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जीवन
तत्व और चेतना का संगम
जन्म लेता है जीवन
ज्ञान के धरातल पर
पूछता है स्वंय से
प्रश्न अनुत्तरित्
क्यों है उसका अस्तित्व
घाटियों की गूंज की तरह
प्रश्न बार बार लौट आता है
स्मुद्र की लहरों की तरह
चेतनता को भिगोकर लौट जाता है
बिखेर जाता है अमूल्य निधि
मन के किनारों पर
परंतु ज्ञान का धरातल अछूता रह जाता है ।

-दीपक रस्तोगी


   
 
        

वर्तमान
अपनी पीठ पर समस्याओं का बोझ लादे
हमारा अधेड़ वर्तमान
समय की असंख्य सीढियों पर‚
लगातार चढ़ रहा है
भविष्य की ओर बढ़ने की इस प्र्रक्रिया में
उसका बोझ
निरंतर बढ़ रहा है
जब वह थक जाता है तो निहारता है
उस भविष्य की ओर–जहां उसे पहुंचना है
पर बीच की असंख्य सीढियां …?
वह वक्र दृष्टि से देखता है बोझ को
या फिर अतीत को …
या फिर उन असंख्य सीढ़ियों को
जिन पर चढ़ कर वह वर्तमान बना है
और उसकी बुझी आंखें ढूंढने लगती हैं
वे सीढ़ियां जिन पर चढ़ कर वह यहां आया है ‚
जहां–जहां से उसकी पीठ का बोझ और बढ़ा है
इस गठरी में लदीं हैं समस्याएं
आत्मग्लानि‚ कुंठा‚ निराशा
और निरंतर भौतिकतावाद में डूबने की होड़
इस गठरी के कारण सुविधा भोगी वर्तमान
भूल गया है संतोष का सुख
भूल गया है साधनों की पवित्रता
ध्यान है केवल साध्य
वह भूल गया है मानवता के मंत्र का जाप
जो धो सकता है उसके समस्त पाप
अब वह समाज को जूते की नोंक पर बैठाता है
उसे ठेंगा दिखाता है
इसलिए अब वह चौपाल पर बैठ कर
मित्रों के साथ हुक्का नहीं गुड़गुड़ाता है
न ही हंसता खिलखिलाता है
अब उसने पकड़ रखा है माऊस
और चुपचाप बैठा क्लिक कर रहा है
वैब के अश्लील चित्र
निरंतर बदलती तस्वीरें उसकी आंखों के लाल डोरे
और बढ़ा देतीं हैं
लेकिन क्षण बाद ही
उसके मस्तिष्क का तनाव और बढ़ जाता है
उसकी बोझिल गठरी का बोझ
उसे और बोझिल कर जाता है
वह छूटना चाहता है इस बोझ से‚ इस पाप से
पर कैसे छूटे श्राप से
उसे करना होगा मानवता के मंत्र का जाप
तभी धुलेंगे उसके पाप
पर पता नहीं वह जामवंत कब आएगा
जिस के बताने पर वर्तमान
फिर अपना अतीत जान पाएगा
..

-सौरभ भारद्वाज
 


 

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