मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

लहरों पर निमंत्रण

ऐ शिवा तू कहीं मर तो नहीं गया रे! सच बता तू अभी तक यहां पहुंचा क्यों नहीं ?

पिछले सप्ताह तेरा खत आया था कि तू जल्दी ही आ रहा है हांतेरा ही तो खत थातेरे अपने हाथों से लिखा हुआतेरी लिखाई कोई ओर पहचाने या न पहचाने अम्मा तो खूब पहचानती है

उस रोज ग़ली-मौहल्ले में अम्मा बताती फिर रही थी _ उसे पूरने डालने तो मैंने ही सिखाये थे कम्बखत मेरी तरहब को वह भी हमेशा उलटा लिखता आया है

तेरी लिखाई की तफतीश इसलिये करनी पड रही थी क्योंकि खत कुछ भीगा हुआ आया थामैं समझता हूं शिवा कि वह खत भीगा हुआ क्यों था

कहीं समन्दर के किनारे बैठा तू खत लिख रहा होगा समन्दर से एक लहर उठी होगी और तेरे खत को भिगो गई होगी

लेकिन अम्मा कुछ ओर कहती हैअम्मा का कहना है कि तेरी आंखों का समन्दर भी अभी सूखा नहीं हैबाबा के बाद तू हर रोज रोया करता थातू करता भी तो क्याबाबा तो सबको धोखा दे गयेबीच मंझधार में छोड ग़येलेकिन इसमें बाबा का भी क्या दोषअम्मा बताती है उन्हें किसी बिमारी ने घेर लिया थालेकिन कैसी बिमारी अम्मा यह नहीं बताती थीतूने भी तो कई बार पूछा था अम्मा से

तूने बाबा का ईलाज क्यों नहीं कराया? एक बार मैंने जोर देकर पूछा था तो अम्मा हंस दी थी- अरे उस बिमारी का तो कोई ईलाज ही नहीं हैबडी लाईलाज बिमारी हैऔर वह उसे विरासत में मिली थी

हम सवालिया दृष्टि से अम्मा के चेहरे की ओर देखते रह गये तो अम्मा ठहाका मार कर हंसी थी- अरे ऐसे क्यों देख रहे हो तुम लोग मैं सच कह रही हूंउसे बहुत भयंकर बिमारी थी गुस्सा करने की बिमारीबस गुस्सा उसे दीमक सा चाट गयाऔर यह गुस्सा उसे अपने बाबा से मिला थाफिर तो अम्मा बाबा के जाने कितने किस्से हमारे सामने ले बैठी थी

अम्मा कच्चे आंगन को गोबर से लीपती अनारो को आवाज लगाती - तू कहां मर गयी री कम्बखत हर थोडी देर बाद गायब हो जाती है

- उसे किस लिये बुला रही हो अम्मा। कोई काम है तो हमें बता हम कर देंगे। मैंने कहा था।

- नहीं रे ! पण्डित जी से पुडिया लायी थी जाने कहां रख दी।

- कैसी पुडिया। तुझे कोई तकलीफ हो गई क्या?

- अरे वह दवाई वाली पुडिया की बात नहीं कर रही। मैं तो पण्डित जी की पुडिया की बात कर रही हूं।उन्होंने उस पुडिया में शिवा के जल्दी लौट आने का मन्त्र भेजा था।

सच शिवापण्डित जी के मन्त्र कभी झूठे नहीं निकलेसिर्फ हमारे गांव के ही नहीं दूर-दराज से लोग उन्हें पूजने आते हैं

अनारो जिस रोज मन्त्र लायी थी तेरा खत भी तो उसी रोज आया थाहमें तो पण्डित जी पर उसी वक्त पूरा भरोसा हो गया थाअभी मन्त्र के घर में आते ही यह असर हो गया है मन्त्र को पूजा जाने के बाद तो यह अपना खूब असर दिखाएगा

अम्मा की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा थाउसी वक्त मन्दिर में परसाद चढाने चली गयी थीशाम को गली -मौहल्ले की ढेरों औरतें बधाई देने चली आयी थींहम समझ गये थे मन्दिर जाते वक्त अम्मा मौहल्ले भर को तेरे आने की सूचना दे आयी होगी

छोटे ने तो अम्मा को डांट भी दिया था- अम्मा सारे मौहल्ले को न्यौता दे आयी क्या? अब किस-किस का मुंह मीठा करायेगीघर पर हलवायी बुला लें क्या

- हां रे बुला ले।मेरा शिवा आ रहा है न सारा खर्चा दे देगा। आज तक पूरे घर का खर्चा भेजता आया है एक हलवाई के लडडुओं का खर्चा न उठा पाएगा।

छोटे की तनी भवें देख अम्मा जल्दी ही सहज होती बोली थी- अरे मैंने घर-घर जा कर किसी से नहीं कहाबस एक-दो से चलते-चलते बोला थातुझे पता है न अपने गली-मौहल्ले में तो बात अपने-आप उडती हुई हर घर में पहुंच जाती है

अम्मा की बात पर छोटा भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया था

एक बात बताऊं शिवा अम्मा तो बिलकुल नहीं चाहती थी कि तू घर से बाहर इतनी दूर चला जाएकेवल पैसा कमाने के लिये ही तू घर से बाहर निकला था नअम्मा तो पूरी जिन्दगी रोटी के बिना रह लेने को तैयार थीलेकिन अनारो इस बात के लिये तैयार नहीं थीउसे केवल अपनी या हमारी चिन्ता नहीं थीउसे तो इस घर की दीवारों की भी चिन्ता होने लगी थीबडे साफ शब्दों में अनारो ने कहा था - मुझे केवल दो वक्त की रोटी के लिये नहीं जीनाअरे दो जून की रोटी तो जानवर भी खा लेता हैरहने के लिये ढंग की छत भी तो होनी चाहिये

- क्या इस घर की छत नहीं है? अम्मा ने तपाक से कहा था।

- तू इसे छत कहती है। अरे किसी दिन ढह गयी तो सबसे पहले तेरे पर ही पडेग़ी।

- अरी कलमुंही तेरी जीभ जले। तू तो चाहती ही है कि ये छत गिरे और मैं मर जाउं।

- तू जिये या मरेमेरी बला से। मुझे पक्की छत चाहिये।अनारो के विकराल रूप ने सब के मुंह पर ताले लगा दिये थे। और उसी रोज तूने भी घर से बाहर जाने का निर्णय ले लिया था। और सुबह सूरज उगने से पहले तूने स्टेशन की राह ले ली थी।

तूने कौन सी गाडी लीतू कहां पहुंचा कोई नहीं जानताबस पन्द्रह दिन बाद तेरा खत आया थालिखा था- अम्मा मुझे नौकरी मिल गयी हैमैं यहां बडे राम से हूं तन्ख्वाह मिलते ही पैसा भेजूंगापूरे एक महीने बाद तेरा पांच सौ रूपये का मनिआर्डर आया था मनिआर्डर अम्मा के नाम था परन्तु अम्मा ने तुरन्त वह रूपया अनारो के हाथ में दे दिया थाशायद अम्मा किसी भी तरह के क्लेश से बचना चाहती थीएक बात आज तक समझ न आयी शिवा कि तू काम क्या करता हैतूने एक बार अम्मा को लिखा था कि तू समुद्र मंथन करता हैऔर अगली चिटठी में तूने स्पष्ट भी किया था कि तू मछली पकडने वाली एक बहुत बडी क़म्पनी में लग गया है

सच बताऊं अम्मा को यह बात बिल्कुल पसन्द नहीं आयी थीलेकिन अनारो ने कहा था - मछली पकडे या मगरमच्छ हमें पेट तो भरना है

अनारो की जुबान के आगे तो शिवा हवा भी अपना रुख बदल लेती थीलेकिन अनारो गलत भी नहीं थी शिवाजब इन्सान जन्म लेता है तो वह सपने भी लेता हैसपनों के बिना कभी जीवन चल पाया क्या

तेरे भेजे पैसों में से अनारो कुछ पैसा जोडती चली गयी थी दो साल के भीतर ही उसने एक पक्का कमरा और पक्की छत डलवा ली थीपक्की छत पडते ही अम्मा की छाती भी गर्व से फूल रही थी

एक बात और कमाल की हुई शिवा महीने के पांच सौ रूपये जमा करते-करते अनारो ने सत्या का दहेज भी बना लिया थाछः महीने बाद जब अनारो ने अम्मा के आगे सूटकेस खोल कर रख दिया तो अम्मा अवाक रह गयी थीसब कुछ जानने के बाद उसने अनारो की ढेर बलइयां ली थींलेकिन अम्मा के मन में एक शक पैदा हो रहा थाएक रोज अनारो के आगे फट पडी- क़हीं दूसरा मनिआर्डर तेरे नाम से तो नहीं आता री?

- आता है! अनारो तुरन्त बोली थी।

- हाय कलमुंही! तूने कभी बताया भी न। मनिआर्डर कब-कब आता है हमें तो पता भी न चले।

- वह मेरे सपने में आता है अम्मा। शिवा खुद मेरे हाथ में पैसे पकडा कर जाता है। अनारो अम्मा को खूब सताने लगी थी।

एक रोज अम्मा ने हार मान लीकहने लगी- खसमखानी तेरे पास पैसे जहां से भीआयें जब भी आयें मुझे क्याअब मैं भी अपना मनिआर्डर तेरे को नहीं देने वाली
शिवा अम्मा की बहुत इच्छा थी कि तू सत्या के ब्याह पर आये
अम्मा तो यह सोच भी नहीं सकती थी कि तेरे बिना सत्या का ब्याह हो जाएगाऔर फिर बहन की शादी पर भाई न आये तो दुनिया क्या कहेगी

लेकिन तेरा खत आते ही अम्मा जार-जार रो दीतूने साफ-साफ लिख दिया था- अम्मा ब्याह पर मेरे बजाए पैसे की जरूरत ज्यादा हैमेरे आने-जाने पर जो किराया-भाडा लगेगा उसे ब्याह पर लगा दे

- मझे नहीं चाहिये पैसा-वैसा।बस तू आ जा।अम्मा खत को आंखों से छूती हुई फफक पडी थी।

अनारो देर से अम्मा को देख रही थीसहसा उसने तीर छोडा- तू मन से कह रही है अम्मा या फिर डरामा तो नहीं कर रहीअम्मा छलनी हो आयी थीकैसे दिखाती कि मां का कलेजा क्या होता हैमन तो हुआ था उसका कि अनारो से कह दे बेटे को लेकर जब तेरे पर बरपेगी तो तब जानूंगी

अम्मा ने तो मुंह सी लिया थातेरा पचास हजार का मनिआर्डर आते ही अम्मा ने सारा पैसा अनारो की झोली में रख दिया था- ले अब तू ही जानकैसे होगी ये शादी मुझे नहीं पता
अम्मा की भीगी आंखें देख अनारो ने अम्मा को गले लगाया था- हौसला रख अम्मा मैं हूं न

सत्या की विदायी जिस शान-औ-शौकतसे हुई थी सारा गांव देखता रह गया थाबस तेरी कमी सब को खलती रह गयी थी शिवातेरा पूत धीरू भी अब बडा हो रहा हैस्कूल जाने लगा हैपहली क्लास पास कर ली है उसनेएक बात बताऊं शिवाजब उसकी पहली क्लास का नतीजा निकलना था तो अम्मा और अनारो दोनों उसके स्कूल गयी थींधीरू क्लास में अव्वल आया थासभी मैडमों ने धीरू की बहुत तारीफ की थीतब अम्मा ने कहा था- बाप पर जो गया हैलेकिन शिवा हिन्दी की मैडम ने एक शिकायत भी की थीकहने लगी- धीरू ब हमेशा उल्टा लिखता हैमैडम की शिकायत पर अम्मा हो-हो करके हंसने लगी थी

वापसी पर अनारो ने अम्मा को बहुत डांटा थालेकिन अम्मा पर इसका कोई असर नहीं हुआ थाकहने लगी- पहले मैं अपना ब लिखना सुधारूंगीशिवा आ जाए तो फिर उसे सीधा ब लिखना सिखाउंगीतब इस धीरू का लिखना अपने आप ठीक हो जाएगाउस रोज अम्मा पूरा दिन रह-रह कर हंसती चली गयी थी

ये हंसी और रोने का खेल भी बडा अजीब है शिवा इन्सान पल में हंसता है पल में रोने लगता हैअभी कल ही जो कहर बरपा उसे जान कर तो सारा गांव रो दियासुना है किसी समंदर में कोई ऐसी लहर उठी जो नागिन बन कर जाने कितनों को डस गयीसरपंच के घर टी वी आ गया हैहम सब ने वह टी वी पर भी देखाअम्मा तो गश खा गई थीबडी मुश्किल से होश आया है उसे

शिवा लहरें तो निमन्त्रण होती थीं आगे ले जाने कालेकिन यह कैसी लहर आयी कि जो पीछे ही ले गयीशिवा हम तेरे आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैंबस तू अब जल्दी से यहां पहुंच जा

 

विकेश निझावन
मार्च 15, 2005

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com