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लघुकथा

 

जात-बिरादरी

 

- मम्मी, आप नहा-धोकर तैयार हो जाएँ तो मैस में नाश्ता कर लेना, मैंने महाराज को बोल दिया है। मैं अभी क्लास के लिए निकल रही हूँ, एक बजे तक लौटकर आपको शहर घुमाने चलती हूँ।  

 

हॉस्टल के रहन-सहन देखने और बेटी के हालचाल लेने आई माँ को बेटी ने बड़े प्यार से बताया। 

माँ की तरफ से आने वाला जवाब भी और माँओं के जवाब-सवाल से अलग नहीं था

- वो मैं देख लूँगी बेटा, तू जाकर अपनी क्लास ले। जब खाली हो जाए तब आ जाना, लेकिन तूने कुछ खाया या नहीं?

- अरे हाँ मैंने आमलेट-ब्रैड और चाय ले ली है ना। 

- आमलेट!! तूने यहाँ आकर अण्डा खाना शुरू कर दिया

- तो क्या हुआ माँ? यही सुबह से सबसे जल्दी बन पाता है। 

- जात-बिरादरी के संस्कार भूल गई दो महीने में? मनमर्जी करने लगी है। बताऊँगी तेरे पापा को, वो ही खबर लेंगे।  

माँ के स्वर और चेहरे पर गुस्से की हुकूमत कायम हो चुकी थी। 

 

- क्या माँउधर भइया अपने हॉस्टल में चिकन तक खाते हैं, उनसे तो आप कुछ नहीं कहतीं। 

चप्पल पैरों में डालते हुए बेटी ने विनम्र प्रतिरोध किया। 

- अरे!! तो अब पलट कर जवाब भी देने लगी और लरकाजात की बराबरी करेगी? आ इस बार छुट्टियों में घर, तेरे हाथ-पैर न तुड़ाए तो.....

दीपक मशाल
 

 जनवरी 2015


 


 

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