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ईंट का बयान
चौराहे के उस कोने में
चबूतरे के बीचों बीच
पहले मुझसे मन्दिर बनाया गया
फिर किसी ने निर्मित की
चार विशाल मीनारें इर्द गिर्द मेरे
और मुझे मस्जिद कहा जाने लगा
इक्कीसवीं सदी के बाशिन्दों ने
जो उच्चकुल उपनाम हैं शायद
मुझ पर मुकद्दमा दायर कर दिया
जिस लोटे‚ जिस कलश में
दूध‚ गंगाजली भरकर
अर्पित किया जाता था
उसी लोटे‚ उसी कलश में
खून भरकर
न्यौछावर किया जाने लगा
सच‚ उस रात
मुझे‚ अपने ईंट पत्थर‚ बेजान अस्तित्व
होने पर बहुत अफसोस हुआ
उस रात
मैं ने ईश्वर अल्लाह को
बहुत बहुत कोसा और कहा
हे ईश्वर‚ ओ अल्लाह
काश तूने मुझ ईंट को
भारी वज़न के साथ साथ
थोड़ी सी जान मार
मारक – प्रहारक शक्ति भी
दी होती
फिर क्या मजाल
कि कोई हिन्दु‚ कोई मुस्लिम
मेरे ही प्रांगण में
मुझे ही तमाशा बना कर
सरे आम असभ्यता का
नग्न ताण्डव कर पाता‚
ये है उस ईंट का बयान
जिसे कभी पहले
मन्दिर बनाया और मस्जिद
आज शर्मसार है सारा जहाँ
शर्मसार मैं भी हूँ
शर्मसार आप भी हो
शर्मसार देश का
मौन ओढ़े
सर्वोच्च न्यायालय
का अन्र्तमन
ये है उस ईंट का बयान।

– डॉ विवेक साहनी


 

मन्दिर ने कहा मस्जिद से

मन्दिर ने कहा मस्जिद से
ए दोस्त‚ ए हमसफर मेरे
है प्रश्न आस्था के अस्तित्व का
वरना कभी का मिट्टी में मिल गया होता‚
मस्जिद ने भी आह भरी
और कहा मन्दिर से
ए दोस्त‚ ए हमसफर मेरे
बहुत शर्मिन्दा हुए
इस ज़मीं पर हम
आ – खुदकुशी कर लें

– डॉ। विवेक साहनी

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