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वनगन्ध-7
ठीक
अपनी शादी से जरा पहले अंतिम भेंट की लालसा लिये उससे मिलने मैं जोधपुर
चला गया था।
अपना सामान एक गेस्ट
हाउस में रख कर मैंने आकाशवाणी फोन किया,
डयूटी ऑफिसर ने बताया कि अभी वह किसी प्रोग्राम की
रिकॉर्डिंग्स में व्यस्त है।
नहाने जाने से
पहले मैंने कमरे में रखा रेडियो ऑन कर लिया।
कार्यक्रमों
के बीच-बीच उसकी
सधी आवाज क़ानों को सुख दे रही थी।
कितनी विविध
प्रतिभाओं से तो रचा है ईश्वर ने इसे,
मैं व्यर्थ ही डरता था,
इसने तो अपने लिये स्थान बना ही लिया।
अब ऐसी आकर्षक
,
प्रतिभायुक्त लडक़ी को कौन नहीं अपनाना चाहेगा? ''हलो
निखिल,
इन दिनों यहाँ....कुछ काम
था जोधपुर में।''
स्वर अक्खड थे,
मैं अचकचा गया।
मैं वेटिंगरूम में बैठा
सोचता रहा कि ये बदलाव सकारात्मक है या नकारात्मक?
क्या सचमुच वह मेरी बैसाखियाँ
छोड चल पडी है या
ये कोई अपने आपको कोई नई सजा देने की शुरूआत है? ''
आज का दिन मेरे साथ बिताना
पसंद करोगी? '' बस ज्वालामुखी छेड दिया था मैं ने। '' निखिल, क्या समझ कर चले आए हो? मैं बस देह हूँ? माना हमारा सम्बंध किसी आधार पर नहीं बस सहज मूक स्वीकृति पर बना, बिना किसी कमिट्मेन्ट के। पर कहीं तो मन भी होगा मेरा जो टूटता-जुडता होगा। तब तो स्वयं बताया तक नहीं गया कि सगाई कर ली है और अब। तुम स्वयं आकर कहते कि मानसी मैंने समझौता कर लिया और सगाई कर ली तो शायद आज तुम्हारा आग्रह हँस कर मान लेती और शायद... जब भी..., छोडो निखिल किसी और से सुनकर बहुत आहत हुई थी मैं। जाओ तुम अब। '' बहुत कुछ वह कहती रही , बहुत कुछ मैंने कहा। इतने अलौकिक सम्बंध का कटु अंत मुझे तोड ग़या। फिर भी रात बस में बैठने से पहले उसके हॉस्टल पहुँचा। न जाने क्यों गेट की आवाज सुन वह नीचे चली आई। '' कौन है चौकीदार जी? '' मुझे उसका यूँ मेरे आने की उम्मीद करना भला लगा और फिर से लगने लगा कि इस संबंध की अलौकिकता हमेशा रहेगी। ''
तो तुम्हें हमेशा की तरह
पता था कि मैं आउंगा? '' बहुत कठिन पल थे। धूमधाम से शादी हुई,
सबने अपने अरमान पूरे किये और मेरा एक नन्हा अरमान मन
के अंधेरे कोने में खो गया।
'' तो जनाब! पर्यावरण मंत्रालय में फाईलों के जंगल में वनसेवा कर रहे हैं? मेरा बी बी सी में एनाउन्सर के लिये एक इन्टरव्यू है दिल्ली में । मेरी दिल्ली में कोई जान-पहचान नहीं है, क्या मैं आपके पास आकर ठहर सकती हूँ? कोई आपत्ति ? '' स्वर्णा के लिये असह्य था। '' नहीं निखिल! मैं नहीं मिलना चाहती इस लडक़ी से.. '' फिर भी मैंने पत्र का जवाब फोन से दिया और पूछा ''ये नया शगल क्यों? '' '' पलायन समझ लो।'' मेरे
कहने पर वह आ गई। श्वसुर
गृह की सम्पन्नता पर बैठा मैं बार-बार उसकी उपस्थिति में अचकचा जाता।
स्वर्णा बार-बार
कहती रही नहीं मैं नहीं मिलूंगी
फिर भी मिली और उतनी ही सहज औपचारिकता से जितना वह हमारे परिवेश की अन्य
महिलाओं से मिला करती थी।
मिनी तो सहज ही
थी मगर अपने-आप में गुम सी।
पूरे दिन की
भागदौड उसने खुद ही की,
मैंने कहा भी मैं छोड
आऊँ जहाँ-जहाँ
भी जाना हो या
ड्राईवर भेज देता
हूँ। उसने यह
कहकर मना कर दिया कि अब तो अगर सलेक्शन हो गया तो पूरा देश ही अनजाना
होगा, सारे
रास्ते पूछ-पाछ कर ही तय करने होंगे ना।
'' तो भारत छोडने का इरादा कर लिया है। हाँ अच्छा है, बहुत अच्छा , बी बी सी बहुत वास्ट मीडीया है। वहाँ तुम्हें अधिक अवसर मिलेंगे। '' स्वर्णा और मानसी दोनों खूब
समझती थीं कि यह कृत्रिमता है और मैं मूर्ख सा वातावरण सामान्य करने की
चेष्टा में और असामान्य बना जा रहा था।
मानसी मृगांक से
खेलती रही ,
स्वर्णा कॉफी के सिप लेती रही।
जब नाम पूछने पर
मृगांक ने अपना नाम बताया तो मानसी ने मेरी ओर देखा,
स्वर्णा ने वह निगाह बीच ही में
भाँप
ली।
'' इन चार सालों में बखूबी अपने पैर जमा ही लिये हैं। मेरे एक रेडियो प्रोग्राम की सफलता के बाद मुझे टी वी चैनल पर वैसा ही एक कार्यक्रम एन्करिंग के लिये मिला है। बहुत खुश हूँ, हमेशा की तरह लगा इसे आपसे बाँटू। वैसे ही जब हर बार मैं मंच पर पुरस्कार लेती थी और आप कहीं दूर पीछे बैठे संतुष्ट हुआ करते थे। आज देर तक अपने जीवन और इसकी सार्थकता-निरर्थकता के बारे में सोच रही थी तो आप बेहद याद आए । अरसे से आपकी कोई खबर नहीं थी, दोष मेरा ही था मैंने अपने बदलते पतों का हिसाब आपको दिया ही नहीं, फिर भी आपके मम्मी से लिये पतों पर बर्थडे विशेज हमेशा मिली है। इतने सालों बाद पहली बार भारत आने का मन हुआ है। इतने दिनों मैं भाषा विज्ञान में पी एच डी करने की वजह से बस भारत आने की सोच भी नहीं सकी । पत्र में कुछ और भी अनलिखा
सा था जिसे मैं महसूस कर रहा था क्या कोई आया है मिनी के जीवन में?
कुछ और भी है जो वह
बाँटना
चाहती है।
क्यों एकदम ही दूर चले जाने का निर्णय लिया यहाँ रहकर भी तो अच्छी तरह जी सकती थीं? नहीं करनी थी शादी मत करतीं, कम से कम यह अहसास तो रहता यहीं हो आस-पास कहीं इसी देश में। यहाँ मेरा और तुम्हारे मम्मी-पापा का और वहाँ रह कर तुम्हारा मन नहीं टूटेगा? एक लम्बे चुप के बाद वह बोली थी- '' मन का क्या है, वह तो टूटता-जुडता है निखिल। मैं यहाँ और रही तो हमारा संबंध तिकोना हो जाएगा बस उसी स्थिति से बचना चाहती हूँ। फिर बी बी सी मेरा सपना है। मिलिंद बडा हो ही गया है सो मम्मी-पापा की चिन्ता नहीं है। कौनसा कभी न लौटने के लिये जा रही हूँ, मैं तो इसी ज़मीन का मौसम हूँ।'' रात की बदगुमानी कम नहीं हो
रही। एक
मूक प्रार्थना करता
हूँ, पर
उजाला नहीं
माँगता,
माँगने
से मिलेगा,
यकीन नहीं होता।
मैं उठकर कॉफी
बनाता हूँ। कॉफी
से मानसी और स्वर्णा दोनों का रिश्ता है।
स्वर्णा से हर
सुबह सात बजे की ताजा गर्म कॉफी,
एक नियम का रिश्ता।
और मानसी! वो
कहाँ
नियमों में विश्वास
करती! हम दोनों जब भी साथ हुए नौ-दस से पहले कभी नहीं उठे।
मानसी रजाई से
अपना चेहरा निकाल
झाँकती,
देखती मैं सो रहा
हूँ
तो खुद भी फिर सो जाती,
मैं भी देखता अभी सोई है तो दुबारा अपना भी चेहरा
ढाँप
लेता।
इस लुका-छिपी
में मैं ही उठता और जैसे ही अपनी चप्पलें टतोलता,
वह भी रजाई उतार बिल्ली सी कूद पडती।
फूलों वाले
खुशनुमा प्रिन्ट के नाईट सूट में वह बिल्ली की सी ही अंगडाई लेती और मेरे
बाथरूम से निकलने से पहले ढेर से झाग वाली कॉफी बनाए मिलती।
कई बार तो कॉफी
बना कर मेज पर रखे रॉकिंग चेयर में पर्शियन केट सी हाथ-पैर सिकोडे सोई
मिलती।
'' शादी के लिये तो मना कर चुकी ही थी, अब इस विषय पर बात तक नहीं करती ।'' |
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