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राजू का भाग्य
सर्दियों के
दिन थे ।
कालोनी के लडक़े मैदान
में
क्रिकेट खेल
रहे थे ।
तभी
एक मोटर साइकिल मैदान के अन्दर आकर रूकी और सवार
बाऊंडरी
के पास अपनी
मोटर साइकिल को खडा करके पिच के पास आने लगा।सचिन
बाल फेंकने जा रहा था।
रूक
कर उसने देखा कि दुबला पतला
सांवले
रंग का लडक़ा
उसी की ओर बढ रहा था।
पास
आकर उस लङके ने पूछा
''क्या
मै भी खेल सकता
हूं
आप लोगो के
साथ ?''
बीच
खेल में
खिलाने के लिये सचिन ने बाकी सबकी तरफ देखा
।
रोहित ने
सबको बताया कि राजू अभी नया आया है कालोनी
में
और सचिन के
घर के सामने वाले घर मे ही आया है।खेलना
शुरू हुआ
।
खेल के बाद
सभी लोग वापिस घर की ओर चले तो राजू ने अपना पूरा नाम बताया
'
राजेश
सक्सेना
।राजू
के पिता विद्युत विभाग
में
अभियंता थे
।
लेट आने की
वजह से बङी मुश्किल से राजू का दाखिला दसवीं
कक्षा
मे हो पाया
।कालोनी
मे जल्दी एक दूसरे से परिचय बढता है
,
राजू भी जल्द
ही बाकी लङको के साथ घुलमिल गया और किताबो व अन्य चीजों का आदान प्रदान,
साथ
खेलना,
आदि
गतिविधियां चलने लगीं। ''ऐसे ही हम लोग गेट पर खडे बातें कर रहे थे कि मिसेज सक्सेना आयीं और अपने यहां आने का अनुरोध करने लगीं।बताने लगीं अपने बारे में, परिवार के बारे में । छः बच्चे हैं इनके । बङी लडक़ी की शादी हो गयी है उससे छोटी एक और लडक़ी, उसके बाद ये राजू फिर एक लडक़ी फिर एक लडक़ा और फिर सबसे छोटी लडक़ी ।बता रही थीं कि पहले खुद भी नौकरी करती थी। शादी के बाद भी कई साल तक नौकरी करती रही फिर सक्सेना साहब ने छुडवा दी बातों से तो बडी साहसी लग रही थीं।'' सर्दियों के दिनों मे धूप सेकने का एक अलग ही आनन्द है और अक्सर महिलायें किसी ना किसी के लॉन में बैठकर दोपहर का समय बिता देती । केबल टी वी का जमाना अभी आया नही था और इस बहाने स्वेटर भी बुन लिये जाते ।राजू की माँ भी कभी कभी इस महिला मंडली मे शामिल हो जाती थीं । उन्हे सब मिसेज सक्सेना ही बोलते थे। बाकी सब गृहणियों में वो ही अकेली ऐसी थीं जो नौकरी कर चुकी थीं, शुरू - शुरू में अपनी इन्ही नौकरी की बातों के कारण वो सब महिलाओं पर छा गयीं ।अक्सर वो शिकायत करती मिलतीं कि अरे हम भी यदि नौकरी करते रहते तो प्रमोशन पा चुके होते अब तक । भई खुद कमाओ तो पुरूष का रोब सहन नही करना पङता औरत को । मैं तो अपनी लडक़ियों से कहती हूं कि खुब पढो लिखो , अपने पैरों पर खडी हो जाओ ।सब उनके मुख की ओर देख रही होतीं , वो आगे बोलतीं , ''बहन जी , आप लोग ही बताओ , महिलायें किस बात में कम हैं पुरूषों से ? ''
उनका भाषण
बदस्तुर जारी रहता
, ''
इन्दिरा
गांधी
को
नहीं देखा था
,
महिला थीं
,
प्रधानमंत्री
बनी ,
देश
चलाया इतने साल
।
नाश हो इन
उग्रवादियों का
,
मार दिया
गददारों ने
।'' एक दिन रात को यकायक कुछ शोरगुल जैसा होने लगा , सब लोग बाहर निकले तो पाया कि राजू के घर में शोर मचा हुआ था । ऐसा लगा जैसे किसी की पिटाई हो रही है , राजू के छोटे भाई बहनों के रोने की आवाजें आ रही थीं । घर का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था ,बाहर लॉन की लाइट भी जली हुयी थीं , स्ट्रीट लाइटस भी भरपूर रोशनी बिखेर रही थीं । लोग मामला समझने के लिये अपने घरों से निकल कर सङक पर आये तो देखा कि सक्सेना साहब , राजू की माँ को घसीट कर कमरे से बाहर ला रहे थे और साथ साथ लात मार मार कर पीटते भी जा रहे थे । राजू और उसकी बडी बहन उन्हे छुडवाने की कोशिश कर रहे थे । शोर सुन कर सक्सेना साहब के पडोसी और सहकर्मी सिंह साहब भी बाहर आ गये थे । वो राजू के घर का गेट खोलकर भीतर जाने लगे साथ में बुदबुदा भी रहे थे , लगता है सक्सेना आज पीकर आया है ।सिंह साहब को अन्दर जाते देखकर बाकी लोग सङक पर ही खङे होकर देखने लगे ।सिंह साहब ने सक्सेना साहब को डांट डपट कर खींच कर अलग किया , राजू की माँ रोती हुयी अन्दर चली गयीं । सक्सेना साहब अभी भी हांफते हुये गालियां बक रहे थे । सिंह साहब किसी तरह अन्दर ले गये । राजू के दूसरी ओर रहने वाले श्रर्मा जी बोले , '' जाने क्या आदत है लोगों को पीकर नौटंकी करने की , सारी शर्म , सभ्य समाज में रहने के तौर तरीकों को घोल कर पी गये हैं । '' सब लोग अपने अपने घरों में चले गये । सुबह सचिन बाहर निकल रहा था तो देखा कि सक्सेना साहब मोटरसाइकिल से जा रहे थे और राजू गेट बंद कर रहा था । सचिन को देखकर वो एक पल को ठिठका और फिर नजरें नीची करके घर में अन्दर चला गया । सचिन कोउस पर और उसके भाई बहनों पर तरस आया ।दोपहर बाद जब सचिन घर वापिस आया तो देखा कि राजू की माँ और पडोस की अन्य दो तीन महिलायें बैठी हुयी थीं । मिसेज सक्सेना रोकर कह रही थीं , '' मेरा तो भाग्य ही फूट गया , नौकरी ना छोडी होती तो क्यों धौंस सहनी पडती ।'' फिर तो ये तकरीबन रोजमर्रा का किस्सा हो गया , सक्सेना साहब अक्सर पीकर लौटते और फिर घर में किसी न किसी कीपिटायी और गालियों और रोने का शोर ।राजू अबस्कूल में भी सबसे अलग रहने की कोशिश करता , शायद उसे शर्म लगती हो , अपने घर के हालातों के कारण । बाकी संगी साथी भी शर्माते थे उससे कुछ पूछते हुये ।इन्ही सब के बीच परीक्षायें आ गयीं और सब परीक्षा देने में व्यस्त हो गये । कुछ समय बाद परिणाम भी आ गया , राजू फेल हो गया था ।बाकी सब संगी अगली कक्षाओं में चले गये , राजू ने फिर से दसवीं में दाखिला लिया ।
अब वो खेलने
भी नहीं जाता था
।
उसका साथ
सबसे छूट गया था
।बस
कभी कभार आमना सामना हो जाता तो वो नजरें झुकाकर निकल जाता
।
ऐसे ही एक और
साल बीत गया और राजू फिर से दसवीं में फेल हो गया
।
परिणाम
निकलने के बाद एक शाम को राजू नशे में धुत होकर लौटा
।
शोरगुल से
पता चल गया सबको
।सचिन
के पापा बोले
, ''
ये क्या हो
गया है इन जरा जरा से लडक़ों को
,
ये उम्र और
नशेबाजी।'' फिर दौर शुरू हो गया राजू की पिटाई का । पहले तो उसके पापा उसकी पिटाई किया करते थे पर बाद में जाने क्या हुआ , कौन से समीकरण बदले कि लगने लगा कि सारा घर एक तरफ हो गया है और राजू दूसरी तरफ ।कई बार ऐसा हुआ कि राजू नशे में घर आया और उसके भाई बहनों ने उसे जमकर पीटा और फिर वहीं बाहर लॉन में पडा छोड दिया । तभी एक बार सचिन के पापा का स्कूटर शाम को खराब हो गया , सुबह उन्हे जरूरी काम से जाना था और अब उस वक्त स्कूटर ठीक करवाने भी नहीं जाया जा सकता था । सचिन की माँ राजू को उसके घर से बुला लायीं । राजू तुरन्त आ गया ।
सचिन और राजू
लगभग अजनबियों की तरह स्कूटर के पास खडे हो गये
।
राजू ने
स्कूटर देखना शुरू किया और जो भी चीज़ वो
माँगता
सचिन उसे दे देता
।कुछ
देर की मेहनत के बाद उसने स्कूटर ठीक कर दिया
,
तब तक सचिन
की माँ
चाय
लेकर आ गयीं
।
चाय पीते
पीते सचिन ने राजू से पूछा जो स्कूटर को घूरता हुआ चुपचाप चाय पी रहा था
।
सचिन ने अपनी
माँ
से
बताया कि स्कूटर ठीक हो गया है और वो कुछ पैसे आदि के बारे में पूछ लें राजू
कुछ समय बाद राजू ने आई. टी. आई. में एडमिशन ले लिया और वहीं होस्टल में रहने लगा । कभी - कभी घर आता था , दो तीन दिन रहता था और उन दो तीन दिनों में भी कम से कम एक बार तो पिटाई खा ही लेता था ।दीपावली पर आया तो शरीर सूखकर एकदम दुबला पतला हो गया था , पता चला वहां होस्टल में ड्रग्स भी लेने लगा था । दीपावली के बाद वो होस्टल वापिस नहीं गया । दिन भर कहीं गायब रहता और रात को जब लौटता तो अक्सर नशे में चूर होता । एक दिन शाम को कुछ लोग राजू को उठाकर लाये और बताया कि नशे में द्युत होकर बाग के पास पडा था और उसकी मोटरसाइकिल उसके ऊपर पडी थी ।राजू को देखते ही उसके पापा ने उसे गालियां देकर पीटना शुरू कर दिया , '' वहीं क्यों नहीं मर गया सडक़ पर किसी मोटर के नीचे आकर।'' राजू तो नशे में चूर था , लोगों ने उसे छुडाया । राजू के पापा उसे दुश्मन समझने लगे । अब तो लगभग रोज क़ा सिलसिला बन गया राजू के नशे में लौटने का और उसकी पिटाई का । उन्ही दिनों सचिन एक एक्जाम देने बाहर गया , तीन दिन बाद घर वापिस आया तो देखा राजू के यहां भीड लगी हुयी थी , कालोनी के तमाम परिचित चेहरे वहां खडे दिखाई दे रहे थे । मन में दुविधा लिये वो घर में घुसा और माँ से पूछा तो पता लगा कि राजू ने आत्महत्या कर ली । ''
क्या !''
सचिन का
मुंह खुला रह गया । उसने पूछा
, ''
मगर क्यों
?''
उसकी
माँ
ने कहा
,''
राम
जाने ,
अच्छे
खासे जवान लडक़े की बलि चढा दी
।
चल तू कपडे
बदल ले ,
मुंह
हाथ
धो ले ,
चाय
पी ले जल्दी से
,
फिर मुझे भी
सामने जाना पडेग़ा
,
पुलिस ले
जाने वाली होगी बॉडी पोस्टमार्टम के लिये
।'' माँ के जाने के बाद सचिन ने कमरे की खिडक़ी से देखा , राजू के घर के बाहर भीड लगी हुयी थी , लोग आ जा रहे थे , पुलिस की गाडी भी खडी हुयी थी । सचिन बाहर घर के लॉन में आकर खडा हो गया और उसने देखा , अपने लॉन में सक्सेना साहब भी सफेद कुर्ता पायजामा पहने खडे थे , उन्हे तीन चार लोगों ने घर रखा था ।घर में कुछ अनिष्ट घट जाने से विषाद और थकान की छाया तो उनके चेहरे पर नजर आ रही थी पर ज्येष्ठ पुत्र की आकस्मिक मृत्यु होने के कारण हो सकने वाले दुख की स्थिति उनके चेहरे से झलक नहीं रही थी ।
उसने देखा कि
उसके
पडोस
वाले घर के बगीचे में कई महिलाओं खडी होकर बातें कर रही हैं
।सचिन
लॉन को पार करके अपने बगीचे में लगे अमरूद के पेड क़े नीचे खडा हो गया
।
उसे सुनायी
दे रहा था उन लोगों का वार्तालाप
। ''अरे तो ये लोग जीने ही कहां दे रहे थे उसे पहले भी । आपने देखा नहीं उसकी पिटाई होते हुये , यहां बाहर लॉन में सारा सारा घर मिलकर पीटता था उसे । ये छोटे भाई बहन भी लात - घूसों , जूते चप्पलों से या जो भी हाथ लग जाता था इन लोगों के उसी से पीटते थे उसे मिलकर ।'' ''भाभी जी , सुबह मिसेज सक्सेना की रूलाई फूटी थी एक बार , आखिर माँ का कलेजा है , सक्सेना साहब ने तुरन्त डाट कर चुप करा दिया कि कोई जरूरत नहीं है रोने धोने की । कोई अपनी औलाद के प्रति भी इतना कठोर हो सकता है भला ? '' तभी एक ऐम्बूलैन्स आकर रूकी और उसमे से राजू का शव उतारा गया । महिलाओं में कानाफूसी चल रही थी । बडी ज़ल्दी हो गया पोस्टमार्टम ।अरे सब पहचान है उसके पापा की, जल्दी से करवा लिया होगा । कितने तो इनके खुद के पीने खाने वाले यार दोस्त हैं हर जगह । अजी अब करना ही क्या था , जाने वाला तो चला ही गया अब । राजू की शव यात्रा चली गयी । इधर सचिन खिडक़ी में खडा सोच रहा था , कितनी गलती राजू की थी अपने को इस मुकाम पर पहुंचाने में और कितनी गलती उसके परिवार के लोगों की ।उसे लगा , राजू की मौत के जिम्मेदार उसके खुद के पिता हैं । लगा वो अपने ही ज्येष्ठ पुत्र के हत्यारे हैं । वो भी शराब पीकर आते थे , हंगामा खडा करते थे रोज ही , जब उन्हे घर ने सहन ही नही किया बल्कि उनका साथ भी दिया हर बात में ।फिर ये लोग राजू के साथ ऐसा क्यों नहीं कर पाये ? समाज कितनी आसानी से सब पचा रहा है । जिन्दगी मौत के स्वाभाविक प्रश्न उसके अन्दर उमडते रहे और साथ आती रहीं राजू से जुडी हुयी स्मृतियां । कुछ दिन की कौन कहे एक दो दिन में ही सक्सेना साहब के घर का वातावरण शान्त हो गया , ऐसा जैसे राजू नाम का कोई मानव वहां कभी रहता ही नहीं था ।
सक्सेना साहब
हरदम प्रसन्नचित्त दिखाई देते थे
।
घर में सबसे
उनका व्यवहार अच्छा हो गया था
।
आस
पडोस
की महिलायें
अक्सर कहा करतीं
,''
इनके घर में
कांटा था राजू
,
उसकी मौत के
बाद देखो कैसे सब खुशी खुशी रह रहे हैं
।'' सचिन के अन्दर अक्सर ये बात गूंजती रहती ,''राजू की बलि दी गयी है , हां शायद ग्रहों की शान्ति के लिये एक मानव की बलि चढा दी गयी है । '' वो अक्सर ये बात सोचता कि क्या खून के रिश्ते भी इस कदर बिगड सकते हैं कि बाप अपने ही बेटे की मौत में किसी हद तक जिम्मेदार हो और बेटे की मौत पर शान्ति का अनुभव करे । या शायद राजू का भाग्य ही ऐसा था । ऐसे समय वो आंखे बंद करके प्रार्थना करता , '' भगवान उसकी आत्मा को शान्ति प्रदान करना ।''
राज,
आस्ट्रिया |
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