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कथा - रिर्पोताज :
प्रभा खेतान अचानक
पंखा हिलने लगा।
मगर मैं ने पंखा चलाया ही महीं था लेकिन यह पंखा गोलाकर
घूमने के बदले घडी क़े पेंडुलम की भांति डिंग - डांग क्यों कर रहा है,
क्या हुआ है इसे? और
खिडक़ियां खडख़डा क्यों रही हैं? दरवाजे पर यह
किसकी दस्तक? अरे मेरे
पलंग को भी कोई झूला झुला रहा है।
तब तक कमरे के दरवाजे पर बाबूलाल खडा था,
वही आलसी स्वर, दीदी उठेंगे
नहीं, भूकंप आया है।
क्या?
और मैं उठकर कमरे से बाहर,
फ्लैट के दरवाजे से बाहर सीढियां इतरते हुए चीख रही थी भूकंप! हाय राम
भूकंप! बाबूलाल ऊपर वाली सीढियों पर खडे ख़डे कह रहा था,
घबराइये मत धरती मैया तो कभी कभी डोलती
ही है इ जब सेस नाग करवट बदलते हैं ना तब ऐसे ही होता है। '
अरे नहीं मुझे
नहीं मरना मैं सीढियां फर्लांग रही थी। मेरी आंखों के सामने छब्बीस जनवरी
का गुजरात घूम रहा था। दूरदर्शन में क्या क्या नजारे नहीं दिखलाये गये।
प्रकृति क्रूर हो चली है। बहुत क्रूर नैशनल ज्योग्राफिक चैनल में देखा
नहीं इंडोनेशिया के जंगल में लगी हुई आग ओह इसे ही तो बडनावल कहते
हैंचारों तरफ नारंगी आग की ऊंची ऊंची लहरें थीं। काली काली धुंए की लहरें
और हेलीकॉप्टरों से आग बुझाने की कोशिश। कहीं तूफानी समंदर उछाल मारता है
तो कहीं बाढ और महामारी का प्रकोप। प्रकृति की अपनी स्वभावगत विशेषताएं
हैं। सृजन और विनाश का क्रम चलता रहता है और आदमी?
वह पहले भी प्रकृति के हाथों का खिलौना था और आज भी है। जो
मुट्ठी भर प्रगति उसने की भी तो उससे क्या हुआ?
मारपीट,
दंगा फसाद,
बढता हुआ आतंकवाद,
क्या इसे उपलब्धि मानें! अब तक
मैं नीचे पहुंच गयी थी।
चार तल्ले नीचे उतरने में आखिर कितना वक्त लगता
?
वहां लोग पहले से जमा थे मुझे निचली मंजिल में रहने
वाली मिसेज क़ल्याणी, उनके
दोनों लडक़े श्याम और श्रीराम तथा रामा उनका हाउस मैनेजर रमण भाई।
कल्याणी से मेरी अच्छी दोस्ती है उसी से पता चलता है,
सारे पडाैसियों के बारे में।
अब तक दूसरे माले के कोरियन दंपत्ति अपने दोनों बच्चों के
साथ पहुंच गये थे और ग्राउण्ड फ्लोर के मिस्टर गुरुमूर्ति ने मुझसे कहा,
'' घबराइये नहीं,
भूकंप रुक चुका है।'' आस
पडौस
के भी कुछ
लोग सडक़ पर थे।
रात के नौ बजे हैं।
ऐसी कोई रात भी नहीं हुई।
पर यह पॉश इलाका है।
तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष इसी मुहल्ले में रहते हैं।
उनका अल्सेशियन कुत्ता भौम्क रहा था। ''
आपकी बेटी
हमेशा फूल लगाना पसन्द करती है''
कल्याणी ने उसकी मां से कहा। बच्चों
से पहली मुलाकात वाली घटना मिसेज लिन पा को बताते हुए मैं हंस पडी थी।
लेकिन मेरी बात पर विशेष ध्यान मिसेज लिन पा कहने लगीं,
'' प्र्रकृति कब बदला ले क्या मालूम?
मुझे याद आता है जब हम सैनफ्रान्सिस्को में थे,
जरा से भूकंप से सारे अमेरिकन
ऐसे घबरा गये थे कि क्या बतायें पर जो अमेरिकन जापान रह आते हैं उन्हें
भूकंप की आदत पड ज़ाती है।
वे नहीं घबराते।'' आफत
विपद में आदमी सहज हो जाता है।
पर आज तक ऊपर नीचे आते जाते हुए इन लोगों ने कभी मुझसे बात
करने की कोशिश नहीं की,
कल्याणी का कहना है ये कोरियन
बडे स्नॉब हैं।
हुंडई का सेल्स मैनेजर है।
पर किसी से बात नहीं करता। हॉल में
बेंत की कुर्सियां थीं,
मेज पर उनके नौकर ने मोमबत्ती
जलाई।
कमरे की दीवारों पर हमारी छायाएं गुंथ गयीं।
हॉल के एक किनारे लाइन से छोटे बडे बक्से रखे थे और उनके
हैण्डलों से तरह तरह के एयरलाइन टैग झूल रहे थे।
बारिश
शुरु हो गयी थी सरवणा का नौकर कॉफी बनाकर ले आया था।
हाय
अम्मा,
क्या कहूं अब?
भाषा की इतनी विकट समस्या तो हिन्दुस्तान में और कहीं नहीं
जितनी यहां पर है।
अभी उसी दिन मिस्टर चन्द्रन कहने लगा,
'' मैडम अमेरिकन्स आर बेरी
चिल्ली।
चिल्ली यानी मेरी आंखों में प्रश्न था,
फ्रिडमैन मैडम, ऑवर बाइयर इस
वेरी चिल्ली, नो फिलिंग ''
आप लोगों को
यहां रहने में कोई परेशानी नहीं होती मिसेज लिन पा?
'' बडी
अच्छी कहानी है,
बाढ - भूकंप,
बडनावल और प्रवासन की।
देशनिकाला भोगते और घरविहीन एवं यात्रा केवल यात्रा ये शब्द
पुराने पड चुके हैं,
कम से कम इन शब्दों का संदर्भ
आदमी है।
इनके उच्चारण से आदमी का बोध होता है।
पर यह आज की कहानी है
-
भारतीय चेहरा, अंग्रेजी
उच्चारण और न्यूजर्सी के वासी।
तमिल - अमेरिकन हैं।
पडौसी
के रूप में कल्याणी मुरली जो इकतीस की कमउम्र में विधवा हो
गयी।
चैन्नई शहर से बाहर कभी नहीं गई।
जिसकी अपनी अकेली दुनिया है।
बेटे को अमेरिका पढने भेजा है और कोरियन दंपत्ति पहली बार
भारत आये हैं,
विशेषरूप से तमिल लोगों की तरह
अंग्रेजी बोलना चाहते हैं।
मैं कलकत्ते से आई
हूं,
कोलकाता लौटना चाहती
हूं,
भाषा की जितनी बडी समस्या यहां होती है अमेरिका
इंग्लैण्ड में नहीं, एशिया में नहीं 'नो
हिन्दी मैडम।
इंग्लिश।
खाक इंग्लिश जानते हैं ये।
अंग्रेजी के दो शब्द सीखते हैं तो हिन्दी क्यों नहीं सीख
लेते।
क्या ये लोग टीवी और सिनेमा नहीं देखते?
पर मैं ही क्यों नहीं तमिल सीखना चाहती?
क्या यह मेरा देश नहीं, इडली
साम्भर मुझे पसन्द नहीं?
बहुत पसन्द है। आज के
आदमी को दो तरह की सीमाओं को पार करने का अनुभव है।
एक उत्तर आधुनिक और दूसरी तकनीक के वायरस का लेकिन देस उतना
ही प्राचीन जितनी कि तमिल भाषा संस्कृति।
आर्यों से भी पहले ये थे,
रावण के वंसज।
इनसे राम जी की सेना को डर नहीं लगता।
दुनिया का एक और सच है,
आज दुनिया में पुराना और नया हर पल,
हर क्षण एक दूसरे का सामना करते रहते
हैं।
ऐसा सामना,
ऐसी मुठभेड पहले नहीं हुआ करती
थी।
दो भिन्न दुनिया एक दूसरे से टकराती हुई फिर - फिर छिटकती
हुई हवाओं के साथ चिंदी - चिंदी उडती हुई। यह
शताब्दी तो बस अभी अभी खत्म हुई है।
हम सभी जानते हैं,
एक गतिशील शताब्दी अपने साथ
हवाईजहाजो
को उडाती हुई टेलीफोन का सपंर्क और इलेक्ट्रिक बिजली से
चलने वाले नये नये खिलौने,
कैलक्यूलेटर, कंप्यूटर,
लेसर कार्डलैस फोन,
बडे बडे धाकड पुरुषों को जब मैं खिलौनों से खेलते देखती
हूं
तो हंसी आ
जाती है।
आदमी खेलता है।
सारी दुनिया में डोलता है अपने ही बनाये हुए खिलौनों की
तोकरी लिये।
संयुक्त राष्ट्र की
1996
में हुई हैबिटेट की कान्फ्रेन्स में सेक्रेटरी जनरल का कहना था,
इतिहास में इससे बडा स्थानान्तरण
कभी हुआ नहीं।
मानो झुण्ड के झुण्ड लोगों को धरती एक कोने से दूसरे कोने
तक फेंकती जा रही हो।
देखने में जितना आकर्षक लगता है,
सोचने में उतना त्रासद।
शरणार्थी कैम्पों की संख्या बढती जा रही है।
मध्य यूरोप के शरणार्थ्ाियों की संख्या बर्लिन और वियेना की
जनसंख्या से अधिक है।
ज्यादातर लोगों के लिये दुनिया एक डायस्पोरा बन गई है।
इन्सान के नये नये रूप।
गैस्टरबियेटर्स ताउम्र नावों में रहने वाले लोग।
क्योंकि किसी देश की जमीन पर वे लोग पांव नहीं रख सकते।
ऑकलैण्ड में रवाण्डा के हैं लोग और आइसलैण्ड में मोरोक्कन
रहते हैं।
देखने में मेलबॉर्न बिलकुल ह्यूस्टन जैसा लगने लगा है।
ढेर के ढेर वियतनामी कैफे,
जिसे '
फो - कैफे कहा जाता है।
और कंप्यूटर का जमावडा हमें विश्वास दिलाता है कि दुनिया का
कोई कोना एक दूसरे से दूर नहीं।
बस बटन दबाने की देर है।
सब जगह सब कुछ मिलता है।
कमोबेसी हर रूप में।
अभी दस दिन पहले विदेश गई थी सैनफ्रान्सिस्को के चाइना टाउन
में।
मैं एक व्यापारी से बातें कर रही थी,
उसका नाम श्रीधर कुलकर्णी यानि
महाराष्ट्रीयन था।
कलकत्ता में जन्मा,
मैक्सिको में रहने लगा।
और फिलहाल चीन और भारत के निर्यात उद्योग की तुलना कर रहा
था।
बस अभी अभी उसकी पहचान की एक आइरिश औरत मिल गई है।
कब से परिचय है? लौटकर
अपने होटल की सीढियां चढते हुए रिसेप्शन पर बैठी हुई महिला फोन पर गुजराती
में बातें कर रही थी।
लेकिन शक्ल और पोषाक,
खैर पोषाक तो यहां सभी की एक सी है,
मैं ने चाभी के लिये हाथ बढाते हुए पूछा,
गुजराती? श्रीधर
कुलकर्णी से मैं ने पूछा था,
आप सपने में कोलकाता नहीं देखते?
मैं तो चैन्नई में कभी पार्कस्ट्रीट,
कभी लेक कभी गंगा का किनारा देखती रहती
हूं।
मुट्ठी भर
बादाम मुंह में ठूंसते हुए उसने कहा,
मैं तीन तरह के सपने देखता
हूं,
मेक्सिकन,
अमेरिकन और हिन्दुस्तानी।
हिन्दुस्तानी सपने का रंग सफेद काला होता है।
सॉरी हिन्दुस्तान का कोई कलर अब याद नहीं रह गया।
हिन्दुस्तान के बारे में सारे सपने भी धूसर हो गये हैं। दुनिया
में घूमते हुए सैंतीस वर्ष हो गये,
पर ये नये मिश्रण अब तैयार हुए
हैं।
बाईस की उम्र से दुनिया घूमने निकली थी।
राउंड द वर्ल्ड की टिकट पर।
कुल पांच हजार रूपए लगे थे और एक्सचेंज के नाम पर पर्स में
दस डॉलर थे।
हांगकांग,
टोकियो, हवाई द्वीप,
लॉस एंजेल्स, सेंट लुइस,
न्यूयार्क,
लन्दन स्विट्जरलैण्ड।
कहां कहां नहीं उडती फिरी थी।
रात साढे दस बजे फ्लाइट टोकियो उतरा था।
एयरपोर्ट पर मुझे लेने डॉक्टर मोमोसे आए मुझे देख कर
उन्होंने कहा था,
सो यंग एण्ड ऑल अलोन।
कितना कुछ बदल गया।
एडवर्ड सईद निष्कासन पर चिंतन करते हैं।
उनसे पहले होमर और दांते ने आदमी के निष्कासन पर चिंता की
थी।
बनवास तो राजा राम को भी मिला था और पांडवों को भी,
कोई नई बात नहीं।
नया कुछ भी नहीं।
पर जो घट रहा है,
जिस त्वरित गति से दुनिया बदल
रही है उससे आश्चर्य जरूर होता है।
भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने आत्मा का वर्णन करते हुए
अर्जुन से कहा था,
कोई इसे आश्चर्यचकित हो देखता है,
तो कोई इसका आश्चर्यवत् वर्णन करता है।
कोई कोई इसका श्रवण करता है।
और बहुतेरे ऐसे हैं जो श्रवण करने पर भी इसे नहीं जानते।(
गीता का श्लोक द्वितीय अध्याय) क्या है यह भूमंडलीय आत्मा?
बचपन का
खेल याद आ गया।
दोनों हाथ फैलाये गोल गोल वर्तुल घूमती रहती थी,
घूमती रहती थी जब तक सिर न चकरा
जाये और धडाम से बैठ न जाऊं या छिटक कर गिर न पडूं।
ऌस युग के दो महान इंजन हैं।
तकनीक का निरंतर अन्वेषण और उसका बनाने,
खरीदने -बेचने का उद्योग।
उद्योग को असीम ऊर्जा चाहिये।
दोनों एक दूसरे को संपोषित करते रहते हैं।
मशीनों के लिये अधिक से अधिक गति अपने आप में उद्देश्य बन
गया है और गति की अदम्य वासना।
तेज
और
तेज
ग़ति के लिये तकनीक की जरूरत।
हर जगह इसका प्रभाव नजर आता है।
हर मिनट,
एक से डेढ मिलियन यानी पन्द्रह
लाख डॉलरों का विनिमय होता है और हर साल सिलिकन चिप्स का उत्पादन डबल हो
रहा है।
दुनिया में छाई हुई मंदी का एक महत्वपुर्ण कारण यही है।
चीजों
का उत्पादन अधिक से अधिक उत्पादन और दाम का कमतर होते जाना।
स्मृतियों पर निरंतर सूचनाओं का दबाव बढता जा रहा है।
कभी लगता है मानो धरती बस अभी अभी अपनी नई नवेली मर्सीडीज
पर सैर को निकली है
-
प्रति घण्टे नब्बे मील की रफ्तार से घुमावदार रास्ते पर,
कभी ऊप्र कभी नीचे जाती हुई।
इलेक्ट्रानिक कॉटेज की कल्पना करते हुए मार्शल मैकलुहान ने
कहा था,
तुम बडी ज़ल्दी गलत ठिकाने पर
पहुंच जाते हो। दो हजार
साल की आखिरी शाम को मेरे घर पार्टी थी।
मेरी बहन गीता खास इस दिन के लिये मान्ट्रियल से आई थी।
मेरा बेटा संदीप मेरे पास था और मेरे पैरों की टूटी
हड्डियों पर प्लास्टर चिपका हुआ था,
डॉक्टरों को आशा नहीं थी कि मैं
पहले जैसा चल पाऊंगी।
खैर चल तो रही
हूं।
पर
उस साल मुझे दाबोस जाना था,
स्टॉल केमिकल कंपनी वालों ने मीटींग रखी थी,
हर साल डाबोस में यह मीटींग होती
है।
इस बार मुझे भी मौका मिला था।
सारी दुनिया के अर्थशास्त्री,
नेता,
व्यापारी यहां जमा होते हैं विली वास्कोविच ने मुझसे कहा था
कि वह जरूर मुझे ले जायेगा।
पैरों की चोट की वजह से मैं जा नहीं सकी थी।
विली फोन पर घंटे भर तक बातें करता रहा।बताता
रहा यहां बर्फ पड रही है।
चारों तरफ की सफेदी में क्रिसमस ट्री पर जगमगाती हुई
बत्तियां गजब लग रही हैं।
मैं ने पूछा,
क्या इसी पहाडी ग़ांव में थॉमस मैन का दफनाया गया था?
भागवतगीता के प्रथम अध्याय में अंधा धृतराष्ट्र पूछता है,
हे संजय, मुझसे कहो वहां
युध्द क्षेत्र में कौन कौन महारथी आए हैं? लेकिन
इसके बावजूद अखबारों में फोरम की रिर्पोट छपी थी
1999
की - यह दुनिया छोटी है,
सुन्दर है और बडी चंचल।
अस्थिर,
क्षणभंगुर,
नाशवान।
धरती के किसी एक कोने में आग लगती है तो दूसरे कोने में
रहने वालों का धुंआ से दम घुटने लगता है।
बारिश का पानी बाढ क़ा रूप ले लेता है।
किसी की प्यास नहीं बुझाता।
यदि बडनावल है तो महीनों जलता रहेगा।
इस पर रोटी नहीं सेंकी जा सकती।
अमेरिका के उपराष्ट्रपति अल गोर संबन्धित होने के इस अवबोध
को विज़डम कहते हैं।
उन्होंने ही कहा था कि किसी भी अग्निदाह को नियंत्रित करने
में अमेरिका समर्थ है लेकिन
1999
तक ग्यारह सितम्बर का अग्निकांड नहीं
घटा था।
पर उस दिन अमेरीका महान अमेरीका कितना कमजोर
लगा था।
हम सब तुम्हारे साथ हैं अमेरिका,
अमीर और गरीब राष्ट्र।
दुख में सुख में।
हम अधिक से अधिक एक दूसरे की मदद करेंगे।
जॉन मेजर के साथ तीसरी दुनिया ने ताल ठोंकी थी। हां इसी
तरह 1999
की आखिरी साम बीत गई।
शताब्दी खत्म होने पर ऐसा कोई नया अहसास नहीं हुआ बस
हमलोगों ने ठूंस ठूंसकर खाया।
खूब वाइन पी और देर रात गये दोस्तों के साथ पुरानी दुनिया
के सपने देखते रहे।
दूसरे ही दिन नये साल की शुभकामना के लिये मैं ने ही विली
वास्कोविच को फोन किया।
बेचारे ने तुरंत कहा,
तुम फोन के पास रहो,
मैं दस मिनट में वापस फोन कर रहा
हूं।
मजेदार खबर है।
मन किया कि विली से कहूं इस कृष्ण अर्जुन संवाद के संदर्भ
सच को कहूं।
पर चुप लगा गई।
थोडी देर बाद विली वापस फोन पर था।
मीटिंग अच्छी ही रही।
हमने सुबह स्कीईंग की।
इस
मीटिंग में जरूर एक कोने से मन में आवाज उठी होगी
-
होली मुबारक।
अपनी स्पष्ट अंग्रेजी में बोला होगा,
हमने लगी हुई आग तो बुझा दी है
पर हमें मालूम नहीं कि फिर से घर कैसे बनाया जाये।
कोफी अन्नान ने कहा होगा,
इस धरती की एक चौथाई जनसंख्या अब
भी भूखी है।
और उनके किसी साथ ने स्वर मिलाया होगा,
शतियुध्द के बाद एक चौथाई
जनसंख्या पहले से ज्यादा गरीब है।
यानी दुनिया में गरीबी बढी है। यह सवाल
मेरे कानों में भी फुसफुसाता रहा है।
दुनिया के जिस कोने में मैं गई
हूं
और
जिससे भी मैं मिली
हूं।
हर
स्त्री हर पुरुष के पांच ज्ञानेन्द्रिय पांच कर्मेन्द्रिय तो है,
वह एक दिन जन्म लेता है और फिर
एक दिन मर जाता है।
दुनिया इन्हीं से बनी है।
पूरी की पूरी समग्र दुनिया,
तब फिर यह समूचापन, समूची
दुनिया अमूर्त कैसे हुई?
क्या आलोचनात्मक रूप से किसी समग्र को स्थापित नहीं किया जा सकता जो कि इस
धरती की समग्र शक्ति के समरूपता के साथ धडक़ता हो।
सांस लेता हो।
कहते हैं कि किसी वैज्ञानिक ने एक विशालकाय कंप्यूटर का
निर्माण किया है जिसे वह मिलेनियम की घडी क़हता है
-
और
प्रत्येक एक हजार साल बाद यह घडी बजेगी और दुनिया को हजार साल बीतने की
सूचना देगी।
यह घडी हमें जिन्दगी की धीमी गति की याद दिलायेगी।
हमें समझायेगी कि हम कितना भी तेज दौडें पर समय की अपनी गति
है।
समय इतनी जल्दी नहीं बदलता।
समय को बदलने में हजार साल लगते हैं कि हमें उस आने वाली
पीढी क़ी प्रतीक्षा करनी होगी जो न केवल उच्च तकनीक की चर्चा करेगी बल्कि
जिन्दा रहने की तदबीर की भी चेष्टा करेगी।
सशक्त तकनीक में केवल वह चीज होती है,
जबकि तदबीर से हम स्वयं होते हैं। विली का
दूसरे दिन वापस फोन फिर नहीं आया।
अंधे धृतराष्ट्र को महाभारत के चुनिंदा दृश्य बताकर उसने
अपना फर्ज अदा कर दिया।
जो नहीं कहा।
वह भी समझ में आ गया।
समझ में आया कि दुनिया केवल वस्तु और डाटा का ही आयात -
'दुनिया
बहुत पास आ गई है और पडौसी दूर। कल्याणी कहा करती है। नहीं कहीं कोई विभाजन
स्थायी नहीं। बाहर का आकाश मेरे कमरे का आकाश एक ही तो है। घट के भीतर घट
के बाहर का आकाश एक ही तो है। हिन्दू दर्शन में किसने कहा था याद नहीं आता
ब्रह्म और जीव दोनों का आकाश एक है। ओह अब याद आया अद्वैतवादियों के अनुसार,
ब्रह्म: सत्यम् जगत: मिथ्याम् यानी सबकुछ माया है। भेदक
रेखा कुछ भी नहीं बस एक माया है। माया महाठगिनी हमजानी। बेचारे कबीर दास। एक बार
लन्दन से लौटते हुए प्लेन में मेरे पास एक बडा व्यापारी बैठा था।
खुले बाजार और यूरो डॉलर पर अच्छी खासी बातचीत हो रही थी।
परिवर्तन के उमडते हुए इस महासागर में कपिल मुनि का सागर
मेला लगा हुआ था।
बालू पर नंगे पांव चलते हुए कदमों के बनते मिटते निशान,
न जाने कितने अनाम चरण चिन्ह,
या फिर एक बडा प्राचीन बौध्दविहार,
उसकी घिसी हुइ पथरीली सीढियों पर अंकित
कोई चरणचिन्ह आज भी तो बरकरार है! शताब्दियों से लोग वहां जाते हैं और
बुध्दम शरणम् गच्छामि की प्रार्थना दोहराते हैं।
कहां कुछ भी तो नहीं बदला।
एमरसन ने कहा था,
हम तो केवल इस वैश्विक आत्मा के
गुण हैं।
इसकी अभिव्यक्ति।
ओह मैं भी बात कहां से कहां ले जा रही
हूं।
बीजेपी से हाथ मिलाने के,
हिन्दुत्ववादियों से हाथ मिलाने का मेरा कोई इरादा नहीं,
मगर नास्तिक भी नहीं हूं।
फिर क्या हूं,
निरंतर संकुचित होती दुनिया मुझे
अहसास दिलाती हैकि हम सबमें कुछ है जो एक है।
हम उस समूचेपन में हैं।
हम ऐसी जगह पर हैं जहां भूगोल की सीमा लागू नहीं होती। मुझे
याद आता है कि प्लेन में एक बार एक सहयात्री ने अपना विजिटिंग कार्ड दिया
था,
उसके पीछे लिखा था, मैं कुछ
नहीं खरीदता, न कुछ बेचता।
मेरे पास पैसा नहीं है।
मैं व्यापार नहीं करता मैं इनमें से कुछ भी नहीं करना चाहता।
और मेरे मुंह से अनायास ही निकला था बडा तकदीर वाला आदमी
है।
विली वास्कोविच जैसे लोगों का कहना है हम जिसे भूमंदलीय
रकता का नाम देते हैं वह और कुछ नहीं बस साझे का बाजार है।
सूचनाओं का जंजाल है,
डॉलर की खरीद बेच,
उतार चढाव है।
ऐसी बहुतेरी सुविधाएं हैं भोग और ऐशोआराम हैं जो हमारे
पूर्वजों को नसीब नहीं था
।
मगर
अब कोई केन्द्र नहीं क्योंकि हर परिधि अपने आप में केन्द हो चुकी है। क्रमश:
इसके शेष भाग का परिवर्धन शीघ्र ही किया जायेगा। |
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