जमीन पर
विष्णु शर्मा द्वारा लिखित नाटक ग्राउण्ड जीरो'
का हिन्दी अनुवाद
(पांच
अंको में समाप्य यह धारावाहिक नाटक
9/11
की विभिषिका के शिकार लोगों को समर्पित है। इस नाटक के पात्र,
स्थान,
घटनाएं सब काल्पनिक हैं।)
पात्र
अपने - अपने आगमन के क्रमानुसार
पिफ : एक महत्वाकांक्षी अधेड
पुरुष जो कि एक सेल्समैन है।
मिट : पिफ की मानसिक हताशा की शिकार पत्नी
टिम: इनका एक बुध्दिमान युवा बेटा जो पत्रकारिता पढ रहा
है।
पिम: इनकी बेटी जो वकील बनना चाहती है।
ओसो: एक किन्नर,
घृणित कार्यों में लिप्त समूह का मुखिया।
डोजो: ओसो के समूह का एक विद्रोही सदस्य
मिको : ओसो के समूह की एक उद्भ्रांत स्त्री
निटो : ओसो के समूह की एक और महिला
दो ओसो के कमाण्डो।
एक बच्चा
इस अंक में प्रस्तुत है प्रथम दृश्य
इस अंक में पिफ और मिट की ही भूमिका है।
प्रथम दृश्य
खाली मंच।
स्पॉट लाईट पिफ और मिट पर पडती है।
वे बिस्तर में सोने की मुद्रा में हैं।
यह सूर्योदय का समय है।
पिफ: ( मिट को छेडक़र जगाते हुए) ए मिट,
क्या अभी तक सो रही हो? शायद,
पर तुम खर्राटे तो नहीं भर रहीं।
अच्छा है कि खर्राटे लो या फिर चलो तकियों के माध्यम से बात करें।(
पिफ उसे करीब खींचता है।)
मिट: क्या मेरी वाली चिडिया खिडक़ी के छज्जे पर आई?
पिफ: अभी तक तो नहीं।
मिट: ( उसे धकेलते हुए) फिर मुझे तंग मत करो।
पिफ:( उसे फिर करीब खींचता है।)
मुझे पता है कब वह चिडिया आती है।
तुमने मुझे बिस्तर में अकेला छोडा हुआ है।
मिट: ( स्वयं को दूर करते हुए) तुम्हारा स्पर्श बडा अजीब है।
पिफ: तुम हमेशा ऐसा ही करती हो,
जब मैं तुम्हें खुश करने की कोशिश करता
हूं!
मिट: खुश! अपने आपको या मुझे?
पिफ: मुझे नहीं पता तुम इतनी चिढचिढी क्यों हो।
तुम मेरी जरूरतों को उपेक्षित करती हो।
मिट: तुम पागल हो।
तुम मुझे मैं नहीं बने रहने देना चाहते।
मेरी मर्जी क़ुछ नहीं?
पिफ: तुम्हारी समस्या यह है कि तुम बहुत सपने देखती हो।
मिट: दिवास्वप्न?
पिफ: नहीं।
मेरा मतलब जब तुम सोती हो।
मिट: ठीक है, पर इसमें मैं कुछ
नहीं कर सकती।
पिफ: तुम मुझसे दूर भागती हो जब तुम सपने देखती हो।(
पिफ एक लम्बी सांस लेता है,
उसकी तरफ हंसकर और मादक भाव से देखता है।)
लेकिन तुम मुझसे चिपक जाती हो जब तुम्हें डरावने सपने आते हैं।
मिट: मेरे सपने डरावने सपनों में बदल जाते हैं जब मैं तुम्हें संकट में पडा पाती
हूं।
हमेशा जमीन पर औंधे मुंह।पाताल
में।
पिफ: मुझे नहीं पता तुम्हें ऐसे सूत्र मिलते आखिर कहां से हैं?
तुम्हारे डरावने सपनों का पाताल तुम्हारे दिमाग की उपज है।
सपनों में भी तुम मुझमें कमियां पाती हो।
मिट: मेरी मनोव्यथा तुम्हारे लापरवाह व्यवहार का ही परिणाम है।
पिफ: मेरे व्यवहार में तो कुछ भी गलत नहीं।
तुम हमेशा मुझे धोखेबाज साबित क्यों करना चाहती हो?
मिट: क्योंकि,
तुम्हारे गुप्त कार्यकलाप अपने पीछे हमेशा एक मलिन लकीर छोड
ज़ाते हैं।
पिफ: तुम मुझे बाध्य करती हो कि मैं जब तुम्हारी नजरों से दूर होऊं तो अपने हर पल
का ब्यौरा तुम्हें दूं।
यहां तक कि जब मैं टायलेट में होऊं तब भी।
मिट: भगवान जाने, तुम वहां भी आखिर
क्या करते हो? शर्त लगा लो वहां भी तुम कमोड से खेलते
होगे, मैं ने तुममें से अजीब सी गंध महसूस की है।
पिफ: तुम वहां भी ताक - झांक करती हो!
मिट: मैं कोई ताक - झांक नहीं करती।
मैं बस तुम्हारा खयाल रखती
हूं।
तुम अपने प्रति बहुत लापरवाह हो।
अपनी तोंद को देखो।
दिन पर दिन बढती जा रही हो।
पिफ: तुम कुछ ज्यादा ही बढा - चढा कर कह रही हो।
तुम सोचती हो कि मेरा गंजापन भी मेरी ही किसी गलती की वजह से है?
यह बताओ जरा, तुम मुझे दाढी बढाने
से क्यों रोकती हो? तुम मुझे मेरी किसी छोटी सी भी
रुचि के लिये अनुमति नहीं देती।
मिट: हां पीकर टुन्न हो जाना तुम्हारी छोटी सी रुचि है।
धूम्रपान करना?
झूठ बोलना? अपराधिक समूह के लोगों
से संपर्क रखना?
पिफ: मैं पुरुष
हूं
आखिर।
मुझे भी अपनी स्वतन्त्रता चाहिये।
मिट:( भडक़ते हुए) महज कहावतों वाली स्वतन्त्रता?
मुझे पता है तुम्हें यह स्वतन्त्रता घटिया लोगों से जुडने के
लिये चाहिये।
पिफ: जिन्हें तुम घटिया लोग कह रही हो,
वे मेरे लिये जरूरी लोग् हैं, मेरी
सेल बढाने में जरूरी।
मिट: तुम गलत दरवाजे खटखटा रहे हो।
मुझे हैरत होगी अगर तुम वहां सेल कर पाये तो।
तुम वहां से हमेशा सूखा मुंह लेकर लौटते हो।
हैलोवीन के कद्दू जैसा!
पिफ: तुम हमेशा मेरा स्वागत कडवी निगाहों से करती हो।
क्या मैं तुम्हें विली लोमान जैसा लगता
हूं
या कुछ और?
मिट: तुम से तो उस अमेरिकन नाटक के उस गरीब सेल्समेन की तुलना
भी नहीं की जा सकती।
तुम्हारे काम करने का तरीका ही बेकाम का है।
एक लम्बी खामोशी
पिफ: उन कविताओं का क्या जो मैं ने तुम्हारे लिये लिखी थीं?
मिट: कौन जाने तुमने वे प्यार - भरी चीजें किसके लिये लिखीं थीं।
पिफ: तुम्हारा अविश्वास बहुत बढ ग़या है मिट,
यह आहत करता है।
मिट: मैं तुम्हें आहत नहीं करना चाहती थी पिफ।
पर तुम्हारी शायराना अंदाज क़ो कुछ हो गया है।
बहुत दिन हुए,
तुमने ऐसा कुछ नहीं लिखा जो मुझे उत्साहित कर सके।
पिफ: मुझे भी तो कोई प्रेरणा चाहिये लिखने के लिये।
मिट: और मेरा होना तुम्हें प्रेरित नहीं करता।
तुम कैसे नहीं लिख सके?
पिफ: इस बारे में सोचो, क्या तुम
सत्यानाशी नहीं हो?
मिट: इसका मतलब हम एक दूसरे का सत्यानाश कर रहे हैं?
पिफ: इसे ऐसा नहीं होना चाहिये था।
याद करो
मिट: जब तुम मेरे घर सफेद घोडे पर आये थे
पिफ: और तुम फूलों के पीछे छिप गयी थीं।
मिट: तुम मेरे लिये एक खूबसूरत पन्ने की अंगूठी लाये थे
पिफ: तुमने मेरे लिये वह चौडे क़ालर्स वाला कार्डिगन बुना था।
मिट: हमने एक दूसरे से वादे किये थे।
पिफ: प्यार के, परवाह के
मिट: एक दूसरे को ऊंचा उठाने के,
सामाजिक सफलताओं के
पिफ: आत्मिक संतोष के, आध्यात्मिक
संस्कारों के
मिट: यह सब सुनना अतिशयोक्ति लगता है।
लेकिन कोई बात नहीं,
हम एक दूसरे को नष्ट करने के लिये एक नहीं हुए थे।
पिफ: हम स्वीकार करना चाहते थे जीवन को न कि अस्वीकार।
मिट: तो फिर कुदरत का कौनसे नियम ने हमें यहां ला खडा किया
-
विध्वंस के कगार पर पिफ?
पिफ:यह कुदरत का नियम नहीं है।
मिट: हम दोनों ही अधिक सहनशील हो सकते हैं।
अच्छा अब मुस्कुरा दो।
कहो
-
चीऽऽज!
पिफ: एक मसाज काम कर सकता है या फिर एक कप चाय!
मिट: मसाज तो एक जाल है।
पिफ: तुम तो मसाज लेने देने में मजा पाती हो।
मिट: हमेशा तो नहीं!
पिफ: अच्छा,
तो मुझे चाय बना कर लाने दो।
मिट: ठीक है,
अगर चाय का स्वाद वही अऽच्छाऽऽ वाला हो तो।
पिफ: अऽच्छाऽऽ ही होगा अगर तुम इतनी ज्यादा चीऽऽनी न घोलो तो!
मिट: तुम हमेशा कम चीनी डालते हो।
पिफ: और तुम हमेशा ज्यादा। उससे चाय का अपना स्वाद ही चला जाता है। यह मत भूलो
चीनी चाय के लिये है न कि चाय चीनी के लिये।
मिट: दोनों,
चाय और चीनी एक दूसरे के लिये हैं। मैं तो बस यही जानती हूं। और अब बस
एक चिडिया आकर खिडक़ी के छज्जे पर बैठती है।
उसकी मधुर चहचहाहट सुनाई दे रही है।
पिफ: लो,
यह कमबख्त खेल बिगाडने आ गयी।
अब हम चाय का मजा क्या खाक ले पायेंगे?
मिट: क्यों? यह तो मधुर चिडिया है।(
वह बिस्तर से उठकर खिडक़ी के समीप आ जाती है।)
यह कितनी कोमलता से हमें देखती है।
पिफ: तुम्हें देखती है, न कि हमें।
तुम इसे सर पर चढाती हो।
तुम्हें लगता है यह तुम्हारे लिये गाती है।
मिट: हां, यह मेरे लिये गाती है।
पिफ: यह एक सरासर ख्वाब भर है।
मुझे नहीं पता कि कब तुम वास्तविकता की दुनिया में जीना शुरु करोगी!
मिट: मेरा संसार वास्तविक है।
पिफ: मुझे शक है कि यह चिडिया किसी घोंसले से आती है।
यह इतनी अजीब और भयावह लगती है।
हम यहां तक कि इसका नाम तक नहीं जानते।
मिट: उससे क्या फर्क पडता है? यह
इतनी जीवन्त और ताजग़ी देने वाली है कि बस।
यह कोई संदेश लाती है मुझ तक।
पिफ: मेरे खयाल से, किसी
अण्डरवर्ल्ड से?
मिट: अब तुम मुझे सच में गुस्सा करने पर उतारू हो।
पिफ: इस चिडिया को लेकर तुम्हारे ख्यालात कितने अजीब हैं।
यह बहुत ज्यादा परीकथाएं पढने का नतीजा है या फिर किसी एन्टीक शॉप पर बार बार
जाने का नतीजा?
मिट: मैं ने एण्टीक्स खरीदना कब का बन्द कर रखा है।
पिफ: ये जो कबाड तुमने इकट्ठा किया है वह जीवनभर के लिये काफी
नहीं?
मिट: पवित्र निशानियां तुम्हें कबाड लगती हैं तो तुम चिडिया
के गाना को कैसे पसंद करोगे? यह हमारे बेटे का गीत
गाती है।
हमारा टिम।
( चिडिया से) तुम मुझे यह बताओ कि मेरा बेटा कैसा है?
क्या वह किसी के प्यार में पडा अब तक?(
उत्तर में चिडिया का गाना सुनाई देता है।)
या अब तक अकेला है?
वह शुरु ही से बहुत सी लडक़ियों को आकर्षित करता था।
उसके सेब से गालों को नोचने से वे कुंवारियां अपने को रोक नहीं पाती थीं।
क्या वह मुझे याद करता है?
उसकी मां?
पिफ: यह चिडिया तुम्हें कैसे बता सकती है यह सब?
बेहतर है अपने बेटे से ही पूछो।
वह इस सप्ताहांत में घर आ रहा है।
मैं उसे पहले ही उसे बाहर घुमाने ले जाने का वादा किया है।
मिट: सप्ताहांत तो जब आयेगा तब आयेगा,
फिलहाल तो यह चिडिया यहां है।
पिफ: हां, हमारा समय बर्बाद करने
को और मूड खराब करने को।
मिट: तुम्हें अपना समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।
जाओ जाकर चाय बनाओ।
पिफ चिडिया को भगाने की एक नाकाम कोशिश करता है। फिर अपने कंधे उचका कर चला जाता
है। मिट चिडिया की तरफ प्यार से मुडती है।
मिट: मेरी प्यारी,
मेरे पति के कहे का बुरा न मानना।
बेचारा गलत परिस्थितियों में फंस गया है।
वह बाद में किसी छाया से ग्रस्त हो गया है।
शायद किसी चुडैल के कालेजादू में।
मैं चाहती हूं कि वह प्रकाश और आनन्द के लिये तुम्हारी तरफ ध्यान दे।
अब यह बताओ मेरा भाई कहां है?
वह कभी फोन क्यों नहीं करता? क्या
वह भी तनाव में है? हम पूरे दिन बागों में खेला करते
थे।
चेरी और सेब बीना करते थे।
वह मुझे अपने कन्धों पर चढा कर चिडियों के घोंसलों में झांकने देता था।
तुममें से उन्हीं बागों की महक आती है।
क्या तुम वहीं से आती हो?
( चिडिया गाकर उत्तर देती है।)
और मेरे पिता?
वे बहुत वृध्द हो चले होंगे ना? वह
पहले मुझे देख कर अपनी थकान भूल जाया करते थे।
मेरी मां उस सब से जल - भुन जाया करती थी।
( चिडिया लम्बा राग गाकर उत्तर देती है।)
तुम्हारे गीत वह सब लौटा लाते हैं।
गाओ,जोश
से गाओ! मैं तुम्हारी चोंच सोने से मढवा दूंगी,
तुम्हारा सर जवाहरातों से सजा दूंगी।
वचन देती हूं।
पिफ चाय लेकर लौटता है।
मिट और चिडिया को देखता है।
पिफ: मुझे पता था कि तुम इस पागल चिडिया के साथ बातों में लगी होगी।
मुझे पता था कि तुम चाय का मजा बरबाद करोगी।
मिट: कुछ भी बरबाद नहीं हुआ, पिफ।
मैं चाय में और चीनी नहीं मिलाऊंगी अगर उससे तुम नाराज होते हो तो।
चाय के प्याले यहां बिस्तर में ले आओ।
आओ चाय का मजा लें।
पिफ: पहले उस चिडिया को भगाओ।
मिट: ना, मैं ऐसा नहीं कर सकती।
यह नन्हीं दुर्लभ चिडिया है।
यह प्रकृति है।
पिफ: यह बदसूरत है।(
चिडिया से) भागो! ( चिडिया भागती नहीं है,
गाती रहती है) पिफ पागलों की तरह चिल्लाता है) बाहर भागो!
ट्रे उसके हाथों से फिसल जाती है।
मिट और पिफ एक दूसरे को निराशा और हताशा से घूरते हैं।
चिडिया के उडने के साथ गाने की आवाज धीरे धीरे दूर चली जाती है।
मिट: तो हमें आज सुबह चाय नहीं मिलने वाली।
और अब चिडिया भी हमें परेशान नहीं करेगी।
पिफ: मुझे माफ करदो, मिट।
मुझे नहीं पता ऐसा क्यों हुआ।
मिट:ऐसा हमेशा होता आया है।
तुम अपना संतुलन खो बैठते हो।
पिफ: मैं और चाय बना लाऊंगा।
मिट: हां, मगर चिडिया लौट आई तो?
पिफ: मैं नाराज नहीं होऊंगा।
वादा।
तुम्हारी खुशी मेरे लिये जरूरी है।
मिट: मुझे नहीं लगता कि मेरा अब चाय पीने का मन भी है।
पिफ: हमें किसी चीज क़ा शोक नहीं मनाना चाहिये।
मिट: हां सिवाय शोक के,
(
एक लम्बी चुप्पी) क्या मैं उदास लग रही हूं?
पिफ: थोडी सी। चलो मैं तुम्हें आराम दूं।( उसका सर सहलाता है) चाय बाद में आ
जायेगी। चलो एक दूसरे को अच्छा मसाज दें,
और उसे यादगार बना लें।
पिफ मिट को बिस्तर पर ले जाता है। वे एक दूसरे को मसाज देते हैं। कुछ योगाभ्यास
के आरामदेह आसन बनाते हैं। एक शांति पसरी रहती है मंच पर।
मिट: यह मालिश सबसे आरामदेह है।( दोनों आलिंगनबध्द होते हैं) पिफ क्या हम अजीब सी
आदतों में नहीं बंध रहे?
पिफ: आदतें?
अजीब?
मिट: हां,
तुम क्या सोचते हो?
पिफ: मैं क्या कहूं?(
वे दूसरी मुद्रा में आलिंगनबध्द होते हैं)
मिट: क्या कोई हमें संस्कारित कर सकता है?
पिफ: किसी और से पूछने का क्या फायदा?
तुम पुस्तकों का उत्तर ही पाओगी।
मिट: चलो मसाज का आनन्द लें।
पिफ: अगर हम ले सकें तो। ( एक अन्य मुद्रा)
मिट: अब और क्या?
पिफ: यह अजीब है कि हम कुछ और नहीं कर सकते।
मिट : मुझे समझ नहीं आता कि हंसूं या रो दूं?
पिफ: दोनों,
मेरा ख्याल है कि रोओ और हंसो एक ही साथ।
मिट: चलो फिर ऐसा ही करते हैं।
पिफ: और इसके साथ ही अपना दिन शुरु करते हैं।
मंच पर से प्रकाश धीमा होता जाता है।
वे दोनों ठहाका लगाते हैं,
बीच बीच में चिडिया की चहचहाहट आती है।
आवाजें ग़ूंजती हैं।
वे दोनों बिस्तर में फिसलते हैं।
मंच पर अंधेरा छा जाता है और प्रथम अंक समाप्त होता है।
(अगले
अंक में जानें सप्ताहांत पर टिम के आने के बाद का परिदृश्य। नाटक के अगले खण्ड
में)
इस नाटक के समस्त अधिकार विष्णु शर्मा के पास हैं।
बिना उनकी अनुमति यह नाटक या इसका अंक न मंचित किया जा सकता है न प्रकाशित अथवा
प्रसारित।
मूल कृति:
विष्णु शर्मा
अनुवाद : मनीषा कुलश्रेष्ठ
अगस्त 1, 2005