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गिल्टी मिथ
नींद के साथ उसका बदन भी टूटता जा रहा था। आंखें
खोलकर देखा तो खिड़की में तेज़ धूप का उजाला था। वह बिस्तर पर ही लेटा रहा।
फिर से आंखें बंद कर लीं और सिलसिलेवार ढंग से याद करने की कोशिश करने लगा
कि वह इस अजनबी कमरे में कैसे और कब पहुंचा? वह दो दिन से अपने फ्लैट से
ग़ायब है। एक दिन पहले वह सुशील के यहां था और कल रात प्रीति के यहां।
दीवार पर घड़ी में 11 बजकर 35 मिनट हुए थे। इतनी देर तक तो वह कभी नहीं
सोता। उसने उठने की कोशिश की तो घुटने मोड़ने में दर्द हुआ। उफ्फ... इतना
दर्द क्यों है? उसने मोबाइल उठाने के लिए तकिए के नीचे हाथ दिया तो मोबाइल
की जगह कागज़ का एक पुरज़ा उसके हाथ में था। उसने खिड़की से आती धूप की
रोशनी में देखा, प्रीति की ही लिखावट थी।
‘डियर सनी, मैं ऑफिस जा रही हूं। मेरी मोर्निंग शिफ्ट है। तुम बहुत थके हुए
लग रहे थे, इसलिए मैंने तुम्हें जगाया नहीं। फ्रिज के ऊपर मेरा एटीएम कार्ड
रखा है। उसमें लास्टज के दो और शुरु के दो डिजिट से पिन नंबर है यानी
तुम्हारी बर्थ डेट शुरु में आएगी। इस कार्ड से तुम अपनी ज़रूरत के मुताबिक
पैसा निकाल सकते हो, एक दिन की लिमिट पचास हज़ार है। एक बार में बीस हजार
ही निकलवाना और जितने रुपये चाहिए तीन बार में निकाल लेना। नाश्ता और खाना
सेंटर टेबल पर है, गर्म करके खा लेना। और हां मैंने तुम्हारे मोबाइल को
चार्जिंग पर लगा दिया है। पैसे निकालते ही रिचार्ज भी करवा लेना। ... तुम
रियली बहुत प्यारे हो सनी... अब उठो और नई ऊर्जा से भर जाओ। मैं तुम्हाररे
जैसे दोस्त को यूं परेशान नहीं देखना चाहती। कम ऑन एण्डर गेटअप फॉर न्यू
लाइफ।... एण्ड वन लास्ट थिंग, डोंट फील गिल्टी अबाउट एनीथिंग.. तुम्हारी
दोस्त, प्रीति।‘
उसने उठने की कोशिश की और कमर सीधी करते ही देखा, उसके बदन पर प्रीति का
बर्मूडा है। एकबारगी तो वह ख़ुद से ही झेंप गया। उसकी जींस सामने कुर्सी पर
पसरी हुई थी। उसी कुर्सी पर प्रीति के भी कपड़े रखे हुए थे। उसने बदन को लय
में लाने के लिए बांहें फैलाकर अंगड़ाई लेनी चाही तो कुहनियां दुखने लगीं।
उसे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है? वह उठा और सीधे बाथरूम में चला
गया। मुंह धोकर आईने में देखा तो वह अपना ही बेतरतीब दाढ़ी वाला चेहरा देख
सकपका गया। कमोड पर बैठने के बाद धीरे-धीरे उसे कल की घटनाएं सिलसिलेवार
ढंग से याद आने लगीं।
वह कई दिन से यही कर रहा था। रोज़ सुबह जल्दी उठकर अपने फ्लैट से निकल लेता
और कनॉट प्लेस, आईआईएमसी, कॉफी हाउस या अपने दोस्तों से मिलने चला जाता।
परसों सुबह जब मकान मालिक छह बजे ही आ धमका तो वह कुछ नहीं कर सका। उसे
आजकल में ही तीन महीने का बाकी किराया देने का वादा कर डाला। फिर निकल पड़ा
किराये का इंतज़ाम करने के लिए। उसके दोस्त ज्यादातर तो उस जैसे ही
संघर्षशील थे, लेकिन कुछ अच्छे-ख़ासे समृद्ध भी थे। उसने पहले ऐसे लोगों से
ही संपर्क किया, लेकिन वे सब तो अपनी ही कहानियां लेकर पहले से तैयार बैठे
थे। उसे लगा दिल्लीं ने इन सबको बहुत स्मार्ट बना दिया है। वैसे भी कोई ऐसे
दोस्त को एकदम से कैसे पचास हज़ार दे सकता है, जिसके भविष्य का कोई ठिकाना
ही न हो। वह पिछले सात महीने से बेरोज़गार है और अगर मीडिया में काम करने
वाले किसी क़ाबिल इंसान को इतने दिन में भी काम नहीं मिले तो यह माना जाता
है कि यह तो गया अब काम से।
मीडिया में ये दिन मालिकों के ही नहीं, पत्रकारों तक के रीढ़विहीन होने के
दिन थे। हर कोई बिकने को बेताब था जैसे। और सबकी कीमतें तय करने का काम
राजनीति और कार्पोरेट घराने कर रहे थे। ऐसे दिनों में सनी यानी शैलेश नीलम
जैसे प्रखर युवा पत्रकार को दिल्ली में दर-दर की ठोकरें खानी तय थीं।
बहरहाल वह हर संभव जगह जब कोशिश करके हार गया तो मोहनसिंह प्लेस के कॉफी
हाउस से निकलकर पालिका बाज़ार की ओर चल दिया। वह रेड लाइट पर खड़ा सड़क पार
करने के इंतज़ार में था कि उसे अचानक उस चैनल की ओबी वैन गुज़रती दिखाई दी,
जिसमें प्रीति काम करती है। प्रीति आईआईएमसी में उससे एक साल सीनियर थी और
उसने प्रीति के अंडर में एक बार कुछ दिन के लिए ही सही काम भी किया था। उसे
प्रीति का सेल्फंमेड स्टाइल बहुत भाता था। वह दिखने में ही नहीं बात करने
में भी बहुत बिंदास और बोल्ड लड़की थी। किस्मत से वह देश के महत्वबपूर्ण
मीडिया ग्रुप में अच्छी पोस्ट पर थी। सनी को उम्मीद तो नहीं थी कि उसे वहां
नौकरी मिलेगी, लेकिन प्रीति से मदद मांगने के बारे में सोचता हुआ वह उसका
फोन नंबर तलाश करने लगा। उन दोनों के बीच बात-मुलाकात हुए करीब एक साल हो
चुका था। सनी ने सोचा, एक बार बातचीत की कोशिश करने में कहां नुकसान है? और
उसने प्रीति को फोन लगा दिया।
‘हलो प्रीति मैम, मैं सनी बोल रहा हूं।‘
‘हां सनी, कैसे हो यार कितने दिन हुए तुम दिखे ही नहीं कहां हो?’
‘यहीं दिल्ली में ही हूं मैम, लेकिन...’
‘लेकिन क्या...’
‘बहुत मुसीबत में हूं, और आपकी मदद की ज़रूरत है, आप कहां मिल सकेंगी?‘
‘अरे मुसीबत के मारे तुम ख़ुद कहां हो इस वक्त?’
‘मैं इस समय सीपी में हूं मैम।‘
‘ओके, क्या तुम आधा घंटे बाद प्रेस क्लब में मिल सकते हो?’
‘यस मैम।‘
‘तो ठीक है, मैं वहीं आ रही हूं, लंच साथ में करेंगे।‘
‘ओके मैम।‘
फोन काटने के बाद उसने स्विच ऑफ कर दिया, यह सोच कर कि कहीं मकान मालिक का
फिर से फोन नहीं आ जाए। कनॉट प्लेस से कॉफी हाउस की दूरी वह पैदल ही तय
करता चला गया।
आईआईएमसी में एक डिबेट कंपीटिशन में प्रीति से उसकी पहली मुलाकात हुई थी।
दलित, आदिवासी महिलाओं पर केंद्रित विषय पर प्रीति ने अपनी फर्राटेदार
अंग्रेजी में जिस तरह से दस मिनट में अपने तर्क पेश किए थे, सनी उसका कायल
हो गया था। उसी डिबेट में सनी को ‘हिंदी पत्रकारिता पर राजनीति के प्रभाव’
विषय पर हिंदी में बोलना था। दोनों ही उस डिबेट में अपने विषय और वर्ग में
में पहले नंबर पर थे। वहीं उनकी पहली मुलाकात हुई जो धीरे-धीरे अच्छीअ
दोस्ती में बदल गई। वे अक्सर लाईब्रेरी या कैंटीन में मिलते और अपनी पढ़ाई
को लेकर चर्चा करते। प्रीति सीनियर होने के नाते उसे अपने अनुभव से टिप्स
देती और उसे गाइड करती। प्रीति ने अपने बैच में टॉप किया था और वह पासआउट
होते ही कहीं नौकरी करने लगी थी। सनी ने भी अपने बैच में टॉप किया था। इस
बीच प्रीति से उसकी मुलाकातें कम हो गई थीं। वे कभी-कभार ही मिल पाते थे।
पासआउट होने के बाद सनी प्रिंट मीडिया में पहले तीन-चार अखबारों में और बाद
में एक मासिक पत्रिका में गया तो वहां प्रीति उसकी कॉपी एडिटर थी। सनी उस
मैगजीन में तीन महीने काम करने के बाद एक बड़े अखबार में चीफ रिपोर्टर होकर
चला गया और प्रीति प्रिंट से एक टीवी चैनल में चली गई। सनी उसी अखबार में
चीफ रिपोर्टर से संपादक बन गया। सात महीने पहले उसने अखबार छोड़ दिया।
प्रीति से पुरानी मुलाकातों को याद करता हुआ वह प्रेस क्लब तक आ गया था।
आखिरी बार वह प्रेस क्लब में कब आया था, यह सोचने में ही उसे कई मिनट लग
गए। बाहर से कोई पत्रकार दोस्त आया था शायद, हां शरद, उससे मिलने ही वह इधर
आया था। ऐसी भीड़भाड़ वाली और शोरगुल से भरी जगहों पर बैठने में उसे तकलीफ़
होती है। वैसे भी वह शराब का आदी नहीं है और उसे इस सामाजिक किस्मत के
मेलजोल से अपनी ग्रामीण पृष्ठ भूमि के कारण कुछ अजीब भी लगता है। वह कम ही
अवसरों पर यहां आया होगा। और दिन में तो वह पहली बार आ रहा था। वह प्रेस
क्लब के बाहर पहुंचा तो उसने अनुमान लगाया कि अभी भी प्रीति के हिसाब से वह
दस मिनट पहले चला आया है। सनी बाहर ही रुक गया और इंतज़ार करने लगा कि
प्रीति मैम आएंगी तो वह उनके साथ ही क्लब में जाएगा।
वह एक पेड़ से पीठ टिकाए खड़ा देख रहा था, दिन में क्लब में बहुत आवाजाही
नहीं होती। सफेद झक्क कुरता-पायजामा पहने इक्का-दुक्का लोग क्लंब के
बाहर-भीतर आते-जाते रहे। उसने सोचा कि ये नेता टाइप लोग ही तो हैं, जिनसे
कई पत्रकारों का कारोबार चलता है। सनी के लिए वे सब पत्रकार दल्ले थे, जो
अपना निजी हित-लाभ देखकर पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारिता करते थे। वह
जानता था कि लोग उसे बेवकूफ, अहमक़ और असामाजिक तक कहने से नहीं हिचकते थे।
लेकिन वह अपनी ही दुनिया में रहता था। अपने भयानक संकट के दौर में भी वह
ऐसी जगह काम मांगने नहीं गया, जहां उसे बेईमानी की थोड़ी भी बू आती हो।
उसने देखा क्लब से साढ़े छह फीट लंबा वो हरियाणवी नेता निकल रहा था, जिसने
उसके मालिक को फरीदाबाद में तीन एकड़ ज़मीन सरकारी रेट पर दिलाई थी। मालिक
ने ज़मीन पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान खोलने के लिए ली थी, लेकिन असल में
उसने वहां फार्म हाउस बना लिया था। वहां पत्रकारिता के अलावा, शादी-ब्याह
और प्राईवेट पार्टियों तक सब कुछ होता था। उसने मुंह मोड़ लिया। मालिक ने
सनी से कहा था कि इस नेता को एक इंटरव्यू के माध्यम से जनहितैषी नेता के
रूप में प्रचारित करना है और सनी ने मना कर दिया था। वह नेता अपनी ऑडी में
बैठकर निकला तो सनी ने उसकी तरफ़ देखकर थूक दिया।
उसने अपना मोबाइल ऑन किया तो देखा कि प्रीति मैम के आने का टाइम हो रहा था।
उसने झट से मोबाइल वापस स्विच ऑफ कर दिया और इंतज़ार करने लगा। ज्यादा देर
नहीं हुई थी कि सलेटी रंग की फोर्ड फिगो कार में उसे प्रीति आती हुई दिखाई
दी। दोनों ने एक दूसरे को देखा और इशारे से हलो का आदान-प्रदान हुआ। वह
दौड़ता हुआ-सा गाड़ी तक पहुंचा तो दरवाज़ा खोलकर प्रीति बाहर आई।
‘सॉरी सनी, ज़रा देर हो गई। तुम कब से इंतज़ार कर रहे हो?’
‘मैम, मैं तो जस्ट पहुंचा ही हूं।‘ उसने झूठ बोला।
‘ये मैम-मैम क्या लगा रखा है यार सनी, मेरा नाम बोलने में कोई तकलीफ़ होती
है क्या?’
‘सॉरी प्रीति जी।‘
‘अब ये जी कहां से आ गया यार कम ऑन। हम दोस्त हैं यार।‘
‘जी।‘
‘तो कहां हो आजकल तुम?’
‘कहीं नहीं मैम, बेरोज़गार हूं।‘
‘तभी मैं कहूं कि तुम्हारे अखबार का भट्टा क्यों बैठता जा रहा है? तुम्हारे
बिना अब उस अख़बार में कुछ बचा ही नहीं पढ़ने को। तुमने कहीं और कोशिश की
काम तलाश करने की?‘
‘नहीं।‘
‘तो माई डियर सनी, इस दिल्ली। में बिना मांगे कुछ भी नहीं मिलता। समझे कि
नहीं?’
वे दोनों बातें करते हुए क्लब के भीतर पहुंच गए थे। पहले हॉल में कुछ लोग
बैठे थे और दूसरे में भी, लेकिन दूसरा हॉल बड़ा था और यहां एक कोना लगभग
खाली था। प्रीति ने वही कोना चुना और अपना बैग रख वहीं बैठ गई। सनी भी उसके
सामने बैठ गया। प्रीति ने ही बात शुरु की।
‘यहां हम आसानी से बात कर सकते हैं, अगर तुम्हें। ठीक नहीं लगे तो हम कहीं
और भी चल सकते हैं।‘
‘नहीं, यहीं ठीक है।‘
‘ओके तो पहले ये बताओ कि तुम क्यां लोगे? मैं तो दिन में व्हाइट वाइन ही
पसंद करती हूं। तुम बीयर लोगे या कोई और ड्रिंक? जो भी पसंद हो बता दो।‘
‘कुछ नहीं, मैं वैसे भी पीता नहीं।‘
‘नो उल्लूं बनाविंग सनी, मुझे पता है तुम लेते हो, बताओ। जल्दीं करो वेटर
आने वाला है और हां, मेरी हां में हां मिलाने की कोशिश मत करना बच्चू, अपनी
पसंद ही बताना।‘
‘ओके मैं बीयर ले लूंगा।‘
इसके तुरंत बाद वेटर आ गया तो प्रीति ने एक ग्लास वाइन और एक बीयर का ऑर्डर
दे दिया।
‘तो तुम्हारे जैसा क़ाबिल पत्रकार भी बेरोज़गार घूम रहा है सनी, सो सैड फॉर
इंडियन जर्नलिज्म। और मैं जानती हूं कि कंपनी ने तुम्हें नहीं निकाला होगा,
तुम ख़ुद ही छोड़कर आए होंगे।‘
‘जी।‘
‘एक लाइन में वजह जान सकती हूं मैं?’
‘मैं पत्रकार हूं, दलाली नहीं कर सकता और ना ही अपने पेशे के साथ धोखा कर
सकता हूं।‘
वाइन और बीयर की चुस्कियों के बीच उनका संवाद चलता रहा।
‘देखो सनी, मैं जानती हूं कि तुम जैसा ग़ैरत से भरा पत्रकार समझौते नहीं कर
सकता, लेकिन अपनी अर्जित साख से तुम्हें काम नहीं मिल सके, यह नहीं मानती।
मेरे ख़याल से तुमने अपनी नैतिकता भरी मान्यताओं के चलते कहीं कोशिश ही
नहीं की होगी। क्या मैं ग़लत कह रही हूं?’
‘नहीं।‘
‘मतलब, तुमने कहीं काम की तलाश ही नहीं की। सनी इस दिल्ली में कंबख्त
प्रधानमंत्री भी ख़ुद को बेचकर बनना पड़ता है और तुम हो कि मीडिया में रहकर
ख़ुद के हुनर को माक़ूल जगह तक नहीं पहुंचा सके। वैरी बैड।‘
सनी कुछ नहीं बोल सका। वह बहुत धीरे-धीरे बीयर सिप कर रहा था।
‘ऐसे तो तुम यह बीयर शाम के सात बजे तक भी नहीं पी सकोगे। हम लंच पर आए हैं
यार डिनर के लिए नहीं। तीन बजने वाले हैं। जल्दी करो।‘
और सनी ने बीयर का एक लंबा घूंट भरा।
‘तुमने कब रिज़ाइन किया था?’
‘सात महीने हो गए अब तो।‘
‘सात महीनों से बेरोज़गार आदमी दिल्ली में जिंदा कैसे है यार?’
‘कुछ जमापूंजी थी, पहले उससे काम चलाया और फिर...’
‘और फिर चीज़ें बेचकर... ठीक कह रही हूं ना?’
‘जी।‘
‘बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?’
‘और अब तुम्हारे पास बेचने के लिए कुछ नहीं बचा।‘
‘जी।‘
‘फिर क्यों अपना आत्मसम्मान बेच रहे हो?’
‘नहीं, वो मैंने कभी नहीं बेचा मैम।‘
‘सुनो सनी, तुम जिस तरह मेरे सामने बैठे हो, पिछले सात महीनों में पता नहीं
कितने दोस्तों के सामने इस पोश्चर में बैठे होंगे, लेकिन तुम्हारी यह हालत
मुझे क़तई पसंद नहीं डियर।‘
सनी की बीयर और प्रीति की वाइन दोनों ख़त्म हो चुकी थी। प्रीति ने पूछा,
‘और लोगे?’
वह चुप बैठा रहा। प्रीति ने वेटर को देखकर कहा ‘रिपीट प्लीज।‘
फिर से बीयर और वाइन आई, दोनों पीते रहे। इस बीच प्रीति ने खाने का ऑर्डर
दे दिया। खाने के साथ ड्रिंक्स चलते रहे। उन दोनों के बीच पत्रकारिता और
नैतिकता के संकटों के बीच लगातार चर्चा चलती रही। सनी कहता रहा कि मैं इस
तरह मालिकों के आदेश पर घुटनों के बल नहीं चल सकता और प्रीति उसे समझाती
रही कि मत चलो, लेकिन अपनी राह के पथिकों से तो मेलजोल रखो। सनी ने कहा कि
‘घुटरुन चलत’ कविता में ही ठीक लगता है पत्रकारिता में नहीं तो प्रीति ने
कहा, घुटनों के बल वो चलते हैं जिनके पांवों में दम नहीं होता, तुम्हारे
पांवों में अभी बहुत दम है यार, उठो और चलो। यह देश अभी इतना ख़राब नहीं
हुआ कि तुम्हारे जैसे पत्रकार के घुटने एक मीडिया हाउस के सामने छिल जाएं।
खाने-पीने में ही उन दोनों को करीब 4 बज गए थे। प्रीति ने पूछा कि अब कहां
जाने का इरादा है? सनी ने बताया कि आज उसका कहीं जाने का कोई इरादा नहीं।
मकान मालिक के डर से उसने फोन भी बंद कर रखा है। प्रीति ने उसे कहा तो फिर
चलो आज मेरे घर। और वे दोनों प्रीति की कार में बैठ चल पड़े। एक साथ दो
बीयर पीने के कारण सनी को कार में बैठने के बाद नींद आ गई तो वह सो गया।
प्रीति कार चलाकर उसे अपने घर तक ले गई।
‘उठो महान पत्रकार महोदय।‘
वह हड़बड़ाकर उठा और प्रीति के इशारे पर उसके पीछे-पीछे उसके फ्लैट में
दाखिल हो गया। एक कमरे का यह छोटा-सा फ्लैट था, जिसमें बाहर दो सोफे लगे
थे, जिन पर अख़बार और मैग्जींस का ढेर फैला पड़ा था। सनी ने अपने लिए जगह
बनाई और वहीं ढेर हो गया।
बहुत देर बाद उसकी आंखें खुलीं तो देखा कि वह किसी नई जगह पर है। दीवार पर
लगी एक तस्वीर से याद आया कि वह प्रीति के साथ उसके घर चला आया है। प्रीति
शायद अंदर कमरे में सो रही थी। सामने दीवार पर लगी घड़ी बता रही थी कि रात
के साढ़े नौ बजने वाले हैं। वह उठा और सामने का एक छोटा दरवाज़ा खोला,
ग़नीमत थी कि यही बाथरूम था, वरना प्रीति के कमरे में जाना होता। शायद इस
बाथरूम का इस्तेतमाल कम होता है। उसने भीतर की व्यावस्थाओं को देखते हुए
सोचा। वापस आकर वह सोफे पर पसर गया। टीवी का रिमोट लेकर वह चैनल बदलने में
लग गया। आवाज़ से प्रीति की नींद ना खुल जाए कहीं, इसलिए म्यूट कर दिया।
पूरे घर में लगभग अंधेरा छाया था। बस खिड़कियों से आता बाहरी प्रकाश था जो
घर को रोशन करता था या था टीवी का उजाला। चैनल पर चैनल बदलते हुए ख़याल आया
कि क्यों न प्रीति वाला चैनल देखा जाए, जिसमें वह काम करती है। वहां अभी
प्राइम टाइम न्यूज़ चल रही थी। उसे ख़बरों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए
ऐसे ही मन बहलाने के लिए फैशन टीवी लगा लिया। कैटवाक करती सुंदरियां और
उनके अजीबो-ग़रीब परिधान देख उसे कोफ्त होने लगी तो उसने टीवी ही बंद कर
दिया। अब पूरे घर में फिर से अंधेरा छा गया, रोशनी के कुछ धब्बे बाहर
खिड़की से आ रहे थे। वह आंखें बंद कर मौन हो गया। कितने दिन से वह नए जॉब
के बारे में सोचता चला आ रहा था, लेकिन कोई राह नहीं सूझ रही थी।
फ्रीलांसिंग करना उसके बूते की बात नहीं थी, बस लेख लिख सकता था, लेकिन उसे
यह भी पसंद नहीं था कि संपादकों की चिरौरी कर वह अपने लेख छपवाता फिरे।
हां, बीच में एक दोस्त ने उसे अनुवाद का काम दिलाया था, लेकिन अनुवाद से
इतने पैसे नहीं मिलते कि ठीक से गुज़ारा हो सके। वह कई बार सोचता कि दिल्ली
छोड़कर किसी छोटे शहर में चला जाए, लेकिन वहां के पत्रकार बताते कि दिल्ली
के मुक़ाबले वहां सैलरी एक तिहाई भी नहीं है। कहां पचास हजार और कहां
पंद्रह हजार। इतना तो वह अपने फ्लैट का किराया देता है।
कमरे में रोशनी हुई तो छोटा-सा ड्राइंग रूम भी रोशन हो उठा। प्रीति ने
आवाज़ लगाई, ‘सो रहे हो क्या सनी?‘
‘नहीं मैम।‘
‘फिर वही मैम। बंद करो इस तरह पुकारना यार।‘
प्रीति बाहर आई और लाइट जला दी तो पूरा कमरा उजाले से खिल गया। सनी ने देखा
गहरे कत्थई-बैंगनी गाउन में प्रीति का गोरा रंग और दमक रहा था। उसने पहली
बार प्रीति को इस रूप में देखा तो वह बेवजह ही मुस्कुरा उठा।
‘क्या हुआ?’ प्रीति ने पूछा तो वह सकुचाते हुए बोला।
‘बहुत अच्छी लग रही हो दोस्त।‘
‘ओह थैंक्यू। अच्छा बताओ खाना लगा दूं?‘
‘फिर से खाना, अभी तो खाया था?’
‘अभी? जनाब वो लंच था तीन बजे और अब बज रहे हैं दस।‘
‘तो अब खाना बनाओगी?’
‘नहीं, मैं रास्ते से पैक करवा कर लाई थी दाल-सब्जी । अब सिर्फ़ चावल
उबालने हैं, अगर तुम्हें रोटी खानी है तो रोटी बना दूंगी।‘
‘नहीं चावल ले लूंगा।‘
‘ठीक है, अब उठो और हाथ मुंह धो लो या नहाना चाहो तो नहा लो। लग रहा है तुम
अपने घर से निकलने के बाद नहाए ही नहीं। अब उठो और चलो अंदर वाले बाथरूम
में, सब कुछ है।‘
‘लेकिन मैं कपड़े तो लाया नहीं।‘
‘कोई बात नहीं, नहाकर तुम ये ही कपड़े पहन लेना।‘ प्रीति की बात को आदेश की
तरह मानते हुए वह चुपचाप उठा और भीतर चला गया। यह कमरा ख़ासा बड़ा था। यहां
एक सिंगल बेड, अलमारी और मेज कुर्सी के अलावा एक बड़ी-सी ड्रेसिंग टेबल भी
थी। उसने बाथरूम के बाहर रखी चप्पलें पहनीं और अंदर दाखिल हो गया। बाथरूम
भी बड़ा था। इतनी बड़ी तो उसकी किचन है। एक कोने में वाशिंग मशीन रखी थी।
सनी ने शर्ट उतारी तो याद आया कि तौलिया कहां होगा। वाशिंग मंशीन के ऊपर एक
छोटा कपबोर्ड था, उसे खोलने पर उसमें तह किए कई तौलिए थे। सनी ने एक तौलिया
निकाल लिया।
नहाकर जब वह बाहर आया तो प्रीति ने किचन से आवाज़ दी, ‘सनी कमरे की अलमारी
से मेरी शर्ट ले लो।‘ अलमारी कपड़ों से भरी हुई थी। उसने हैंगर में टंगी
खादी की एक एक पीली शर्ट निकाल कर पहन ली। बहुत ढीली लग रही थी, लेकिन उसने
पहन ही ली। वह बालों में कंघी कर बाहर आया तो प्रीति ने उसे देखकर कहा,
‘वाह सनी, अब लग रहे हो तुम एक प्रखर पत्रकार। ये शर्ट तुम पर अच्छी लग रही
है।‘ वह झेंप गया। प्रीति ने मुस्कुराकर कहा, ‘पीने में क्या लोगे? मेरे
पास वोदका और वाइन है।‘
फिर से शराब के ख़याल से ही उसे तकलीफ़ होने लगी और वह जवाब देने से पहले
सोचने लगा। प्रीति ने ही कहा, ‘अगर मन नहीं है तो छोड़ो, लेकिन मैं तो
थोड़ी वाइन लूंगी।‘ उसने कहा, ‘ठीक है, मैं वोदका ले लूंगा।‘
‘तो उठो और फ्रिज में से निकाल कर दोनों के लिए बनाओ। ठण्डा पानी और बर्फ
भी ले लेना।‘
वह उठा और फ्रिज में से वाइन और वोदका की बोतलें निकाल लीं। प्रीति ने उसे
दो गिलास थमा दिए। वह सोफे पर बैठ सेंटर टेबल पर पैग बनाने लगा। नहाने के
बाद उसके जिस्म में स्फूर्ति आ गई थी। उसे लगा प्रीति ने नहाने के लिए कहकर
अच्छा ही किया, वरना वह बीयर के नशे में ही झूलता रहता। इधर पैग तैयार हुए
और उधर तौलिए से हाथ पोंछ प्रीति किचन से आ गई। सनी ने सोफे पर उसके लिए
जगह बनाई तो प्रीति ने अपना पैग उठाते हुए कहा, ‘खड़े हो यार, जाम तो टकरा
लो।‘ दोनों ने टोस्ट किया और प्रीति ने उसे गले लगा लिया, ‘मेरे प्यारे
दोस्त सनी के नाम आज की शाम, चीयर्स।‘ सनी ने भी मुस्कु‘राते हुए चीयर्स
कहा और पता नहीं किस बेख़याली में प्रीति की गर्दन पर हल्के-से चूम लिया।
प्रीति ने उसे जिन निगाहों से देखा तो वो सकपका गया और बोल पड़ा ’सॉरी।‘
‘अब ये सॉरी किसलिए... किस के लिए?’
सनी ने स्वीकार में सिर हिलाया तो प्रीति ने कहा, ‘यार मैंने तुम्हें गले
लगाया और तुमने मुझे किस किया, हिसाब बराबर।‘ दोनों बैठ गए तो प्रीति ने
उसके कंधों पर हाथ डाल दिया और उसे थपथपाते हुए कहने लगी, ‘अब तुम बेफिक्र
हो जाओ और यूं गुमसुम-चुप-चुप रहना छोड़ दो।‘
‘मैं कहां गुमसुम हूं प्रीति? तुम जैसी दोस्त पाकर कौन ख़ुश नहीं होगा?’
‘दैट साउण्ड्स वैरी गुड। मैं तुम्हारी और तुम्हारे हुनर की बहुत इज्ज़ंत
करती हूं दोस्त।‘
‘सो नाइस ऑफ यू।‘
‘अरे मैं स्नैक्स तो लाना ही भूल गई।‘
प्रीति उठकर किचन में गई और एक प्लेट में नमकीन लेकर आ गई। उनकी बातों का
सिलसिला चल पड़ा और एक के बाद एक पैग ख़त्म होते गए। तीसरे पैग के बाद
प्रीति ने कहा, ‘अब मैं खाना लगाती हूं, तुम्हें और पीनी हो तो ले लो।‘ वह
उठकर गई तो सनी ने एक छोटा पैग और बना लिया। जितनी देर में प्रीति खाना
लेकर आई, वह अपना पैग ले चुका था। उठकर सामने वाले बाथरूम में गया और हल्का
होकर आ गया। खाने के दौरान ही उसने प्रीति से उसके परिवार आदि के बारे में
पूछा। प्रीति के पिता इंजीनियर हैं और मां स्कूल टीचर। वे चंडीगढ़ रहते
हैं। प्रीति जब आईआईएमसी करने दिल्ली आई थी, तभी उसके पिता ने यह फ्लैट
खरीद लिया था। एक भाई है जो कैनेडा में रहता है। खाना ख़त्म होने के बाद
प्रीति ने कहा, ‘सनी तुम अंदर बैड पर सो जाओ, मैं यहां सोफे पर सो जाउंगी।‘
‘नहीं, सोफे पर मैं सो जाउंगा, तुम ही सोओ अंदर।‘
‘अरे यार तुम मेरे मेहमान हो, मेरी तो इस घर में कहीं भी सोने की आदत पड़
चुकी है।‘
‘तो क्या हुआ, मुझे तो बरसों से आदत है यार।‘ उसे लगा वह बहकने लगा है अब।
प्रीति किचन से ही बोली, ‘अगर चाहो तो एक ही बिस्तर पर सो सकते हैं
हम। ना तुम तकलीफ़ पाओ और ना मैं। चलेगा?‘
‘ओके, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।‘
‘हां, आपत्ति तो मुझे होनी चाहिए, आखिर घर मेरा है।‘
‘ओके फिर मैं बाहर ही सो जाता हूं।‘
‘अरे नहीं यार, मजाक को भी समझा करो ना। तुम अंदर जाकर सोओ मैं किचन का काम
निपटाकर आती हूं।‘
वह बहुत ना-नुकर करता रहा, लेकिन प्रीति के आग्रह पर उठा और कमरे में जाकर
लेट गया। बीयर के बाद वोदका का नशा उस पर तारी हो रहा था। वह पहले ही सो
चुका था, इसलिए अब नींद कहां आने वाली थी। फिर भी आंखें बंद कर सोने का
उपक्रम करने लगा, यह सोचकर कि नशे से नींद आ जाएगी। वह प्रीति के बगल में
सोने की कल्पाना से ही उत्तेजना महसूस कर रहा था। उसे लगा कि कहीं वह कुछ
कर ना बैठे। नशा कुछ भी करवा सकता है। उसने अपने आपको नियति के हवाले कर
दिया। आखिर वह जानबूझकर तो कुछ करेगा नहीं। किस मोड़ पर ले आई है उसे
जिंदगी।
उसे याद आया कि जीवन में पहली बार उसने एक साल पहले अपनी बैचमेट जूही के
साथ सेक्स किया था, जब वह कानपुर से आकर उसके यहां रुकी थी। उस दिन तो उसने
शराब भी नहीं पी थी। और कमाल यह कि उस दिन भी पहल उसकी नहीं थी, जूही ने ही
उसके साथ सोने की जिद की थी, जबकि वह उसे दूसरे कमरे में सोने के लिए कह
रहा था। जूही ने ही उसे यौनिक नैतिकताओं पर लंबा प्रवचन दिया था। उसके बाद
उसने यौन विषयक कई किताबें पढ़ीं तो उसे महसूस हुआ कि यह सब उसकी गंवई
मानसिकता की नैतिकता थी, जबकि पूरी दुनिया सेक्सं को बहुत सामान्य भाव से
लेती है। यह एक शारीरिक ज़रूरत से अधिक कुछ नहीं।
उसे किचन का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई तो वह विचारों के संजाल से बाहर
निकला। प्रीति ने आते ही कहा, ‘अरे तुम यूं गर्मी में सो रहे हो। एसी तो ऑन
कर लेते।‘
‘मैं ऐसे ही ठीक हूं।‘
‘अरे क्या ख़ाक ठीक हो? मैं इतनी गर्मी में नहीं सो सकती यार।‘
प्रीति ने एसी ऑन किया और बाथरूम में चली गई। थोड़ी देर में वह आई और उसके
बगल में लेट गई।
‘तुम्हें नींद नहीं आ रही ना सनी?’
‘हां।‘
‘ऐसा ही होता है।‘
‘मतलब?’
‘मतलब यह कि इंसान जब एक्साइटेड होता है तो नींद उड़ जाती है... हाहाहा।‘
प्रीति के ठहाकों से वह चौंक गया। उसने कोई सवाल-जवाब करने में रूचि नहीं
दिखाई।
‘क्या मैं ग़लत कह रही हूं सनी?’
‘नहीं।‘
‘तो फिर यूं मुंह फेर कर क्यों पड़े हो बच्चू ?’
प्रीति हंस रही थी और वह आंखें बंद किए लेटा रहा।
‘ओके चलो सो जाओ, गुड नाइट।‘
‘गुड नाइट।‘
पता नहीं रात का वह कौनसा वक्त था जब उसका हाथ नींद में प्रीति की छातियों
पर चला गया? कब प्रीति ने उसे बांहों में लिया और कब वह उसके भरे-भरे
स्तनों को चूमता चला गया? कब प्रीति ने उसके इस मोहक अंदाज़ पर रीझकर उसे
ओरल प्लेज़र के लिए कहा और वह उसमें डूबता चला गया? अपनी जींस में घुटने
मोड़े कुहनियां टिकाए सनी ने रात से लेकर सुबह तक अलग-अलग पारी में पांच
बार प्रीति को असीम सुख से भर दिया था। उसने जींस इसलिए नहीं उतारी कि कहीं
वह ख़ुद और ना बहक जाए? लेकिन आखिरी बार मज़बूरी में उसने जींस उतार दी,
लेकिन अपनी हद में ही रहा।
लेकिन जींस की वजह से ही उसके घुटने छिल गए हैं और खादी की मोटी शर्ट के
कारण कुहनियां। वह बाथरूम से निकला और बाहर ड्राइंग रूम में आ गया। सोफे पर
अख़बार फैले हुए थे। उसने अख़बारों को करीने से लपेटा और सेंटर टेबल पर
रखने के बाद सामने वाशबेसिन पर देखा कि पेस्ट रखा है। उसने अंगुली से पेस्ट
किया और सोफे पर बैठ नाश्ता करने लगा। परांठे अभी गर्म ही थे, और सब्जी भी
उसे कोई ठण्डी नहीं लगी। नाश्ता लेकर उसने अपना मोबाइल ऑन किया। सबसे पहले
मकान मालिक को फोन किया और उससे उसका बैंक और खाता नंबर पूछकर कहा कि आधा
घण्टे बाद पूरा किराया वह खाते में जमा कर देगा। प्रीति के घर से निकल कर
वह सबसे पहले नज़दीकी एटीएम तलाश किया तो देखा कि एटीएम के पास ही वह बैंक
है, जिसमें उसे मकान मालिक का किराया जमा करना है। उसने एटीएम से तीन बार
में पूरे पचास हजार निकाले और किराया बैंक में जमा करा दिया।
एक दुकान पर मोबाइल रिर्चाज कराया और फिर से प्रीति के घर आया और बाथरूम
में नहाने चला गया। वहीं उसने अपनी बनियान और शर्ट धो डाली और सूखने के लिए
बाहर बालकनी में डाल दी। प्रीति को फोन लगाया।
‘हलो प्रीति। मैंने पैसे निकाल लिए हैं।‘
‘हां पता लग गया, बैंक का एसएमएस आ गया है। और पैसों की ज़रूरत हो तो
अलमारी में दस हज़ार के करीब रखे हैं, ले लेना।‘
‘नहीं, और ज़रूरत नहीं है।‘
‘तुम्हारी तबियत कैसी है?’
‘बदन टूट रहा है और...’
‘और क्या ...’
‘घुटने और कुहनियों में पेन है।‘
‘हाहाहा...’
बड़ी देर तक प्रीति की हंसी गूंजती रही और वो ख़ुद भी हंसने लगा।‘
‘सुनो सनी, मेरे कमरे में ड्रेसिंग टेबल की ड्राअर में कई हर्बल क्रीम हैं,
उनकी मालिश कर लेना। शाम तक ठीक हो जाआगे।‘
‘ओके।‘
‘और सुनो, तुम्हारे लिए गुड न्यूज़ है।‘
‘क्या?’
‘हां, मैंने क्रॉनिकल वालों से बात कर ली है। वे तुम्हें जानते हैं और
तुम्हारे काम के प्रशंसक भी हैं। तुम्हें वे साठ हज़ार दे सकते हैं।
अंग्रेज़ी के साथ वे जल्द ही हिंदी में भी अख़बार शुरु करने जा रहे हैं।
तुम्हें फुल फ्लैज्ड संपादक बनाने की बात हुई है। बोलो मंज़ूर है कि नहीं?’
‘लेकिन मुझे सोचने तो दो।‘
‘इसमें सोचने की बात क्या है यार...क्रॉनिकल एक ट्रस्टड का अखबार है। वे
सरकार या नेताओं की परवाह नहीं करते। वहां पत्रकारों को पूरी आज़ादी है
अपने काम की। अब बताओ तुम्हें और क्यां चाहिए?’
‘कुछ नहीं।‘
‘तो बताओ मंजूर है कि नहीं... ?’
‘नेक़ी और पूछ-पूछ।‘
‘ओके तो आज की पार्टी तुम्हारी तरफ़ से होगी। जाकर बाहर से शैंपेन ले आओ।‘
‘लेकिन पैसे?’
‘अरे पांच हज़ार हैं ना तुम्हारे पास?’
‘हां, लेकिन वो तो तुम्हारे ही हैं।‘
‘अब ये हमारे-तुम्हारे मत करो। आज पार्टी करनी है। कल सुबह तुम्हें
क्रॉनिकल वालों के यहां मैं ले चलूंगी, आज उनके चीफ ट्रस्टी बाहर हैं, कल
उनके सामने कांट्रेक्ट साइन हो जाएगा। ओके?’
‘सो नाइस ऑफ यू प्रीति।‘
‘सुनो बाहर जाओ तो अपने लिए कुछ ढंग के कपड़े ले आना। इन्हीं कपड़ों में
थोड़े ही चलोगे वहां?’
‘ओके, ले लूंगा। लेकिन...‘
‘लेकिन क्या ?’
‘आज मैं घर जाने की सोच रहा था रात में।‘
‘नहीं, आज की पार्टी मेरे घर ही होगी। घर जाकर कहीं तुम्हारा मूड बदल जाए
तो?’
‘नहीं, वो बात नहीं है।‘
प्रीति ने फुसफुसाते हुए धीरे से कहा, ‘अब सुन लो आज तुम्हारे घुटने और
कोहनियां नहीं छिलेंगे। तुम आराम से बाहर सोफे पर सो जाना।‘
‘हाहाहा...’
दोनों और देर तक ठहाके गूंजते रहे।
प्रीति से बात ख़त्म होने पर वह उसके बताए अनुसार बाहर गया। अपने लिए कपड़े
खरीदे। एक सैलून में जाकर दाढ़ी को ट्रिम करवाया। वापस आकर उसने ड्रेसिंग
में से एक आयुर्वेदिक क्रीम ली और अपने घुटनों और कोहनियों पर लगाई तो उसे
राहत महसूस हुई। वह कमरे में बैड पर ही लेट गया और कल से आज तक की घटनाओं
पर फिर से सोचने लगा। उसे अपने आप पर उसे तरस आने लगा। सनी को लगा कि
क्रॉनिकल की नौकरी उसे एक स्थायी रोज़गार दे सकेगी और उसके बुरे दिन ख़त्म
हो जाएंगे। लेकिन अब उसके सामने एक नया नैतिक संकट खड़ा हो गया। वह सोचने
लगा कि प्रीति अपने चैनल की छवि के कारण क्रॉनिकल वालों को उसके बारे में
आश्वरस्त कर पाई होगी। लेकिन सनी के लिए प्रीति अचानक एक बड़े चैनल की
प्रभावशाली स्टार पत्रकार हो गई, जिसके सामने उसे न केवल अपने ख़राब हालात
का दुखड़ा रोना पड़ा, बल्कि उसके सामने उसने अपने घुटने और कोहनियां भी
छिलवा लीं। उसे अपने आप से नफ़रत हुई। लेकिन दूसरे ही क्षण डोरबेल बजी और
वह उठकर दरवाज़ा खोलने गया तो देखा प्रीति आ गई थी। उसके खिखिलाते चेहरे को
देखकर उसके विचारों में उथल-पुथल होने लगी। उसकी अन्यिमनस्कता देखकर प्रीति
ने कहा, ‘तो जनाब चिंतन कर रहे हैं... अरे यार मैं दोस्त हूं तुम्हारी।
ज्यादा नैतिकता के चक्कर में पड़ोगे तो कहीं भी नौकरी नहीं कर पाओगे,
समझे।‘
कहकर प्रीति सीधे अपने कमरे में गई और बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया। सनी
का मोबाइल बजा। मकान मालिक की आवाज़ थी, ‘क्या नई नौकरी मिल गई है, जो सारा
किराया एक साथ चुका दिया?’
‘जी हां।‘
‘ओके गुडलक।‘
सनी ने देखा कि उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया हुआ है प्रीति का। उसने मैसेज
बॉक्स खोलकर देखा अंग्रेजी में लिखा था, जिसका हिंदी अनुवाद उसने कुछ इस
प्रकार किया।
‘यौन संबंधों में नैतिकता का मतलब शादी के बाद अपने साथी के प्रति समर्पण
से जुड़ा है। और विवाहेतर संबंध भी कोई अनैतिक नहीं होते, क्योंकि नैतिकता
दो किस्मों की होती है। एक होती है व्यक्तिगत और दूसरी सामाजिक।
व्यक्तिगत
नैतिकता से मनुष्यी जीवन चलता है और सामाजिक नैतिकता
से समाज। हम सामाजिक नैतिकता से
व्यक्तिगत जीवन नहीं चला
सकते और न ही
व्यक्तिगत नैतिकता से
समाज। इसलिए ज्यादा मत सोचो दोस्त। मेरे आने तक कहीं मत जाना। क्योंकि कहीं
तुम्हारा मन बदल गया तो... और... हां, मैं एक अच्छे दोस्त को फिर से
मुसीबतों में घिरा हुआ नहीं देखना चाहती।‘
- प्रेमचंद गांधी
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