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चाह

हीरादेई ने अपने दोनों बेटों को पढ़ा-लिखाकर अच्छे पदों पर पहुँचा दिया था । उसनें ५ साल पहले बड़े बेटे रवि की शादी की । बहू कॉलेज में लेक्चरर मिली । दोनों ने एक बेटी होने के बाद दूसरा बच्चा आने से इन्कार कर दिया। अभी २ साल पहले उसने छोटे बेटे अरविन्द को अपनी ही रिश्तेदारी में से लड़की लाकर ब्याहा । लड़की समझदार, सुशील, सुघड़ व अति सुन्दर । उससे भी पहली बेटी ही हुई । दादी पोते का मुँह देखने को तरस गई । हाल ही में छोटी बहू के पाँव भारी लगे । हीरादेई ने आसमान सिर पर उठा लिया । उसे अब किसी भी हालत में तीसरी लड़की नहीं चाहिये । बहू ने माँ को काफी समझाने की नाकाम कोशिश की ।


अरविन्द जैसे ही दतर के लिए निकला । हीरादेई अपनी छोटी बहू सुमन को लेकर डा. घोष के यहाँ चली गई । वहाँ उसने बहू का अल्ट्रासाँउड कराया । डाक्टर ने फिर `बच्ची' पेट में बताई । सुमन सिहर उठी । माँ को बच्ची नहीं चाहिये, माँ ने डा. से गर्भपात की बात भी कर ली । सुमन ने काफी विरोध किया । परन्तु माँ की दलीलों के आगे उसकी एक न चली । नर्स के साथ अन्दर भारी मन, भारी पाँव से सुमन चली गई । आध घंटे बाद नर्स ने हीरादेई से कहा, ``सॉरी, माताजी, आपकी बहू तो ठीक है परन्तु उसके पेट में बेटा था ।'' हीरादेई आसमान से ज़मीन पर आ गिरी ।



 

शबनम शर्मा
 

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