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मदर्स डे पर विशेष उसकी प्रकृति है मां होना वह मां कब नहीं थी? एक औरत कब मां नहीं होती? जन्म से लेकर अन्त तक… वह तब भी मां थी जब उसने अपनी मां की कोख से तीसरी लड़की बन कर जन्म लिया था सहमी हुई मां को देख कर साहस से मुस्कुराई थी… 'तुम क्यों चिन्तित हो… ढूंढ ही लूंगी अपनी ज़मीन नहीं होगा तो…खुद बुन लूंगी आसमां मुझे ही नहीं तुम्हें भी आश्रय देता हुआ।' वह तब भी मां थी जब पिता पूछते थे लाड़ से 'बता क्या लाऊं तेरे लिये' ' गुड़िया!' ' गुड्डा क्यों नहीं?' ' गुड़िया का ब्याह करुंगी।' वह तब भी मां थी जब उसने अंक में भरा था अपने मातृविहीन प्रेमी को सींच दिया था ममत्व से उसका एक मासूम सा सूखता कोना वह जब सच में मां बनी थी तो सो न सकी थी रात भर खुशी के मारे ताकते हुए अपनी ' सच्ची की गुड़िया' उसे हैरत हुई थी अपने मां होने पर जब लौटा कर दी थी ममता नन्हीं बेटी ने काम से लौटने पर एक प्याला चाय पकड़ा कर हंस कर कहा था ' मेरी नन्हीं सी मां वह कब मां नहीं थी? एक बच्ची‚ एक लड़की‚ एक प्रेयसी एक औरत कब मां नहीं होती? मां होना उसके गुणसूत्रों में छिपा है उसकी प्रकृति है मां होना... |
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