेरे लिये आप र्फस्ट क्रश
हैं। आपको देख कर मुझे पहली बार अपोजिट सैक्स वाला आकर्षण हुआ था। मैं
कभी आपको नहीं बताती,
पर कल रात आपको एक दम करीब
बैठा पाकर। अविनाश आय एम पजेज्ड़ बाय यू,
मुझ पर छाया पड ग़ई
है आपकी । बुरी तरह झल्ला गया अविनाश और सर पकड क़र पुलिया पर बैठ गया। नीला सुबकने लगी। वह उसके पास उठ आया, उसके मुंह पर ढके हाथ हटा कर बोला, '' क्या करुं मैं नीला? तुम्हारे मासूम से प्यार ने भी मेरे मन में जगह बना ली है। और मुझे अच्छी तरह पता है कि यह हम दोनों के लिये ही घातक है। मुझे जाना ही होगा।'' नीला उसकी बांह पर टिक गई और रोते हुए बस इतना कह सकी, ''
आप बुआ से शादी कर लो
अविनाश जी। आज आपके यूं चले आने पर मैं ने उसे पहली बार टूट कर बिखरते
हुए देखा है। वो पापा से कह रही थीं कि,
दादा,
अविनाश को देख कर
पहली बार लगा कि शादी कर लेनी चाहिये,
और देखिये ना मेरी
किस्मतउसे मैं पसन्द ही नहीं। वह चुपचाप निकल गया। ओह ओह ये स्त्रियां! अजूबा हैं। नहीं समझ पाता मैं इन्हें। नीला को वक्ष से लगा लिया उसने। नीला की पतली बांहों ने उसे कस लिया। कुछ देर बाद अविनाश ने नीला को अलग किया- '' चलो नीला। मुझे खुद नहीं पता शाम को क्या होना है। पर तुम अब कोई बेवकूफी नहीं करोगी।'' वह लगभग उसकी बांह पकड क़र खींचता हुआ उसे ले आया। दोनों जब घर पहुंचे तो सब नीला की लाल आंखें और तनावग्रस्त अविनाश को देख कर खामोश हो गये। क्या सोचा सबने पता नहीं। किसी ने कुछ पूछा नहीं यही राहत थी। लंच के लिये अविनाश ने मना कर दिया। शाम को जब मामा जी आए सब सामान्य दिखने के प्रयास में थे। डिनर के समय सुधा और नीला दोनों नदारद थीं। मामा जी और ब्रिगेडियर साहब के घेरे में अविनाश ना नहीं कह सका। उसके हाँ में सर हिला देने के बाद का समय अविनाश के लिये यूँ बीता कि जैसे वह दर्शक हो सारी प्रक्रिया का और अविनाश का किरदार निभाता कोई और है। सगाई, शादीउसे बस याद है शादी की रस्मों के बीच नीला की हंसी और कहकहों के बीच हिचकी सा बिखर जाता दर्द। घर का वही हिस्सा जो गेस्टहाउस था, शादी के बाद अविनाश और सुधा का हो गया। तीन दिन के बाद दोनों को अलग अलग दिशाओं में जाना है। उसकी बांहों में अलसाती सुधा उसका हाथ खींच अपने वक्ष पर रख लेती है। दो बजे हैं और वह उठ कर सिगरेट जलाता है, खिडक़ी में उठ कर आता है तो पाता है नीला के कमरे की लाईट जली है। कुछ टूटता है मन के भीतर। उसे नीला के शब्द याद आते हैं। '' मन का क्या है अविनाश वह तो टूट कर फिर जुड ज़ाता है।'' कहते वक्त वह अपनी अधूरी तस्वीर सी ही लग रही थी वह। |
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