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कस्तूरी

गोरा रंग, भूरी आँखे, गोल चेहरा और तीखे नैन नक्श वाली उस लडक़ी में गजब का आकर्षण था

एक हाथ में तौलिया और दूसरे हाथ में टूथब्रश व पेस्ट थामे वह लडक़ी रोहित वाली बर्थ के पास से निकल कर बाथरूम की ओर चली गईखिडक़ियों से आती हवा तरंगों पर उसका आसमानी सलवार सूट और गरदन तक कटे बाल लहराते हुये गुजर गये थे उस खूबसूरती ने पूरी तरह से रोहित की नींद उडा दी थी

सामान्यत: वह सुबह आठ बजे से पहले कभी नहीं उठताट्रेन के सफर में तो दस ग्यारह भी बज जायें तो क्या फिक्र! इसी कारण अम्बाला से टाटानगर तक के लिये सफर में उसने ऊपर वाली बर्थ का आरक्षण करवाया था ताकि दिन के समय भी बर्थ पर लेटने की सुविधा रहेडेली पैसेन्जरों के कारण दिन में नीचे वाली बर्थ पर लेटना असंभव हैरेल विभाग ने कहने को 'स्लीपर क्लास  बना दिया है मगर डेली पैसेन्जर तो पूर्व की भांति ही चढ ज़ाते हैंउन्हें बैठने न दो तो झगडा करने पर उतारु हो जाते हैंमानो रेल उनकी जागीर हो वैसे लोगों का बिना उचित टिकट के स्लीपर क्लास में सफर और बैठने के लिये मारा मारी करना सीना जोरी नहीं तो और क्या है?

रोहित ने अंगडाई ली और खिडक़ी की ओर झुक कर बाहर देखाखट खट्खट् खट् ट्रेन पूरी रफ्तार से दौडी ज़ा रही थीउसने घडी देखी, आठ बज चुके हैंतब तो दिल्ली पार हो गई उसने सोचा था, दिल्ली जंक्शन पर उतर कर जरा चहल कदमी करेगा, ठंडा वंडा पियेगाक्या बात है इस शहर की, पांच साल तक रहने की बातें करने वाला कोई तेरह दिन रहता है कोई दस महीने! मगर जाते वक्त कोई नहीं पूछता कि कब लौटियेगा हुजूर? पुरानी दिल्ली से हट कर लोगों ने नई दिल्ली तो बना ली मगर जिन्दगी का नया ढंग नहीं सीख पाये

दस दिन पहले अम्बाला से मौसी का फोन आने के बाद से ही मां ने जिद पकड ली थी कि ,

'' जाओ मौसी ने बुलाया है।''
मौसी ने कहा था, '' लाडो, रोहित के लिये बडी अच्छी लडक़ी देखी है वे लोग भी बनारस के रहने वाले हैं। यहाँ अपनी बहन के पास आयी है। उसके जीजाजी यहां इनके ही साथ काम करते हैं।''
मां तो जैसे तैयार बैठी थी, '' दीदी, मैं क्या बताऊं। मेरा बस चले तो मैं तुरन्त हाँ कर दूँ। मगर आजकल के लडक़ों को तो तुम जानती ही हो। चार अक्षर क्या पढ लिये हमें ही पढाने लगते हैं। मैं रोहित को भेज देती हूँ। उससे हाँ करवा लो तो हमारी भी हाँ है।''

फिर रोहित मां को न टाल सकाप्रोग्राम बनाते और आरक्षण कराते पाँच दिन और बीत गयेसातवें दिन वह अम्बाला पहुंच गया, मगर सब व्यर्थ गया थालडक़ी दो दिन पूर्व ही बनारस लौट गयी थीउसकी मां वहाँ बीमार थीरोहित भी पुन: आने को कह कर लौट पडाइस बीच मौसी उस लडक़ी की सुन्दरता का विवरण रोहित के दिमाग में कूट कूट कर भर चुकी थीकभी वह सोचता, चलो शादी के झंझट से कुछ और दिनों के लिये बच गयाफिर दूसरे ही पल उसके मन में एक सुन्दर पत्नी का खयाल आताजब विचारों में सुन्दर पत्नी और साधारण मगर गुण वाली पत्नी के बीच विवाद छिडता तो वह दुविधाग्रस्त हो जाता, किसे चुने? बडे बुर्जुगों की माने तो साधारण परन्तु गुण वाली का चुनाव करताहमउम्र साथियों की सुने तो सुन्दर लडक़ी काखैर इस बार तो बात टल गयीअगली बार देखा जायेगा

वह आसमानी सूट, बॉब कट बालों वाली सुन्दर गोरी लौटती नजर आईअपने हाथ में थमे तौलिये से आहिस्ता आहिस्ता चेहरे को थपथपाते हुयेइस बार उसका चेहरा अच्छी तरह देखने को मिलारोहित का दिल धक्क से रह गया जाने क्यों लडक़ी का चेहरा जाना पहचाना लगाउसने लडक़ी के चेहरे पर नजरें गडा दीं, मानो परिचय वहीं छुपा हैतभी लडक़ी ने अपनी नजरें उठा कर रोहित को देखाशायद उसे स्वयं को घूरे जाने का अहसास हो गया थारोहित झेंप गयालडक़ी क्या सोचेगी कि, वह उसे क्यों घूर रहा है? एक तो लडक़ी उसे भली लगी दूसरे उसका चेहरा जाना पहचाना लग रहा थारोहित नहीं चाहता था कि लडक़ी के समक्ष उसका इंप्रेशन खराब होरोहित ने अपनी नजरें जल्दी से खिडक़ी के बाहर घुमा लींलडक़ी अपनी बर्थ की ओर बढती हुई उसकी नजरों से ओझल हो गयी

ह्नउसे कहाँ देखा है, रोहित ने दिमाग पर जोर डाला, जवाब नदारद! फिर क्यों उसका चेहरा इतना जाना पहचाना सा लग रहा हैक्या सिर्फ इसलिये कि वह बहुत सुन्दर है( ऐसी हालत में हर सुन्दर लडक़ी जानी पहचानी लगती है)उसका अंर्तमन इस तर्क को नकारता हैनहीं, लडक़ी का चेहरा निश्चय ही जाना पहचाना सा हैकाश! उसकी आवाज सुनने को मिल जातीवक्त के प्रवाह में भले ही चेहरे बदल जाते हों मगर आवाज नहीं बदलतीऐसी स्थिति में आवाज तुरन्त ही पहचान करवा देती है

खैर... छोडो भी, रोहित ने विचारों को झटकाहोगी कोईकई बार ऐसा होता है कि, छोटी सी बात भी याद नहीं आतीजितना प्रयत्न करो, उतनी ही दूर चली जाती हैप्रयत्न करना छोड दें तो, वह बात सहज ही याद आ जाती हैइसी आधार पर रोहित ने प्रयत्न करना छोड दियातकिये के नीचे से पत्रिका निकाल कर पृष्ठ पलटने लगामगर ध्यान उस लडक़ी में ही अटका रहाउसने पत्रिका पुन: तकिये के नीचे घुसा दी

'' चाऽयचाय गरमइलायची वाली चाऽय'' आवाज लगाता पेन्ट्री कार का बेयरा दूसरी तरफ से डब्बे में घुसा। चाय पी जाये। उसने सोचा, वह अपनी बर्थ पर उठ बैठा। कुछ यात्रियों ने बेयरे को चाय के लिये रोक रखा था। बेयरे के यहां आने तक हाथ मुंह धो ले, वह उतर कर बाथरूम की तरफ बढ ग़यामगर वह लडक़ी है बहुत सुन्दर!

बाथरूम से निकलने तक ट्रेन सीटी बजाती धीमी होने लगीपेन्ट्री की चाय छोडो अब स्टेशन की चाय पी जाये, उसने सोचाट्रेन अलीगढ ज़ंक्शन पर रुक गयी चाय लेने के बाद वह प्लेटफार्म पर चहल कदमी करता उस डब्बे तक बढ ग़या जिधर वो लडक़ी बैठी थीकुछ बर्थों के बाद एक खिडक़ी पर वह लडक़ी प्लेटफार्म पर खडे चाय वाले से चाय लेती दिखीतो उसे भी प्लेटफार्म और पेन्ट्री कार की चाय का फर्क पता है, मुस्कुराता हुआ रोहित थोडा आगे बढ ग़याफिर खडा होकर चाय की चुस्कियों के साथ तिरछी नजर से उस लडक़ी को देखने लगा, कैसे उस लडक़ी से बात की जायेशायद बातचीत से ही पता चले कि उसका चेहरा इतना पहचाना सा क्यों लग रहा है? काश वह लडक़ी उसके साथ वाली बर्थ पर होती तो, कितनी आसानी से बातें की जा सकती थीं

रोहित ने कई बार ट्रेन के सफर किये हैं ट्रेन के लम्बे सफर में साथ वाली बर्थ पर सुन्दर और अकेली लडक़ी के सहयात्री बनने का उसका ख्वाब कभी भी पूरा नहीं हुआ अब तकवह लडक़ी भी तो इतनी दूर बैठी है अब उसकी बर्थ पर जाकर तो बात नहीं की जा सकती ना! अगर उसने जवाब नहीं दिया या फिर जवाब में कोई ऐसी वैसी बात कह दी तो, बेकार ही में अपनी भद पिट जायेगीनहींउससे बातें करना आसान नहींतो फिर कैसे पता चलेगा कि वह इतना परिचित क्यों लग रही है?

प्लेटफार्म के छोर पर सिग्नल हरा हो गयाइंजन की सीटी बजने और ट्रेन के सरकने तक रोहित चाय का खाली कसोरा फेंक कर डब्बे में समा गया

जितना लडक़ी की तरफ से ध्यान हटाता, वह चेहरा उतना ही आँखों के सामने आ जाता लडक़ी के परिचित होने का अहसास घन की तरह दिमाग पर प्रहार करने लगतापता तो चलना चाहिये, वह लडक़ी है कौन? थोदी देर बर्थ पर करवटें बदलने के बाद उसकी बेचैनी बेतरह बढ ग़यीवह, लडक़ी को फिर नजर भर देखना चाहता थाइसके लिये तो लडक़ी की तरफ जाना होगारोहित बर्थ से उतरा, पैरों में चप्पलें फंसा कर डब्बे की उस ओर बढने लगा, जिधर लडक़ी थीडिब्बे में अच्छी खासी भीड थी कुछ लोग ताश की पत्ते बीच में बिखेरे खेल का आनन्द ले रहे थेउसे लगा आगे बढना कठिन है, लौटना पडेग़ामगर लडक़ी को एक झलक देखने की तीव्र इच्छा ने उसे आगे की ओर ठेलाताश के खिलाडियों ने उसे घूर कर देखा और बडी अनिच्छा से दांये बांये सरक कर आगे जाने के लिये उस पर अहसान कियारोहित ने चैन की सांस ली आगे बढ क़र उसने कनखियों से लडक़ी पर नजर डालीमगर हाय रे दुर्भाग्य! लडक़ी लेट कर पत्रिका पढ रही थीपूरा चेहरा पत्रिका की आड में छिपा थारोहित के लिये वहाँ खडे रहना कठिन था, उसकी देह पर ही वह एक मुलायम सी नजर फेर कर वह आगे बढ ग़या लडक़ियों को कितना आराम है, दिन में भी नीचे वाली बर्थ पर लेटी हुई है

थोडी देर यूं ही डब्बे के दूसरे छोर वाले दरवाजे पर खडा रहने के बाद वह वापस लौटाउसने सोचा, इस बार तो निश्चय ही लडक़ी की एक झलक पा लेगापरन्तु इस बार लडक़ी बर्थ के नीचे रखी टोकरी पर झुकी हुई थीगर्दन तक कटे बालों ने उसके चेहरे को चारों तरफ से ढंक रखा था

निराश रोहित अपनी बर्थ की ओर बढ ग़या ताश के खिलाडी फ़िर से उसके सामने थे शायद उनकी बाजी किसी दिलचस्प मोड पर थीतभी तो उसे देख कर इस बार उनके चेहरे पर अप्रिय भाव कुछ ज्यादा ही उभर आयेउनके बीच से रास्ता निकाल कर बढते हुये रोहित ने सुना, किसी ने कटाक्ष किया था

'' टिकट चेकर का काम कर रहे हैं क्या भाई साब?''

जी में आया कि पलट कर करारा जवाब दे दे परन्तु बात बढ ज़ाने की आशंका से वह बिना कुछ कहे अपनी बर्थ पर आ गया

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