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इम्तिहान अपने आप को सामान्य दिखाने की फिकर में मैं कुछ ज्यादा ही बन संवर कर निकला था सुबह। लोग मेरे चेहरे से मेरी मनोदशा ना भांप ले, सो शेव करे चहरे पर अतिरिक्त मुस्कुराहट चस्पा करना भी नहीं भूला था। रास्ते में जो भी मिला उसने 'जंच रहे हो यार' या ' क्या बात है, आज तो' या ' बिजली गिरा रहे हो गुरू आज तो' कह कर हाथ मिलाया और मैं मुस्कुरा कर ' बस यूं ही ' के सिवा कुछ नहीं बोल पाया। अपनी आदत के विपरीत आज रास्ते में मिलें जूनियरों के अभिवादन के जवाब मेंमेरी गर्दन तत्परता से हिल रही थी। अपने आप को सामान्य दिखाने की भरसक कोशिश कर रहा था मैं। किन्तु भीतर ही भीतर कुछ जोर - जोर से हुडक़ रहा था। तेज कदमों से आफिस में गया और सीधा जाकर अपने चैम्बर की कुशन वाली चेयर में धंस गया। भीतर बहुत कुछ उमड घुमड कर रहा था, जो अकेलापन पा कर अब आंखों से भी झांकने लगा था शायद। बाहर वालों के सामने मुस्कुराते रहना या अपने आप के व्यस्त दिखाना खुद मुझको अपने आप में नाटकीय प्रतीत हो रहा था। किन्तु एकान्त में अपने आप से अभिनय नहीं कर पा रहा था । 'वो' एकाध बार सामने भीपडी क़िन्तु तेज कदमों से आगे निकल गयी।बगैर नजर उठा के देखे। मैं भीतर तक तिलमिला गया।किन्तु चेहरे पर वही रोज सी गम्भीरता ओढे रहा। परसों अचानक मैंने उसके व्यवहार में बदलाव देखा। कोई 'गुड मार्निंग' नहीं। कोई बातचीत नहीं। कोई छेडछाड नहीं।एकाध बार मैंने बात करने की कोशिश भी की तो कोई 'रिस्पांस' नहीं दिखा।
शाम को मैंने
फोन किया 'क्या
बात है ?'
'गौरी
लेकिन इन सब बातों से क्या फर्क पडता है?'
'मुझसे
प्यार करती हो?'
'क्या
शादी ही सबकुछ होता है ॠ माना मेरी पत्नी है बच्चा है। तो क्या मुझे प्यार करने
का हक नहीं ? '
'हम
अब मिलना बंद कर देंगे। बातें करना बंद कर देंगे बस।'
'
आपके लिए तो सब
मजाक है। आपको क्या फर्क पडता है
?'
उसका स्वर तल्ख
था। मैं स्तब्ध रह गया।
दूसरे ही दिन
से मैं 'इनडिफरेण्ट'
हो गया।
अपने
काम से काम।
खाली
समय में लाइब्रेरी और शाम को कामरे में लेट कर सिगरेट फूंकना।
रात
के करीब आठ बज रहे थे
।
मुझे ना जाने
क्या सूझा मैंने उसके फोन पर अपने मोबाईल से दो बार घण्टी दी।दो
घण्टी हमारा 'कोड'
था।
उसका
रिएक्शन क्या होता है इन्तजार में मैं इधर उधर टहलने लगा
।
'कौन
?'
मैं अनजान बन
गया। ह्नह्न।मन ही मन एक प्रण ले लिया। ह्नह्न। आज पन्द्रहवां दिन है। उससे बगैर बोले, बगैर नजर मिलाए , बगैर उसको छुए। कडा इम्तिहान है। पर शायद यूं ही सही धीरे धीरे प्यार मिट जाएगा। अचानक घडी पर नजर गई बारह बीस हो रहे थे। तुरन्त चश्मा संभाला रजिस्टर और चॉक उठाए और तेज कदमें से क्लास की ओर चल दिया।
संजय
विद्रोही
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