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अपना-अपना
संतोष
बच्चों के स्वर में
उत्साह था ।रसोई में व्यस्त बच्चों की माँ के हाथ के बर्तन सामान्य दिनों
की तुलना में अधिक स्वर कर रहे थे ।निर्लिप्त भाव से बच्चों के पिता
कर्तव्य पूर्ति में लगे थे।
बच्चों ने चिल्ल पों मचाते हुए बैग में अपने कपड़े पैक किए, बच्चों की माँ
ने खुद से सवाल जवाब करते हुए रास्ते के लिए भोजन तैयार किया , बच्चों के
पिता ने गुनगुनाते हुए गाड़ी को धोया पोंचा,इंजन चेक किया , स्टेपनी
संभाली, राह के लिए संगीत रखा।
बच्चे , बच्चों की माँ और पिता कुछ घसीट कर कुछ उठा कर सामान बाहर लाए ,
बूट में ठूँसा, घर को असुरक्षित सुरक्षा का संतोष दिया , पिता ने कोहनी से
पड़ोसी की घंटी बजायी,बाहर आये बूमरा संग मुस्कान की लेनदेन के साथ सधे हुए
बॉलरों की तरह चाबी से कैच कैच खेला , बूमरा ने अनकहा समझा कि चाबी का क्या
करना है ।
चर्रररर के स्वर के साथ चीते की चाल से गाड़ी के टायर रीवर्स में घूमे ,एक
दाया ,दूसरा बायाँ और तीसरा सर्पिल मोड काट कार एन एच आठ पर दौड़ने लगी।
“अरसे बाद बाहर की हवा में साँस लेना कितना सुखद है।”
मृणाल ने म्यूजिक कार्ड को सेट करते हुए कहा ।
“हाँ !मगर हवा बाहर की कहाँ है?”
शेखर ने एक्सलेरेटर पर दबाव कम करते हुए कहा।
“मम्मी पागल बातें करती है , शीशे तो बंद हैं।”
पीहू और कुहू हँसे ।
गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ी , बच्चे खेलते कूदते सो गए , शेखर ने विरान सड़कों
को सराहा , मृणाल ने उस सराहना पर मुस्कान फेंकी ।
सितार के सुरों संग रागिनी चल पड़ी
लाजो लाजो ऽऽऽ
उँगलियाँ स्टीयरिंग पर नाची।
नाचती उँगलियों के शुभसंकेत पर मृणाल बोली
“गाजर का हलवा बनाया है , सोचती हूँ बीच में जयपुर रूक कर समीर के यहाँ
थोड़ा पकड़ाया जाए ।”
“गाजर का हलवा केवल तुम्ही बनाना जानती हो क्या?”
“ऐसा तो नहीं ।पर मेरे हाथ का समीर और सीमा को पसंद है , थोड़ा ज़्यादा बना
लिया दिल्ली से जयपुर बार बार आना कहाँ होता है रस्ते में पड़ रहा है देते
जाएँगे ।उसकी बिटिया के लिए लाए खिलौने भी पुराने पड़ रहे हैं ।”
“हमारे पास इतना समय नहीं है कि कहीं रूका जाए , रात तक पाली पहुँचना है,
ग्यारह तुमने यहीं बजा दिए हैं ।”
गाड़ी को टॉप गियर देते हुए शेखर बोला ।
“घर पर तो यूँ भी इन दिनों कैसे जाएंगे बस दरवाज़े से ही हलवा पकडा देंगे
नज़र भर देख लेंगे।”
“शहर के अंदर जाने और निकलने में कितना टाइम वेस्ट होगा गाड़ी चलाओ तो पता
चले ।”
प्लीज़ !पाली पहुँच थके पैरों की हाथों की मालिश कर दूँगी ।
ये तुम्हारी औरतों वाले इमोंशस, मुझसे नहीं होगा
हा! हाँ! तुमसे क्यों होगा , तुम्हें थोड़ी समीर ने अपना खून दिया था, मुझे
दिया था , मुझ पर फ़र्ज़ है उसका ।
हे ! भगवान । उस खून के मैं पिछले दस सालों से किश्तों में चुका रहा हूँ,
तुम्हें खून दिया है और मेरा खून चूस रहा है
आज और सही ।पर बाहर से ही।”
“हाँ बाबा इन दिनों इतनी जर्नी के बाद कोई घर में जाएगा क्या। हर कहीं डर
है ।”
“मृणाल- “हैलो !हैलो !सीमा कैसी हो ?
सीमा -कभी याद कर लिया करो भई ।इंतज़ार रहता तुम्हारी आवाज़ का”
मृणाल-“याद ही नहीं कर रही आ रही हूँ ।”
सीमा - यहाँ ???
मृणाल- हाँ !सरप्राइज़ कोटपुतली तक आ चुके दो घंटे में मिलते हैं ।”
सीमा - “वाह !ये तो बहुत अच्छी बात हुई , आ जाओ।
सीमा कितनी खुश है, अगर कोरोना का समय न होता तो थोड़ा बैठना बातें करना हो
जाता ।बाहर के गुजरते पेड़ों पर मृणाल की नज़रें ठहरना चाहती थीं।
सीमा “समीर !मृणाल और शेखर आ रहे
हैं ।”
समीर - “कहाँ ?”
सीमा -“घर पर ।”
समीर “यूँ अचानक !वो लोग कुशल तो हैं?”
सीमा - “कह रही थी सरप्राइज़ है।”
माँ “कौन आ रहा है बेटा ?”
सीमा “वो शन्नो बुआ की बेटी, शेखर की दोस्त मृणाल ।”
पिताजी “अरे !पर इन दिनों आना कहाँ ठीक रहेगा ?रास्ते में कितनों से
मिलेगी, कहाँ कहाँ रूकेगी ।”
सीमा -“मैं तो शुरू से ही कहती थी कि उसमें बुद्धि नहीं है ।अब भुगतना सब
जो कुछ हो गया तो , हमारा न सही बुजुर्गों का सोच लेती ।दोनों को अस्थमा है
।(सीमा ने साड़ी के खोंसे पल्लू को कमर से हटा माथे पर ढकते हुए कहा।)
“अब चुप क्यों हो शेखर ।सीमा ने घूरते हुए जोड़ा ।”
माँ -“मैं तो कहती हूँ मना कर दो कि फिर कभी आना।”
सीमा -“पर वो कोटपुतली से बोल रही थी ।
कुछ सोचिए मम्मी समीर से कुछ नहीं होगा ।”
समीर -“इतना परेशान क्यों हो ?उपर के कमरे में रूक जाएँगे, वो खुद भी अवेयर
है।”
सीमा - “अवेयर होती तो आती क्यों ?ये कोई सरप्राइज़ देने का समय है ?”
समीर - “अच्छा भाई मेरी दोस्त है तुम लोग भीतर रहना मैं मेहमाननवाज़ी कर
लूँगा ।”
सीमा “बस तुम्हारी यही आदत ऐसे असंवेदनशील लोगों को आस पास बनाए रखती है ।”
चुन्नु - ममा आंटी को सेनेटाइजर से नहला देना
मुन्नी -नहीं नहीं दरवाज़े पर से पानी डाल कहना होली है
चुन्नु- पर भैया होली तो तीन महीने पहले थी
मुन्नी- होली कभी भी पानी फेंक कर बोला जा सकता है पागल ।
दादी- चुप रहो मेरी साँस चढ़ रही है मुझे पंप सुँघने दो।
समीर “चलो उनके आने तक मैं कुछ खाने पीने का सामान बाहर से ले आता हूँ ।”
सास ने बहू को आँख का इशारा किया ।
समीर के जाते ही बहस फिर शुरू हुई, अंतिम निर्णय रहा कि समीर के आने तक
मुख्य दरवाज़े पर ताला लगा दिया जाए, इस बीच समस्या का निवारण हो जाए तो बच
गए ।
“हाँ नहीं तो क्या उसका मामा भी तो यहीं रहता है ।ताला देख वहाँ चलीं
जाएगी,सास ने बड़ा बाहरी ताला सजावटी डोंगे से निकालते हुए कहा।”
दरवाज़े पर ताला लगा सीमा ने भीतर आ अपना मोबाइल स्विच ऑफ किया और मुस्कान
भरी साँस भरी।
लज़ीज़ रेस्त्रां में सौंफ खाते हुए शेखर ने मृणाल को एक बार फिर हिदायत दी
कि समीर और सीमा चाहे जितना इसरार करें रूकना मत देर हो जाएगी ।
मृणाल ने फिर दोहराया कि देर की वजह का पता नहीं मगर बीमारी के दौर के कारण
वो दरवाज़े के भीतर न जाएगी, लाख ध्यान रख लो क्या पता चलता है ।
शेखर और बच्चों को मुख्य सड़क पर छोड़ वो रेस्तराँ के पीछे बने फ़्लोर की
तरफ़ चल दी , उसने तय किया था कि अकेले जाने पर न रूकने का बहाना बनाना
आसान होगा, इसरार उससे टाला नहीं जाता ।
S 6/95 फ़्लोर के सामने पहुँचने पर ताला देख उसने गार्ड से तस्दीक़ की कि
परिवार यहीं है , गाड़ी कुछ देर पहले निकली है ।
मृणाल ने हलवे का डब्बा, कुछ खिलौने भरा बैग सिक्योरिटी गार्ड को पकड़ाया
कि परिवार के लौटने पर देदे ।
उसकी ख़ुशी बनी रही कि मना न करना पड़ा , उसका भरोसा था कि समीर और सीमा
उसकी अगवानी की तैयारी के बंदोबस्त के लिए बाहर गए होंगे ।
खिड़की से उसके जाने का दृश्य देख सीमा अपनी योजना की कामयाबी पर खुश थी
,उसने बाहर जा कर ताला खोला और समीर को फ़ोन किया कि मृणाल को जल्दी थी सो
चली गई ।
-श्रद्धा आढ़ा
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