मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!


 

 

एक अकेला दरख्त

आज फिर
मैं खिड़की से सटा
देख रहा हूं
इठलाती बेलों को
जो लिपट लिपट कर
हमारे पिछवाड़े खड़े
खुश्क
चिनार के दरख्.त को
शायद
बसंत की करवटों का
एहसास दिला रही हैं

इन बेलों की फितरत
ही कुछ ऐसी है
यह जब जब चाहती हैं
तब तब अपने कसावों से
बांध लेती हैं
चिनार के दरख्त को।
मौसम के बीतते बीतते
ये कसाव
ये बंधन ढीले हो जाते हैं

ऐसा लगता है
जैसे कई युगों का साक्षी है
यह खुश्क चिनार
जाने कितनी आग समेटे
धधकते अतीत की
धूनी रमाये
जैसे हो कोई जोगी

जब जब यह युवा बेलों के
उत्साह भरे
उन्माद से भर जाता है
तब तब उसे अनुभव होता है
आत्मग्लानि का
क्योंकि
कुछ पलों को
वह भूल जाता है
अपना पैतृक स्वरूप
जिसका मात्र कर्म है
सहारा देना
संरक्षण करना
और मर कर भी
तिल तिल जलना

यह चिनार का दरख्त
इतना अकेला क्यों
प्रतीत होता है मुझे

– राजेन्द्र कृष्ण

  


 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com