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छुटकारा
( भाग 2)
रात के समय छन्नो ने गली के चारों ओर देखा इधर - उधर से कोई नहीं आ रहा था जाडे क़ा मौसम, सबकी किवाडें बन्द थीं वह चोर कदमों से उमेश के घर की ओर चल दी। किवाडों पर नामालूम सी दस्तक दी सुरेखा ने द्वार खोल दिया देखते ही बोली - '' छन्नो बुआ! कैसे?''
'' अरी छन्नो! आ आ,
तेरी ही बातें हो रही थीं
'' अम्मा जी पौरी में ही पीढा पर बैठी हुई थीं नीचे बोरा बिछा कर मुंशियानी और पंडितानी बालूशाही की बहू उमेश भी कुर्सी पर बैठे थे इतने लोग! छन्नो कहां आ गयी
उसने एक एक कर सबको देखा तो अनचाहे ही कंठ में रुलाई भर आई
बहुत काबू किया, हिलक - हिलक कर रो पडी हिचकियां बंध गयीं छन्नो ने धोती का पल्ला आंखों पर धर लिया मुंह भी ढक लिया गली के लोग  अपने लोग!

सुरेखा का दिल उमड या, '' छन्नो बुआ, बैठ जाओ घबरा रही हो?''
अम्मा जी ने धीरज बंधाया, '' रोने से बात सधेगी?
तू परेशानी तो समझ नहीं रही
''
सन्नाटा खिंच गया फिर
छन्नो की सुबकियां धीमी पड ग़यीं तब मुंशियानी ने बात शुरु की, '' अम्मा जी, जौ बडा होता है, जौ की जात तो बडी नहीं होती इसकी आंखों पर परदा नहीं पडा, मगज डूब गया है गली के लोगों की क्या हालत बना दी'' कहकर मुंशियानी ने पंडितानी की ओर देखा
''
कुछ मत कहलवाओ मुंशियानी
हमारा आदमी बिना अन्न पानी के मुंह बांधे पडा है यह बैठी है तुम्हारे सामने, इसी से पूछो कि अब तक ऐसा हुआ है कभी कि पंडित के द्वारे भंगिन का घर हो किसके हलक में रोटी चलेगी? गू - मूत के डलिया खपरा''
बालूशाही की बहू ने बात का समर्थन किया, '' मिर्जा जी कह रहे थे, तैयार हो जाओ,
गली में अब सुअर कटा करेंगे
''
अम्मा जी का जी घिनिया आया, '' हाय थू!''

मुंशियानी फिर झींकी, '' राजेश ( कबूतरबाज) के सम्बन्ध वाले आ रहे थे मना कराई है बताओ क्या देखेंगे? घर पडौस में भंगिनिया कौन सा बेटी वाला रूपेगा?'' मुंशियानी ने पल्ला पसार दिया छन्नो के सामने, '' इस गली पर तो मेहर कर पूरे शहर में एक नहीं, अनेक मकान बिक रहे होंगे हमारे बालक कुंआरे रह जायेंगे''
छन्नो की रुलाई फिर छूटी
उमेश ने छन्नो को ढाढस दिया, '' रोती क्यों हो? सब ठीक हो जायेगा भरोसा रखो''
छन्नो का भर्राया हुआ स्वर निकला, ''
भरोसा ही तो कर लिया था भइया
पंडित जी ने खुद कहा था - छन्नो तू बेगम बाग में जगह ले ले, पास ही है जरूरत पडे लडक़े साइकिल से बुला लायेंगे और फिर तेरी जाति के लोगों ने वहां अच्छे मकान बना रखे हैं मिर्जा बोले थे - बेगम बाग तो दूर है फिर भी श्याम नगर में मेहतर बस्ती में सरकारी क्वाटर बन गये हैं मुंशी जी प्राग मिल के पीछे किराये के कमरे का सौदा पटवा रहे थे''
'' भइया, हमने सोची, यहां वहां क्यों फिरें?
फिर पक्के मकानों वाले मेहतर भी कौन से बर्दाश्त करते हैं
नौकरपेशा लोग तो जात छिपाकर भी रह लेते हैं संडास कमाने वाले क्या करें? सरकाारी क्वाटरों का हाल यह है कि वे ऊंची जाति वालोत्त् लप ही किरायेदार बनाने में दिलचस्पी रखते हैं हमें पास नहीं फटकने देंगे''


''
यही बात हमने कुसुमी की अम्मा को बता दी, और करम की लागिन तभी बताई थी, जब अनपहचान बदमाशों ने डुकरिया को घर में घुस कर पीटा था। नाक कान का गहना उतरवा ले गये। कुसुमी की अम्मा कहती थी वह बदमाशों को पहचान गयी है, इसलिये उसकी जान को खतरा है। अब वह घर बेचकर अपनी बेटी कुसुमी के पास जाना चाहती है। सो अरज की थी कि छन्नो तेरे पास इन दिनों पईसा है और बाबरी, जहां काम तहां ठांव, इस घर को ही खरीद ले।''
''
इस घर को?''
''
ताज्जुब क्यों कर रही है?''
''
यहां हमें कौन रहने देगा?''
''
वे ही, जो मुझे उखाड रहे हैं। बोल मैं क्या भंगिन हूं?''
''
नहीं अम्मा।''
''
अरी हिम्मत तो कर, जो देगी सो ले लूंगी।''

'' घर जाकर रज्जो से बात की, सारा मामला बताया। रज्जो डरी न सहमी, बोली, '' अम्मा चल। मैं भी अब यहां अकेली नहीं रहती। गली में डर कैसा? फिर बडे - बडे लोगों की बस्ती, हम बचे रहेंगे। सिलाई वाली बहनजी कहती हैं - अब छुआछूत कौन मानता है? मानता हो तो बाल्मीकी समाज में अर्जी दे दो, लोग धरने पर आ जयेंगे। सबको अपने लिये डर लगता है। रज्जो कम्बख्त की जिद कि हम यहां आ गये।''

उमेस बोले, '' हमारे गली के लोगों को यही मलाल है कि तुम इस घर को न लेती तो गली के ही किसी आदमी को मिल जाता''
'' अरे, राम के नाम लो,
कुसुमी की डुकरिया प्रान तज देती पर अपने किवाड ऌस मोहल्ले के आदमी को न छू देती
कह रही थी - पसकार कचेहरी से झूठी मोहर लगे कागज बनवा लाया था बैनामा के डम्बर प्रसाद पंडित अलग धमका रहे थे कि मकान उनके नाम हो, दस पांच हजार दे भी देंगे मुंशी जी का बेटा तो किसी से डरने वाला नहीं ऐसे ही कब्जे में ले रहा था ये बातें हम नहीं कह रहे अम्मा जी, हम नहीं कह रहे पंडितानी, यह सब कुसुमी की अम्मा कहती थी कि इस गली के चलन को कौन नहीं जानता, किरायेदार मकान मालिकों पर सवारी गांठ रहे हैं किसी को कानों कान खबर न हो, इस बात के लिये उसने हमसे पांच हजार कम लिये और रज्जो की कसम दी, '' कहते कहते छन्नो की आवाज ख़ुल गयी

मुंशियानी और पंडितानी के चेहरे काले पड ग़ये बालूशाही की बहू का मुंह छोटा हो गया अम्मा जी के मुंह से गाली निकलते निकलते रह गई नहीं रहा गया तो बोल ही पडीं, '' क़ुसुमी की अम्मा ही तो रंडी गली में नरक बो गयी और पाप की गठरिया धरकर बेटी का खाने चली गयी अगले जनम में सुअरिया बनेगी''
उमेश ने अपनी मां को टोका- '' अम्मा जो चली गयी उसे गाली देने से फायदा?''
'' इसे नहीं रोकता,
कैसी जुबान चला रही है
'' बूढी अम्मा की गर्दन की नसें तन गयीं मुंशियानी बोली, '' इन्हें कौन रोक सकता है बदन में तेल बढ ग़या है''
''
ऐसी फिरती हैं पांच सौ साठ
'' पंडितानी तमक पडीं
छन्नो ने हाथ जोड लिये और बोली, '' पांच सौ साठ नहीं दस सौ बीस,
बीस सौ चालीसपर इतनी बताये देती
हूं कि इस गली के लिये एक मेहतरानी नहीं जुटेगी, हां हम मेहतरों का हिसाब कुछ ऐसा ही है समझ गयीं?''
''
हम सब जानते हैं
सोच समझ कर ही कह रहे हैं'' बालूशाही की बहू बोली
''
तो ठीक है
'' छन्नो उठ कर खडी हो गयी

रात को उमेश के घर झडप हुई थी फिर भी काम तो काम है छन्नो डलिया खपरा उठाये संडास कमाने चल दी सबसे पहले पंडित डंबर प्रसाद की संकरी गैलरी का रास्ता लिया और पीछे की ओर से मैला सकेरने लगी
ऊपर की मंजिल वाले संडास में चढक़र किसी ने हगा,
गरम - गरम टट्टी छन्नो की बांह पर गिरी

'' एऽ तेरी कफन कांटी कर लूं, तेरी''
उसके मुंह से बेतहाशा गाली निकली

''
कफन कांटी करना अपनी बेटी की
सो गली भी चैन पाये बेडिनी दीदा मटका कर मरदों को रिझा रही है कि इसी गली में ठहर जाये'' बीच में पंडितानी ने अपनी बुढियाती छाती ठोकी, '' हम नहीं पेस जाने देंगे तेरी, तू कितना ही जोर लगा ले''
गंदगी में लिपटा हाथ छन्नो के क्रोध की सीमा न रही
जुबान पर काबू न रह पाया अनाप - शनाप बोल गयी, '' ओ पवित्तरता की चोदी पहले अपने चुटियाधारी खसम से पूछ कि हमने वह रिझाया कि हमें वह रिझा रहा था मैं कहती हूं कि क्यों बूढे क़ी लंगोटिया खोलूं जे जौहर उमर के ताल्लुक सोहते हैं नहीं तो बस्ती के चार मेहतर बुलाकर सारी पंडिताई झडवा देतीआज हमारा मुंह देखकर अन्न पानी त्यागे बैठा है, और वहां आकर हमारे चूतर चाटता था''

डलिया खपरा उठा कर धन्नो धमक भरी चाल से चली आई नहीं करना काम भाड में गया ऐसा काम उसने सभी चीजें एक कोने में पटक दीं हाथ धुलाने के लिये रज्जो को पुकारा रज्जो अपने कपडे धो रही थी शलवार के पांवचे ठीक करती हुई मां के पास आ गयी'' क्या हो गया?यह किसने''
''
भंगी के चोदों ने
''
'' अच्छा तो मैं सच ही सोच रही थी,
अम्मा तू गयी संडास की तरफ और पंडित जी का नाती भागा ऊपर की टट्टी में
नीचे खडे एक लडक़े से कुछ इशारा किया, और यह बदमासी हरामी का पिल्ला जरूर मां बापों की बातें सुनकर तरह तरह के बदखेल रच रहे हैं आगे पंडो के यहां जाना नहीं अब अपने आप होस ठिकाने आ जायेंगे''
हाथ धो पौंछ डाले
मन में जमा गुस्सा पिघल कर कुछ गालियों की राह बहा, कुछ आंसुओं की

रज्जो की जिद कि अपना खट्टा मन, छन्नो दूसरे - तीसरे दिन भी काम पर नहीं गयी भरजाने दो बंजमारों के पखाने लगने दो गू के ढेर वह खिडक़ी में से झांकती, राजपाल तसला भर राख ला रहे हैं, हलवाइयों की बुझी भट्टिया खाली कर दीं मिर्जा संडास में चूना डाल डाल कर हार गया लुटिया लेकर प्राग मिल की ओर भागा जा रहा है वहां सुअर पिछियायेंगे हरामी को जाकर तो देख बालूसाही दिशा मैदान की नई जगह खोज आया है कासिमपुर की ओर हगासा आदमी साइकिल से कि रिक्शा से कितनी दूर जाये, कितनी बार जाये? अपने संडास और नालियां तो पेशाब तक की मोहलत नहीं दे रहे छन्नो को हंसी आ गयी रज्जो उमेश की बहू से कुछ बातें सुन कर आई थी बोली, '' तू हंस रही है, सुन तो अम्मा बालूशाही की बहू ने अपना पन्द्रह साल का लडक़ा साइकिल पर अपने गांव भेजा है''
'' हमारे नाश के लिये?''
'' हां,
कहा है अपने नाना से कहना चार भंगी पठा दें
उसके गांव के भंगियों से इलाका भर डरता है भंगी उसके बाप के दांये हाथ हैं''
''
तभी बेचारा मिर्जा बालूशाही के मारे कांपता है
''
'' अम्मा, वह कहती है,
इस हरामजादी छन्नो ने चें चें करी तो एक दिन उसकी लोंडिया को उठवा दूंगी
बालूशाही ने रोका कि वह फजीहत नहीं चाहता''

छन्नो को कडुवी सी हंसी आ गयी
''
आय हाय बडी भवानी बनी है
राजपाल पहलवान की बहू की बात बता देती कि चुपचाप संडास साफ करने को बुला रही है राजपाल ताल ठोक रहा है कि देखें छन्नो को कौन निकालता है?
मन फिर जहरा गया
कहां सोच रही थी मैं इन लोगों से नाराज हूं, अपने काम से खफा तो नहीं बेकार ही हालत यहां तक आ पहुंची गली में एक कुत्ता भी जब नया आता है तो पुराने उसे चींथने दौडते हैं भौंक भौंक कर गली के बाहर कर आते हैं जब पहचान हो जाती है तो वह रम जाता है सब्र करना होगा डंबर प्रसाद पंडित का बुरा माना मैं ने बेचारे का धंधा ही छूत पाक पर टिका है उसीकी खातिर  बरत उपास के ढोंग कर रहा है जाति की बात तो पीछे याद आयी होगी मुंशी को बारह मासा जुकाम रहता है, थूक दिया होगा मुझ चोर की दाढी में तिनका क्यों? और वह कबूतरबाज लडक़ा, बेसींग पूंछ का सांड, मां बाप ही परेशान हैं हां मिर्जा के चेलों की पतली कमरों में लोहे का छल्ला मैं ही पहनाऊंगी, हिजडा कहीं के

चौथा दिन: हाय मुंशी जी तहमद बांधे हाथ में पानी का भरा डिब्बा लिये अरे ज्यादा दूर नहीं जा पाये नाली पर ही बैठ गये मक्खियों ने हमला कर दिया, उठ गये इन्हें भी दस्त लग गये? कान में जनेऊ और धोती खराब! बीमारी फैल रही है?
छन्नो के
किवाडों पर दस्तक पडी वह धीरे से गयी खटिया पर लेट गयी
'' छन्नो! ओ छन्नो?''
रज्जो
किवाडों पर आ गयी, '' कौन है? अम्मा की तबियत ठीक नहीं, डाक्टर के यहां ले जाना है'' और कहकर किवाड ख़ोल दिये दोनों पल्ले पकडे हुए बीच में जमी रही
'' तो तू चल!''
'' मैंऽऽऽ!''
लडक़ी ने
मिर्जा और राजपाल को ऐसे देखा जैसे उन्होंने कोई अनहोनी बात कह दी हो जो रज्जो को छोटा कर रही हो

बालूशाही का चेहरा छोटा हो गया मुंशियानी अपमान और आफत की आग में जल रही थी बालूसाही की बांह पकड क़र बोली, '' चलो यहां से इस भंगिनिया के दरवाजे आ गये सो खुद को राजरानी समझ बैठी तबियत खराब है रानी जी की डॉक्टर को दिखाने जायेंगी ओ हो फेसन में रेसमी कपडे पहन लिये तो जात भी ऊंची हो गयी काम से जी चुरा रही है इस लडक़ी को पैज है हमारी बीना जैसी चप्पल पहनती है, वैसी ही ले आई है देख लो अब संडास कमाने के लच्छिन दिख रहे हैं इसमें? मां को लजा दिया रंडी ने
रज्जो मुस्कुराई
आग में घी सा छोडती हुई बोली, '' मुंशियानी माई, चप्पल बीना जैसी और बाल कटाये हैं सीमा जैसे पंडित जी की सीमा''

वे सब अभी गये नहीं थे कि रज्जो ने जल्दी अगरबत्तियां जला दी थीं और मुंशियानी की तरफ मुंह करके बोली, '' माई गली में तो बदबू के भपारे छूट रहे हैं कोई कैसे रहे? मैं तो जुगंदर की दुकान से धूप बैसांदुर सब ले आई हूं। हाय कितनी बदबू उसने नाक मूंद ली
लोगों ने आंखों ही आंखों में इशारे किये
होठ बिदोरे

मिर्जा बेगम बाग गये, मेहतर बस्ती में पुरानी पहचान के हवाले दिये सोना भंगी की ननिहाल मिर्जा के गांव में है सोना मिर्जा को मामा कहता है राजपाल श्याम नगर के पीछे वाली बस्ती खंगाल आये ज्यादा पैसे देने की पेशकश भी की आने का आश्वासन भी दिया मेहतरानियों ने विपता की बात  काम निकाल देंगी मुंशी जी का कबूतरबाज लडक़ा तीन रिक्शे लेकर वहां शाम तक खडा रहा कोई न आयाअंत में पेशकार के पास लोग गये पंडित जी कान में जनेऊ लगाए और हाथ में पानी भरी प्लास्टिक की बोतल चलते - चलते इतना बोल गये- '' पिछली मोहब्बत का ही वास्ता दे यार तूने तो जूठन की जगह पूरी - परोसा खिलाये हैं इससे ज्यादा कहने के लिये पंडित रुक नहीं पाये, पेट की मरोड ने हांक लगायी, पानी आंतों को छोडने की धमकी दे रहा था लत्ते खराब हो जायेंगे
सफाई के लिये कोई आया न गया

सीता गली अपने वीभत्स और घिनौने रूप में पडी रही अच्छी मुसीबत है इन मेहतरानियों का संगठन, टका से जवाब मिले जिसकी गली है, वही करेगी हां वह बेच देती, रेहन धर देती तो बात दूसरी थी
मुंशियानी और पंडितानी की आंखों से लपटें छूटीं, '' यह दो टका की मेहतरानी हमें बेचेगी,
गिरवी धरेगी
''
रज्जो खिलखिला कर हंस पडी
और बोली, '' अम्मा तेरी मां बहनें बडे नाले पर चूतर ऊघाड क़र बैठी हैं लाज - लिहाज चीर फाड फ़ेंका''

 

बजरिया की ओर से आने वाले लोग दूसरी गली में होकर गुजरने लगे रामघाट रोड की ओर जाने वाले रिक्शों ने इधर जाना छोड दिया फेरी वाले भी कहीं गुम हो गये दूध वाला नाक बांध कर आया था आगे सफाई हो जाने पर ही आने की बात कह गया अखबार ने मुंह नाक पर रूमाल बांधकर हाथ जोड लिये बदबू हमले पर हमला कर रही थी अगरबत्तियां पूरी ताकत लगाकर भी लड न पा रही थीं गली के मुहाने पर पंसारी जुगंदर इतना मुनाफा काट चुका था जितना उसे नौ दुर्गों और धार्मिक अनुष्ठानों के मौकों पर नहीं मिलता बिक्री के कई रिकार्ड टूट गये

गली  मैले की नदी छन्नो ने भी आंखें मींच लीं पर कानों में रुई लगाने के बावजूद वह गली में उमडते रेले में छपाक छपाक चलती औरतों की आहट पा जाती वे नाक और होंठ सिकोड कर भी छन्नो और अपने प्रेम के किस्से कहती जातीं
 ऐसी थी कि जहान छुटे,
गली न छुटे
क्या जाने किस सत्यानासी ने भरमाई है कौन जाने किसने बुरी हवावात का मंतर मारा हैनहीं तो छन्नो
छन्नो का मन मोम की तरह पिघल आया
इधर उधर देखा रज्जो तो नहीं है, चुपके से डलिया उठा ली रचपच कर राख बिछा रही थी डलिया में खपरा धो पौंछ कर रखा था खूब सूख गया है झाडू भी पडी अकड ग़यी है
रज्जो जंगली बिल्ली सी कूदी यकायक, हाथ पकड लिया, '' क्या कर रही है?''
''
काम
''
'' यह काम नहीं,
हमारे मूंड पर धरा मैला है अम्मा
''
'' कैसी है तू?
सिलाई के दम पर ऊल रही है
'' कौन देगा कपडा सिलने को?''
''
तू यह काम करेगी तो कोई नहीं देगा
बिलकुल न देगा अम्मा, सिलाई बहन जी कह रही थीं''
'' जल में रहकर मगर से बैर?''
''
यह गली है
गली में हम भी रहते हैं वे भी मुंशी का हरामी लडक़ा मेरा हाथ पकडेग़ा तो मैं हाथ काट डालूंगी रंडी कहेगा तो मैं उसकी मां को दस बार रंडी कहूंगी उसका बाप हरामी थूक रहा है, और तू उसके गू मूत उठा रही है पंडित हमारे यहां आने के दुख में भूखा बरत कर रहा है तू उसके हगने के इंतजार में देवता मना रही है?'' छन्नो के हाथ से रज्जो ने डलिया छीन कर एक ओर फेंक दी सारी राख बिखर गई

घर - घर सलाह मशवरा हुए आगे की योजना बनी उस योजना के तहत यह प्रस्ताव धरा गया कि म्यूनिस्पैल्टी के लोगों से बात की जाये बडी ग़ाडी में बडी नालियों का कचरा भरने वाले लोग कुछ दिन संडासों का मैला भी ले जायें गाडी क़ा जमादार बोला, '' ले जायेंगे, बिलकुल ले जायेंगे आप अपने मैले को गाडी तक उठा लाओ'' मिर्जा जी का मुंह ऐसा हो गया, जैसे कै करने वाले हों, '' ला हौल विला कूवत! ये दिन देखने के लिये शेर गजलों के खूबसूरत दरीचों में चहलकदमी करने के इरादे किये थे?''
''
मुश्किलें हद से गुजर गयीं
अब पुलिस का सहारा है'' किसी के इतना कहते ही नये जवान लडक़े चौकी पर पहुंच गये हवलदारों के गलों में गलबहियां डाल कर रात के मयखाने के लिये न्यौतते हुए गली तक चले आये छन्नो के बन्द दरवाजे पर डंडा बजा फिर बजा एक बार और बजा ठक ठा ठक
रज्जो चौंक पडी
हौल दौल की मारी छन्नो किवाडों की झिरी से चिपक गयी
'' पुलिस!''
छन्नो का मुंह रोया जैसा हो गया
आगे बोली, '' रज्जो तू क्या कराकर छोडेग़ी? और रह ले इस घर में, अब हवालात चल''

रज्जो मां के पास आ गयी गोरा गदबदा चेहरा लाल हो गया'' क्यों चले हवालात में? हमने किसी की चोरी की है? अम्मा तू एक बार सिलाई वाली बहन जी से मिल ले, डरना भूल जायेगी''
''
तू तो है सही शेरनी
अब कर मुकाबला द्वार पर डंडा लिये खडा है तेरा खसम''
सोचने समझने का मौका न था
रज्जो आगे बढी और किवाडें ख़ोल दीं
''
तो ये है
'' सिपाही ने डंडा हथेली पर घिसा
''
पब्लिक को परेशान कर रही है साली मेहतरानी
अभी हवालात में बन्द कर दूंगा'' रज्जो के पीछे छन्नो खडी थी अनजाने ही हाथ जोडे हुए
'' बोल कुछ कहना है?''
सिपाही की बात पर छन्नो के होंठ थरथरा कर रह गये
रज्जो ने झटके के साथ दुपट्टा गले में डाला और बोलने लगी, '' बस इतना कहना है सिपाही जी कि हमें ले चलो और कम से कम सात दिन के लिये कैद कर लो इन नासियों के गले तक गू की गंगा इतने दिनों में बेशक आ जायेगी''
मुंहजोर लडक़ी!

मिर्जा, राजपाल, पंडित यहां तक कि उमेश भी दांतो तले उंगली दबा कर रह गये वे सब आपस में बगलें झांकने लगे कि कन्नी काटने लगे? तितर बितर हो गये सिपाही लोग भी जल्दी से जल्दी मामला निपटा कर यहां से छुटकारा पाना चाहते थे उनमें से एक ने कहा - '' ठीक है, इस आफत की जड क़ो बन्द रखेंगे, गली में अमन चैन हो जायेगासाली जब से यहां आई है धमा चौकडी मचा रही है डलिया संडास भूल लोगों के कपडे लत्ते देख रही है उन्हीं की तरह रहन सहन बनाने में जुटी है अब संडास कमाना कहां सुहा रहा होगा? '' कह कर सिपाही छन्नो की ओर बढा

बंदर की मिर्जा जी बीच में आ कूदे, '' अरे रे! ऐसा अनर्थ न करना जैसी भी है, हमारी कामगर है कामगर ही नहीं, हमारी हितचिंतक है गली का मामला है हवलदार साहब और गली के सुख दुख को छन्नो से ज्यादा कोई समझेगा भी नहीं छोटी से यहां बडी हुई है''
राजपाल सिंह का पहलवानी बदन आजकल मुरझाया हुआ था
टट्टी फिरने के डर से दंड नहीं पेले दौड नहीं लगायी छन्नो से आंखों ही आंखों में अरज की कि तू रूठ गयी है, हम मनाने आये हैं याद कर रज्जो की छोछक देने हमीं गये थे और वे फिर स्पष्ट आवाज में बोले '' हवलदार साहब इसमें आपकी पुलिस क्या करेगी? सरकारी मामला तो है नहीं जो सरकारी तौर पर सुलट जाये और काहे का मामला छन्नो क्या गैर है? चल छन्नो काम पर आ जा''
मगर छन्नो बुत की तरह चुपचाप खडी थी
मनाने वालों पर कितना भरोसा करे? जिन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया वे कितने हितू हैं? पत्थर मारने वाले कितने रहमदिल हैं? मेरे हाथों पर हगा, वे कितने शुभचिंतक हैं और रज्जो को रंडी बनाया, वे कितने रक्षक हैं? थोडे दिन इनकी भी तो आजमाइश हो जाये, या मुझे ही घिसते रहेंगे
फिर अब तो मेहतर बस्तियों में भी पंचायत हो गयी है कि कोई धौंस देकर हमसे यह काम नहीं करवा सकता
सीतागली छन्नो की है, उस पर छन्नो का ही हक है, यह भी मुनादी हो गयी


अदावतों की अपनी शर्तें होती हैं। नफरतों के अपने दांव खिडक़ी पर मिट्टी का तेल छिडक़ कर किसी ने आग लगा दी। छन्नो हडबडा कर उठी। रज्जो ने देखा तो मुंह से निकला - आग , आग, आग। लडक़ी लपकी। घर में जितना भी पानी भरा रका था, घडे बाल्टी, ड्रम सब के सब आग पर उंडेल दिये। मौत के डर से मां बेटी हांफ रहीं थीं। धुंआ गली में फैल गया। पंडित जी की आवाज आई - ओम शांति, पाप शांति
जरूर किसी देवता का प्रताप है। कलजुग की आग बरसे और देवता का उदय न हो? पंडित जी को कितना तडपाया है। मुंशी और मुंशियानी की आत्मा सताई है। मजाक है? इस पापिन का घर तो खुद ही खाक हो जायेगा। सरग में थूक रही है।
देखो बस खिडक़ी ही जल कर रह गयी। भगवान की चेतावनी।
''
छन्नो! ओ छन्नो! अरी क्या हुआ? कैसे हुआ?''
''
कौन बुला रहा है? मिर्जा जी, बडा चालबाज आदमी है।''
उमेश कहने लगे, '' बेकार का बबाल मचा रखा है, जल जाती तो? उसे खदेडना ही है तो साफ कहो। वैसे क्या ले रही है किसी का?''
बालूशाही आगबबूला हो गया, '' तुम नहीं बोल रहे उमेश। तुम्हारी अपनी सुगड बडाई बोल रही ही कि हरिजन लोग तुम्हें मसीहा मानें।''

छन्नो सबको रोई हुई नजरों से देख रही थी युध्दकाल में हारे हुए सिपाही की सी लोग चले गये खिडक़ी एकदम काली हो गयी और आधारहीन भीरज्जो ने गली की ओर पटक दी छन्नो धरती पर बैठी थी अपनी डलिया, अपना खपरा और अपनी झाडू निहारती सी रज्जो ने उसका मुंह अपनी ओर कर लिया, '' अम्मा मैं सिलाई वाली बहन जी के संग बाल्मीकि समाज में जाऊंगी बता दूंगी एक एक बात सूरज भाई अपने आप निपट लेंगे''
रज्जो के क्रूर होंठ और निर्मम आंखें देखकर छन्नो ने बस हाथ जोड दिये और बोली, '' बेटी अब और ज्यादा दुश्मनी मेरे बस की नहीं''
रज्जो ने मां का कन्धा थाम लिया

छन्नो रुंधे गले से बोली, ''
अब तू सिलाई सीखने नहीं जायेगी
उन लोगों का रहन - सहन दूसरा है और तू वही सीखती जा
रही है
''
रज्जो जिद की पक्की,
गोरा मुंह लाल हो गया
नाक तन गई, '' अम्मा मैं जाऊंगी, अभी जाऊंगी ये लोग हमें यहां रहने क्यों नहीं देते? अब कहां है पुलिस?''

 

घर में आग लगने के बाद रज्जो डलिया - खपरा को कूडे वाली गाडी में फेंकने चली गयी
एक दिन, दो दिन,
तीन दिन  चौथा दिन बीतने को आ गया

रज्जो नहा रही थी
छन्नो आंगन में अकेली बैठी थी गली का हाल फिर बिगड ग़या उसके मन में रह रह कर हिलोर उठती अपने ऊपर बहुत काबू किया फिर भी गली में झांकने का मन कर आया बारिश हो गयी थी चिपचिपाहट में गली आगे कुछ सोच नहीं पायी वह। किवाडों की झिरियों पर आंखें गड-ग़डा कर देखा - पंडित जी के घर का द्वार खुला था वे बार बार संडास की ओर जाते आते हैं भीतर अनकही सी खुशी सी भी जगी और टीस भी उठी काम छूट रहा है देर तक देखती रही उसका भरम ही था कि सीतागली के सीने में इंसानी प्यार धडक़ता है। चीजों के लेन देन और मीठी बली बानी को ही प्यार के दर्जे पर समझती रही आज अपने भीतर होती प्यार की दबदबाहट भी कहीं अंधेरे में खो गयी

अब तो केवल हमले, गालियां और आग के तोहफे उसके लिये यहां रह गये हैम् तो उसकी ओर से चार पांच दिनों के जुडे टट्टी पेशाब के रेलों की सौगात गली में फैली है कैसा चेहरा कर दिया है सीता गली का कि किसी को भी दहशत हो किसी को भी घिन आये रहस्यमय खामोशी छायी है, सोमवार का दिन, छुट्टी का दिन नहीं मगर पेशकार कचेहरी नहीं गये मुंशी अपने दफ्तर नहीं पहुंचे, मिर्जा अपने चेलों को शेर गजल के शारीरिक अभ्यास कराने की जगह नाक और मुंह पर कपडा बांधे बैठे हैं डम्बर प्रसाद मैले के रेले में बढाेतरी कर रहे हैं अब तक उन्होंने छन्नो के आने पर अन्न - पानी का तिरस्कार किया था अब अन्न पानी ने उनके पेट का बहिष्कार कर डाला दस्त हो गये और संडास में जगह नहीं

धीमा सा शोर उठा छन्नो की छाती में दहशत गडग़डाई पुराने जख्म हरे होने लगे लोगों की धीमी आवाजें क़ानों को हुल्लड क़ी तरह फोडने लगीं। किवाडों पर दस्तक हुई छन्नो ने झिरी से देखा मिर्जा तहमद ऊपर उठाये गंदगी के बहते रेले में पांव लिथेडे ख़डे हैं साथ में मुंशी भी उसी दशा में पीछे कौन, उससे देखा नहीं गया ये बिन बुलाये मेहमान मन में खलबली  अब क्या इरादा है?
''
छन्नो दरवाजा खोल दे
'' बडी ही नरम आवाज? ये कपट बोल  कानों में जहरीला सीसा उतर गया
'' छन्नो !''
मीठी चाशनी में लिपटा नाम
वह खडी रही कुछ देर लेकिन बाहर उमेश खडे थे द्वार खोल दिया समझ गयी कि लोग उमेश को तुरप बना कर लाये हैं क्या कहे, मगज में आग का गोला है, चक्कर काट रहा है उस गोले से छन्नो और रज्जो दोनों गुंथी हैं उसकी आंखें कितना रोई हैं मिर्जा क्या जाने? मुंशी को क्या पता? वह मिर्जा की बोली सुन रही है,
'' छन्नो,
साले तीनों लोंडों को कस दिया है
रोज रोज का बबाल बहन बेटियों कीओर आंख भी उठाई तो पुतलियां निकाल लूंगा गली वालों को मैं कबीर और रैदास की मिसालें देता हूं। तू गली वालों को माफी दे मुंशी जी ये खडे हैं तेरे सामने जो सजा देना चाहे, इनके लोंडे को साले की नादानी ऐसे ही है जैसे सरसों की लकडी क़ी आग, अभी जली, अभी बुझी अब देखते हैं कि तेरे खिलाफ

छन्नो जैसे बिना टूट फूट के साबुत खडी हो
रज्जो कह रही थी, ''
अम्मा उमेश भाईसाहब के घर से सुरेखा भाभी ने चुपके से अखबार फेंका
मैं ने धीरे धीरे अक्षर उखाडक़र पढ लिया - अखबारों में इस गली की चर्चा है अब रोग फैलने वाले हैं अफसर चिन्ता कर रहे हैं यहां की बात कहां फैल गयी सारे मेहतर एक हो गये हैं अब यहां कहीं से कोई नहीं आने वाला''
छन्नो क्या सुन रही है, यह क्या हो गया? उसने कहां सोचा था कि ऐसा बम फटेगा?
बेचारे मिर्जा माफी पर उतर आये
और वह कुछ नरम पड ग़यी

सार्वजनिक रूप से गली में चैन था, अमन था पहले जैसी हालत नहीं कि जब घबरा कर छन्नो कुसुमी की अम्मा के पास भागी गयी थी कुसुमी की अम्मा दूसरे शहर में बैठी उसके जरिये अपने पुराने बैरियों से बदला ले रही है वह समझ चुकी थी छन्नो ने टूटते हुए कहा था, '' अम्मा उस घर को वापिस ले लो, हमें वहां कोई नहीं रहने देता''
बूढी क़ी आंखें निकल आईं, '' हाय छन्नो, तू कैसी मेहतरानी है री?
मैं तो थी बूढी निबल
पर तू जवान जहान भी हारी हारी बातें करती है तू चाहे तो भडुओं को नंगा कर दे माना कि तेरे पइसा वापस कर दूं, घर फिर कुसुमी के नाम करा लूं पर उससे बात तो बनती? मुझे उन हत्यारों ने कमजोर मान कर सताया और घर हडपना चाहा, तुझ पर तोहमत है मेहतरानी होने की कैसे अच्छे होशियार लोग हैं, मकान जैसी संपत्ति पर न तेरा हक चाहें न मेरा पर इतना सुन ले तू, बाजों के डर से चिडिया अंडा देना छोड दे तो चिडिया की नसल खत्म हो जाये तू तो इंसान की बेटी है'' ताल ठोकू बुढिम्या रोक रही थी कि आंखों ही आंखों में सहारा देते उमेश रोक रहे थे? कभी कभी अकेले में पेशकार आता और उसकी पीठ थपथपाकर यहीं ठहरे रहने की कसम दे जाता बाहरी और भीतरी तौर पर अलग - अलग चेहरे! क्या इन्हीं लोगों के दम पर डटी है वह? या रज्जो की जिद पहाड सी अडी है? शायद अपनी ही कोई दबी छिपी लालसा बरजोर हो उठी
रूठते मनते, काम छोडते,
काम करते दो महीने बीत गये

अब गली चौकन्नी थी गुप्त रूप से एक बैठक और हुई, जिसमें वे लोग छांट दिये गये जो अब तक छन्नो के वफादार साबित हुए उमेश को कानो कान खबर नहीं हुई पेशकार को भी नहीं बुलाया गया सर्व सम्मति से जो बात तय हुई वह किसी पर जाहिर तक न की गई जो करना था किया देखने वाले देखकर समझ जायेंगे
एक सांझ मुंशी जी घर से विचित्र सी आवाजें उभरी
धरती को काटने जैसी धमक छन्नो ने छत पर चढम्कर देखना चाहा, लेकिन कुछ दिखा नहीं
सांझ से लेकर रात,
रात से लेकर आधी रात मिट्टी और लोहे की आपसी मुठभेड क़ानों से होकर गुजरती रही
वह मुंशी जी की पौरी में ही हाजिर हो जैसे शंका का जहरीला सांप उठता और सीने पर लहराने लगता

वह घबराकर उठ बैठी लगा कि सपना देखा है एक लाश को कई गिध्द नोचने खाने के लिये उतावले हैं छन्नो ने लपक कर बल्ब जला दिया रज्जो भी जाग पडी
'' क्या हुआ अम्मां?''
अपने कपडे ठीक करती हुई वह मां के पास आ बैठी
उसने बेटी को गौर से देखा, ऊंघी हुई दशहत खाई कबूतरी सी कपडे ठीक करने के बहाने हाथ पांव फडफ़डा रही है
किससे पूछे कि अब कि माजरा क्या है?
किससे दरियाफ्त करे कि छन्नो के मन में शंका जो थी,
नागिन सी लहरा रही है
वह डस तो न जायेगी?
आंखों में रात कटी
धुंध के रूप में सवेरा हुआ गली में उजाला कहां से हो? सब्र चती से धुंए सा घुमडता रहा छन्नो ने धडक़ते दिल से डलिया में राख बिछा ली धुली हुई झाडू और साफ सूखे खपरे को उसमें सजा लिया तिल - तिल घडी क़ाटने के बाद काम का समय हुआ

वह जल्दी जल्दी अपना सामान लेकर बदहवास सी घर से निकली सबसे पहले आज मुंशी जी का घर घुसते ही पौरी में ताजा गङ्ढा कुंएनुमा मिट्टी के गीले ढेर पर बैठा एक मजदूर बीडी पी रहा था
''भइया यह पौरी क्यों खोद डाली?''
''
टेंक बन रहा है
''
'' टेंक?''
''
अंगरेजी संडास बनेगा
तुम जैसों की छुट्टी''
छन्नो गूंगी बहरी हो गयी
मुंशी जी का घर अनपहचाना सा भीतर चीख सी उठने लगी अच्छा तो इस तरह मुझे खारिज मत छीनो, मेरे संडास मेरी जिन्दगी हैं मुझसे इन्हें अलग मत करो यह गङ्ढा यहां से उठकर मेरे पेट में समा जायेगा चुप्पी भरे चेहरे पर खौफ उतर आया अंग अंग हिचकियां - सुबकियां ले रहा है बांहों में दबी डलिया थरथराई खपरा कांपा, झाडू लडख़डाई
तभी सामने मुंशी जी का कबूतरबाज लडक़ा प्रकट हुआ
कुर्ता और लुंगी पहने हुए अंगडाई लेता हुआझूलता सा बोला,
'' बोल छन्नो क्या हाल हैं तेरी कबूतरी के?''

मन कमजोर हो गया था, लगा इस आवारा कबूतरबाज के पांव पकड ले और पूछे, '' इतनी बडी सजा क्यों?'' मगर सारा गुस्सा आंखों में जमा हो गया, वह अपने आंसू छिपा गयी मुंह फेर कर संडास की ओर चल दी झाडू और खपरे के साथ बदन की सारी ताकत लगा कर संडास से मैले को खींच लिया डलिया मैले से भरी डलिया  छन्नो एकटक घूर रही थी

आदमी मेहनत करता है,
तरह तरह की चालबाजियां - चालाकियां करता है
बेइमानियों से गुजरता है ज्यादा से ज्यादा कमाता है अच्छे से अच्छा भोजन जुटाता है तरह - तरह के स्वाद  मीठे - खट्टे रस खुश्बूओं से भरपूर व्यंजन लेकिन अंत में यह डलिया भरा मैला रसों - गंधों का यह रूप रह जाता है कि जिसे छूने देखने से भी आदमी घबरा जाये आदमी की सुगढ देह बलवान शरीर भी तो ऐसे ही मिट्टी हो जाता है एक दिन जिसे छूने से लोग डरें गहरी सांस लेती हुई छन्नो ने डलिया कमर पर लाद ली और आगे बढ ग़यी

अब आश्चर्यजनक रूप से गली में न सुस्ती थी न खटास छन्नो घर घर कमाने गयी सब हंस हंस कर बोले रज्जो के हाल चाल पूछे डंबर प्रसाद के दोनों किबाड ख़ुले रहने लगे
मगर छन्नो का दिल डूब रहा था

देखते ही देखते गली भर की पौरियों में गङ्ढे खुदने लगे
लोहे और मिट्टी की मुठभेड ने रातों की नींद दिन का चैन हर लिया सैप्टिक टैंक बन गये, हर घर का संडास फ्लश की लैट्रिन में तब्दील हो गया

छन्नो समझ चुकी थी, अब उसका काम खत्म हुआ फिलहाल उसकी रगों में उठती गुस्सेवर तरंग उसे पसीने में गर्क किये दे रही थी नजरों में बेटी की सूरत हांफने लगी यह कडु फल छन्नो का खून मथ डाला गली ने हाथ पांव बांध दिये अब एक दिन सचमुच ही खदेड दिया जायेगा लोग सफेद संगमरमरी कमोडों को शौक से धो रहे हैं साबुन फिनाइल डाल कर प्लास्टिक के ब्रशों से रगड रहे हैं, नहीं बहती तो हाथ और झांवें से रगडने में भी गुरेज नहीं

हाय, कमोड रुकने पर मुंशी जी कपडे उतार कर खाली अंडरवियर पहने सैप्टिक टैंक में उतर गये अपना काम दूसरा कौन करने आयेगा? छन्नो चीखकर रज्जो से बोली, '' गली की ओर से दरवाजा बन्द कर ले'' उसका वजूद औंध गया धंधा अंग्रेजी संडासों में बह गया देह लस्त - पस्त बीमारी लगी है शरीर में सिरदर्द से परेशान है मगज में कोई रसौली सी लौंकती हैकभी बीमार न होने वाली छन्नो खटिया पर पडे पडे अपनी फडफ़डाती रूह उदासी के हवाले कर दी
 
मगर सपने हैं कि पीछा नहीं छोड रहे
झपकी सी ही लगी थी, आंखों के आगे डलिया ही डलिया, खपरे और झाडू इस सबके सिवा जीवन में जैसे कुछ हो ही नहीं
'' अम्मा!''
रज्जो पास आ गयी
दवा लाई है रज्जो अपनी बांह के सहारे मां को उठाया और पानी के साथ गोली खिला दी सिर दबाने लगी दबाते - दबाते मुस्करा पडी - '' अब सिर क्यों दुखता है अम्मा? बोझ तो उतर गया कितना अच्छा हुआ अब तो हमें मैला साफ करने कोई नहीं बुलायेगा कितना अच्छा हुआ हुआ न?''

छन्नो तय नहीं कर पा रही कि बेटी की मुस्कुराहट के जवाब में मुस्कराये या मुंह फेर ले

पहला पन्ना

  मैत्रेयी पुष्पा
नवम्बर 12,2004

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