मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

एक नदी ठिठकी सी-3

'' तुम्हारा घर तो छोटा सा और कोजी सा है। ''

'' ये पेन्टिगंस तुमने बनाई हैं? कहाँ लतिका की पेन्टिगंस एकदम गडबडझाला।  ये कितनी सजीव हैं और जीने की प्रेरणा तो देती हैं।  लतिका की पेन्टिगंस में फ्रस्ट्रेशन साफ झलकता है।  नग्न मानव देह जिनके चेहरे जानवरों के, फीके सलेटी रंग, अनियमित आकृतियाँ क्या तुम्हें इस सबमें उसका अपना फ्रस्ट्रेशन नहीं दिखता? ''

केतकी कॉफी फेंटते हुए पार्थ की बातें सुन रही थी पार्थ ऐसे तो किसी के बारे में नहीं बोलतेआज क्या हो गया इन्हें?

'' देखो न अविवाहित रहने की जिद आखिरकार सालती है अन्दर कहीं।  कहीं तुम्हारा भी तो ऐसा ही इरादा... ''
''
मेरी बात छोडो पार्थ, और लतिका की उसकी जिन्दगी, उसके निर्णय।  व्यक्ति अपने निर्णयों के लिए स्वयं जिम्मेदार होता है।  तुम बहुत सन्तुष्ट हो अपने विवाह से? मैं ज्यादा तो नहीं जानती तुम्हारे बारे में लेकिन ऐसे विवाह का फायदा? साल में तीन या चार बार तुम दोनों मिलते हो, अकेलापन, मानसिक-शारीरिक जरूरतों के कष्ट और फ्रस्ट्रेशन तुम्हें भी उतना ही सालता होगा जितना मुझे या लतिका को। ''
''
पूरा सच तो नहीं है यह, मुझे शाश्वती का मानसिक सहारा है, बेहद अच्छी अन्डरस्टेन्डिग है हममें, पर हम दोनों अपने- अपने कार्यक्षैत्र में इतना व्यस्त हैं कि कभी ही हम एकदूसरे की कमी महसूस करते हैं।  जब कोई ठोस जरूरत हो तो तुरन्त छुट्टी ले लेते हैं। ''
''
पार्थ मैं तो विवाह का अलग ही अर्थ समझती रही हूँ।  तुम तो असमंजस में डाल रहे हो। ''
''
केतकी विवाह का जो भी अर्थ हो, यह एक सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है। ''
''
पार्थ, कॉफी ठण्डी हो रही है। ''
''
तुमसे बात करके अच्छा लगता है। चाहे तुम मुझसे बहुत छोटी हो पर सुलझी हुई हो।  आज तुमने मुझपर विश्वास कर,अपने घर बुला कर दोस्त बना लिया है।  अब इस विश्वास के सम्मान के लिए मैं यहाँ नहीं आऊँगा , तुम्हारा यह वर्जिन घर मेरी वजह से अपमानित न हो। ''

आज पार्थ को हुआ क्या है? लोग शराब पी कर मर्यादाएं भूल जाते हैं, ये हैं कि....  अद्भुत हो पार्थ तुम।  

'' चलूं केतकी ''

'' वह उसके माथे पर स्नेहिल चुम्बन दे कर सीढियाँ उतर गया''

केतकी आत्म-विस्मृत सी उसके साँवरे व्यक्तित्व में खोकर रह गई।  घनेरी रात केतकी के लिए एक गुपचुप बहती नदी हो गई।  

इस आकर्षण से केतकी ने जल्दी ही उबरना चाहा और उसे लगा उबर आई है।  अब इस सब की गुंजाईश ही कहाँ।  दोस्ती के लिए कब उसने दरवाज़े बन्द किए? देह का सवाल वह उपेक्षित करती ही आई है, इस बार भी कर दिया।  

समय ने क्षणिक आवेगों को शान्त कर दिया, न पार्थ का फोन आया, केतकी भी व्यस्त हो गई।  

मार्च माह के आरंभ के दिन थे, बसंत की गुनगुनाहट भरे दिन शायद बसंत पंचमी का दिन था।  अलसुबह एक छोटा सा कार्ड और ताजा तोडे पैंज़ी के फूलों का गुच्छा मिला।  

      '' सुन्दरी इस बार मदनोत्सव में क्या कर रही हो? ''

पार्थ तो ये बदमाशी तुम्हारी है।  लगता है अरसे पहले दी हुई मोहन राकेश की नाटिका  लहरों के राजहंस  उसने अब पढी है।  क्या जवाब दे सुन्दरी? असमय वैराग्य ने तो इस बार स्वयं उसकी अक्षय तरूणाई को आ घेरा है।  वरना कोई बसंत पंचमी यूँ फीकी गुज़री ? इतने में ही पार्थ का फोन आ गया

'' अब तक बिस्तर में हो, आज भी ! ''
''
कल लेट नाइट डयूटी थी। ''
''
कहीं चलोगी ? ''
''
कहाँ ? ''
''
यहाँ से करीब चालीस किमी दूर एक आदिवासी इलाके में एक इनक्वायरी है।  कहते हैं खूबसूरत जगह है , एक झरना है, जंगल है। ''
''
ना। आपके कॉन्स्टेबलों और गार्डस के हूजूम के साथ... ''
''
तुम न हमेशा पहले से ही अपने निष्कर्ष निकाल कर बैठ जाती हो।  मैं कुछ तो सोच-समझ कर तुम्हें आमंत्रण दे रहा होउंगा।  छोडो। ''
''
बस ऐसे गुस्सा होकर हमेशा हाँ करवा लेते हो। ''
''
तो लेने आ रहा हूँ। ''
''
रुको तो... ''
''
बस तैयार हो जाओ, ब्रेकफास्ट कुक बनाकर पैक कर चुका है।  तुम बस अपना सामान ब्रश, पेन्टस, ईज़ल और अपनी एक ड्रेस, एसेसरीज़ पैक कर लो। ''
''
क्या मतलब ? कब लौटेंगे हम ? जनाब कल मेरा ऑफ नहीं है।  कल मेरी शाम की डयूटी है। ''
''
फिर क्या समस्या है? हम दोपहर लौट आएंगे। ''
''
पार्थ... ''
''
मैं आधे घण्टे बाद तुम्हें मेन पोस्टऑफिस वाले चौराहे पर मिलता हूँ। ''

नियत जगह पर नियत समय पर पार्थ अपनी खटारा फिएट में से झाँके।  इनके जूनियर्स तक सेन्ट्रो में घूमते हैं और ये अपनी साफ छवि और बेदाग अन्तरात्मा लिए पत्नि से दूर इस दूरस्थ इलाके में पडे हैं।  व्यवहारिक लोग इन्हें सनकी कहते हैं।  

रास्ते भर खाते-पीते बतियाते दो घण्टे कच्चे-पक्के, उबड-ख़ाबड रास्ते पर चल कर एक भीलों के गाँव के पास लगभग जंगल में बने इस गेस्टहाउस में रुके।  घने पलाश और महुआ के पेडों से घिरा छोटा सा गेस्टहाउस।  वहाँ पहले से पार्थ के मातहत कुछ लोग मौजूद थे।  कुछ पुलिस वाले, कुछ अर्दली, कुछ स्थानीय पंच-सरपंच।  केतकी थोडा अपदस्थ महसूस कर रही थी।  उसे अंदर जाने का इशारा कर, पार्थ स्वयं व्यस्त हो गए।  कोई स्थानीय चुनाव से जुडा अपराधिक मामला था।  

गेस्टहाउस की बिल्डिंग काफी पुरानी थी मगर एस पी साहब के लिए पूरा इंतजाम था।  हाथ-मुँह धोकर, बाल सवाँर वह बडे से हॉल से होकर पिछवाडे तक पहुँच गई।  खूब खिले हुए पलाश के नीचे पार्थ का कुक हनीफ अपना संक्षिप्त सा चौका जोडे क़ुछ पका रहा था

'' क्या पक रहा है हनीफ? यहाँ भी साहब ने तुम्हें नहीं छोडा? ''
''
हाँ साब को हमारे हाथ का पका ही भाता है, आज बोल के अपनी गाडी में पहले से भेजा कि आप भी आएंगे तो हम चिकन दो पियाजा का इंतजाम करके ले जाये।  सब तैयार है।  बिरयानी बस दम पर है।  रोटी गरम सर्व करेंगे। ''
''
हनीफ मियाँ आपने भूख जगा दी पर आपके साहब तो हमें पिकनिक पर लाकर खुद दफ्तर खोल कर बैठ गए हैं।  चलिए तब तक हमें बिरयानी बनाना ही सिखा दें। ''

लंच होते-होते तीन बज गए।  फिर पार्थ और वह झरने के लिए निकल पडे।  एक चट्टान पर बैठ उस प्राकृतिक उत्स का सौन्दर्य निहारते रहे

'' पहले आए हो यहाँ? ''
''
दो बार, हर बार लोकल पन्चायत इलेक्शन्स के साथ यह इलाका सेन्सटिव हो जाता है। पर केतकी यह झरना इतना खूबसूरत कभी नहीं लगा। ''
''
हाँ! हाँ! इतना खूबसूरत कम्पनी भी तो नहीं थी ना! ''
''
शायद.. ''

झरने से छिटक आती बूँदों से दोनों ही हल्का सा भीग गए थे।  केतकी हल्के भीगे पार्थ की देह-गन्ध महसूस कर रही थी, वनजा कन्या की तरह इस ऐन्द्रिक सम्वेदनशीलता के अधीन होती जा रही थी।  तभी पार्थ ने टोका।  

'' केतकी चलो ठण्ड बढ रही है। '' उसने अपना पुलोवर उठा कर केतकी के कन्धों पर डाल दिया, अब वह देह-गन्ध और निकट से उसे आत्मविस्मृत करने लगी।  पार्थ सहज, संतुलित उसका हाथ थामे ऊँचे-नीचे पत्थरों से बचाए लिए चले जा रहे थे।  

लौट कर भी पार्थ फाइल्स लेकर बैठ गए वह अपना पिटारा उठा लाई और पलाश का एक पगला कर खिला पेड पेन्ट करने लगी।  वह कहीं उस दिन सच तो नहीं कह रहा था कि पेन्टिंग्स मन: स्थिति दर्शाती हैं।  क्या वह भी बौरा रही है? जंगल में खिले इस पलाश सी?

कुछ देर में ही दो ग्लास चाय ले पार्थ बाहर आ गए

'' डिनर में फिश खाओगी? मैं बनाउंगा बंगाली रेसिपी से। ''
''
सच तुम्हें आती है कुकिंग? ''
''
ऑफकोर्स। ''

डिनर के बाद वह इतना थक गई थी कि वह पार्थ की बिखरी फाइलों के बीच ही हाथ-पैर सिकोड क़र सो गई।  पार्थ बाहर कहीं व्यस्त थे।  लौटे तो वह गहरी नींद में थी।  उन्होंने फाइलों को समेटा, उसकी उघडी शर्ट को ठीक किया तो नींद में भी सिहर गई

'' केतकी।  केतकी। ''
''
हँ.. ''
''
उठो तुम्हारा कमरा पास वाला है।''
''
यहीं सोने दो न, तुम उधर चले जाओ ना.. ''
''
नहीं डियर, सुबह जब लोग आएंगे तो तुम्हारी नींद खराब होगी। ''
''
तो तुम ही ले चलो केतकी के वाक्य पूरा करने से पहले ही पार्थ ने उसे उठा लिया.. ''
''
तुम यूँ नहीं मानोगी जंगली बिल्ली।  और उसे ठण्डे बिस्तर पर पटक दिया। ''
''
यू ब्रूट ! कितना ठण्डा है ये कमरा। ''
''
अभी गर्म हो जाएगा ।  कह कर उसने उसे रजाई ओढा दी। ''
''
पार्थ कुछ देर तो रुको.. ''
''
तुम्हें तो नींद आ रही थी। ''
''
उडा तो दी इस ठण्डे बिस्तर ने। ''
''
दो मिनट तो दो , कपडे बदल कर तो आने दो।  चाय पियोगी ? ''
''
हाँ। ''
''
तो बना कर रखो। ''
''
यू मीन बडबडाते हुए केतकी ने अपना नाईट सूट बदला और जीन्स हैन्गर में लटका कर चाय बनाने चल दी। ''
''
चाय बन गई पार्थ अब तक तुमने कपडे नहीं बदले? कर क्या रहे हो? ''
''
चिल्ला क्यों रही हो पत्नियों की तरह ? ''
''
कर क्या रहे थे? ''
''
नहा कर सोने की आदत है। ''
केतकी रजाई में घुस कर चाय का मजा ले रही थी
'' तुम भी आजाओ पार्थ। ''
''
पहले तुम कितना भागती थीं मुझसे दूर और आज...क्या तुम वही केतकी हो? ''
''
तुमसे ही नहीं अपने आप से भी पार्थ... ''
'' पार्थ चप्पलें उतार कर दूसरी तरफ से रजाई में आ गए''
'' कितने ठण्डे पैर हैं तुम्हारे... ''
''
हाँ तो तुम अपने आप से क्यों डरती हो? शादी करने से बचती हो, यह सब क्यों ? ''
''
पता नहीं शायद ऐसी ही हूँ। ''
''
क्यों छुपाती हो खुदको मुझसे ? ''
''
मत छुओ वह हिस्सा जिसे मार्फीन देकर सुलाया है। ''
''
अच्छा छोडो।  पर इतना जानता हूँ कहीं स्पन्दन शेष हैं ।  जो व्यक्ति प्यार को जी चुका होता है वह फिर से जीवन से जुड सकता है।  सम्बंध बिखर सकता है पर प्यार का क्षीण सा स्पन्दन भी जीना सिखाता है।  अकेले रहने का जो भ्रम पाले बैठी हो वह जल्द ही टूट जाने वाला है। ''
''
कहीं तुम ही तो प्यार नहीं कर बैठे मुझसे? ''
''
मैं तो करता ही हूँ, तुम दोस्त हो मेरी।  मैं शादी की बात कर रहा था। ''
''
सबके सब मेरी शादी के पीछे पडे हैं। घर जाओ तो, दोस्तों से मिलो तो और अब तुम भी। ''
''
चलो छोडो.. ''
''
ए तुम वह महक क्यों धो आए जो शाम से बहका रही थी। ''

केतकी ने पार्थ के कन्धे पर सर रख कर जोर से निश्वास छोडी।

आगे

Top

Ek Nadi Thithki Si  1 | 2 | 3 | 4  

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com