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छुटकारा सुरेखा
का दिल उमड
आया,
'' छन्नो बुआ,
बैठ जाओ।
घबरा रही हो?''
मुंशियानी फिर झींकी,
'' राजेश ( कबूतरबाज) के सम्बन्ध
वाले आ रहे थे।
मना कराई है।
बताओ क्या देखेंगे?
घर
पडौस
में
भंगिनिया कौन सा बेटी वाला रूपेगा?''
मुंशियानी ने पल्ला पसार दिया छन्नो के सामने,
'' इस गली पर तो मेहर कर।
पूरे शहर में एक नहीं,
अनेक मकान बिक रहे होंगे।
हमारे बालक कुंआरे रह जायेंगे।''
'' घर जाकर रज्जो से बात की, सारा मामला बताया। रज्जो डरी न सहमी, बोली, '' अम्मा चल। मैं भी अब यहां अकेली नहीं रहती। गली में डर कैसा? फिर बडे - बडे लोगों की बस्ती, हम बचे रहेंगे। सिलाई वाली बहनजी कहती हैं - अब छुआछूत कौन मानता है? मानता हो तो बाल्मीकी समाज में अर्जी दे दो, लोग धरने पर आ जयेंगे। सबको अपने लिये डर लगता है। रज्जो कम्बख्त की जिद कि हम यहां आ गये।'' उमेस
बोले, ''
हमारे गली के लोगों को यही मलाल
है कि तुम इस घर को न लेती तो गली के ही किसी आदमी को मिल जाता।''
मुंशियानी और पंडितानी के चेहरे काले पड ग़ये।
बालूशाही की बहू का मुंह छोटा हो गया।
अम्मा जी के मुंह से गाली निकलते निकलते रह गई।
नहीं रहा गया तो बोल ही पडीं,
'' क़ुसुमी की अम्मा ही तो रंडी
गली में नरक बो गयी और पाप की गठरिया धरकर बेटी का खाने चली गयी।
अगले जनम में सुअरिया बनेगी।'' रात को
उमेश के घर झडप हुई थी।
फिर भी काम तो काम है।
छन्नो डलिया खपरा उठाये संडास कमाने चल दी।
सबसे पहले पंडित डंबर प्रसाद की संकरी गैलरी का रास्ता लिया
और पीछे की ओर से मैला सकेरने लगी।
डलिया
खपरा उठा कर धन्नो धमक भरी चाल से चली आई।
नहीं करना काम भाड में गया ऐसा काम।
उसने सभी चीजें एक कोने में पटक दीं।
हाथ धुलाने के लिये रज्जो को पुकारा।
रज्जो अपने कपडे धो रही थी।
शलवार के पांवचे ठीक करती हुई मां के पास आ गयी।''
क्या हो गया?यह किसने'' रज्जो
की जिद कि अपना खट्टा मन,
छन्नो दूसरे - तीसरे दिन भी काम
पर नहीं गयी।
भरजाने दो बंजमारों के पखाने।
लगने दो गू के ढेर।
वह खिडक़ी में से झांकती,
राजपाल तसला भर राख ला रहे हैं,
हलवाइयों की बुझी भट्टिया खाली कर दीं।
मिर्जा संडास में चूना डाल डाल कर हार गया।
लुटिया लेकर प्राग मिल की ओर भागा जा रहा है।
वहां सुअर पिछियायेंगे हरामी को।
जाकर तो देख।
बालूसाही दिशा मैदान की नई जगह खोज आया है कासिमपुर की ओर।
हगासा आदमी साइकिल से कि रिक्शा से कितनी दूर जाये,
कितनी बार जाये?
अपने संडास और नालियां तो पेशाब तक की मोहलत नहीं दे रहे।
छन्नो को हंसी आ गयी।
रज्जो उमेश की बहू से कुछ बातें सुन कर आई थी बोली,
'' तू हंस रही है,
सुन तो अम्मा।
बालूशाही की बहू ने अपना पन्द्रह साल का लडक़ा साइकिल पर
अपने गांव भेजा है।'' छन्नो
को कडुवी सी हंसी आ गयी।
चौथा
दिन: हाय मुंशी जी तहमद बांधे हाथ में पानी का भरा डिब्बा लिये अरे ज्यादा
दूर नहीं जा पाये नाली पर ही बैठ गये।
मक्खियों ने हमला कर दिया,
उठ गये।
इन्हें भी दस्त लग गये?
कान में जनेऊ और धोती खराब! बीमारी फैल रही है?
बालूशाही का चेहरा छोटा हो गया।
मुंशियानी अपमान और आफत की आग में जल रही थी।
बालूसाही की बांह पकड क़र बोली,
'' चलो यहां से।
इस भंगिनिया के दरवाजे आ गये सो खुद को राजरानी समझ बैठी।
तबियत खराब है रानी जी की।
डॉक्टर को दिखाने जायेंगी।
ओ हो।
फेसन में रेसमी कपडे पहन लिये तो जात भी ऊंची हो गयी।
काम से जी चुरा रही है।
इस लडक़ी को पैज है।
हमारी बीना जैसी चप्पल पहनती है,
वैसी ही ले आई है।
देख लो अब संडास कमाने के लच्छिन दिख रहे हैं इसमें?
मां को लजा दिया रंडी ने। वे सब
अभी गये नहीं थे कि रज्जो ने जल्दी अगरबत्तियां जला दी थीं और मुंशियानी की
तरफ मुंह करके बोली,
'' माई गली में तो बदबू के भपारे
छूट रहे हैं।
कोई कैसे रहे?
मैं तो जुगंदर की दुकान से धूप
बैसांदुर सब ले आई
हूं।
हाय
कितनी बदबू।
उसने नाक मूंद ली। मिर्जा
बेगम बाग गये,
मेहतर बस्ती में पुरानी पहचान के
हवाले दिये।
सोना भंगी की ननिहाल मिर्जा के गांव में है।
सोना मिर्जा को मामा कहता है।
राजपाल श्याम नगर के पीछे वाली बस्ती खंगाल आये।
ज्यादा पैसे देने की पेशकश भी की।
आने का आश्वासन भी दिया मेहतरानियों ने।
विपता की बात काम निकाल देंगी।
मुंशी जी का कबूतरबाज लडक़ा तीन रिक्शे लेकर वहां शाम तक खडा
रहा कोई न आया।अंत
में पेशकार के पास लोग गये।
पंडित जी कान में जनेऊ लगाए और हाथ में पानी भरी प्लास्टिक
की बोतल चलते - चलते इतना बोल गये-
'' पिछली मोहब्बत का ही वास्ता
दे यार।
तूने तो जूठन की जगह पूरी -
परोसा
खिलाये हैं इससे ज्यादा कहने के लिये पंडित रुक नहीं पाये,
पेट की मरोड ने हांक लगायी,
पानी आंतों को छोडने की धमकी दे रहा था।
लत्ते खराब हो जायेंगे। सीता
गली अपने वीभत्स और घिनौने रूप में पडी रही।
अच्छी मुसीबत है इन मेहतरानियों का संगठन,
टका से जवाब मिले।
जिसकी गली है,
वही करेगी।
हां वह बेच देती,
रेहन धर देती तो बात दूसरी थी।
बजरिया की ओर से आने वाले लोग दूसरी गली में होकर गुजरने लगे। रामघाट रोड की ओर जाने वाले रिक्शों ने इधर जाना छोड दिया। फेरी वाले भी कहीं गुम हो गये। दूध वाला नाक बांध कर आया था। आगे सफाई हो जाने पर ही आने की बात कह गया । अखबार ने मुंह नाक पर रूमाल बांधकर हाथ जोड लिये। बदबू हमले पर हमला कर रही थी। अगरबत्तियां पूरी ताकत लगाकर भी लड न पा रही थीं। गली के मुहाने पर पंसारी जुगंदर इतना मुनाफा काट चुका था। जितना उसे नौ दुर्गों और धार्मिक अनुष्ठानों के मौकों पर नहीं मिलता। बिक्री के कई रिकार्ड टूट गये। गली
मैले की नदी।
छन्नो ने भी आंखें मींच लीं।
पर कानों में रुई लगाने के बावजूद वह गली में उमडते रेले
में छपाक छपाक चलती औरतों की आहट पा जाती।
वे नाक और होंठ सिकोड कर भी छन्नो और अपने प्रेम के किस्से
कहती जातीं
घर - घर
सलाह मशवरा हुए।
आगे की योजना बनी।
उस योजना के तहत यह प्रस्ताव धरा गया कि म्यूनिस्पैल्टी के
लोगों से बात की जाये।
बडी ग़ाडी में बडी नालियों का कचरा भरने वाले लोग कुछ दिन
संडासों का मैला भी ले जायें।
गाडी क़ा जमादार बोला,
'' ले जायेंगे,
बिलकुल ले जायेंगे।
आप अपने मैले को गाडी तक उठा लाओ।''
मिर्जा जी का मुंह ऐसा हो गया,
जैसे कै करने वाले हों, ''
ला हौल विला कूवत! ये दिन देखने के लिये शेर गजलों के खूबसूरत दरीचों में
चहलकदमी करने के इरादे किये थे?'' रज्जो
मां के पास आ गयी।
गोरा गदबदा चेहरा लाल हो गया।
''
क्यों चले हवालात में? हमने
किसी की चोरी की है? अम्मा तू एक बार सिलाई वाली
बहन जी से मिल ले, डरना
भूल जायेगी।'' मिर्जा, राजपाल, पंडित यहां तक कि उमेश भी दांतो तले उंगली दबा कर रह गये। वे सब आपस में बगलें झांकने लगे कि कन्नी काटने लगे? तितर बितर हो गये। सिपाही लोग भी जल्दी से जल्दी मामला निपटा कर यहां से छुटकारा पाना चाहते थे। उनमें से एक ने कहा - '' ठीक है, इस आफत की जड क़ो बन्द रखेंगे, गली में अमन चैन हो जायेगा।साली जब से यहां आई है धमा चौकडी मचा रही है। डलिया संडास भूल लोगों के कपडे लत्ते देख रही है। उन्हीं की तरह रहन सहन बनाने में जुटी है। अब संडास कमाना कहां सुहा रहा होगा? '' कह कर सिपाही छन्नो की ओर बढा। बंदर की
मिर्जा जी बीच में आ कूदे,
'' अरे रे! ऐसा अनर्थ न करना।
जैसी भी है,
हमारी कामगर है।
कामगर ही नहीं,
हमारी हितचिंतक है।
गली का मामला है हवलदार साहब और गली के सुख दुख को छन्नो से
ज्यादा कोई समझेगा भी नहीं।
छोटी से यहां बडी हुई है।''
छन्नो
सबको रोई हुई नजरों से देख रही थी।
युध्दकाल में हारे हुए सिपाही की सी लोग चले गये।
खिडक़ी एकदम काली हो गयी और आधारहीन भी।रज्जो
ने गली की ओर पटक दी।
छन्नो धरती पर बैठी थी।
अपनी डलिया,
अपना खपरा और अपनी झाडू निहारती
सी
।
रज्जो ने
उसका मुंह अपनी ओर कर लिया,
'' अम्मा मैं सिलाई वाली बहन जी
के संग बाल्मीकि समाज में जाऊंगी।
बता दूंगी एक एक बात।
सूरज भाई अपने आप निपट लेंगे।''
घर में
आग लगने के बाद रज्जो डलिया - खपरा को कूडे वाली गाडी में फेंकने चली गयी। अब तो केवल हमले, गालियां और आग के तोहफे उसके लिये यहां रह गये हैम्। तो उसकी ओर से चार पांच दिनों के जुडे टट्टी पेशाब के रेलों की सौगात गली में फैली है। कैसा चेहरा कर दिया है सीता गली का कि किसी को भी दहशत हो। किसी को भी घिन आये। रहस्यमय खामोशी छायी है, सोमवार का दिन, छुट्टी का दिन नहीं मगर पेशकार कचेहरी नहीं गये। मुंशी अपने दफ्तर नहीं पहुंचे, मिर्जा अपने चेलों को शेर गजल के शारीरिक अभ्यास कराने की जगह नाक और मुंह पर कपडा बांधे बैठे हैं। डम्बर प्रसाद मैले के रेले में बढाेतरी कर रहे हैं। अब तक उन्होंने छन्नो के आने पर अन्न - पानी का तिरस्कार किया था अब अन्न पानी ने उनके पेट का बहिष्कार कर डाला। दस्त हो गये और संडास में जगह नहीं धीमा सा
शोर उठा।
छन्नो की छाती में दहशत गडग़डाई।
पुराने जख्म हरे होने लगे।
लोगों की धीमी आवाजें क़ानों को हुल्लड क़ी तरह फोडने लगीं।
किवाडों
पर दस्तक हुई।
छन्नो ने झिरी से देखा।
मिर्जा तहमद ऊपर उठाये गंदगी के बहते रेले में पांव लिथेडे
ख़डे हैं।
साथ में मुंशी भी उसी दशा में।
पीछे कौन,
उससे देखा नहीं गया।
ये बिन बुलाये मेहमान मन में खलबली अब क्या इरादा है? छन्नो
जैसे बिना टूट फूट के साबुत खडी हो
सार्वजनिक रूप से गली में चैन था,
अमन था।
पहले जैसी हालत नहीं कि जब घबरा कर छन्नो कुसुमी की अम्मा
के पास भागी गयी थी।
कुसुमी की अम्मा दूसरे शहर में बैठी उसके जरिये अपने पुराने
बैरियों से बदला ले रही है।
वह समझ चुकी थी।
छन्नो ने टूटते हुए कहा था,
'' अम्मा उस घर को वापिस ले लो,
हमें वहां कोई नहीं रहने देता।'' अब गली
चौकन्नी थी।
गुप्त रूप से एक बैठक और हुई,
जिसमें वे लोग छांट दिये गये जो
अब तक छन्नो के वफादार साबित हुए।
उमेश को कानो कान खबर नहीं हुई।
पेशकार को भी नहीं बुलाया गया।
सर्व सम्मति से जो बात तय हुई वह किसी पर जाहिर तक न की गई।
जो करना था किया देखने वाले देखकर समझ जायेंगे। वह
घबराकर उठ बैठी।
लगा कि सपना देखा है।
एक लाश को कई गिध्द नोचने खाने के लिये उतावले हैं।
छन्नो ने लपक कर बल्ब जला दिया।
रज्जो भी जाग पडी। वह
जल्दी जल्दी अपना सामान लेकर बदहवास सी घर से निकली।
सबसे पहले आज मुंशी जी का घर।
घुसते ही पौरी में ताजा गङ्ढा कुंएनुमा।
मिट्टी के गीले ढेर पर बैठा एक मजदूर बीडी पी रहा था। मन
कमजोर हो गया था,
लगा इस आवारा कबूतरबाज के पांव पकड ले और पूछे,
'' इतनी बडी सजा क्यों?''
मगर सारा गुस्सा आंखों में जमा हो गया,
वह अपने आंसू छिपा गयी।
मुंह फेर कर संडास की ओर चल दी।
झाडू
और
खपरे के साथ बदन की सारी ताकत लगा कर संडास से मैले को खींच लिया।
डलिया मैले से भरी डलिया छन्नो एकटक घूर रही थी।
अब
आश्चर्यजनक रूप से गली में न सुस्ती थी न खटास।
छन्नो घर घर कमाने गयी।
सब हंस हंस कर बोले।
रज्जो के हाल चाल पूछे।
डंबर प्रसाद के दोनों किबाड ख़ुले रहने लगे। छन्नो समझ चुकी थी, अब उसका काम खत्म हुआ। फिलहाल उसकी रगों में उठती गुस्सेवर तरंग उसे पसीने में गर्क किये दे रही थी। नजरों में बेटी की सूरत हांफने लगी। यह कडुआ फल छन्नो का खून मथ डाला गली ने। हाथ पांव बांध दिये। अब एक दिन सचमुच ही खदेड दिया जायेगा। लोग सफेद संगमरमरी कमोडों को शौक से धो रहे हैं। साबुन फिनाइल डाल कर प्लास्टिक के ब्रशों से रगड रहे हैं, नहीं बहती तो हाथ और झांवें से रगडने में भी गुरेज नहीं। हाय,
कमोड रुकने पर मुंशी जी कपडे
उतार कर खाली अंडरवियर पहने सैप्टिक टैंक में उतर गये।
अपना काम दूसरा कौन करने आयेगा?
छन्नो चीखकर रज्जो से बोली, ''
गली की ओर से दरवाजा बन्द कर ले।''
उसका वजूद औंध गया।
धंधा अंग्रेजी संडासों में बह गया।
देह लस्त - पस्त बीमारी लगी है शरीर में।
सिरदर्द से परेशान है।
मगज में कोई रसौली सी लौंकती है।कभी
बीमार न होने वाली छन्नो खटिया पर पडे पडे अपनी फडफ़डाती रूह उदासी के हवाले
कर दी। छन्नो तय नहीं कर पा रही कि बेटी की मुस्कुराहट के जवाब में मुस्कराये या मुंह फेर ले।
मैत्रेयी पुष्पा |
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