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एक का चार... एक का चार...

आइए! मेरे पास आइए। एक का तीन... एक का तीन। क्या कहा कम है! तो लो- एक का चार... एक का चार। आपके पैसे को चार गुना कर दूंगा। देर किस बात की! आप आइए अपने पडोसी को भी लाइए। पडोसी ही नहीं अपने रिश्तेदारों को भी लाइए। बूढें भी आए जवान भी। निरोगी भी आए रोगी भी। अमीर भी आए गरीब भी। पढे-लिखे भी आए अनपढ़ भी। सबके पैसे चार गुने हो जाएंगे। महज कुछ दिन में । इस मौके को लाभ उठाइए। पहले आए पहले पाए।

अगले दिन-

ऐ भाई ! मेरे पैसे ले लो। पहले मेरे पैसे ले लो। नहीं मेरे! नहीं पहले मेरे... बारी बारी से! एक एक करके! सबकी बारी आएगी। अधीर मत हो आप लोग। मैं तो इस धरती पर आप सबका कल्याण करने ही आया हूं। चेली! तू एक- एक कर सबसे पैसे ले लें। देख कोई भी छूटने न पाए। जी महाराज... सबके पैसे ले लूंगी। हूंह..अलख निंरजन.. आखिर उन्नति पर सबका अधिकार है। सत्य वचन महाराज। चेली के साथा भक्तगण बोले। महाराज की जय हो! महाराज की जय! बडे क़ृपालू है महाराज! बडे दयालू है बाबा! ऐ तू क्या सोच रहा है बालक! महाराज! आज्ञा हों तो एक सवाल पूछू... पूछो बत्स! महाराज, आप इतनी ल्दी पैसें को कैसे चार गुना कर सकते है! ओह! ये बात है। मैं चाहूं बच्चा एक के आठ कर दूं। कैसे महराज! ये देख, मेरी जादू की छड़ी। इस छड़ी से चाहूं तो सब कुछ कर सकता हूं। तुझे गधा भी बना सकता हूं। ये ले हवा से भभूत लें। चमत्कार! चमत्कार! नहीं महराज मुझे गघा नहीं बनाइएगा। क्षमा करें महाराज। गलती हो गई। मेरे पैसे भी ले ले। महाराज की जय हो!  चेली! जी महाराज! ले लिया... जी महाराज। अति सुंदर। बाबा कितनें दिनों बाद आए हम सब! जब मन आए तब आना। जी महाराज। बोलो, महराज जी की जय।

भीड़ की प्रतिक्रिया-

भीड़ में खुसर-फुसर । माहराज जी को दिव्य शक्ति मिली है। वो तो देवी जी के भक्त है। देखा नहीं वो जादूई छड़ी! सोने की है सोने की! लाखों की होगी लाखों की! बडे सिध्द पुरुष है! अरे,साक्षात् भगवान कहो भगवान!

 महाराज और चेली संवाद-

आज कितना क्लेकन हुआ? आज तो चमत्कार हो गया! कितना आया.. पूरे के पूरे पचास लाख। तू बस देखती जा! पैसे देने भी तो होगे! हां, शुरूआत में देने तो पडेग़े वरना हम अरबपति कैसे बनेगे! ठीक कहते हो! अच्छा बहुत थका गया हूं मेरे लिए पैग बना! हमेशा अपने बारे में ही सोचते हो! अच्छा बाबा हम दोनों के लिए पैग बना...

अगले दिन-

महाराज की जय! चमत्कारी बाबा की जय! ठीक है... ठीक है... आप लोग अपना पैसा ले ले। चेली! जी महाराज! सबके पैसे देदे! जैसी आज्ञा महाराज! लो भाई एक के चार लो। मेरे दस थे... मेरे पांच... सबको मिलेगा। मिल गया। मिल गए। मेरे तो चार गुना हो गए। मेरे भी और मेरे भी। परन्तु बाबा हम लोगो को आपने पैसे नहीं दिए? कई लोग अभी बाकी रह गए है बाबा! आप लोगो को भी मिलेगा। धैर्य रखें। देखा नहीं इन लोगो को मिला। क्यों भाइयों! हां, मिला भाई! चार गुना मिला। महाराज की जय! जय! जय!

महाराज और चेली संवाद-

आज तो बहुत कम पैसे बचे! कल देखना कल! चल अब पैग बना दे। मुझे घूर क्यों रही है! अरे, हम दोनों के लिए कह रहा हूं। हा हा हा...ही ही ही...

अगले दिन-

महाराज की जय! बाबा की जय! पैसे वाले बाबा की जय। मां भगवती के अवतार की जय! श्री श्री श्री महाराज की जय। बाबा मेरे पैसे भी लो। मेरे भी। मेर भी।मेरे,मेरे मेरे! पहले मेरे, नहीं पहले मेरे। मेरे,मेरे,मेरे।

महाराज और चेली संवाद-

आज तो कमाल हो गया! एक दिन में इतना क्लेकन! बाप रे बाप। मैंने कहा था न! आज जितना पैसा मिला उतना तो सारी जिंदगी कमाते तो भी न मिलता। सारी जिंदगी... अगर सातों जनम कमाते तब भी इतना कमा न पाते,पगली। सही कहते हो जानूं मगर अब क्या! चलते है कही और! क्या करगें... यही करेगें। मगर इस बार सोने की छड़ी से नहीं भभूत से पैसे बनाएगें। वो भी एक का चार नहीं...एक का दस बनाएगें। लोग विश्वास करेगें! अरे करेगें कैसे नहीं! चमत्कार को नमस्कार करने वालो की कमी नहीं यहां पर। ला पैग ला। पूरी बोतल पीओ न सरकार!

अगले दिन-

भीड़ में खुसर-फुसर। बाबा कहां गए! चेली कहां गई! हाय! मेरे पैसे! हाय! मेरे पैसे। हम लुट गए! लुट गए! लोभी निकले दोनों। ढोंगी निकले दोनो। महाराज ने हमारे विष्वास का छला। हाय! अब हम क्या करे! जो था वो भी गया। हम भोलेभाले लोगो को ठग गया। अच्छा नहीं किया। गरीबों की हाय लगेगी, हाय! तभी बादल गरजे, बिजली चमकी और आकावाणी हुई।

आकाशवाणी-

ये भोलेभाले क्या लगा रखा है! तुम सब भोलेभाले नहीं मूर्ख हो। तूम सब गरीब भी नहीं। अगर गरीब होते तो मेहनत को कैसे भूल जाते। आज जिसे तुम ढोंगी कह रहे हो, वो तुम्हारा लोभी मन है। तुम्हारे ही मन का अतिषय लोभ। तुम सब जनक हो उस ढंगी के। वो स्वयभू नहीं है। यदि जनक न भी मानो स्ंवय को पोषक तो अवष्य मानना ही पडेग़ा। चाहकर भी तुम सब इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते हो। जरा अपनी तादात तो देखों। कितने सारे हो। तुम्हारी तादात देख कर डर लगता है। जाओ सब लौट जाओ। प्रतीक्षा करो! भूल सुधार! प्रतीक्षा नहीं पैदा करो! एक और नए चमत्कारी बाबा को।

भीड़ की प्रतिक्रिया-

हम भोले-भाले सीधे-साधे,अच्छे-सच्चे लोगो को ठग कर अच्छा नहीं किया। तोड़ दो! फोड़ दो! जाम लगा दो! आग लगा दो! आखिर हमारा पैसा है हमारा! ऐसे थोडे न जाने देगे! चलो सारे थाने। रपट लिखाने। चलो,चलो,चलो। भीड़ में किसी एक भोलेभाले की भुनभुनाहट- मुझे पहले ही संदेह था उस ढंगी पर । सच कहूं तो पक्का संदेह। इतनी जल्दी एक का चार संभव है कही! लेकिन ...

 

अनूप मणि त्रिपाठी

ई-5003,सेक्टर-12

राजाजी पुरम,लखनऊ

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