मुखपृष्ठ  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | डायरी | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 Home |  Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

You can search the entire site of HindiNest.com and also pages from the Web

Google
 

 

  कस्तूरी-2

सारा दोष उस लडक़ी का हैउसकी बर्थ रोहित के पास भी तो हो सकती थीया फिर अलीगढ ज़ंक्शन पर प्लेटफार्म पर उतर कर चाय भी तो पी सकती थीयह भी तो अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि, वह कहाँ ट्रेन में चढी है, पठानकोट, अमृतसर, व्यास या कहीं और सेअम्बाला से तो नहीं चढी वरना, वहाँ स्टेशन पर ही दिख जाती

चेहरे से तो पंजाबी लगती हैकभी कभी उसके चेहरे पर बंगाली या मारवाडीपन भी दिखता है सलवार सूट तो मुस्लिम पहनावा भी होता है रोहित निरन्तर लडक़ी के बारे में ही सोचे जा रहा था, कोई बात नहीं, मैं भी पीछा नहीं छोडने वालाकानपुर जंक्शन पर ट्रेन ज्यादा देर रुकती है, वहीं उसकी आवाज सुनने का प्रयत्न करुंगा

मैले से कपडे पहने एक छोटा लडक़ा हाथ में थमे सिक्कों को खास अन्दाज में बजाता हैलडक़े के दूसरे हाथ में पत्तों का बना झाडू हैकुछ देर से रोहित उस लडक़े को डब्बे की सफाई करता देख रहा थाउसने एक सिक्का लडक़े को थमा दियालडक़े का मेहनत करना उसे अच्छा लगता है, वह भीख तो नहीं मांगतालडक़ा सिक्कों को उसी अन्दाज में बजाता अन्य यात्रियों की ओर मुड ग़या

रोहित ने बर्थ पर लेट कर फिर से कहानियों की पत्रिका निकाल लीपरन्तु दो चार पृष्ठ पलट कर फिर से तकिये के नीचे सरका दीआंखे मूंदते ही वह लडक़ी फिर से उसके दिमाग में उभर आयीवही गोरा रंग, गोल चेहरा, भूरी आँखे, आकर्षक नैन नक्श , होंठों से झांकती श्वेत मोतियों सी दंत पंक्ति पतली गरदन को तीन तरफ से घेरे भीतर की तरफ मुडे क़ंधे तक कटे रेशमी बाल और बदन पर खिलता आसमानी सूट...

कानपुर जंक्शन पर चावल वाले की रेहडी यात्रियों से घिर चुकी थीउसने जगह बना कर चावल की प्लेट ली और थोडी दूर खडे होकर लडक़ी वाली खिडक़ी पर नजर डालीइस क्रम में उसने स्वयं को खाने में व्यस्त दिखने की पूरी सावधानी बरती ताकि, लडक़ी देखे तो समझे कि उसने अनायास ही देखा हैलडक़ी परांठे खाने में तल्लीन थी अच्छा तो साहिबा को चावल से ज्यादा परांठे पसन्द हैंलडक़ी का खाना खत्म हो चुका था उसने पास से गुजरती किताबों वाली रेहडी क़ो रुकवायादो चार पत्रिकाएं छांट कर ले लींरोहित ने देखा लडक़ी ने साहित्यिक पत्रिकाएं ही लीं थींयानि लडक़ी की भी अभिरुचि साहित्य में है, वह मुस्कुरायालेकिन इतनी पत्रिकायें? कहीं वह लडक़ी लेखिका तो नहीं? बिजली की तरह यह विचार उसके दिमाग में कौंधादूसरे पल प्रतिविचार भी आया, इतनी सुन्दर लडक़ी लेखिका नहीं हो सकती....मगर वह ज्यादा देर इस विषय पर तर्क ना कर सकाट्रेन पटरियों पर फिसलने लगी दरवाजे का हत्था पकड वह भी डब्बे के अन्दर झूल गया

नई दिल्ली से चुनार स्टेशन तक इस ट्रेन में बिजली वाला इंजन लगता हैइसलिये रफ्तार पकडने में ज्यादा देर नहीं लगतीट्रेन स्टेशन से निकल कर बडी तेजी से आबादी को पीछे छोड बढी ज़ा रही थीस्टेशन पर जो चहल पहल डब्बे में पैदा हुई थी, वह अब गुम हो चुकी थीएक बार फिर से वही बर्थें, वही पंखे, वही यात्री, वातावरण में पुराना बोझिलपन खींच लाये, जो अगले स्टेशन तक यूं ही बना रहना था

अब तक के सफर में एक बात तो पक्की हो चुकी थी कि, वह लडक़ी अकेले ही सफर कर रही हैउसने अब तक का ज्यादा वक्त पत्रिकाओं में या अपनी बर्थ पर आँखे मुंदे बिताया थाआस पास की महिलाओं से भी शायद ही खुल कर कोई बात की होवरना एकाध हंसी या आवाज तो अब तक रोहित के कानों पर जरूर दस्तक दे चुकी होतीउसे कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था कि वह कैसे उस लडक़ी से बातचीत करे? एक क्षण को उसने यह भी सोचा कि लडक़ी से बात करना मटिया दे, मगर वह ऐसा नहीं कर सकाघूम फिर कर एक ही बात उसके दिमाग में आती कि, लडक़ी का चेहरा इतना जाना पहचाना सा क्यों है?

डब्बे में लडक़ों के गाने की आवाजें फ़ैलने लगीं ''चलत मुसाफिर मोह लिया रे..पिंजरे वाली मुनिया'' गाना रुक गया थारोहित ने गरदन घुमा कर देखा दो लडक़े अपने अपने हाथ में तीन उंगलियों में एस्बेस्टस के दो टुकडों को फंसाये, दूसरे हाथ से उन पर सधे ढंग से प्रहार कर रहे थे। टुकडों से टक्टकाटक् टक् की लयबध्द ध्वनि निकल रही थीताश के खिलाडियों ने गाने वालों को रोक रखा था

'' अरे! पुराना गाना बंद करो।''
''
दीदी तेरा देवर वाला सुनाओ।''

डोनों लडक़ों ने रुक कर सांस खींची और एस्बेस्टस के टुकडों को बजाते हुये चीख चीख कर गाने लगे,

'' दीदी तेरा देवर दीवानाहाऽय राऽम ऽऽ चिडियों को डाले दानाऽऽ''

इसी गाने की नायिका पर तो अपने मकबूल भाई फिदा हो गयेरोहित सीधा होकर लेट गया जाने कब उसकी आँख लगीवह जागा तो ट्रेन के बाहर शाम गहरा चुकी थीथोडी देर में ट्रेन चुनार जंक्शन पर पहुंच गयीवहां ट्रेन में बिजली वाले इंजन की जगह डीजल इंजन लगता है। ट्रेन लगभग पौन घंटा रुकती है ज़ो पहली बात उसके दिमाग में आयी, लडक़ी कहाँ है? कहीं रोहित की नींद का फायदा उठा कर वह उतर तो नहीं गयीवह प्लेटफार्म की ओर लपका। वहाँ से उसने देखा, लडक़ी बर्थ पर अपना बिस्तर ठीक कर रही है, रोहित ने चैन की सांस ली

'' बडी ज़ल्दी सोने की तैयारी कर रही है।'' बुदबुदाता हुआ वह स्टेशन के नल की ओर बढ ग़या। हाथ मुंह धोकर लौटा तो सहसा उसे अपनी आँखों पर उसे विश्वास ही नहीं हुआ। लडक़ी प्लेटफार्म पर खडी चाय वाले से चाय ले रही थी। आस पास भीड भी नहीं थी। रोहित का दिल जोर जोर से धडक़ने लगा। जो खूबसूरत लडक़ी उसे अब तक परेशान करती रही है, वह उससे चन्द कदमों के फासले पर खडी है। अब वह लडक़ी को जरूर टोकेगा। उससे बातें करेगा और उसका परिचय जान कर रहेगा - सोचता हुआ वह चाय वाले की ओर बढ ग़या।

लडक़ी ने चाय का कसोरा लेते हुये रोहित की ओर नजर उठाईरोहित को अपना रक्त जमता सा महसूस हुआ, उसके दिल की धडक़न बहुत तीव्र हो गयीउसने तेजी से अपना चेहरा घुमा लिया

'' एक चाय देना, भई।'' लडक़ी चाय वाले को पैसे देकर मुडी। चाय वाला झुक कर रोहित की चाय कसोरे में डालने लगा। रोहित ने सोचा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
''
आप कहाँ तक जायेंगी मिस''

ठीक उसी समय एक कुली सर पर दो तीन सूटकेस उठाये इनके पास से गुजरा

'' बहन जी जरा हट के।'' रोहित की धीमी आवाज क़ुली की हांक में पूरी तरह डूब गयी। लडक़ी तेजी से किनारे हट कर डिब्बे की ओर बढ ग़यी। उसने रोहित की आवाज बिलकुल नहीं सुनी थी। मगर चाय देने के लिये उठते चाय वाले ने रोहित की आवाज सुनी थी। चाय थमाते उसने रोहित को अजीब - सी नजरों से देखा। रोहित के चेहरे पर रोम छिद्रों ने एक साथ ढेर सारा पसीना फेंक दिया। उसने हडबडाहट में चाय वाले को पैसे दिये और वहां से हट गया। चाय वाला भी  चाय गरमचाय की आवाज लगाता आगे बढ ग़या।

चाय वाला उसे कैसे देख रहा था, रोहित ने चाय का घूंट भरा मगर उसे चाय कसैली लगीगुस्से में आकर रोहित ने चाय का कसोरा रेल की पतरी पर दे मारा। काफी देर तक वह यूं ही प्लेटफार्म पर भटकता रहाजब उसकी उत्तेजना कुछ शांत होने लगी तो, उसने स्वयं को समझाया, '' लडक़ी ने तो उसकी बात सुनी नहींना ही कोई अप्रिय उत्तर उसे दियाफिर वह क्यों इतना नर्वस हो रहा है?'' उसने विचारों को हल्का सा झटका दियाएक मुस्कान उसके होठों से उठ कर गालों पर फैल गयी और आंखों से झांकने लगीवह डब्बे के पास लौट आया लडक़ी अपनी बर्थ पर लेटी पत्रिका पढ रही थीउसने अनुमान लगाया, थोडी देर में वह सो जायेगी

डीजल इंजन ने सीटी बजाईप्लेटफार्म के छोर पर लाल सिग्नल अपना रंग बदल कर हरा हो चुका थावह डब्बे में चढ यालडक़ी सो रही है, इस विचार के साथ ही उसे लगा कि आज का सारा दिन व्यर्थ गया धिक्कार है उस परएक लडक़ी से वह दो बातें नहीं कर सकाइस भय से कि उसकी छवि न बिगड ज़ायेछवि बना कर ही उसे क्या मिल जायेगा- उसने सोचा...खैर अब तो जो हो गया सो हो गयाकल सुबह उससे बात जरूर करेगा स्वयं से इसी तरह की बातें करता रोहित अपनी बर्थ पर लेट गयावह खूबसूरत चेहरा एक मुस्कान के साथ उसके दिमाग पर छाता चला गया

सुबह जब उसकी आंखें खुली तो ट्रेन मुरी जंक्शन पर खडी थीवह फुरती से अपनी बर्थ छोड क़र नीचे उतराउतनी ही तेजी से हाथ मुंह पर पानी के छींटे मार वह प्लेटफार्म पर आ गयाइस स्टेशन पर ट्रेन दो टुकडों में बंट जाती हैआधे डब्बे टाटा नगर जाते हैं और शेष आधे हटियाउसने देखा हटिया जाने वाले डब्बे दूसरी पटरी पर खडे क़िये जा चुके थेयानि ट्रेन को मुरी जंक्शन पर आये काफी देर हो चुकी हैचाय का कसोरा थामे वह लडक़ी वाली खिडक़ी की ओर मुडावह चौंका, वहां एक सज्जन बैठे थेनजदीक आकर उसने अन्दर झांका द्याहाँ न तो वह लडक़ी थी न ही उसका सामान रोहित के चेहरे का रंग उड ग़या

'' कुछ ढूंढ रहे हैं क्या भाई साहब? '' उस सज्जन ने पूछा।
''
जीजी हाँ।'' उसने स्वयं पर नियंत्रण किया, '' यहाँ जो यात्री बैठे थे।''
उसने जानबूझ कर लडक़ी की बात छिपाइ।
''
यह बर्थ तो खाली थी। मैं रामगढ से बैठा हूँ। कोई खास बात थी क्या?'' उस सज्जन ने पूछा।
''
नहीं...कुछ खास नहीं...मेरी पत्रिका उन्होंने पढने को ली थी। लौटाना भूल गये।''

रोहित ने झूठ बोला और वहां से हट गया उसे लगा लडक़ी उसके साथ छल कर गई कितना जाना पहचाना सा लग रहा था उसका चेहराकाश, वह अपना परिचय दे जाती! अब तो वह लडक़ी कभी नहीं मिलेगी...कहाँ उतरी होगी वह? रात भर तो कई स्टेशन आये होंगे...रेणुकोट, डाल्टनगंज, टोरी, पतरातु..कहाँ उतरी होगी वह भली सी सुन्दर लडक़ी? यह जानते हुये भी कि, वहाँ नहीं मिलेगी, रोहित हटिया जाने वाले डब्बों को भी छान आया

सिग्नल डाऊन हो चुके थेवह भारी मन से आकर अपने डब्बे में बैठ गयाट्रेन चलते ही झटके के साथ ऊपर से उसका तकिया और पत्रिका नीचे आ गिरेउसने तकिया उठाया और झाड क़र ऊपर अपनी बर्थ पर रख दियासामने बैठे बच्चे ने पत्रिका उठा कर उसकी तरफ बढा दी, '' अंकल, आपकी मैग्जीन''

उसने एक नजर मुस्कुराते बच्चे पर डाली और हौले से थैंक्यू कह कर पत्रिका ले लीखुली हुई पत्रिका को ज्यों ही उसने सीधा किया, उसकी नजर लडक़ी के चित्र पर अटक गयी, शर्तिया वह उसी लडक़ी का चित्र थाउसने शीघ्रता से पत्रिका खोल कर फैला लीबात सच निकलीतो इसलिये लडक़ी का चेहरा जाना पहचाना लग रहा थापत्रिका में लडक़ी के चित्र के साथ उसकी कहानी छपी थी, '' कस्तूरी''

कमल

   पहला पन्ना


 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com