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एक नदी ठिठकी सी-3 '' तुम्हारा घर तो छोटा सा और कोजी सा है। '' '' ये पेन्टिगंस तुमने बनाई हैं? कहाँ लतिका की पेन्टिगंस एकदम गडबडझाला। ये कितनी सजीव हैं और जीने की प्रेरणा तो देती हैं। लतिका की पेन्टिगंस में फ्रस्ट्रेशन साफ झलकता है। नग्न मानव देह जिनके चेहरे जानवरों के, फीके सलेटी रंग, अनियमित आकृतियाँ क्या तुम्हें इस सबमें उसका अपना फ्रस्ट्रेशन नहीं दिखता? '' केतकी कॉफी फेंटते हुए पार्थ की बातें सुन रही थी पार्थ ऐसे तो किसी के बारे में नहीं बोलते। आज क्या हो गया इन्हें?
''
देखो न अविवाहित रहने की
जिद आखिरकार सालती है अन्दर कहीं। कहीं तुम्हारा भी तो ऐसा ही
इरादा... '' आज पार्थ को हुआ क्या है? लोग शराब पी कर मर्यादाएं भूल जाते हैं, ये हैं कि.... अद्भुत हो पार्थ तुम। '' चलूं केतकी '' '' वह उसके माथे पर स्नेहिल चुम्बन दे कर सीढियाँ उतर गया। '' केतकी आत्म-विस्मृत सी उसके साँवरे व्यक्तित्व में खोकर रह गई। घनेरी रात केतकी के लिए एक गुपचुप बहती नदी हो गई। इस आकर्षण से केतकी ने जल्दी ही उबरना चाहा और उसे लगा उबर आई है। अब इस सब की गुंजाईश ही कहाँ। दोस्ती के लिए कब उसने दरवाज़े बन्द किए? देह का सवाल वह उपेक्षित करती ही आई है, इस बार भी कर दिया। समय ने क्षणिक आवेगों को शान्त कर दिया, न पार्थ का फोन आया, केतकी भी व्यस्त हो गई। मार्च माह के आरंभ के दिन थे, बसंत की गुनगुनाहट भरे दिन शायद बसंत पंचमी का दिन था। अलसुबह एक छोटा सा कार्ड और ताजा तोडे पैंज़ी के फूलों का गुच्छा मिला। '' सुन्दरी इस बार मदनोत्सव में क्या कर रही हो? '' पार्थ तो ये बदमाशी तुम्हारी है। लगता है अरसे पहले दी हुई मोहन राकेश की नाटिका लहरों के राजहंस उसने अब पढी है। क्या जवाब दे सुन्दरी? असमय वैराग्य ने तो इस बार स्वयं उसकी अक्षय तरूणाई को आ घेरा है। वरना कोई बसंत पंचमी यूँ फीकी गुज़री ? इतने में ही पार्थ का फोन आ गया।
''
अब तक बिस्तर में हो,
आज भी !
'' नियत जगह पर नियत समय पर पार्थ अपनी खटारा फिएट में से झाँके। इनके जूनियर्स तक सेन्ट्रो में घूमते हैं और ये अपनी साफ छवि और बेदाग अन्तरात्मा लिए पत्नि से दूर इस दूरस्थ इलाके में पडे हैं। व्यवहारिक लोग इन्हें सनकी कहते हैं। रास्ते भर खाते-पीते बतियाते दो घण्टे कच्चे-पक्के, उबड-ख़ाबड रास्ते पर चल कर एक भीलों के गाँव के पास लगभग जंगल में बने इस गेस्टहाउस में रुके। घने पलाश और महुआ के पेडों से घिरा छोटा सा गेस्टहाउस। वहाँ पहले से पार्थ के मातहत कुछ लोग मौजूद थे। कुछ पुलिस वाले, कुछ अर्दली, कुछ स्थानीय पंच-सरपंच। केतकी थोडा अपदस्थ महसूस कर रही थी। उसे अंदर जाने का इशारा कर, पार्थ स्वयं व्यस्त हो गए। कोई स्थानीय चुनाव से जुडा अपराधिक मामला था। गेस्टहाउस की बिल्डिंग काफी पुरानी थी मगर एस पी साहब के लिए पूरा इंतजाम था। हाथ-मुँह धोकर, बाल सवाँर वह बडे से हॉल से होकर पिछवाडे तक पहुँच गई। खूब खिले हुए पलाश के नीचे पार्थ का कुक हनीफ अपना संक्षिप्त सा चौका जोडे क़ुछ पका रहा था।
''
क्या पक रहा है हनीफ?
यहाँ भी साहब ने
तुम्हें नहीं छोडा?
'' लंच होते-होते तीन बज गए। फिर पार्थ और वह झरने के लिए निकल पडे। एक चट्टान पर बैठ उस प्राकृतिक उत्स का सौन्दर्य निहारते रहे।
''
पहले आए हो यहाँ?
'' झरने से छिटक आती बूँदों से दोनों ही हल्का सा भीग गए थे। केतकी हल्के भीगे पार्थ की देह-गन्ध महसूस कर रही थी, वनजा कन्या की तरह इस ऐन्द्रिक सम्वेदनशीलता के अधीन होती जा रही थी। तभी पार्थ ने टोका। '' केतकी चलो ठण्ड बढ रही है। '' उसने अपना पुलोवर उठा कर केतकी के कन्धों पर डाल दिया, अब वह देह-गन्ध और निकट से उसे आत्मविस्मृत करने लगी। पार्थ सहज, संतुलित उसका हाथ थामे ऊँचे-नीचे पत्थरों से बचाए लिए चले जा रहे थे। लौट कर भी पार्थ फाइल्स लेकर बैठ गए वह अपना पिटारा उठा लाई और पलाश का एक पगला कर खिला पेड पेन्ट करने लगी। वह कहीं उस दिन सच तो नहीं कह रहा था कि पेन्टिंग्स मन: स्थिति दर्शाती हैं। क्या वह भी बौरा रही है? जंगल में खिले इस पलाश सी? कुछ देर में ही दो ग्लास चाय ले पार्थ बाहर आ गए।
''
डिनर में फिश खाओगी?
मैं बनाउंगा
बंगाली रेसिपी से। '' डिनर के बाद वह इतना थक गई थी कि वह पार्थ की बिखरी फाइलों के बीच ही हाथ-पैर सिकोड क़र सो गई। पार्थ बाहर कहीं व्यस्त थे। लौटे तो वह गहरी नींद में थी। उन्होंने फाइलों को समेटा, उसकी उघडी शर्ट को ठीक किया तो नींद में भी सिहर गई।
''
केतकी। केतकी। ''
केतकी ने पार्थ के कन्धे पर सर रख कर जोर से निश्वास छोडी। |
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