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अपत्नी
''
हम कह चुके थे लेकिन!
''
हवा हमसे विपरीत बह रही थी।
हरीश ने कहा,
'' तुम्हारी चप्पलें कितनी गन्दी लग रही हैं।
तुम इन्हें धोती
क्यों नहीं? ''
''
उन्हें हमारा आना याद है।'' हरि आंखें घुमा घुमा कर अपने पुराने कमरे को देख रहा था। वहा यहां बहुत दिनों बाद आया था। मैं ने आने ही नहीं दिया था। जब भी उसने यहां आना चाहा था, मैं ने बियर मंगवा दी थी और बियर की शर्त पर मैं उसे किसी भी बात से रोक सकती थी। मुझे लगता था कि हरि इन लोगों से ज्यादा मिला तो बिगड ज़ायेगा। शादी से पहले वह यहीं रहता था। प्रबोध ने शादी के बाद हमसे कहा था कि हम सब साथ रह सकते हैं। एक पलंग पर वे और एक पर हम सो जाया करेंगे, पर मैं घबरा गई थी। एक ही कमरे में ऐसे रहना मुझे मंजूर नहीं था, चाहे उससे हमारे खर्च में काफी फर्क पडता। मैं तो दूसरों की उपस्थिति में पांव भी ऊपर समेट कर नहीं बैठ सकती थी। मैं ने हरि से कहा था, मैं जल्दी नौकरी ढ/ूढ लूंगी, वह अलग मकान की तलाश करे। प््राबोध ने बताया, उसने बाथरूम में गीज़र लगवाया है। हरीश ने मेरी तरफ उत्साह से देखा, '' चलो देखें।'' हम लोग प्रबोध के पीछे पीछे बाथरूम में चले गये। उसने खोलकर बताया। फिर उसने वह पैग दिखाया जहां तौलिया सिर्फ खोंस देने से ही लटक जाता था। हरि बच्चों की तरह खुश हो गया।
जब हम लौट कर आये लीला उठ
चुकी थी और ब्लाउज क़े बटन लगा रही थी।
जल्दी जल्दी में
हुक अन्दर नहीं जा रहे थे।
मैं ने अपने पीछे
आते हरि और प्रबोध को रोक दिया।
बटन लगा कर लीला ने
कहा, '' आने
दो, साडी तो मैं उनके सामने भी पहन सकती
हूँ।''
प््राबोध बता रहा था,
उसने नये दो सूट सिलवाये हैं और मखमल का क्विल्ट
खरीदा है, जो लीला ने अभी निकालने नहीं दिया है।
लीला को शीशे के
सामने इतने इत्मीनान से साडी बांधते देख कर मुझे बुरा लग रहा था। लीला हमारे सामने कुरसी पर बैठ गई। वह हमेशा पैर चौडे क़रके बैठती थी, हालांकि उसके एक भी बच्चा नहीं हुआ था। उसके चेहरे की बेफिक्री मुझे नापसंद थी। उसे बेफिक्र होने का कोई हक नहीं था। अभी तो पहली पत्नी से प्रबोध को तलाक भी नहीं मिला था। और फिर प्रबोध को दूसरी शादी की कोई जल्दी भी नहीं थी। मेरी समझ में लडक़ी को चिन्तित होने के लिये यह पर्याप्त कारण था। उसे घर में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने कभी अपने यहाँ आने वालों से यह नहीं पूछा कि वे लोग क्या पीना चाहेंगे। वह तो बस सोफे पर पांव चौडे क़र बैठ जाती थी। हर बार प्रबोध ही रसोई में जाकर नौकर को हिदायत देता था। इसलिये बहुत बार जब हम चाय की आशा करते होते थे, हमारे आगे अचानक लेमन स्क्वैश आ जाता था। नौकर स्क्वैश अच्छा बनाने की गर्ज से कम पानी ज्यादा सिरप डाल लाता था। मैं इसलिये स्क्वैश खत्म करते ही मुंह में जिन्तान की एक गोली डाल लेती थी।
प्रबोध ने मुझसे पूछा,
'' कहीं एप्लाय कर रखा है? '' फिर जो काम लीला करती थी उसके बारे में मुझे शुबहा था। उसने कभी अपने मुंह से नहीं बताया कि वह क्या करती थी। हरि के अनुसार, ज्यादा बोलना उसकी आदत नहीं थी। पर मैं ने आज तक किसी वर्किंग गर्ल को इतना चुप नहीं देखा था।
प्रबोध ने मुझे कुरेद दिया
था।
मैं भी कुरेदने की गर्ज से
कहा, '' सूट
क्या शादी के लिये सिलवाये हैं? '' लीला अब तक सुस्त हो चुकी थी। मुझे खुशी हुई। जब हम लोग आये थे उसे डनलप के बिस्तर में दुबके देख मुझेर् ईष्या हुई थी। इतनी साधारण लडक़ी को प्रबोध ने बांध रखा था, यह देख कर आश्चर्य होता था। उसकी साधारणता की बात मैं अकसर हरि से करती थी। हरि कहता था कि लीला प्रबोध से भी अच्छा आदमी डिजर्व करती थी। फिर हमारी लडाई हो जाया करती थी। मुझे प्रबोध से कुछ लेना देना नहीं था। शायद अपने नितान्त अकेले और ऊबे क्षणों में भी मैं प्रबोध को ढलि न देती पर फिर भी मुझे चिढ होती थी कि उसकी पसन्द इतनी सामान्य है।
प्रबोध ने मेरी ओर ध्यान
से देखा, ''
तुम लोग सावधान रहते हो न अब? ''
प्रबोध ने कहा,
'' आजकल उस डॉक्टर ने रेट बढा दिये हैं।
पिछले हफ्ते हमें
डेढ हजार देना पडा।'' मेरा मूड खराब हो गया। एक तो प्रबोध का ऐसी बात शुरु करना ही बदतमीजी थी, ऊपर से इस सन्दर्भ में हरि का लीला से सहानुभूति दिखाना तो बिलकुल नागवार था। हमारी बात और थी। हमारी शादी हो चुकी थी। बल्कि जब हमें जरूरत पडी थी तो मुझे सबसे पहले लीला का ध्यान आया था। मैं ने हरि से कहा था, ''चलो लीला से पूछें, उसे ऐसे ठिकाने का जरूर पता होगा।''
लीला मेरी तरफ देख रही थी,
मैं ने भी उसकी ओर देखते हुए कहा, ''
तुम तो कहती थी, तुमने
मंगलसूत्र बनाने का आर्डर दिया है।'' प््राबोध की पहली पत्नी इसी समुद्र से लगी सडक़ के दूसरे मोड पर अपने चाचा के यहाँ रहती थी। हरि ने मुझे बताया था, शुरु शुरु में जब वह प्रबोध के साथ समुद्र पर घूमने जाता था, उसकी पहली पत्नी अपने चाचा के घर की बालकनी में खडी रहती थी और प्रबोध को देखते ही होंठ दांतों में दबा लेती थी। फिर बालकनी में ही दीवार से लगकर बाँहों में सिर छिपा कर रोने लगती थी। जल्दी ही उन लोगों ने उस तरफ जाना छोड दिया था।
प््राबोध ने बात का आखिरी
टुकडा शायद सुना हो क्योंकि उसने हमारी तरफ देखते हुए कहा,
'' गोली मारो
मनहूसों को! इस समय हम दुनिया के सबसे दिलचस्प विषय पर बात कर रहे हैं।क्यों
हरि,
तुम्हें यह तरीका पसन्द
उठते हुए मैं ने प्रबोध से
कहा, ''
हम लोग बरट्रोली जा रहे
हैं,
आज स्पेशल सेशन है,
तुम चलोगे?
''
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