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तूफान ठीक बाईस साल बाद मिल रहे थे हम। फोन पर उसकी आवाज पहचानते देर न लगी। वही खनक। वही रुतबा। वही हंसी। वही बात करने का अन्दाज और वही दूसरों को अपने व्यंग्यात्मक शब्दजाल से क्षत विक्षत करने की शैली। ''
क्या तुम मुझसे मिलने होटल
में नहीं आओगी?
असोका लेक व्यू में रुके हैं
हम। कल शताब्दी से वापस जाना है। कहाँ कहाँ से पता करके लिया तुम्हारा फोन
नम्बर।'' उसके आने की खबर सुन कर मैं बहुत खुश थी। इतनी खुशी कि जैसे किसी अलभ्य वस्तु को प्राप्त करके होती है। अपनी पुरानी सहेली को देखने का लोभ था। मिलने का हुलास था। अपने जीवन की, उसके जीवन की एक एक बात जानने की तीव्र उत्कंठा कुलाँचे भरने लगी। कितनी खुश होगी वो मुझे यूं देखकर। मैं जानती हूँ वह मुझे उतना ही प्यार करती होगी जितना पहले करती थी। बाईस साल पुराना चेहरा सामने आ खडा हुआ। थोडा सा स्थूल शरीर। गरदन अन्दर को धंसी हुई। सीपाकार आंखों में लगा काजल। ऊपर को बंधी दो चोटियां। चौडी प्लेट वाला स्कर्ट और शर्ट, कैसी लगती थी तब! मैं मुस्कुरा दी। अब भी वैसी ही लगती है या बदल गई है। स्कूल के दिन, स्कूल की सैकडों शरारतें, हंसी ठहाके, और भी जाने कितनी रहस्यमयी...बेवकूफी भरी...हृदय की गहराईयों में समायी बातें, कितनी जगहें और वे तमाम चेहरे याद करके मैं रोमांचित हो उठी थी। जिस सुन्दर सुरम्य निश्छल भावनाओं से भरी दुनिया से मैं कोसों दूर चली आई थी, वही थिरकती हुई दुनिया अचानक मेरे सामने आ खडी थी। वह एकाकी नहीं आ रही थी अपितु साथ ला रही थी पूरे कालखण्ड को। सशरीर! ताज्जुब कि अपना ही बीता हुआ जीवन मैं क्यों और कैसे विस्मृत कर बैठी थी? क्या मैं तेज भागती रही या समय मुझसे आगे निकल गया। मैं ने घर को ठीक ठाक किया। परदे, चादरें बदलीं। ''
माँ,
आज आपको क्या हो गया
है?
क्यों कर रही हो इतना सब?
मैं ने उसकी पसन्द की एक एक चीज मंगवाई। वह कितनी खुश होगी यह जानकर कि मुझे आज भी उसकी एक एक पसन्द याद है। मेरे साथ उसकी एक बहुत पुरानी फोटो थी। पता नहीं किस एलबम में थीकाफी देर तक ढूंढने के बाद मिली। उसको अच्छा लगेगा ये सोचकर, तुरन्त फोटो फ्रेम में लगा दीइस फोटो में हमारी उम्र की मोहक छवि झलक रही थी। '' ये आप हो माँ! '' बच्चे जोर जोर से हंसे जा रहे थे। घर में पैसा है या नहीं यह मैं ने देखा। हो सकता है होटल जाना पडे सबको लेकर। क्या करुं किससे उधार मांगूं? अच्छा भी तो नहीं लगता है मांगना। मम्मी को फोन लगाया, '' मम्मी दो हजार रुपये दे दोगी? मेरी सहेली आ रही हैहाँ वहीवैसे तो पैसे हैं मेरे पास मगरउसके सामने कम नहीं पडने चाहिये।'' मैं ने सकुचाते हुए कहा। छुट्टी की एप्लीकेशन भिजवा दी। बहुत जरूरी काम थे ऑफिस में मगर मेरी सहेली का आना इन सबसे ज्यादा मायने रखता था। बेचैनी के साथ तैयार होकर मैं उसकी प्रतीक्षा करने लगी। मेरे घर का एक एक पत्ताहवा में लहराते परदेफूलसभी कुछ उसका स्वागत करने को उतावले लग रहे थे। '' माँ, आज आपको क्या हो गया है? चार्ली चैपलिन की तरह काम कर रही हो।'' बच्चे मुझे चिढा रहे थे मगर इस समय मैं कुछ भी नहीं सुन रही थी। मेरा मन उड रहा था और निगाहें सडक़ की ओर लगी हुईं थीं एकदम दूर तक। सरकारी जीप से उसे उतरते देखा तो भाग कर नीचे जा पहुंची मैं सडक़ के उस पार। गले लग कर लगाजैसे बहुत ऊंची चोटी से गिरते ऊष्म, निनादित झरने को छुआ हो वही ऊष्मा, वही ध्वनि मैं ने महसूस की आंखों से बहते आंसू थम नहीं रहे थे। जब कभी हम नाराज हो जाते थे तो अपने छोटे भाई बहन के हाथों खूब लम्बे लम्बे खत लिख कर अपने हृदय की बातें, शिकायतें प्यार वफा जीवन भर न भूलने के वायदे और नाराजग़ी व्यक्त किया करते थे और सामने मिलने पर यूं ही रोया करते थे। बेशब्द मुस्कुराते हुए। कैसी अद्भुत दुनिया थी वोआकाश की तरह अनन्त। नक्षत्रों की तरह प्रकाशवान। हवाओं की तरह वेगवान। मैं ने देखा उसकी सीपाकार आंखों में आंसू सूख चुके हैं और वो हल्के से मुस्कुरा कर बोली, '' अरे तुम तो वैसी की वैसी हो। हमीं मोटे हो गये हैं। क्या बहुत काम करती हो या डायटिंग कर रही हो या नौकर वगैरह नहीं रखे हैं।'' क्षण भर के लिये मैं सकपका गई। बच्चे उत्सुकता तथा विस्मय के साथ देख रहे थे। सुनेंगे तो क्या कहेंगे कि जिस सहेली के बारे मैं सुबह से उन्हें बताए जा रही थी, तारीफ किये जा रही थी, उसने आते ही ऐसे सवाल पूछना शुरू कर दिये। ऊपर आकर उसने चारों तरफ गहरी बींधती लम्बी खोजती दृष्टि से देखा। वह दृष्टि खाली नहीं थी बल्कि भरी हुई थी तमाम प्रश्नों, जिज्ञासाओं और शंकाओं से। मैं बार बार उस फोटो की तरफ देख रही थी ताकि वह उसे देख सके मगर उसने उडती हुई नजर से उस तरफ देखा, जैसे कोई बासी चीज पडी हो। ''
अभी तक रखा है इस फोटो को!
मैं ने तो फाड दिया,
छि: कितनी गन्दी है।''
वह अपने लाल होंठों को गोल घुमा कर बोली। उसके होंठों की भाषा मेरे मन पर खुदती जा रही थी। उसके पूछने पर मैं संभल गई। उसको हक था शिकायत करने का, मेरे बाईस वर्षों की जिन्दगी की परतें उधेडने का क्योंकि पुरानी सहेली जो थी। तब हम बच्चे थे बल्कि यौवन की दहलीज पर कदम रखते हुए अपनी देह और आत्मा से बेफिक्र। अल्हड। अपनी ही मौज में डूबे हुए। घर गृहस्थी, रूपया पैसा जाति पांति, छोटा बडा सबकुछ हमारे लिये महत्वहीन था। अपरिचित था। बस पढाई और दोस्ती यही तो था हमारा जीवन। पानी की धारा की तरह बहता हुआ। स्वच्छ। धवल। अबाध। मैं चुपके से उठ कर गई और मामा को फोन लगाया। ''
मामा,
शाम को दो घण्टे के
लिये गाडी मिल जायेगी?'' बच्चों को सामने बैठा देखकर भी अनदेखा करती हुई बोली वह। उसका गदराया हुआ शरीर पारदर्शी ब्लाउज में से दमकता हुआ दिखाई दे रहा था। मैं पति और बच्चों के बारे में बताने लगी। आखिर उसकी जिज्ञासाओं को शान्त करना मेरा फर्ज था! '' और सुनाओ।'' उसने पांव पसार कर बैठते हुए कहा। मेरा मन हल्का सा बेचैन तथा उदास हो गया। उसके आने से पूर्व जो उद्दीपत थिरकती हुई खुशी थी वह मंद होने लगी। उसकी उपस्थिति ने घर के माहौल में अजीब सी हलचल पैदा कर दी थी। लग रहा था मेरे घर की हर चीज उसके निशाने पर है। ''
तो तुमने यह भी जानने की
कोशिश नहीं की कि हम लोग कहाँ पर हैं,
किस हाल में हैं?''
वह रूठते हुए बोली।
मैं ने देखा उसने अपने बालों को रंगवाया हुआ है सफेद जडों को छुपाने के
लिये बार बार बाल संभाल रही है। मेरा मन हल्का सा व्यथित तथा चिन्तित हो
उठा। इसके बाल पक गये हैं?
क्यों! क्या कोई तनाव
है। पूछूंगी। मैं ने सारी चीजें पौंछ कर चमका कर रख दी थीं। मैं खाना बनाने की तैयारी करने लगी। बाई को मना कर दिया था। उसकी मनपसन्द चीजें मैं अपने हाथों से बना कर खिलाऊंगी मेरा मन अतिउत्साही था और हाथ मशीन की तरह काम कर रहे थे। वह मेरे पास किचन में आकर बैठ गई। बडे बुजुर्ग़ों की तरह मेरी किचन का मुआयना करने लगी। उसकी तीक्ष्ण निगाहें एक अलमारी में विराजमान मूर्तियों पर आकर टिक गई। ''
यह क्यातुम और पूजा?''
वह मेरा मजाक उडाते
हुए बोली। उसका चेहरा हंसी से खिंचने के कारण थोडा चौडा सा लग रहा था किसी
सपाट वस्तु की तरह। मैं हतप्रभ सी उसका चेहरा देखती रह गई । उसने तो जीवन का सत्व ही निकाल लिया था। वो जीवन जो नितान्त मेरा था। जिसकी संरचना के लिये मैं ने इतनी लम्बी यात्रा की और इस यात्रा के दरम्यान सोचा ही न था कि बच्चों तथा पति से कैसे खुशी का हिसाब किताब करके कैसे खुश व संतुष्ट हुआ जा सकता है? वैसे भी अभी जिन्दगी जी कितनी थी जो परिणाम निकालती। हाँ जिन्दगी को बेहद खूबसूरत और स्वप्नमयी बनाने के लिये निरन्तर संघर्ष चल रहा था। उस संघर्ष के बाद जो कुछ प्राप्त होता था, वही मेरे लिये अमूल्य और सुखद होता था। – आगे पढें |
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