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घर फूंक तमाशा - 2

शाम में सोनाराम टेकलाल के घर आ जाता या फिर टेकलाल सोनाराम के पास चला जाता मुसीबतों के दो सहयात्री नये उपजे अपने दुखों की गुत्थियों को सुलझाने की नाकाम कोशिश करते और अपनी उदासी पहले से कुछ और बढा लेते

एक दिन सोनाराम ने बताया, '' मेरी बिनब्याही बडी बेटी गर्भ से रह गई और कल वह यह कह कर चली गई कि मैं जा रही हूँ बाऊजी! यहां आपकी कई मुसीबतों के ऊपर एक बडी मुसीबत बन कर मैं नहीं रहना चाहतीमेरा ब्याह करना आपके वश में नहीं रहा यह जानती हूँ। इसलिये जोखिम उठा कर जा रही हूँजो होगा अच्छा ही होगाअच्छा नहीं भी होगा तो इससे बुरा भी क्या होगा कि मैं कुंवारी मां बन जाऊं और लोग आपकी हंसी उडाएं''
वह कहां गईकिसके साथ गई? टेकलाल सोनाराम से पूछना चाहता था लेकिन यह साोच कर नहीं पूछा कि हो सकता है इसका जवाब इसके पास भी न हो

सोनाराम ने आगे खुद ही कहा, '' मैं ही इसका जिम्मेदार
हूँ टेकलाल भाई! इस लडक़ी के ब्याह को सोचकर मैं ने एल आई सी में एक स्कीम ले रखी थीकारखाना बंद हो गया तो स्कीम भी बंद हो गई और पिछले साल इसके पैसे निकाल कर पत्नी की बीमारी में लगा दियेशादी में देने के लिये कई सारा सामान खरीद रखा थाकुछ गहने, कुछ घरेलू सामान, पलंग, टीवी, अलमारी, डायनिंग सेट, किचन सेटएक एक कर वे सब भी बिक गये बेटी की उम्मीद दम तोडती चली गयी मैं सचमुच उसके ब्याह करने के लायक कहां रह गया था? पहले तो दो एक लडक़े वाले लडक़ी देखने और बात चलाने में दिलचस्पी भी ले रहे थे, अब कोई दिलचस्पी नहीं लेता बंद कारखाने के लेबर से लेन देन की अपेक्षा नहीं रखी जा सकती न! ''

टेकलाल का ध्यान अपनी बेटियों पर चला गयाबडी वाली अब वयस्क होती जा रही है, दसवीं में पढती हैलेकिन अब शायद ही आगे पढ सकेकहती है मन नहीं करता नवीं कक्षा तक तो पांच अव्वलों में शामिल रहा करती थीदसवीं में आकर फेल हो गयी पटरी पर जब कुछ नहीं रह गया तो यह कैसे रहती! इस लडक़ी का कसूर नहीं हैऔर छोटी लडक़ी को बडे शौक से अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलवाया था, सात साल पढी वह वहांइस साल हटाकर सरकारी स्कूल में डालना पडाबहुत कुंठित और हीन भावना से ग्रस्त रहती है वह वहांछोटा लडक़ा अशेष उच्च प्रथम श्रेणी से इंटर पास करके इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की कोचिंग लेने लगा थाकहा था, '' आप मुझे चांस दीजिये पापा, मैं आपको इंजीनियर बन कर दिखा दूंगा''

बेटे के आत्मविश्वास को देख कर टेकलाल अपने खयालों में पुलाव पकाने लगा था कि उसका यह होनहार और मेधावी बेटा लगता है उसकी मजदूर क्लास हैसियत को ऊपर उठा कर रहेगावह जानता है कि यों ऐसा कम ही होता है कि मजदूर का लगा ठप्पा मिट जाएफिर भी इस कम की पंक्ति में उसे शामिल होना है

टेकलाल अब समझ गया कि आसान नहीं है वर्गान्तरणअशेष को कोचिंग छोडनी पडी अगर प्रवेश परीक्षा पास भी कर जाता तो इंजीनियरिंग की ऊंची फीस कहां से आती? इंजीनियरिंग की ऊंची फीस अपने आप में एक तल्ख सच्चाई है कि गरीब के बेटे के लिये नहीं बनी यह पढाईयह पढाई उनके लिये है जो सिर्फ मेधावी ही नहीं सुखी सम्पन्न भी हो

अशेष ने कहा, '' अब मैं कोई नौकरी नहीं करुंगा पापाअब इस समाज के झाड झंखाड क़ो साफ करने के मुहिम में मैं शामिल हो रहा हूँ। मैं एक पार्टी ज्वाईन कर रहा हूँ, अब मैं उसका होलटाईमर सदस्य हूंगाआप लोग मुझे भूल जाईए''

टेकलाल उसका मुंह देखता रह गया मुंह देखने के सिवा उसके पास मुंह भी कहां था कि उसे रोक पाताअशेष उसके सामने ही घर की चौखट लांघ कर बाहर हो गयाउसकी मां उमा देवी अपने रुंधे गले से उसे पुकारती रह गई जिसे वह बुध्द की तरह अनसुना कर चलता बना

बंदी के लगभग डेढ साल तक हर महीने एक से दस तारीख के बीच आधी पगार मिल जाया करती थीउसके बाद ऐसा होने लगा कि मिलने की तारीख अनिश्चित हो गईलोग व्यग्र होकर प्रतीक्षा करते और तारीखें टलती रहतींकभी पच्चीस, कभी उनतीस, तो कभी इकत्तीस

एक दिन प्रबंधन की ओर से कहा गया कि पगार जब भी देनी होगी हम आपको खबर कर देंगेअब कारखाने में आकर आठ घंटे बैठने की जरूरत नहीं हैआप अपने घरों में रहें या अन्यत्र कोई काम करना चाहें तो करेंमजदूरों की तरफ लोग संशय में घिर गयेकहीं यह प्रबंधन की चाल तो नहीं?

कुछ लोगों ने अपनी आवाज मुखर की,'' घर में आखिर बैठकर हम करेंगे भी क्या? यह कारखाना हमारे लिये कर्मस्थल ही नहीं पूजास्थल भी हैहमें यहां आने से न रोका जाए बाहर हम काम भी क्या करेंगे आने से न रोका जाएबाहर हम काम भी क्या करेंगेकहां करेंगेअब इस उद्योगनगरी में जीवित उद्योग रह ही कितने गये हैं कि हमें काम मिलेगा''
प्रबंधन ने कहा, ''ठीक है अगर आप अंदर आकर बैठना चाहते हैं तो बैठें
हम तो इस खयाल से कह रहे थे कि आपको आजादी दी जाए ताकि आजीविका के लिये अपने मनोनुकूल जुगाड बिठाने में आपको कोई पाबंदी महसूस न हो''

टेकलाल ने इस निर्णय पर बहुत राहत महसूस कीघर में तीसों दिन, चौबीस घंटे रहना एक बहुत बडी यातना तो ही, दुनिया से बुरी तरह कट जाने की एक मर्मांतक वेदना भी है

पहले कारखाने से शिफ्ट शुरु होने वाले घंटे में अर्थात ए शिफ्ट के लिये सुबह छ: बजे, जनरल शिफट के लिये सुबह सात बजे, बी शिफ्ट के लिये दोपहर दो बजे और सी शिफ्ट के लिये रात दस बजे सायरन बजा करता थाअब सायरन नहीं बजता, इससे अब लगता ही नहीं कि यह कोई औद्योगिक नगरी हैसायरन डयूटी की मानसिकता बनाता था और भीतर एक नई तरंग पैदा करता थाटेकलाल सायरन के बिना भी ठीक सात बजे कारखाने में दाखिल हो जाया करता थारास्ते में सोनाराम को भी साथ कर लेता थासोनाराम की आदत थी - गेट पर पान की गुमटी से एक बंडल बीडी रोज खरीदता थाअब उसने बीडी पीनी छोड दी और न भी छोडी होती तो वह यहां से बीडी क़हां खरीद पाताबीडी क़ा ही क्या, चाय पकौडी, भुंजा सत्तू, खैनी चूना आदि की कई गुमटियां जो यहां अवस्थित थीं, वे अब सब बंद हो गई हैंपान के कई घनघोर शौकीनों ने अब पान खाना छोड दियाकुछ तो ऐसे मजदूर थे जिन्हें पहले कोई लत नहीं थी, अब वे शराब की लत में फंस गये हैंकर्जा ले लेकर शाम होते ही दारू की बोतलें लेकर बैठ जाते हैंआबाद होने के लिये शायद कुछ बचा नहीं बाकि तो बरबाद होने की राह पर ही वे बढ ग़ये हैंऐसे आत्महंता मजदूरों की आधी पगार को भी हडप जाने के लिये कारखाने के गेट पर पठान मंडराते नजर आ जाते या फिर उधार वसूलने वाले महाजन - दुकानदार चक्कर काटते दिख जाते

सभी जानते थे कि किसी भी समय यह आधी पगार भी रुक सकती है और यह सच हुआ और एक दिन पगार रुक गईमजदूर आंखें फाडे, मुंह बाये खडे रह गयेटेकलाल, सोनाराम आदि बैठे होते कभी वायर मिल के सामने, कभी रड मिल के सामने, कभी नट बोल्ट के मशीन सेक्शन के सामने, कभी बार्बेड वायर (कंटीले या फैन्सिग तार) मिल के सामनेऑफिस की ओर से कोई चपरासी, क्लर्क या ऑफिसर आता दिखता तो उनकी उत्कंठा तीव्र हो जातीकहीं वे खबर करने तो नहीं आ रहे कि पगार आ गयी है

इस पगार को नहीं आना था और कई महीने हो गये वह नहीं आईजाहिर है यहीं से पेट चलाने के घर के सामान औने पौने दामों में बिकना शुरु हो गयेसोफा के बाद टेकलाल ने टी वी बेच दियाउसने बैंक से छत्तीस किस्त में चुकता होनेवाला कर्ज लेकर यह कलर टी वी खरीदा थाबैठे ठाले वक्त को गुजारने का यह सबसे बडा मुफ्तखोर साधन थाइसे लगातार दो तीन घंटे देखने पर दो तीन घंटे की अधमरी सी नींद आ ही जाती थीअब फालतू बैठना भी मुहाल हो गया, सोना भी

जिस दिन टी वी बिका उसी दिन बडा बेटा विशेष रेल किराये के नाम पर कुछ पैसे लेकर किसी दूसरे शहर चला गया था, यह कहकर कि, '' अब इस मरते हुए शहर में आप पर बोझ बन कर रहना अन्याय हैमैं जा रहा हूँ पापाकहां जाना है यह नहीं मालूम तीन चार शहरों में जोर आजमाईश करुंगा, जहां काम मिल जाएगा वहीं टिक जाऊंगा फिर वहां से आपको खत लिखूंगा''
टेकलाल के दिमाग में अचानक कौंधा कि पहले दूरदराज के शहरों या गांवों से लोग इस औद्योगिक शहर में आते थे और उन्हें उनकी काबिलियत के लायक बडे या फिर छोटे कारखाने में प्राय: काम मिल जाया करता था
आज इस औद्योगिक शहर से विस्थापित होकर काम की तलाश में दूसरी गैर औद्योगिक जगहों में जाना पड रहा है क्या आर्थिक उदारीकरण की नीति का लक्ष्य इसी रसातल की स्थिति में पहुंचना था कि देश के तमाम मजदूरी के अवसर और मजदूरों की खुशियों में एक साथ सेंध लग जाये

कई महीने गुजर गयेआधी तनखाह मिलने की उम्मीद पर पानी फिरा का फिरा ही रह गयाइस बीच पता नहीं कौन सा वह स्त्रोत था जहां से खबर फैला दी जाती कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी से मालिक की बात चल रही है, कारखाना जल्दी चालू कर दिया जाएगास्थानीय अकबारों में भी इस आशय की खबरें बीच बीच में एकाध बार छप जाया करतींटेकलाल को इस तरह की खबर पढना अच्छा लगताएक दिन ऐसी ही खबर पढ क़र भाषा की भूमिका ने उसे बांध लिया और उसे लगा कि इसमें सच्चाई है बहुत उत्साहित होकर वह घर लौटा

उमा देवी चौंक गयी, '' क्या बात है, कोई नौकरी तो आपको नहीं मिल गई? अर्सा बाद आप इतने खुश दिख रहे हैं''
उसने कहा, '' अब भला इस उमर में मुझे कौन नौकरी देगा? था वह जमाना जब मालिक ने मेरे स्किल को देखकर मुझे इसरार करके बुलाया था और बहाली दी थी
आज खुश इसलिये हूं कि एक अखबार ने बहुत जोर देकर कहा है कि कारखाना निश्चितरूप से जल्दी ही चालू होगा''

पता नहीं उमा देवी को इस बात पर जरा सा भी यकीन नहीं हुआ और किसी खास मकसद से छपवायी गयी यह खबर अखबार का एक सफेद झूठ प्रतीत हुईफिर भी पति के चेहरे पर अरसे बाद उभरे हर्ष के प्रतिबिम्ब को तिरोहित नहीं करना चाहती थी वह अत: उसने भी कह दिया,

'' हां मैं ने सुना हैपडाैस की औरतें चर्चा कर रही थीं।''
टेकलाल हर्षावेग में चहक उठा, '' तुमने भी सुना मतलब काफी चर्चा है इसकी, तब तो जरूर इसमें सच्चाई होगी।''

उसने पत्नी से खाना मांगा और बंधी खुराक से दो रोटी ज्यादा खाईरोज उमा देवी के कहने पर भी अनमने भाव से खाना खाने बैठा करता थाउसने खाते हुए कहा,

'' तुम्हारे सारे कपडों पर कई कई पैबन्द चढ ग़ये हैं। पहली पगार मिलते ही तुम्हारे और बच्चियों के नये कपडे बनवा दूंगा।''
उमादेवी ने कहा, '' तुम्हारे कपडे भी तो सारे फट गये हैं। कारखाने के लिये जो नीली ड्रेस मिली थी वह भी साबुत नहीं बची अब तुमने घूमने फिरने में इस्तेमाल कर ली। मैं तो तुम पर तरस खा कर रह गई।''
''
ठीक है, मिल चालू होगी तो नयी ड्रेस भी मिल जाएगी, मेरा काम चलने लगेगा। तुम लोगों के तो सिलाने होंगे।''

उस अखबार में कारखाना शुरु होने की जो खबर छपी थी वह दूसरे अखबार ने पूरी तरह निरस्त कर दीउसने छापा कि मिल के मालिक को मिल चलाने से कोई मतलब नहींवह किसी से बात नहीं कर रहा इस समय वह यहां की गर्मी से बचने के लिये पैरिस व लन्दन की सैर का मजा ले रहा हैअगर वह यह बेचेगा भी तो यहां दूसरा उद्योग लगेगा, दूसरे मजदूर बहाल होंगेइस खबर को पढ टेकलाल पस्त हो गया और उसकी उम्र दो साल और फिसल गयीअब तो बेटे पर ही आस बंधी थी चिट्ठी का उसे इंतजार थाऐसी चिट्ठी जिसे पढक़र उसकी उम्र चार साल पहले वाली हो जातीलेकिन ऐसी चिट्ठी नहीं आई आयी भी तो एकदम ठण्डी और दयनीय सी

'' आप लोग मेरी चिंता न करें। मैं मुम्बई में हूं और ठीक ठाक हूं।''

टेकलाल को लगा कि शायद उसे कोई काम मिल गया है अगली बार जरा गर्मजोशी से लिखेगामगर अगली बार भी उसने ऐसा ही लिखा

'' मैं ठीक हूं। आप लोग मेरी चिंता न करें।''
टेकलाल झुंझला गया '' अरे भाई ठीक हो तो क्या ठीक हो, क्या कर रहे हो यह क्यों नहीं बताते! ''
एक दिन सोनाराम ने दबे स्वर में एक राज खोलने की तरह कहा,'' टेकलाल भाई, टी वी नहीं होने के कारण आपने परसों का समाचार तो नहीं देखा होगा। मैं ने सेठ की दुकान में देखा, असामाजिक तत्वों का एक गिरोह दिखाया जा रहा था जिसे पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसमें कुछ लडक़ों से सवाल पूछे जा रहे थे मुझे ऐसा लगा उनमें एक आपका बेटा विशेष भी था।''
एकबारगी देह कांप गयी टेकलाल की। अपने को संभालते हुए कहा, ''नहीं सोनाराम ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें जरूर कोई भूल हुई है। मेरा बेटा गलत रास्ते पर नहीं जा सकता।''

कहने को तो कह दिया टेकलाल ने लेकिन अंदर से एकदम विचलित हो गयारात में नींद तो नहीं ही आती थीएकाध घंटे झपकी ले लेता था इसी झपकी के दौरान उस दिन उसने एक भयानक सपना देखा -

'' विशेष को एक विदेशी गुप्तचर संस्था के लोग समझा रहे हैं - तुम्हें हम पचास लाख रूपये देंगे। तुम मानव बम बनकर फलां नेता को उडा दो। तुम्हारे पूरे परिवार का भाग्य खुल जाएगा। एक आदमी की कुर्बानी से अगर परिवार के लोग रातों रात सुखी हो जाते हैं तो सौदा क्या बुरा है? ऐसे भी आदमी परिवार को सुख देने के लिये जिन्दगी भर किस्तों में मरता ही तो रहता है। फिर क्यों नहीं एक बार मरा जाए।''
विशेष कहता है, '' हां, मैं तैयार हूँ।''
''
नहीं नहीं।'' कहते हुए उठ बैठा टेकलाल।
उमादेवी भौंचक्क उसे देखती रह गई। उसने कहा, '' लगता है अपना विशेष किसी मुसीबत में फंस गया है।''

अगले दिन उसने तय कर लिया कि वह मुंबई चला जाएगाअब यहां रह कर होगा भी क्याबेचने को तो कुछ नहीं बचा वहां वह विशेष का पता लगायेगा, मुसीबत में उसे उनकी जरूरत होगी

कई लोग इस कॉलोनी से जा चुके थे, अब टेकलाल जा रहा थाशेष लोग उसे कारुणिक मुद्रा में निहार रहे थेजड से उखडने की टीस सभी परिवार जनों के चेहरे से झांक रही थीघर का सामान तीन चार बक्से पेटी में अंट गयाजब वह यहां आया था तो यही सामान ट्रक में लाना पडा थासोनाराम उसे स्टेशन पर छोडने गयाभीतर से वह एकदम विव्हल था....कैसे कटेगी अब उसकी दिनचर्या.....किसे दिखायेगा अब वह मन के घाव?

टेकलाल ने सोनाराम की हथेलियों को अपनी अंजुरी में भर लिया,

'' जा रहा हूं सोनाराम, बेटे को ढूंढूंगा, मुझे भी अब लगने लगा है कि मेरा बेटा जरूर किसी संकट में फंस गया है। वह अच्छी स्थिति में होता तो सब कुछ साफ साफ बताते हुए मुझे लंबा खत लिखता। मैं वहां जाकर तुम्हें अपना पता भेजूंगा, अगर कारखाना चालू हो जाए तो मुझे खबर करना भाई।''

सोनाराम को लगा टेकलाल अपने बेटे को ढूंढने नहीं बल्कि खुद भी सपरिवार मुंबई में खो जाने के लिये जा रहा है

- जयनन्दन

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