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बीमारी
मैं ने कमरे में नजर घुमा
कर देखा, ''
नौकर तो नहीं है।
वैसे जीना बहुत
चौडा और नीचा है।''
भाई होल्डाल घसीट कर लाने
में सफल हो गया था,
उसने पत्नी से कहा,'' बस,
वह बडा ट्रंक ही लाना रहा है न जब से मैं लोकल ट्रेन से भीड में गिर पडी थी, मुझे ट्रेन से नफरत हो गयी थी। वैसे भी मुझे लगता था कि तीस सैकेण्ड का समय गाडी में चढने के लिये नाकाफी होता है और लोकल ट्रेन हर स्टेशन पर तीस सैकेण्ड खडी होती थी।
भाई मोटा काला ट्रंक लिये
कमरे में आ गया था।
मैं सोचती थी कि इस
बार मुझे काफी बडा कमरा मिल गया है।
पर भाई के सामान के
बाद कमरे का फर्श एकदम ढक गया था।
अब कमरे में सिर्फ
पलंग, दो
कुर्सियां और सामान नजर आ रहा था।भाई
ने बैठ कर कहा - ''
चाय का इंतजाम तो है न?'' मैं चुप रही। उन्हें बताना मुश्किल था कि अकेली लडक़ी की घर के नौकर के साथ क्या - क्या अफवाहें जुड ज़ाती हैं। नौकरानियों से मेरी बहुत जल्द लडाई हो जाया करती थी। वे चोर होती थीं और झूठी। आजकल सामने बनती बिल्डिंग का एक चौकीदार आकर चाय के बर्तन मांज जाया करता था और झाडू भी लगा देता था। इससे ज्यादा काम के लिये उसमें अक्ल नहीं थी। डॉक्टर ने अब तक दवा भी खुद मंगवा कर दी थी। भाई की पत्नी अपना बदन संभालते हुए उठी और रसोई में जा पहुंची। मैं ने भाई को आज का अखबार थमा कर आंखें बन्द कर लीं। मैं बातों से बहुत थक गई थी। मैं थोडी सी बात करने से ही थक जाती और सांस तेज चलने लगती थी। बल्कि डॉक्टर को मैं ने यह बात कह कह कर इतना डरा दिया था कि उसने मुझे कार्डियोग््रााम कराने की सलाह दी। कार्डियोलॉजिस्ट की रिर्पोट में ऐसा कुछ डिटेक्ट नहीं हुआ। पर मैं अस्पताल जाकर, कार्डियोग््रााम कराने में इतना थक गई कि मुझे कई दिनों तक लगता रहा कि रिर्पोट गलत है।
भाई की पत्नी रसोई से
परेशान होती हुई आई और भुनभुनाते स्वर में पति से कहा,
'' मैं सारी रसोई ढूंढ चुकी
हूँ,
न तो चीनी मिलती है, न चाय
की पत्ती।''
भाई ने रैक पर से मेरी
एक्सरे की रिर्पोट और ब्लड - यूरिन और स्टूल टेस्ट की रिर्पोटें उठा ली थीं।
उस दिन मैं सारे समय उसे
खाना बनाते और परेशान होते देखती रही।
मुझे सिर्फ यह
अफसोस हो रहा था कि शादी के बाद से लेकर अब तक वह वैसी ही रही - वैसी ही
बेसलीका और बेअक्ल! बल्कि भाई भी उसके साथ साथ
भाई ने अगले दिन बाकि की
रिर्पोट ला दीं।
किडनी में इनफैक्शन
था जिसकी ऑपरेशन वाली स्थिति नहीं आई थी पर लम्बा इलाज चलना था।
डॉक्टर ने दवाइयों
और इंजेक्शनों की लम्बी फेहरिस्त लिख दी और बिस्तर में रहने की ताकीद।
डॉक्टर ने कहा जैसे
जैसे इनफैक्शन दूर होगा,
बुखार अपने आप हटता जायेगा।भाई
की बीवी ने पूछा, भाई सुबह - शाम रसोई में पत्नी की मदद करता था। बीच के वक्त में उसे समझ नहीं आता था कि वह क्या करे? मैं उसे अखबार देती तो वह उसे पढने के बजाय ओढ क़र सो जाया करता। जैसे वह खाने और सोने के लिये ही इतनी दूर से चल कर आया हो। मुझे विश्वास नहीं होता था कि इस आदमी ने कभी दफ्तर की फाइलें भी पढी होंगी।
एक दिन उन लोगों को मैं ने
घूमने भेजा था,
वे लोग डेढ घण्टे के अन्दर फिर घर में थे।
भाई ने बताया कि वे
स्टेशन से चार नम्बर बस में बैठ गये थे और उसी बस में बैठे बैठे वापस आ गये
थे।
उसकी पत्नी ने पूछा,
'' क्या तुम्हारे दफ्तर के लोग तुम्हें देखने भी नहीं आ
सकते?'' बीमारी के शुरु के दिनों में मुझे दफ्तर के पांच लोग एक साथ देखने आ गये थे, पांच आदमियों के बैठने की जगह कमरे में नहीं थी। वे सब विवाहित थे, इसीलिये पलंग के किनारे बैठना उनके विचार में अनैतिक था। आखिर उन लोगों ने मेज से दवाइयों की शीशियां उठा कर मेज खाली की और दो आदमी उस पर पैर लटका कर बैठ गये। वे सब दफ्तर से सीधे आ गये थे, अपना अपना बैग और छाता उठाये। उन्हें बराबर चाय की तलब होती रही, जिसे वे कमरे की खूबसूरती की बातें कर टालते रहे थे। उन्होंने रेडियो चलाया था और डिसूजा रसोई से सबके लिये पानी लाया था। मुझे बराबर बुरा लगता रहा था कि उन लोगों ने मेरी बीमारी की बाबत पर्याप्त पूछताछ नहीं की। वे आपस में ही बातचीत करते रहे थे। बिस्तर पर पडे पडे और डॉक्टर के नुस्खे ले लेकर मुझे अपनी बीमारी खासी महत्वपूर्ण लगने लगी थी। मैं चाहती थी कि विस्तार से बताऊं कि बीमारी कैसे शुरु हुई और इस बीमारी में सुधार की रफ्तार कितनी धीमी होती है, बावजूद इसके कि अब तक 155 रू की दवाइयां आ चुकी हैं और 125 रू एक्सरे में लग गये।
भाई की छुट्टियां खत्म
होने वाली थीं और वह हर बार डॉक्टर से यह जान लेना चाहता था कि मैं पूृरी
तरह ठीक कब तक होऊंगी।
वह मेरी बीमारी के
प्रति काफी जिम्मेदारी महसूस कर रहा था।
उसने कहा,
'' अच्छा हो, तुम हमारे ही
साथ अहमदाबाद चलो।वहां
इसके साथ तुम्हारा मन भी लग जायेगा।''
वह अपनी बीवी को हमेशा सर्वनाम से ही सम्बोधित करता था।
भाई को अचानक एक मौलिक
विचार आया,
उसने कहा, '' सुनो,
ऐसी तकलीफ में अस्पताल अच्छा रहता है, बल्कि
तुम्हें बहुत पहले अस्पताल चले जाना चाहिये था।
यहां कोई टहल -
फिक्र करने वाला भी तो नहीं है।''
मैं ने अलमारी से कुछ कपडे
और
जरूरी चीजें निकाली और भाई
की पत्नी से कहा कि वह अटैची में रख दे।
भाई मेरे सारे
डॉक्टरी कागज बटोर रहा था।
बिस्तर पर लेटे
लेटे मैं ने देखा कि उसकी पत्नी कपडों
के बीच बैठी मेरी
ब्रेजियर का नम्बर पढने की कोशिश कर रही थी।
मैं ने भाई से कहा,
'' कैश मैं अपने पास ही रख रही
हूँ,
जरूरत पड सकती है, तुम चैक
ले लोगे?''
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