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देव प्रतिमाओं के सच

मेरे शहर में एक देवालय है
छोटे बड़े कई प्रार्थना घर
सच्चे धर्मालु जानते हैं
मैं ने उन्हें कभी प्राचीन खण्डहरों में
भटकते नहीं देखा

इस असार संसार में
सच्चे तत्वदर्शी की प्रार्थना
खुला है जिसका तीसरा नेत्र
कभी विफल नहीं होती

वह सही समय पर
सही द्वार खटखटाता है
गढ़ लिये हैं उसने
प्रार्थना के नये कौशल

अनास्था और निराशा के इस कालखंड में भी
अवतरित हो चुका है युगपुरुष
अष्टसिद्धि – नवनिधि से सम्पन्न
लुटाता अर्हता सम्पन्नों की झोली में
प्रार्थनाओं के प्रत्युत्तर

उधर लौटते हैं
करोड़ों अज्ञानी
मृत – देवप्रतिमाओं से टकराने के बाद खाली हाथ निरुत्तर

– संजय कुमार गुप्त



 

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