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होली की शुभकामनाएं


होली का पर्व सुहाना यह.
सारी खुशियाँ घर लाना है ।
अब निशा दुखों की विदा हुई.
सुरभित दिनकर फिर आया है ।।
धर्म. जाति. भाषा के हम.
वाद – विवादों में पड़कर ।
अपनों को थे हम भूल गए.
थे भटक गए थोड़ा चलकर ।।
मंदिर – मस्जिद में हम अटके.
मानवता को विस्मृत करके ।
निज स्वार्थ जाल में फंसे रहे.
मन – मंदिर को कुलषित करके ।।
पर यह सब क्षणिक भुलावा था.
स्निग्ध चाँदनी फिर आई ।
हम फिर अतीत में लौट चले.
फिर बही सुगंधित पुरवाई ।।
राग – द्वेष विस्मृत करके.
आपस में हम पुनः मिले ।
सारी कटुता को दूर भगा.
प्रेम – पुष्प मन पुनः खिले ।।
हम सभी दिवाकर की किरणें.
जो हैं आपस में सभी एक ।
जग को आलोकित करती हैं.
बात दिखती हैं जो अनेक ।।
हम सब सागर की बूँदें हैं.
जिनका जीवन बहते रहना ।
सबको जीवन देना लेकिन.
अपनी विपदाएँ खुद सहना ।।
आओ जीवन में रंग भरें.
सतरंगी दुनिया में जाकर ।
आपस में मिल – जुलकर रहें और.
सबको जीवन में अपनाकर ।।
होली का पर्व तुम्हें शुभ हो.
जीवन के सब सुख तुम्हें मिलें ।
घर आँगन सुरभित रहें और.
इच्छित मन के सब पुष्प खिलें ।।
मर्यादाओं के तुम बन प्रतीक़
जीवन सरिता के बनो कमल ।
नभ में चंदा–से चमको तुम ।
यश – कीर्ति तुम्हारी रहे विमल'

– सुरेशचन्द्र विमल'
 


   
 

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