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दूर नहीं है हिमांक

बड़ी तेजी से दुनिया
व्याकरण के बाहर हो रही है
दुनिया अपनी कोख में समा जाएगी
व्याकरण विहीन होकर
जबकि सब कुछ जल रहा है
यह जम रही है
जम कर क्या रह जाएगी दुनिया
?

इसका पिघलना किस अक्षांश पर होगा इसी फिक्र में
जम जाते हैं लोग‚ अक्सर

जबकि
उनके पास पिघलने की एकमात्र चिन्ता होती है
वे खुद जमने की ओर तेजी से अग्रसर होते हैं
बिना समझे कि
जमने अÝर पिघलने के बीच संतुलन का आस्वाद
उसकी आहट
उसे राहत दे सकती है‚ अगर वे सुनें

अगर यह हो पाए
अगर हो पाए तो
दुनिया एक साफ धुली हुई काली‚ कत्थई
स्लेट तक हो सकती है
जिस पर आदमी
गुणनफल में व्यस्त हो सकता है
इसके बाव.जूद बचा रह सकता है
कुछ न कुछ शेष
शेष नहीं तो कुछ चॉक
चॉक के साबुत टुकड़े

स्लेट के लिए चॉक का होना
दुनिया कÜ जलकर जमने से बचाना है
व्याकरण से बाहर जाती हुई दुनिया के लिए
एक व्याकरण
जो हमारी धमनी में है
हो सके तो मित्रों‚ उसे ढूँढो
अÝर इस निरंतर जमती हुई दुनिया को
आग से बचाओ

आंधी आने से पहले
बुझ जानी चाहिए
हर बोरसी की आग
अगर दो पत्थर कहीं पड़े हैं
तो आग को लेकर चिन्तित मत होओ
उसे बेझिझक बुझा दो
पैदा हो सकती है ज़रूरत पर आग

फिलहाल
आग अगर कहीं शब्द है
तो उसके माने बदल दो
आखिर दुनिया को चाहिए ही चाहिए
एक व्याकरण
अÝर व्याकरण को चाहिए
सही शब्द नहीं
सही नीयत
शब्द के बाहर भी हो सकते हैं– व्याकरण
बहुत दूर नहीं है हिमांक
ज़रा‚ जल्दी करो

– अभिज्ञात


 

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