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तान्या दीवान लन्दन के खुले और उनमुक्त वातावरण में तान्या दीवान का व्यक्तित्व खिल उठा। वह जल्दी ही महानगरी के सारे दुरूह रास्ते पहचान गई। व्यवहार कुशल तो ऐसी कि क्या कोई कूटनीतिज्ञ होगा। पढाई लिखाई उसने जम कर किया। ममी डैडी को कभी कुछ कहने का मौका नहीं दिया। आनर्स के साथ डिग्री, मास्टर्स, पी एच डी और फिर नौकरी मिली तो साची एण्ड साची में। धन दौलत शोहरत सब तान्या के कदम तले। सेमिनार, कानफ्रेन्सेज, क्लबिंग, हॉलीडेज, ईन्टरव्यूज, महिला मित्रों के साथ साथ ढेरों पुरुष मित्र। व्यवसाय के साथ साथ हर तरह का व्यक्तिगत अनुभव। नौकरी और गाडी और गाडी क़े बदलते मॉडल के साथ मित्रों के दायरे और घेरे भी ब्दलते। तान्या ने अपने जीवन को मन मुताबिक संवारा। ममी डैडी ने कभी दखलन्दाजी नहीं की। तान्या समय की मांग को खूब समझती थी। मां बाप सुरक्षित और आश्वस्त जीवन के बहुत महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु हैं। जिन्दगी की तेज रफ्तार में जब कभी मम्मी का स्वर किसी भी वजह से बदला या उखडा लगता तो वह किसी न किसी बहाने कावेन्ट्री जा कर उनसे लाड दुलार भी कर करा आती थी। मम्मी को खुश करने के लिये ज्यादा कुछ नहीं बस उनके साथ रात देर देर तक हिन्दी फिल्म देखना फिर दूसरे दिन उनके डायलॉग बोल बोल कर उन्हें हंसाना। डैडी के साथ शतरंज खेलना, चीटिंग करके उन्हें मात देना और डैडी का प्यार से उसकी दी हुई मात स्वीकार करना, क्रिकेट पर बहस करना। शादी की बात आये तो जॉब के कमिटमेन्ट की दुहाई देना और काल्पनिक शादी शुदा दोस्तों के कैरियर की दुर्दशा का नाटकीय वर्णन करना। जब वह मम्मी डैडी का मन बहला कर लन्दन वापस आती तब परिवार, मम्मी डैडी और उनकी तमाम फनी मान्यताएं और मूल्य उसके दिमाग से या तो निकल चुके होते या अवचेतन में कहीं आराम करने लगते। मम्मी डैडी, बेटी के सरस व्यवहार, ख्याति और प्रगति पर खुश होते। मित्रों और सम्बन्धियों से उसकी चर्चा करते नहीं थकते। काफी दिनों से तान्या कावेन्ट्री नहीं जा पाई थी। जीवन व्यस्त ही नहीं बहुत व्यस्त हो चला था। मम्मी दैडी से फोन पर बात हो जाती। इधर कुछ दिनों से मम्मी उसके विशेष मित्रों के बारे में पूछना नहीं भूलतीं। पर हर बार वह बडी चतुराई से ऐसे प्रश्नों को गोल कर जाती। मम्मी वैसे खुले विचारों की है पर वह उस पीढी से सम्बन्ध रखती है जो चाहे कितना भी आधुनिक हो जाये फिर भी लडक़ी की शादी जैसी परम्परा के अधिकार भरे जकडन के सम्मोहन से मुक्त नहीं हो पाता है। चाहे उनका अपना अनुभव कितने ही दर्दनाक हादसों से भरा हुआ क्यों न हो। वैसे मम्मी डैडी ने शादी के लिये अभी तक उस पर कोई खास दबाव नहीं डाला। तान्या सोचती मम्मी डैडी उदार, सहृदय और खुले मन के हैं। घूमने फिरने, मौज मस्ती पर उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। पिछली बार जब वह एड्रियन और पीटर के साथ हॉली डे पर गई थी तो उन्होंने बस यही कहा था, '' इन लोगों के साथ आना जाना, दोस्ती वगैरह तो ठीक है, पर सीरियस मत होना। शादी ब्याह अपनों में ही ठीक होता है। उनका यह कहना उसे बडा ऑड और बैकवर्ड लगा। पर ऐसी बातों को हवा में उडा देना ही अच्छा है। मम्मी डैडी से मन मुटाव करना उसे कभी रास नहीं आता। इधर पिछले कुछ दिनों से मम्मी शादी ब्याह पर कुछ ज्यादा ही बातें करने लगी हैं। इस उस के शादी की खबरें, खासतौर पर उसे सुनाने को उत्सुक रहती हैं। जब भी बात होती, हमेशा घुमा फिरा कर टोह लेने की कोशिश करतीं। कहीं वह किसी गोरे के साथ तो सीरियस नहीं हो रही है। हुंह, सीरियस, सीरियस माय फुट! यहां तो थोडा रिलैक्सेशन चाहिये, और क्या? अभी कुछ हफ्तों पहले तान्या की मुलाकात ऐशली से संगीता के घर हुई थी। उस रात उसे ऐशली के जोक्स कुछ इतने अच्छे लगे कि लौटते समय तान्या ने ऐशली को अपने घर कॉफी पर निमन्त्रित कर लिया। उस रात एशली जोक्स सुनाते सुनाते बिस्तर में आ घुसा। ऐशली रमता जोगी है। उसके पास अपना कुछ नहीं है सिवाय कैमरे और गिटार के। वह बातों का घुडसवार है। पहले तो ऐशली उसका फ्लैटमेट बना, फिर कुक और फिर एन्टरटेनर और फोटोग्राफर। सब कुछ अच्छा खासा कन्वीनियन्ट रहा, बिना किसी कमिट्मेन्ट के। उसके होने से तान्या की बोरियत दूर हो जाती है, थकान उतर जाती है, और थोडा रिलैक्सेशन हो जाता है। घर आने पर साथ सुथरा फ्लैट फिर चीज और वाइन के साथ इंतजार करता ऐशली उसे बहुत अच्छा लगता है। ऐशली क्रियेटिव है। उसके फिगर को ध्यान में रखते हुए वह तरह तरह के कैलरी कन्ट्रोल्ड डिशेज बनाता है।
उस रात साढे ग्यारह बजे
बदकिस्मती से ऐशली ने गफलत में सोते सोते मम्मी का फोन रिसीव कर लिया।
बस मम्मी उखड ग़यीं।
दूसरे दिन
मदर्स डे था।
वह मम्मी के मनपसन्द फूलों
का बडा सा बुके लेकर घर गई।
मम्मी ने फूलों को
देखा तक नहीं।
बस ऐशली को लेकर उस पर पिल
पडीं।
ख़ूब घेराई हुई।
उस रोज चतुर तान्या
अपनी मीठी मीठी बातों से भी मम्मी को बहला - फुसला न सकी।
डैडी इस सब के बीच
कुछ नहीं बोले बस चुपचाप सुनते रहे।
बाद में फोन पर भरे
गले से कहा, मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है सोचते हुए उसने मम्मी डैडी को खुश करने और खुद को बहलाने के लिये उनकी शादी की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर ऐश्वर्य से परिपूर्ण छुट्टियां कनेरी आाइलैण्ड में बुक करा दीं। दो सप्ताह तक उसने तन - मन - धन से मम्मी डैडी का जी - भर मनोरंजन किया। डैडी से घण्टों क्रिकेट, पुरानी फिल्मों, बिजनेस की पेचीदगियों और राजनीति पर बातें करती तो मम्मी से बढते अपराध, फिल्म, फैशन, कला और साहित्य पर। उन दो सप्ताह में उसने उनपर ऐसा जादू चलाया कि मम्मी डैडी की सारी शंकाएं छू मंतर हो गईं।
मुसीबत तो तब हुई जब
एयरपोर्ट पर चलते चलते मम्मी ने हल्के मगर बेहद सख्त शब्दों में कहा- वैसे तान्या लम्बी दोस्ती पसन्द नहीं करती, पर ऐशली के साथ उसका लम्बा और मधुर सम्बन्ध अनजाने में बिना किसी कमिटमेन्ट के हो गया। लडक़ियों से दोस्ती करने में माहिर, ऐशली शादी को बरबादी, बेवकूफी और किसी खूबसूरत रिश्ते को खत्म करने की साजिश मानता है। इस विषय पर तान्या की उससे कई बार छोटी मोटी बहस हो चुकी है। पर इधर मम्मी डेडी ऐशली को लेकर आतंकित हो उठे हैं। और उधर ऐशली भी कुछ ज्यादा ही भाव खाने लगा था। आखिरकार तान्या को उसे भगाना पडा। कोई कमिटमेन्ट तो था नहीं। पर कमबख्त याद तो आ ही जाता है। तान्या को पहली बार लगा, मां की बातों में एक गहरा सच बैठा है। ऐशली धीरे धीरे उसकी नसों में समाने लगा था। ओह! अच्छा ही हुआ, बहुत ही अच्छा हुआ एवरी थिंग हैपेन्स फॉर द बेस्ट! फिर भी उसके जाने के बाद जब कभी वह अकेली होती है तो मन का कोई कोना उदास लगता। कभी कभी यूं ही सुबकने का दिल करता है या मन करता है डैडी की गोद में बैठ कर उनसे फिजूल की बहस करती जाये। यह सब पहले तो नहीं होता था। ऐसा क्यूं हो रहा है? क्या मां की बात ठीक है। क्या अब वह उम्र के उस दौर पर आ गयी है जब उसे स्थायी साथी चाहिये। उसने अपने सभी दोस्तों का मुआयना किया, ज्यादातर ने शादी कर ली थी और जो बचे थे, वे या तो लिव इन कर रहे थे या शादी के इरादे से किसी के साथ आ - जा रहे थे। तान्या अभी भी शादी के मूड में नहीं थी। यह शादी भी बडी मुश्किल चीज है। कहां मिलेगा उसे ऐसा कोई जो उसके लाइफ स्टाइल में एडजस्ट कर सके। वैसे तो डैडी कभी शादी के बारे में बातचीत नहीं करते, पर पिछले हफ्ते जो कुछ उन्होंने कहा वह काफी था। वैसे भी डैडी हमेशा थोडे में ज्यादा ही कहते हैं। क्या सचमुच शादी की एक खास उम्र होती है? नहीं ! नहीं ! आजकल तो लाइफ बिगिन्स एट फोर्टी उसके पास अभी बहुत समय है, कह कर उसने अपने मन को मुक्ति दी। इस बार क्रिसमस की छुट्टियों में जब तनु घर आई तो मम्मी डैडी ने उसके जन्मदिन पर खूब बडी और शानदार पार्टी दी। नये और पुराने आन्टी - अंकल जिनमें से कुछ ने तो उसे बचपन में गोद में खिलाया था, सबने उसकी सफलता पर ढेरों बधाइयां दीं। साथ ही सबने किसी न किसी बहाने उसे शादी कर लेने की राय भी दी। इधर तीन चार दिनों से मम्मी इस कोशिश में थीं कि उसे अपनी पसन्द के कुछ लडक़ों से मिलवा दे। उसे यह सब बेतुका और अजीब लगता। उसने बडे धीरज से मम्मी को समझाया कि जिस तरह से वो शादी के बारे में सोचती हैं वह उसकी सोच से बिलकुल अलग है। वह अगर शादी करेगी भी तो एक दोस्ताना कमिट्मेन्ट के लिये करेगी। फिर भी मम्मी को खुश करने के लिये उसने लडक़े देखने की औपचारिकता कई बार निभाई। फिर एक दिन उसने आंखों में मोटे मोटे आंसू भर कर मम्मी से कह दिया कि इस तरह देखा देखी वाली शादी वह कतई नहीं कर पायेगी। शी हैज टू क्लिक विद् सम वन टु गैट मैरिड। फिर वह लडक़े को खुद जानना और पहचानना चाहती है और वह भी बिना परिवार के हस्तक्षेप और दबाव के। मम्मी सब कुछ समझते हुए भी कुछ नहीं समझ पा रही थीं। यह क्लिक होना भी क्या स्टूपिड बात है! बिना मां बाप के बीच में पडे ज़ीवन का इतना महत्वपूर्ण निर्णय उनकी लाडली - दुलारी बिटिया कैसे ले सकती है? पहली बार घर में तनाव का कुछ ऐसा माहौल बना कि महीनों तना तनी चलती रही। धीरे धीरे शीत युध्द की स्थिति आ गई। फिर कहीं मम्मी की समझ में आया कि बेटी अपने कद से ज्यादा बडी हो गयी है। हार कर मम्मी ने समझौते का रुख अख्तियार कर लिया। वह बेटी को खोना नहीं चाहती थी। सो एक दिन बोलीं - '' देख तान्या, तेरी जो मर्जी हो वह कर, पर लडक़ा अपने परिवेश का होना चाहिये। वरना तू डैडी को खो देगी।''
तान्या बहस करने के मूड
में नहीं थी।
वैसे भी उसे डैडी को
डिफ़ाय करना कभी पसन्द नहीं था सो बोली,
तान्या भी तरह तरह के
टैम्परैरी रिलेशनशिप्स से ऊब चुकी थी।
कुछ ही दिनों में
उसे लगने लगा था कि उसे भी ठहराव और कमिट्मेन्ट की आवश्यकता है,
पता नहीं यह पारिवारिक दबाव का असर था या बढती उम्र का
तकाज़ा।
उस रात पोडयम में तुहिन
मजूमदार को देखा।
काफी बडा गेट
टु गेदर था।
धीरे धीरे सभी एक दूसरे से
परिचित हो रहे थे।
सांवला,
तीखे नाक नक्श वाला बेहद सहज सा दिखने वाला तुहिन अपने
मित्रों के साथ टेबल के दूसरे सिरे पर बैठा था।
थोडी ही देर में जब
बातचीत का दौर चला तो उसने देखा तुहिन कोई बेहद मजेदार बात बडी ही मासूमियत
से सुना रहा था।
उसके अपने चेहरे पर
बच्चों का सा भोलापन था।
मेज पर बैठे उसके
सभी साथी ठहाके पर ठहाके लगा रहे थे।
'' वाओ! दिस
मैन इज रियली ग्रेट।''
उसने मन ही मन कहा।
उस रात उसका ध्यान
खाने पर नहीं था।
वह स्वयं भी तो
अपने दोस्तों के साथ खिल खिल हंसती चली जा रही थी।
तुहिन की अदायें
उसके अन्दर अजब सी हरारत पैदा कर रही थीं।
खाना खत्म होने के
बाद चलते समय जब सब एक दूसरे से विदा ले रहे थे तो तुहिन ने सायास आगे बढ
क़र, उससे हाथ
मिलाते हुए कहा, '' यू सीम टू हैव एन्जॉयड द
ईवनिंग तान्या।'' बस वहीं उसकी बॉडी कैमिस्ट्री में हडक़म्प शुरु हुआ। क्या हुआ? कैसे हुआ? वह समझ नहीं पा रही थी। एक मधुर कम्पन! शीत लहर! एक रुपहली किरण सी निकली और उसके तन - बदन को भिगो गई। धडक़नों का उढाल जो बढा तो वोल्टेज शीर्ष पर आ गया। बडा विचित्र अनोखा अनुभव था। उसके माथे पर पसीना सा आ गया। वह आगे बढ ही न सकी। बस वहीं पास की टेबल के पास दोस्तों के साथ खडी ख़ुद को संतुलित करने की कोशिश करती, गेट से बाहर जाते तुहिन को देखती रही। तुहिन की आवाज, उसका सारा वजूद उसके दिल में उतरता चला जा रहा था। लगा कम्प्यूटर के जिस सॉफ्टवेयर की उसको तलाश थी, मिल गया। मन के डिजिटल कैमरे पर ढेरों तसवीरें अपने आप अक्स हो गयीं। उस रात उसके चारों ओर तुहिन था। रात जब उसने गिटार बजाया तो उसके तारों में एक अनोखा अधीर संगीत धुनों में बज उठा। फिर जब कंप्यूटर पर बैठी तो इंटरनेट पर तुहिन मजूमदार का ई मेल पता देर रात तक खोजती रही। वह तो अच्छा हुआ जो उसका पता वह खोज नहीं पाई! वरना न जाने क्या बेवकूफी कर बैठती। उसने खुद को खबरदार किया, '' तान्या दीवान बीहेव योर सेल्फ।'' सुबह ऑफिस जाते हुए वह अपने इस विचित्र अनुभव और मन:स्थिति के बारे में सोचती रही। शायद रात उसने कुछ और भी महसूस किया था। क्या महसूस किया था? अपने चेहरे पर तुहिन की नजरों की गर्मी को महसूस किया था। शायद सारे समय वह उसकी नजर के घेरे में थी। तो क्या तुहिन भी उसकी ओर आकर्षित है? पिकैडिली से गुजरते हुए उसने इरोज क़ी मूर्ति और उसके हाथों में पकड तीर कमान को भरपूर नजरों से देखा, प्यार के देवता यानि कामदेव, यानि क्यूपिड। यू स्टूपिड तान्या, डोन्ट बी सिली! यू आर नॉट बोर्न टू फॉल इन लव लाइक दिस एण्ड बी अ स्लेव टू समबडी कॉल्ड तुहिन मजूमदार। इडियट उसने खुद को कहा। सुबह ई मेल चैक करने के लिये कंप्यूटर खोला तो तुहिन का ई मेल देख कर उसे लगा वह शायद पिनक में है या कि अपने होश खो बैठी है या कि वह कॉन्टेक्ट लेन्स लगाना भूल गई है या कि वह ऑफिस में नहीं बिस्तर पर पडी सोई कोई स्वप्न देख रही है। कहीं कुछ गडबड ज़रूर है। देर तक उसके बदन का रेशा थरथराता रहा। उसने कम्प्यूृटर ऑफ किया, फिर ऑन किया तुहिन का ई मेल वही का वही। माई गॉड! आई कान्ट बीलीव दिस, इट इज एबसोल्यूटली इम्पॉसिबल! तुहिन, तुहिन मजूमदार हाऊ कुड यू एक्सरे माई इनर फीलिंग्स! तुम्हें मेरे ई मेल का पता कैसे मिला? पल भर में तान्या की सोच बदल गई, दुनिया बदल गई। आग की लपटें, शीत लहरियां दोनों साथ साथ! गजब! जीवन में और खास कर तान्या दीवान के जीवन में ऐसी घटना घट सकती है, वह सोच भी नहीं सकती है। यह कैसी अनुभूति? इसका उत्स कहाँ है? मन के अन्दर, अन्दर बहुत अन्दर। ओह! तान्या दीवान, तुम फिलासॉफर नहीं हो, तुम एक प्रोफेशनल, प्रेक्टीकल ब्रिटिश इण्डियन युवा हो। सोचते हुए उसने बेवजह बालों को उंगलियों में फंसाते हुए पीछे की ओर संवारा। फिर मन ही मन बुदबुदाई, हैव आई रियली क्लिक्ड विद् हिम? पर यह तुहिन, तुहिन नाम कुछ समझ नहीं आया। कभी उससे मिली है क्या? थोडी देर बाद जब मन कुछ संतुलन में आया तो उसने मम्मी को फोन कर, बिना किसी भूमिका के पूछा,
''
मम,
एक बेहद मजेदार नाम
तुहिन सुनने में आया है,
कैसा लगता है?'' मां से बात कर तान्या को सुकून मिला। मन में चल रहे तर्क वितर्क को उन्होंने एक अच्छी दिशा दी। पहले भी उसने तुहिन को कहीं देखा था क्या? उसे कुछ याद नहीं आया। कुछ खास नहीं होते हुए भी कुछ खास है इस तुहिन में, तान्या ने सोचा। बेधक दृष्टि रखने वाली तान्या क्या उस खास को बेध सकी? वह सांवला सा युवक जो सदा सहज संतुलन में रहता है, अन्य लडक़ों से कुछ हटकर है। वही सहज सा युवक आज उसके हृदय में इस तरह हलचल क्यों मचा रहा है? अरे! तान्या दीवान यह क्या दीवानगी है। एक ई - मेल ने तुम्हें इतना चंचल कर दिया? इतना उतावलापन क्यों? क्या मैं सचमुच उससे क्लिक कर गई?
तान्या दीवान ने ई मेल का
जवाब तो नहीं दिया,
पर यापीज क़ी उस वार्षिकी पर जश्न मनाने
साउथ हॉल प्रोफेशनल क्लब गई जरूर।
तुहिन से भी मिली।
चिडिया - सी खूब
चहकी।
चंदा की किरणों सी नाची,
फिर सामने बैठे तुहिन की टाई से खेलते हुए,
उसने कहा, '' तुहिन,
तुम्हें मेरा ई मेल पता कैसे मिला?'' |
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