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चुटकी भर लाल रंग यह दृश्य देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ गया या कहिये कि कलेजा मुंह को आना क्या होता है यह मैंने पहली बार जाना। अस्पताल के प्राईवेट वार्ड में जोशी जी लेटे हुए हैं छत को खाली आंखों से टकुर - टुकुर निहारते।उनके एक हाथ में ड्रिप लगी हुई है। पलंग के पास ही स्टूल पर श्रीमति जोशी बैठी हुई हैं। पास के सोफे पर उनकी खेरखबर लेने आये पटेल दंपत्ति बैठे हैं। शन्नो पलंग के पायताने दीवार की तरफ मुंह किये बैठी है। उसका सिर इस बुरी तरह झुका है जैसे गर्दन पर मानो अपराध का बोझ लदा हो। इतने दिनों में उसके चेहरे का लावण्य धुल पुंछ गया है। रंग धुंधला गया है। जी में आता है, दौडक़र उसके पास जाऊं और झिंझोड क़र पूछूं, '' शन्नो, तू क्यों सिर झुकाए बैठी है? तूने किया ही क्या है? किस शर्म से जमीन में गडी ज़ा रही है?
मैं
पैरों को जबर्दस्ती घसीटते हुए अंदर दाखिल होती
हूं। शन्नो भी तो उसी रात उसी मंडप में ब्याही गयी थी लेकिन वह उजडी हुई, अपने में छिपी सहमी कोने में बैठी है। मेरे सोफे पर बैठते ही उसने एक उचटती निगाह से मुझको नमस्ते की। उस एक छोटी सी निगाह से ऐसा लग रहा है कि वह मुझे देखकर तीखे दर्द से कराह उठी हो। उसकी दम घोंटती - सी सांसों का बोझ मेरे सीने में फैलता जा रहा हो। मन होता है मैं उसे अपनी छाती में भींच कर रो उठूं। वह तो क्या हल्की होगी, मैं जरूर हल्की हो जाऊंगी। पटेल दंपत्ति के कारण मैं चुप ही बैठी रहती हूं। कहीं खो गयी है वह मासूम शन्नो जो आंखों में ढेर सी खुशियां छलकाये मुस्कुराते हुए चेहरे से मेरे पास आती थी। वह सिर के ऊपर दुपट्टे को अपने कुर्ते के कंधों पर फैलाकर बालों को जानबूझ कर अपने गालों पर छितरा लेती व कमरे में कमर लचकाती ठुमक ठुमक कर चलने लगती । ऐसे में उसकी पायल खनकती रहती छन छन। वह जोर से चिल्लाती, लगती हूं न नम्बर वन मॉडल?''
''
तू तो
नम्बर
वन मॉडल ही भगवान ने पैदा की है।''
मैं गदगद हो उसका दुपट्टा पकडती।
वह नाज
से दुपट्टा छुडाकर ठुनकती,
'' छोड दो आंचल जमाना क्या कहेगा?''
बन्नो
से वह खूबसूरत थी,
उसका जहीन पारदर्शी व्यक्तित्व मुझे बहुत अच्छा लगता था।
मैं ने
उसे कभी उदास होते हुए नहीं देखा था।
अपनी
मां के पेट के होने वाले ऑपरेशनों में हर बार वही हर काम में आगे रहती थी।
बन्नो
के तो हाथ पैर फूल जाते थे।
शन्नो
ही बन्नो को समझा बुझा कर काम करवाती थी।
मोपेड
दौडाती कभी अस्पताल एक खाना पहुंचाती,
कभी दूसरी।
मैं
अपनी खिडक़ी में खडी तेज रफ्तार से उन्हें मोपेड पर जाते देखती तो सोचती,
जमाना कितना बदल गया है! जींस शर्ट व छोटे बालों में
उन्हें दूर से आता देख कौन कह सकता है कि वह लडक़ा है या लडक़ी!
कैसी
होती हैं लडक़ियां,
हंसती, चहचहाती मां बाप के
घर की फुनगियों पर फुदकती उनकी लाडली बुलबुलें! सिर्फ एक पुरुष के उनके
जीवन में पदार्पण से उसकी दी हुई प्रतिष्ठा जैसे माथे पर लिख जाती है।
श्रीमति पटेल शन्नो से पूछती हैं,
'' वीजी नहीं आये?''
पटेल
दंपत्ति को तो पता ही नहीं होगा कि शन्नो को वी जी के पास बंबई से आये एक
महीना हो गया है।
बेचरी
एक महीने से मुंह छिपाए दादाजी के यहां पडी हुई है,
एक चोर की तरह।
उसके
मम्मी डैडी व हम लोग शोक मनाते हुए बिलकुल जड होते जाते रहे हैं।मृत्यु
का तो कोई सब्र भी कर ले लेकिन शन्नो जिन कांटों से गुजर कर आयी है वह सीधे
हमारे सीने में धंसते रहते हैं।
पहले
जोशी जी के घर जो भी आता चंचल चपल शन्नो को पूछता घर में घुसता आता था।
बन्नो
अजीब सी हीन भावना से घबराई अपने कमरे में घुसी रहती थी।
शन्नो
मेरे पास आकर बडबडाती
- ''
आंटी, बन्नो को कितना भी
समझाओ किसी के सामने बाहर नहीं आती।
अपने
कमरे में किताब खोले कहीं खोई रहती है फिर फेल हो जाती है।
मैं तो
कहती
हूं
बी ए
करते ही इसकी शादी कर देनी चाहिये।'' आज वही शन्नो अस्पताल के वार्ड में हम सब से मुंह फेर कर दीच्वार की तरह मुंह किये बैठी है। बन्नो तत्परता से चूडियां खनकाती मां को कभी नैपकिन थमा रही है तो कभी मौसमी का जूस निकाल कर दे रही है। शन्नो के बेलौस ठहाके, उसकी पायल की छम छम जैसे मेरे कानों में कहीं दूर गुफा में से गूंजते सुनाई पड रहे हैं। श्री व श्रीमति पटेल उठते हैं। मैं भी उनके साथ उठ लेती हूं। मुझे पता है, मैं रुकूंगी तो अपना रोना नहीं रोक पाऊंगी। मैं रोऊंगी तो शन्नो भी रोएगी, उसकी मां भी रोएगी। जोशी जी के जख्म पट्टी के नीचे तरल हो जायेंगे।
घर आकर
पस्त पड ज़ाती
हूं।
शेखर
को बताती
हूं,
'' पता है, शन्नो आ गयी है।''
''
आप तो
दोपहर में रोज रोज सोती हैं,
क्या हमारे कॉलेज में पार्टी रोज रोज होती है?''
वह
अधिकार से पलंग पर जमकर बैठ जाती है। उसके इस धांसू अधिकार पर मैं मुस्कुरा
देती हूं। ''
वाकई यह हरा शेड साडी से मैच नही कर रहा। यह काला ब्लाउज ही पहन लेना। अब
यहां से दफा हो।''
पहले
तो वह जरा सी बात पर उबल पडती थी।
उसे
लगता था कि उसके आसपास जो भी उलटा सीधा घटित हो रहा है उसे वह ठीक करके
छोडेग़ी।
उस
रक्षाबंधन के दिन जैसे ही उसने सुना,
काशीबेन की तीसरी बेटी भी ससुराल से पिटकर वापस आ गयी
है, वह दनदनाती सुबह दस बजे हमारे घर में घुस
आयी थी, बरामदे में रखी डायनिंग चेयर खिसका कर
मेज पर अपनी दोनों कोहनी टिकाये हथेली पर अपनी ठोडी रख किसी जज की तरह अकड
क़र बैठ गयी थी।
बडे
अधिकार से उसने काशी बेन को रसोई से बाहर आने को कहा था।
शन्नो
ने ही पढ लिख कर कौन सा तीर मार लिया?
वह भी एम एस सी में गोल्ड मैडल लेकर?
एम एस सी के बाद उसकी रिसर्च की इच्छा रखी की रखी रह
गयी थी।
बस,
जैसा कि होता है, सपनों का
राजकुमार सामने आकर खडा हो जाता है।
हर
लडक़ी अपनी सुधबुध भूल जाती है।
तब
उसने अपने दादा के घर से लौट कर लाल होते हुए बताया था,
उसके लिये बहुत सी सुंदर लडक़ियों के ऑफर थे लेकिन उसने
मुझे ही चुना।
उसे
पांच बजे आना था लेकिन वह चार बजे ही आ गया।
मैं तो
साथ वाले कमरे में बाल खोले बडे ज़ोर जोर से शोर मचा रही थी कि जरी की साडी
नहीं पहनूंगी तभी उसने देख लिया था। बाद में सगाई की रंगत जैसे उसके चेहरे पर उतर आयी थी। किसी से जुडने पर जैसे कि नारी एक लचीली टहनी में बदल जाती है, वैसी ही खुशी से उसका पोर पोर लहक रहा था। हल्की खुमार भरी आंखें खोई खोई सी हो उठी थीं। उसकी उंगली में हर समय सगाई की अंगूठी जगमगाती रहती थी। कुछ दिनों बाद ही वी जी उनके घर में आ धमका था। लंबा तडंगा। दोनों रात को पेडों की कतारों से घिरी सडक़ पर जब टहलने निकलते तो उनकी लंबी जोडी देखते ही बनती थी। उसे लेकर वह शर्माई - सकुचाई - सी हमारे घर भी आई थी। सारा ध्यान उसका अपनी साडी संभालने में ही था।वी जी की मिठास भरी बातचीत, उसकी विश्लेषण भरी बातें सुनकर मैं हैरान रह गयी थी। उसने बहुत मीठे स्वर में उलाहना दिया था, '' आंटी, शन्नो कहती है, शादी के बाद पति - पत्नी का बराबर अधिकार होना चाहिये, लेकिन मैं कहता हूं कि पत्नी को थोडा झुककर पति व उसके घर वालों के साथ व्यवहार करना चाहिये।
उसके
इस पुरुष अहं ने मेरा मन हल्का सा आहत किया था।
मेरे
बस में होता तो मैं भी यही कहती कि पति - पत्नी दांपत्य में बराबर के
हिस्सेदार हैं किंतु सच बात यह है कि स्त्री पुरुष के अहं से जीत नहीं सकती।
सफल
दांपत्य का रहस्य यही है कि पत्नी कुछ झुक कर चले।
इत्तफाक से बन्नो के लिये हमारे ही शहर में लडक़ा मिल गया था।
शादी
के बाद दोनों बहनें आम पर आई बौर की तरह महक उठीं थीं।
दोनों
का फाइनल बाकी था।
बन्नो
तो बी ए फाइनल की परीक्षा भूल भाल कर पति के घर चली गयी थी।
मैं
शन्नो को पकड क़र पूछती थी,
'' तेरा पढाई में मन कैसे लगता होगा?''
वी जी
को छुट्टी नहीं मिली थी।
शन्नो
के डैडी ही उसे बंबई छोडने गये थे।
एक
महीने बाद पता लगा कि शन्नो बंबई से कुछ दिनों के लिये आई हुई है।
मैं
उसके हालचाल लेने,
बीती हुई रातों
के
किस्से सुनने फौरन भागी थी उसके घर।
दरवाजा
उसकी मां ने खोला था
-
उतरे
हुए,उजडे
हुए स्याह मुंह से।
मैं ने
अधिक ध्यान नहीं दिया,
'' शन्नो कहां है?''
मैं
अन्दर वाले कमरे में उत्साह से जैसे ही गयी,
सामने वाला दृश्य मुझे जड क़र देने के लिये काफी था।
पलंग
पर तकिये पर अपनी पीठ टिकाये शन्नो बैठी थी।
बिखरे
हुए बाल,
रोता चेहरा।
नीचे
का होंठ व एक गाल सूजा हुआ था।
दूसरे
गाल पर एक लंबा नाखून का निशान बना हुआ था।
मैं
समझ नहीं पा रही थी,
उडती, हंसती खिलखिलाती
चिडिया के पर नोंच करउसे जमीन पर किसने पटक दिया है! मैं इतना भर पूछ पाई
-'' शन्नो क्या हुआ?''
''
हमने शादी
में इतना दिया है फिर भी वह खुश नहीं है।'' आज सोचती हूं , सारे समय मुस्कुराती होशियार सी लडक़ी की किस्मत में वही नीच आदमी लिखा था? नियति कहां से ढूंढ कर उसे बांध गई थी शन्नो से सिर्फ तीन महीने के लिये? उसका चेहरा देखा नहीं जाता था। स्याही पडी हुई आंखें, क्षोभ से झुकी गर्दन। सिर्फ एक पुरुष के नाम से तीन महीने मांग में सिंदूर भर जाने के लिये? पुरुष भी कैसा! वहशियाना क्रोध में पागल हो जाने वाला! शन्नो की समस्या का कोई हल नजर नहीं आ रहा था। उससे दादाजी व चाचा ने पुलिस में रिर्पोट करने से मना कर दिया था। शन्नो को उन्होंने अपने पास बुला लिया था।
जोशी
जी अस्पताल से घर आ गये हैं।
इधर -
उधर
पडौस
में
कानाफूसी शुरु हो गयी है कि अब शन्नो यहां क्या कर रही है?
बाप के एक्सीडेन्ट को तो एक महीना बीत गया।
शन्नो
भी भेदती निगाहों से बची सी घूमती है।
वह
बिलकुल टूट चुकी है।
कहीं
भी कुछ करने की इच्छा शेष नहीं रही है।
शन्नो
गिरती पडती,
घिसटती लाश की तरह जी रही है।
घर
वालों का दिल रखने के लिये दो निवाले मुंह में किसी तरह डाल लेती है।
सारा
समय पलंग पर करवट लिये लेटी रहती है या फिर अपने कमरे में खिडक़ी की सलाखें
पकडे
आसमान
पर टंगे काले बादलों को बुझी आंखों से देखती रहती है।
सबकी
बातें उस पर बेहद धीरे असर करती हैं।
उसने
शोध करने का निर्णय ले लिया है।
वह
अनमनी सी मेरी बातें सुन रही है।
अचानक
वह तैश में आकर मुझसे पूछती है
- ''
आंटी, एक बात का आप साफ साफ
जवाब दीजिये।
आप
मेरे इस तरह से बंबई से भाग आने को जस्टीफाई करेंगी या नहीं?'' कितना अच्छा अभिनय कर गई थी शन्नो हनीमून से लौटकर। खूब भारी भरकम साडियां पहने, गहनों से लदी, बात बात पर खिलखिला उठती थी। बन्नो भी अपनी ससुराल से खुश आई थी। दोनों बहनें घर बाहर चहकती रहतीं। बन्नो मेहुल के किस्से चटखारे लेकर सुनाती, शन्नो वी जी के। श्री व श्रीमति जोशी उन्हें देखकर तृप्त हो उठते थे। तब हमें क्या पता था, शन्नो ने बडी बडी मुस्कुराती, हंसी बिखेरती आंखों के नीचे की तरफ दर्द की एक कटीली लकीर बडे यत्न से गहरे फाउंडेशन से छिपाकर रखी है। उसकी गहरी लिप्सटिक, काला मस्कारा किसी बात को छिपाने का प्रयास भर थे।
उस दिन
शन्नो ने अपने घाव के टुकडे - टुकडे क़र मुझे पकडाती जा रही थी।
किस
तरह वी जीउसका मजाक उडाते हुए हंसा था
-
'' मैडम यह बंबई है बंबई! यहां आप जैसी हजारों लडक़ियां
रिसर्च करने के लिये मारी मारी घूमती हैं।
आप
किसी का पत्र लेकर आई हैं तो क्या?
कौन घास डालेगा आपको?''
शन्नो
शोध में,
जोशी जी मुकदमे के लिये धीरे धीरे जानकारियां इकट्ठी
करने में लगे हुए हैं।
बडी
अजीब सी बातें सामने आ रही हैं।
वी जी
अपनी नौकरानी से ही शादी करना चाहता था।
विभाग
की दो लडक़ियों से भी उसके सम्बन्ध थे।
शन्नो
को विश्वविद्यालय जाते देखती हूं तो सहम जाती हूं।
सपने
का रंग,
पता नहीं कहां छिप गया है! आंखों के आगे काला दायरा बन
गया है।
अपनी
लडख़डाई जिन्दगी को संभालने की जद्दोजहद से वह बार बार स्वयं लडख़डा जाती है। बन्नो एक कमरे में अपने बेटे के गुदगुदे गाल से अपना गाल सटाये हुए नवजात की कोमलता महसूसते हुए ममत्व के गौरव से भर कुछ गुनगुना उठती है। उधर शन्नो अपने कमरे में शोध के लिये डिसेक्शन टे्र में सफेद सफेद छोटे नवजात चूहों की गर्दन पर निर्ममता से छुरी चला रही होती है। क्षोभ व क्रोध में वह सिर्फ एक की जगह चार चूहों को काट डालती है। कभी बन्नो का बेटा झूले पर टंगी हुई घूमती हुई तेज चकरी को देखकर जल्दी जल्दी पैर चलाकर किलकारी मारने लगता है तो शन्नो घर से निकल कर मेरे पास आकर बेवजह सिसकने लगती है। गुस्सा कहीं और उतरता है।
''
आंटी मेरा
तो इस कॉलोनी में रहना भी मुश्किल हो गया है। पहले तो सिर्फ लोग मुझे एक
दूसरे को इशारा करके ही दिखाते थे। अब तो बस में लडक़े भी आवाजें क़सने लगे
हैं - पति को छोडक़र तो हम भी रिसर्च कर लें। कोई कहता है - सुना है,
अपने किसी प्रोफेसर के लिये पति को छोड आई है। कोई कहता है - जरूर चालू
होगी।''
मैं
निरुत्तर हूं।
लडक़ियों की तकदीरें उनके किसी के बिगाडने न बिगाडने के आधार पर कहां लिखी
जाती हैं! कुछ जीवन तो मां बाप के यहीं हंसते खिलखिलाते कट जाता है।
बाकी
का जीवन कैसा होगा,
यह उसकी मांग की तरफ बढता एक हाथ निर्णय लेता है,
सिर्फ एक हाथ!
मुकदमा
चलते - चलते महीने,
साल निकले जा रहे हैं।
वी जी
ने अपने गांव की किसी लडक़ी से शादी कर ली है।
शन्नो
की मां व उसके पिताजी गांव जाकर शादी करवाने वाले पुजारी के सामने जब रो
उठते हैं तब कहीं वह कोर्ट में गवाही देने को तैयार होता है,
किन्तु कोर्ट में वी जी को पहचानने तक से इंकार कर देता
है।कोर्ट
से लौटकर श्रीमति जोशी छटपटाती हैं। मुझे लग रहा है कोर्ट की एक एक चीज घूम रही है। मैं ही कुर्सी से उठने में असमर्थ हो रही हूं।इन लांछनों में फंसा दी गई शन्नो की तस्वीर सही है या दस साल मेरी आंखों द्वारा देखी गई मेरी सहेली व उसकी प्रोफेसर की बात, '' जोशीज आर वेरी लकी पेरेन्ट्स। दे हैव गॉट ए ब्रिलियेन्ट डॉटर लाइक शन्नो।'' वी जीकोर्ट की तारीख पर कभी आाता कभी नहीं आता। तलाक की अब उसे कोई जल्दी नहीं है। गऊ जैसी पत्नी से पुत्र पाकर वह पिता भी बन गया है। उधर शन्नो ने अपने को व्यस्त कर लिया है। वह यू जी सी स्कॉलरशिप पाकर खुश है। हर सेमिनार, हर कॉनफ्रेन्स में उसके शोध पत्रों की तारीफ होती है। उसके चेहरे से अब कोई नहीं जान पाता कि अकेले में उन खौफनाक यादों के दंश उसे किस तरह से छटपटाते हैं। एक साथ दो बातें होती हैं। शन्नो बेमतलब की सादी से मुक्त हो जाती है। शोध के बाद उसी विश्वविद्यालय में उसको नौकरी मिल जाती है। उसने दिखा दिया कि चुटकी भर लाल रंग की बैसाखी या कैरोसीन के डिब्बे के बिना भी उसे जीना आता है। लेकिन जब जब मैं उससे मिलती हूं, उसी खिलखिलाती लचकती शन्नो को ढूंढने लगती हूं। पता नहीं कहां खो गयी है वह! वी जी ने तो कानून को धता बता कर पहले ही अपना रास्ता निकाल लिया था लेकिन शन्नो की नाव किस किनारे लगेगी कौन जाने! वह अपनी कर्मठता से लंदन के विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रही है। यह तो जरूर है, वह सुखी न भी हुई तो दुखी भी नहीं होगी!
नीलम कुलश्रेष्ठ |
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