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लघुकथा      
यू टर्न
ट्रेन की जनरल बोगी खचाखच भरी है। भीड़ में सिर्फ दो तरह के लोग हैं। एक
, जो सीट पर बैठे हैं; दूसरे, जो खड़े हैं। खड़े लोग बैठे हुए लोगों को देख रहे हैं और बैठे लोग उनसे नजरें बचाकर खिड़की से बाहर देख रहे हैं। एक खड़ा आदमी सीट पर बैठे आदमी से कह रहा है, भाई साहब!  थोड़ा सा खसक लेते तो मैं भी बैठ जाता। सीट पर बैठा आदमी, खड़े आदमी को जवाब दे रहा है, यार देख रहे हो चार लोगों की सीट पर पांच लोग बैठे हैं। तुम्हीं बताओ कहां खसक जाएं? खड़ा आदमी फिर मिन्नत करता है, भाई साहब, बैठने को तो छह-छह, सात-सात आदमी बैठकर जाते हैं, बस थोड़ा-थोड़ा खसक जाइए। सीट पर बैठा आदमी  जानबूझकर उसकी बात पर ध्यान नहीं देता और खिड़की के बाहर देखने लगता है।

अगले स्टेशन पर सीट पर बैठा आदमी उतर जाता है। उसकी जगह खड़ा आदमी बैठ जाता है। जहां वह खड़ा था, वहां अब दूसरा आदमी खड़ा है। थोड़ी देर बाद खड़ा आदमी बैठे आदमी से कहता है, भाई साहब! थोड़ा सा खिसकेंगे? बैठा आदमी खड़े आदमी से कहता है, यार देख रहे हो चार लोगों की सीट पर पांच लोग बैठे हैं। कहां खिसकूं? इसके पहले कि खड़ा आदमी यह कहता कि भाई साहब, बैठने को तो छह-छह, सात-सात आदमी बैठ सकते हैं, बैठा आदमी खिड़की से बाहर देखने लगता है।

पी. के. राय
ई 1, 2007

 

 

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