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ऐ शिवा तू कहीं मर तो नहीं गया रे! सच बता तू अभी तक यहां पहुंचा क्यों नहीं ? पिछले सप्ताह तेरा खत आया था कि तू जल्दी ही आ रहा है। हांतेरा ही तो खत था। तेरे अपने हाथों से लिखा हुआ। तेरी लिखाई कोई ओर पहचाने या न पहचाने अम्मा तो खूब पहचानती है। उस रोज ग़ली-मौहल्ले में अम्मा बताती फिर रही थी _ उसे पूरने डालने तो मैंने ही सिखाये थे। कम्बखत मेरी तरहब को वह भी हमेशा उलटा लिखता आया है। तेरी लिखाई की तफतीश इसलिये करनी पड रही थी क्योंकि खत कुछ भीगा हुआ आया था। मैं समझता हूं शिवा कि वह खत भीगा हुआ क्यों था। कहीं समन्दर के किनारे बैठा तू खत लिख रहा होगा। समन्दर से एक लहर उठी होगी और तेरे खत को भिगो गई होगी। लेकिन अम्मा कुछ ओर कहती है। अम्मा का कहना है कि तेरी आंखों का समन्दर भी अभी सूखा नहीं है।बाबा के बाद तू हर रोज रोया करता था। तू करता भी तो क्या। बाबा तो सबको धोखा दे गये। बीच मंझधार में छोड ग़ये। लेकिन इसमें बाबा का भी क्या दोष। अम्मा बताती है उन्हें किसी बिमारी ने घेर लिया था। लेकिन कैसी बिमारी अम्मा यह नहीं बताती थी। तूने भी तो कई बार पूछा था अम्मा से। तूने बाबा का ईलाज क्यों नहीं कराया? एक बार मैंने जोर देकर पूछा था तो अम्मा हंस दी थी- अरे उस बिमारी का तो कोई ईलाज ही नहीं है। बडी लाईलाज बिमारी है। और वह उसे विरासत में मिली थी। हम सवालिया दृष्टि से अम्मा के चेहरे की ओर देखते रह गये तो अम्मा ठहाका मार कर हंसी थी- अरे ऐसे क्यों देख रहे हो तुम लोग । मैं सच कह रही हूं। उसे बहुत भयंकर बिमारी थी। गुस्सा करने की बिमारी। बस गुस्सा उसे दीमक सा चाट गया। और यह गुस्सा उसे अपने बाबा से मिला था। फिर तो अम्मा बाबा के जाने कितने किस्से हमारे सामने ले बैठी थी। अम्मा कच्चे आंगन को गोबर से लीपती अनारो को आवाज लगाती - तू कहां मर गयी री। कम्बखत हर थोडी देर बाद गायब हो जाती है। - उसे किस लिये बुला रही हो अम्मा। कोई काम है तो हमें बता हम कर देंगे। मैंने कहा था। - नहीं रे ! पण्डित जी से पुडिया लायी थी जाने कहां रख दी। - कैसी पुडिया। तुझे कोई तकलीफ हो गई क्या? - अरे वह दवाई वाली पुडिया की बात नहीं कर रही। मैं तो पण्डित जी की पुडिया की बात कर रही हूं।उन्होंने उस पुडिया में शिवा के जल्दी लौट आने का मन्त्र भेजा था। सच शिवापण्डित जी के मन्त्र कभी झूठे नहीं निकले। सिर्फ हमारे गांव के ही नहीं दूर-दराज से लोग उन्हें पूजने आते हैं। अनारो जिस रोज मन्त्र लायी थी तेरा खत भी तो उसी रोज आया था। हमें तो पण्डित जी पर उसी वक्त पूरा भरोसा हो गया था। अभी मन्त्र के घर में आते ही यह असर हो गया है । मन्त्र को पूजा जाने के बाद तो यह अपना खूब असर दिखाएगा। अम्मा की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था। उसी वक्त मन्दिर में परसाद चढाने चली गयी थी। शाम को गली -मौहल्ले की ढेरों औरतें बधाई देने चली आयी थीं। हम समझ गये थे मन्दिर जाते वक्त अम्मा मौहल्ले भर को तेरे आने की सूचना दे आयी होगी। छोटे ने तो अम्मा को डांट भी दिया था- अम्मा सारे मौहल्ले को न्यौता दे आयी क्या? अब किस-किस का मुंह मीठा करायेगी। घर पर हलवायी बुला लें क्या। - हां रे बुला ले।मेरा शिवा आ रहा है न सारा खर्चा दे देगा। आज तक पूरे घर का खर्चा भेजता आया है एक हलवाई के लडडुओं का खर्चा न उठा पाएगा। छोटे की तनी भवें देख अम्मा जल्दी ही सहज होती बोली थी- अरे मैंने घर-घर जा कर किसी से नहीं कहा। बस एक-दो से चलते-चलते बोला था। तुझे पता है न अपने गली-मौहल्ले में तो बात अपने-आप उडती हुई हर घर में पहुंच जाती है। अम्मा की बात पर छोटा भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया था। एक बात बताऊं शिवा अम्मा तो बिलकुल नहीं चाहती थी कि तू घर से बाहर इतनी दूर चला जाए। केवल पैसा कमाने के लिये ही तू घर से बाहर निकला था न। अम्मा तो पूरी जिन्दगी रोटी के बिना रह लेने को तैयार थी। लेकिन अनारो इस बात के लिये तैयार नहीं थी। उसे केवल अपनी या हमारी चिन्ता नहीं थी। उसे तो इस घर की दीवारों की भी चिन्ता होने लगी थी। बडे साफ शब्दों में अनारो ने कहा था - मुझे केवल दो वक्त की रोटी के लिये नहीं जीना। अरे दो जून की रोटी तो जानवर भी खा लेता है। रहने के लिये ढंग की छत भी तो होनी चाहिये। - क्या इस घर की छत नहीं है? अम्मा ने तपाक से कहा था। - तू इसे छत कहती है। अरे किसी दिन ढह गयी तो सबसे पहले तेरे पर ही पडेग़ी। - अरी कलमुंही तेरी जीभ जले। तू तो चाहती ही है कि ये छत गिरे और मैं मर जाउं। - तू जिये या मरेमेरी बला से। मुझे पक्की छत चाहिये।अनारो के विकराल रूप ने सब के मुंह पर ताले लगा दिये थे। और उसी रोज तूने भी घर से बाहर जाने का निर्णय ले लिया था। और सुबह सूरज उगने से पहले तूने स्टेशन की राह ले ली थी। तूने कौन सी गाडी लीतू कहां पहुंचा कोई नहीं जानता। बस पन्द्रह दिन बाद तेरा खत आया था। लिखा था- अम्मा मुझे नौकरी मिल गयी है। मैं यहां बडे आराम से हूं। तन्ख्वाह मिलते ही पैसा भेजूंगा।पूरे एक महीने बाद तेरा पांच सौ रूपये का मनिआर्डर आया था। मनिआर्डर अम्मा के नाम था। परन्तु अम्मा ने तुरन्त वह रूपया अनारो के हाथ में दे दिया था। शायद अम्मा किसी भी तरह के क्लेश से बचना चाहती थी। एक बात आज तक समझ न आयी शिवा कि तू काम क्या करता है। तूने एक बार अम्मा को लिखा था कि तू समुद्र मंथन करता है। और अगली चिटठी में तूने स्पष्ट भी किया था कि तू मछली पकडने वाली एक बहुत बडी क़म्पनी में लग गया है। सच बताऊं अम्मा को यह बात बिल्कुल पसन्द नहीं आयी थी। लेकिन अनारो ने कहा था - मछली पकडे या मगरमच्छ हमें पेट तो भरना है। अनारो की जुबान के आगे तो शिवा हवा भी अपना रुख बदल लेती थी।लेकिन अनारो गलत भी नहीं थी शिवा। जब इन्सान जन्म लेता है तो वह सपने भी लेता है। सपनों के बिना कभी जीवन चल पाया क्या। तेरे भेजे पैसों में से अनारो कुछ पैसा जोडती चली गयी थी । दो साल के भीतर ही उसने एक पक्का कमरा और पक्की छत डलवा ली थी। पक्की छत पडते ही अम्मा की छाती भी गर्व से फूल रही थी। एक बात और कमाल की हुई शिवा । महीने के पांच सौ रूपये जमा करते-करते अनारो ने सत्या का दहेज भी बना लिया था। छः महीने बाद जब अनारो ने अम्मा के आगे सूटकेस खोल कर रख दिया तो अम्मा अवाक रह गयी थी। सब कुछ जानने के बाद उसने अनारो की ढेर बलइयां ली थीं। लेकिन अम्मा के मन में एक शक पैदा हो रहा था। एक रोज अनारो के आगे फट पडी- क़हीं दूसरा मनिआर्डर तेरे नाम से तो नहीं आता री? - आता है! अनारो तुरन्त बोली थी। - हाय कलमुंही! तूने कभी बताया भी न। मनिआर्डर कब-कब आता है हमें तो पता भी न चले। - वह मेरे सपने में आता है अम्मा। शिवा खुद मेरे हाथ में पैसे पकडा कर जाता है। अनारो अम्मा को खूब सताने लगी थी।
एक रोज अम्मा
ने हार मान ली।
कहने
लगी-
खसमखानी तेरे पास पैसे जहां से भीआयें जब भी आयें मुझे क्या।
अब
मैं भी अपना मनिआर्डर तेरे को नहीं देने वाली।
लेकिन तेरा खत आते ही अम्मा जार-जार रो दी। तूने साफ-साफ लिख दिया था- अम्मा ब्याह पर मेरे बजाए पैसे की जरूरत ज्यादा है। मेरे आने-जाने पर जो किराया-भाडा लगेगा उसे ब्याह पर लगा दे। - मझे नहीं चाहिये पैसा-वैसा।बस तू आ जा।अम्मा खत को आंखों से छूती हुई फफक पडी थी। अनारो देर से अम्मा को देख रही थी। सहसा उसने तीर छोडा- तू मन से कह रही है अम्मा या फिर डरामा तो नहीं कर रही। अम्मा छलनी हो आयी थी। कैसे दिखाती कि मां का कलेजा क्या होता है।मन तो हुआ था उसका कि अनारो से कह दे बेटे को लेकर जब तेरे पर बरपेगी तो तब जानूंगी।
अम्मा ने तो
मुंह सी लिया था।
तेरा
पचास हजार का मनिआर्डर आते ही अम्मा ने सारा पैसा अनारो की झोली में रख दिया था-
ले अब तू ही जान।
कैसे
होगी ये शादी मुझे नहीं पता।
सत्या की विदायी जिस शान-औ-शौकतसे हुई थी सारा गांव देखता रह गया था। बस तेरी कमी सब को खलती रह गयी थी शिवा।तेरा पूत धीरू भी अब बडा हो रहा है। स्कूल जाने लगा है। पहली क्लास पास कर ली है उसने। एक बात बताऊं शिवा। जब उसकी पहली क्लास का नतीजा निकलना था तो अम्मा और अनारो दोनों उसके स्कूल गयी थीं। धीरू क्लास में अव्वल आया था। सभी मैडमों ने धीरू की बहुत तारीफ की थी। तब अम्मा ने कहा था- बाप पर जो गया है। लेकिन शिवा हिन्दी की मैडम ने एक शिकायत भी की थी। कहने लगी- धीरू ब हमेशा उल्टा लिखता है। मैडम की शिकायत पर अम्मा हो-हो करके हंसने लगी थी। वापसी पर अनारो ने अम्मा को बहुत डांटा था। लेकिन अम्मा पर इसका कोई असर नहीं हुआ था। कहने लगी- पहले मैं अपना ब लिखना सुधारूंगी।शिवा आ जाए तो फिर उसे सीधा ब लिखना सिखाउंगी। तब इस धीरू का लिखना अपने आप ठीक हो जाएगा।उस रोज अम्मा पूरा दिन रह-रह कर हंसती चली गयी थी। ये हंसी और रोने का खेल भी बडा अजीब है शिवा। इन्सान पल में हंसता है पल में रोने लगता है।अभी कल ही जो कहर बरपा उसे जान कर तो सारा गांव रो दिया। सुना है किसी समंदर में कोई ऐसी लहर उठी जो नागिन बन कर जाने कितनों को डस गयी। सरपंच के घर टी वी आ गया है। हम सब ने वह टी वी पर भी देखा। अम्मा तो गश खा गई थी। बडी मुश्किल से होश आया है उसे। शिवा लहरें तो निमन्त्रण होती थीं आगे ले जाने का। लेकिन यह कैसी लहर आयी कि जो पीछे ही ले गयी। शिवा हम तेरे आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। बस तू अब जल्दी से यहां पहुंच जा।
विकेश निझावन |
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