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  दूसरा ताजमहल-2

एक रंग, जो मौसम बदलने से पहले हवा में फैलने लगता है, कुछ वैसी ही कैफियत से नयना दो चार हुईएक खुशी जैसे उसको कुछ मिल गया हो, मगर क्या? इसी उधेडबुन में वह तैरती उतरती प्लाजा की तरफ चल पडी, ज़िसकी सारी सजावट उसी को करनी थीरास्ते के सारे पेड उसको चमकीली पत्तियों से सजे लगे और शाम ज्यादा गुलाबी जिसमें धुंधलका सुरमई रंग की धारियां जहां तहां भर रहा थाघर लौटते हुए उसको सडक़ की बत्तियां चिराग क़ी तरह जलती लगीं, जैसे छतों पर दीवाली की सजावट घरों को दूर तक रोशनी की लकीरों में बांट देती थीं

आज उसका मूड बरसों बाद हल्का हुआ थाकोई कुंठा, कोई शिकायत, कोई कडवापन या झुंझलाहट उसको आहत नहीं कर रही थीवह हवा में तैरती हुई जब घर पहुंची, तो नौकर ने बताया कि साहब को कोई एमरजेंसी ऑपरेशन करना है, जिसके कारण वे देर से लौटेंगेसूचना सुनकर वह हमेशा की तरह आक्रोश से नहीं भरी, बल्कि उसने लापरवाही से कंधे झटके और गुनगुनाती हुई कमरे में दाखिल हुई

नहाने के बाद जब वह गाउन में लिपटी ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी, तो अपना ही चेहरा इस तरह देखने लगी जैसे पहली बार देख रही होआंखों के नीचे हल्का कालापन, भंवों के पास कई लकीरें, माथे पर सफेद बालों का झांकना, आंखों में एक जिज्ञासा कि मैं कैसी लगती हूँ? उसको अपनी त्चचा मुलायम और चमकीली लगीहोंठों पर जाने कहां से आई मुस्कान उसको अजनबी लग रही थीथकान के बावजूद उसमें फुर्ती का अहसास थाखाना खाने के बाद जब वह पलंग पर लेटी तो उसे महसूस हुआ कि आज बरसों बाद उसके बदन को मुलायम बिस्तर मिला हैउसने आराम की सांस ली और आंखें बन्द की तो सामने रविभूषण का चेहरा तैर गया

बंबई पहुंचते ही रवि ने नयना को फोन किया कि वह भली प्रकार पहुंच गयारात को जब दोबारा उसने फोन किया, तो नयना को पहली बार लगा कि उसकी आवाज सुन कर उसके दिल में कुछ उथल पुथल सी हुईफिर फोन का यह सिलसिला पांच मिनट से आधा घंटा हो गया और हफ्ते की जगह रोज बातें होने लगीं, जिसमें प्रोफेशनल बातें कम और आपसी बातें ज्यादा होतीं - खाना खाया या नहीं? दिन कैसा गुजरा? मौसम कैसा है? नयना को फोन का इंतजार आठ बजे से शुरु हो जाता, जबकि ठीक दस बजे फोन की घंटी बज उठती थी, इस बीच वह सारे काम निबटा लेती ताकि, आराम से बातें कर सकेउसको अकेले घर में एक साथी मिल गया था, जिससे वह दु:ख सुख की बात कर सकती थी

पिछले पांच छ: वर्षों से नयना का अकेलापन बढता जा रहा थादोनों बेटे पढाई के सिलसिले में अमेरिका चले गये थेनरेन्द्र जब से डायरेक्टर बना है, तब से इतना व्यस्त होता जा रहा है कि नयना को गुस्सा आने लगा था कि ऐसा भी क्या पागलपन, जो दिन रात अस्पताल में रहना, आखिर घर की भी कोई जिम्मेदारी होती हैसारे दिन की उडान के बाद परिंदे भी तो अपने घर घोंसले को लौटते हैं? पिछले तीन दिन से डॉ नरेन्द्र घर नहीं लौटे थे, कोई बेहद पेचीदा केस आ गया हैकई विदेशी प्रोफेसर मेडिकल क्षेत्र के भी रात दिन सर खपा रहे थेनयना को स्थिति की गंभीरता का ज्ञान था, मगर हर दिन आपातकाल का वातावरण बना रहे तो, इंसान जिये कैसे अकेले घर में? कब तक टी वी देखे, मित्रों को फोन करे और पार्टियों में शामिल हो? हर तरफ से उसको ऊब लगने लगी थीथोडी बहुत खुशी उसको मिलती, तो वह सिर्फ अपना ऑफिस था, जहां काम में उसका दिल बहल जाता थाया फिर बच्चों के ई मेल संदेशों और फोन पर उनकी आवाजें सुनकर वह खुश हो जाती थीनरेन्द्र इतना थके लौटते कि खाना खा कर सो जाते और नयना जब फोन पर बातें करके लेटती तो उसके दिमाग में यह प्रश्न फूलों से भरी क्यारी की तरह खिल उठता कि रविभूषण उसका क्या लगता है दोस्त या भाई?

नयना अपनी सालगिरह के दिन बच्चों के बिना उदास थीनरेन्द्र भी विदेश गये हुये थेउस रात फोन पर रवि ने जब उसकी उदासी का कारण जानकर यह कह दिया कि वह नयना को खुश देखना चाहता है, इसके लिये वह अपने जीवन के बचे वर्ष उसको भेंट स्वरूप देता है, तो नयना भी भावुक होकर बोल उठी कि क्या वह रवि को भाई कह सकती है? इस पर रवि ने जल्दी से कहा,

'' नहीं, नहीं भाई हरगिज नहीं, हमारा रिश्ता तो सखा का है।'' और यह सुन नयना विश्वास से भर उठी, सारी दुनिया उसे सुगंध से भरी महसूस हुई। आखिर हर रिश्ते से बडा रिश्ता दोस्त का होता है जिसमें न कोई लालच न बंधन न जोर जबरदस्ती। जितनी लम्बी पेंग लेना चाहो, ले सकते हो। इस रात ने दोनों के वार्तालाप का अन्दाज ही बदल डाला। बातों का सिलसिला सुबह तीन बजे तक चलता रहा और अनजाने में नई दिशा की तरफ मुड ग़या।

नयना का छोटा भाई, जो दो वर्ष पहले ही कार दुर्घटना में जीवित नहीं रहा था, उसके बहुत करीब थादोनों में बचपन से दोस्ती थीजब वह बनारस से दिल्ली नौकरी के सिलसिले में आया तो नयना की खुशी का पूछना क्या थाकुछ दिन भाई बहन के साथ नरेन्द्र घूमने गये, फिर बोर होकर अपने अस्पताल में गुम हो गयेनयना को उनकी कमी खलती न थी उसका बचपना उसको दोबारा मिल गया था भाई की शादी की सारी खरीदारी उसने दिल्ली से की थीमगर होनी को कौन टाल सकता था शादी के सप्ताह भर पहले तालकटोरा के पास कार की टक्कर होने से उसकी मौत हो गयीडॉ नरेन्द्र कुछ न कर पाये, आखिर वो ईसामसीह तो थे नहीं, जो मुर्दाबदन में भी जान फूंक देतेनयना गहरी उदासी में डूब गई थी, उसी दुर्घटना के बाद बेटों का अमेरिका जाना हो गयानयना को लगता कि वह इस दुनिया में तन्हा रह गई है, किसी को उससे बात करने, उसके साथ समय गुजारने की फुर्सत नहीं है

नरेन्द्र से उसकी शादी पसन्द की थी दोनों ने शादी के पहले एक दूसरे को देखा परखा था, मगर जिन्दगी तो हमेशा से समय से आगे निकल जाने वाली चीज है, न कि ठहरी हुई जन्मपत्री, जिसके सारे शब्द अनेक संकेतों से भरे होते हैं! अपने काम को परखते, उसकी दौड में शामिल नरेन्द्र भी पहले वाले इंसान नहीं रह गये थेउनके जीवन मूल्य जड न रह कर तरलता में अपना समाधान ढूंढने लगे थेबहुत सी बातें नयना को परेशान करती थींकई सवाल थे जो वह नरेन्द्र से करना चाहती थीमगर उनके पास हर बात का जवाब खामोशी थीनयना भी नरेन्द्र से उखडक़र अपने ऑफिस से अधिक जुडने लगी मगर यह अहसास समय के साथ बढने लगा कि उसका पुराना घर कहीं खो गया है

नयना के दिल में छुपा नरेन्द्र के खिलाफ भरा गुबार कभी कभी फोन पर निकल जाताआखिर रवि ने एक दिन कह दिया कि, क्यों सहती हो यह सब? चली आओ सब कुछ छोड क़र मेरे पाससुनकर नयना चौंक पडी पूछने वाली थी, आखिर किस रिश्ते से? फिर कुछ सोच कर रुक गयीपूरी रात रवि के इस बुलावे पर गौर करती रही, उसमें ध्वनित प्रेम के स्वरों को पकडने की कोशिश में स्वयं से सवाल करती, क्या रवि? और उसने अपने को टटोला, दिल की गहराई में कहीं रवि मौजूद थाउसने चौंक कर स्वयं से पूछा कि  नयना इस रिश्ते का यदि आरंभ अनजाने में हो गया है, तो अंत क्या होगा? समझा बूझा या फिर समझा बूझा या फिर या फिर?

बहरहाल रवि से दोस्ती नयना के जीवन में एक नई उपलब्धि थी, जिसने जीवन से उसका मोह बढा दिया थाउसमें थकान की जगह खुशमिजाजी गयी थीपहनने ओढने का दिल करता सजने संवरने की इच्छा के चलते उसने क्रीम, सेन्ट का ढेर लगा लिया और हर रात रविभूषण के बुलावे पर उसका मन बम्बई जाने को मचलने लगाउसको अपने इस घर में एक और घर नजर आने लगाबातों की लय में दोस्ती का अनुराग मर्द - औरत की चाहत में बदल चुका थाएक दिलनशीन कैफियत थी जिसमें नयना डूबती चली जा रही थी उसके क्षेत्र की अन्य औरतें उसके चेहरे पर आयी ताजग़ी देखकर जब कॉम्प्लीमेन्ट्स देतीं तो स्वयं नयना को लगता कि उम्र के इस दौर में जब औरतें दुनियावी जिम्मेदारी से निबट धर्म की तरफ मुडने लगती हैं या फिर सूखी नदी में तब्दील होने लगती हैं उस समय उसको ऊपरवाले ने कैसा वरदान दिया, जो दिल दोबारा धडक़ा और जीवन में अनुराग ताजा कोंपल की तरह फूटा

कभी नरेन्द्र और नयना का जीवन एक सुखी जीवन था, वे दोनों अपना समय अपने कार्यक्षेत्र में उनमुक्त भाव से देते थे, दिमाग पर कोई बोझ न होता, न घर की जिम्मेदारियों से दिल परेशान रहताअपनी कामयाबी को देख कर दोनों ने फैसला लिया था कि वे ऊंची शिक्षा के लिये बच्चों को बाहर भेजेंगे दोनों लडक़े गज़ब के जहीन थे स्कॉलरशिप मिली और उमंग से भरे वे अमेरिका पहूँचे। उनके जाने के बाद डॉक्टर नरेन्द्र की रुचि अपने काम में और बढ ग़ईतरक्की मिली तो व्यस्तता का बढना लाजमी थानरेन्द्र का उलट नयना के साथ हुआउसका काम में दिल कम लगने लगा मन भटका भटका सा लडक़ों के ख्याल में डूबा रहताघर सूना लगताखाना पीना अच्छा न लगता कुछ माह बाद वह संभल गयीशायद अस्पताल के नये प्रोजेक्ट ने उसका ध्यान बंटा दिया, मगर एक उदासी जरूर हरदम उसके मन पर छाई रहती थीजिसको रविभूषण ने दूर कर दिया था

वह बम्बई जाने की तैयारी करने लगी नरेन्द्र को बम्बई जाना  प्रोफेशनल टूर  लगाइसमें क्या खास बात थी दोनों ही समय समय पर एक दूसरे से दूर घर से बाहर जाते थे, सो नरेन्द्र ने सुबह नयना को सेफ जर्नी कह बाय बाय किया और नयना ने हमेशा की तरह उसको कुछ हिदायतें दीं और फिर वह पैकिंग में लग गई

नयना जब नये खरीदे कपडे पहन कर आईने के सामने खडी हुई, तो उसको लगा कि उम्र का साया अभी उसके चेहरे पर नहीं आया हैखुशी ने उसके चेहरे पर चमक ला दी हैइस खयाल से उसकी उत्तेजना बढी क़ि यदि रविभूषण ने उसको रोका और अपने साथ रहने का आग्रह किया तो वह क्या फैसला लेगी? रविभूषण तो साफ शब्दों में कह चुका है कितुम बेकार में समय नष्ट कर रही हो, वहां तुम्हारा कोई इंतजार नहीं कर रहा हैयहां मैं हूँ, आओ न - मैं फोन रखता हूँ। तब तक तुम फैसला लोमैं दस मिनट बाद फोन करुंगा उसकी इस तरह की बातें छोटी छोटी शिकायतों के जख्म ताजा कर देती और उसको महसूस होता कि उसने अपनी जिन्दगी जी ही कहाँ? कभी बच्चे, कभी पति कभी ससुरालवालेअब मैं अपनी जिन्दगी जी सकती हूँ। रविभूषण वास्तुविद् हैं, जो इमारत बनने से पहले उसका नक्शा खींच, मॉडल के रूप में पूरी इमारत सामने लाने की क्षमता रखता हैवह जिन्दगी का नक्शा भी बडा मजबूत बनायेगाजिसमें वह अपनी महबूबा के लिये ताजमहल न सही, एक छोटा सा घर तो बना सकता हैजिसको वह अपनी मर्जी से सजा सकती हैनयना ने पूरे विश्वास से होंठों पर लिपस्टिक लगाई और गहरी नजरों से अपने सरापे को ताकाउडान का समय हो गया था

दिल्ली से बम्बई उडान बहुत कम समय की थीनयना का मन तेजी से धडक़ रहा थादो मुलाकातों के बाद घटनायें सम्वेदना के स्तर पर जिस तरह घटीं थीं, सारी मौखिक थीं मगर उसमें जादू था, जो नयना के सर चढ क़र बोल रहा थाकल रात रविभूषण की खुशी का कोई ठिकाना न था, जब उसको पता चला कि नयना ने बम्बई आना तय कर लिया हैउसके स्वर में जो धडक़न थी, उसने नयना को विश्वास दिलाया कि जीवन का अंतिम पहर जैसे रविभूषण के साथ गुजरने वाला हैवही मेरा अंत होगा धीरे से नयना ने कहा और बैग उठा हवाई जहाज़ की सीढियां उतरने लगीउसको डर था कि रवि को देख कर वह इतनी भावुक न हो उठे कि वहीं हवाई अड्डे पर उससे लिपट जाये या फिर रवि वहीं सबके सामने उसका चुम्बन न ले लेनयना किसी किशोरी की तरह शर्माई शर्माई सी थीप्यार किसी भी उम्र में हो उसका अपना तर्क होता हैजो उम्र, जात पात, धर्म, भाषा की सारी दीवारों को गिरा देने की शक्ति अपने में रखता है

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